द लीडर : गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत साल 2016 से 2019 के बीच देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 5,922 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. जबकि साल 2019 में 93 लोगों के खिलाफ राजद्रोह (Sedition) का मामला दर्ज किया गया. इसमें 96 लोगों की गिरफ्तारी (Arrested) हुई है. बुधवार को संसद (Parliament) में पूछे गए प्रश्नों के जवाब में गृह मंत्रालय की ओर से ये जानकारी दी गई है.
गृहराज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने एक लिखित जवाब में कहा कि राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार 76 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए, जिसमें 23 लोगों को अदालत ने बरी कर दिया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएपीए और राजद्रोह के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. दरअसल, वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. उस समय राज्य के नेताओं, कार्यकर्तओं के विरुद्ध यूएपीए के अंतर्गत कार्रवाई की गई थी. हालांकि सरकार ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने का हवाला देकर अपनी कार्रवाई का बचाव किया था.
वर्तमान में किसान आंदोलन चल रहा है. बीती 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा भड़क गई थी और इसमें एक किसान नवरीत की मौत हो गई थी. इस पर कुछ पत्रकारों ने ट्वीट किया कि नवरीत की मौत पुलिस कार्रवाई में हुई है.
इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पत्रकार जफर आगा, सिद्धार्थ वरदराजन के विरुद्ध राजद्रोह के अंतर्गत कार्रवाई की गई है. यूएपीए और राजद्रोह जैसी संगीन धाराओं के अंतर्गत हो रही इन कार्रवाईयों को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर सवाल उठाता रहा है.
संसद के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलामनबी आजाद ने ये मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि पत्रकारों और देश के मंत्री रहे एक शख्स के विरुद्ध राजद्रोह की कार्रवाई करना उचित नहीं है. उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की थी कि उनका दिल बड़ा है. सरकार को ऐसी कार्रवाईयों से बचना चाहिए.
द लीडर : उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की किसान रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तीन नए कृषि कानूनों को राक्षसरूपी बताते हुए कहा कि ये सरकार के अरबपति मित्रों की मदद करेंगे, और किसानों को मारेंगे. इस सरकार के लोग और प्रधानमंत्री किसानों का मजाक उड़ा रहे हैं. 78 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों को आतंकवादी, आंदोलन जीवी कह रहे. ये सब कहने-बोलने वाले देशभक्त नहीं हो सकते.
प्रियंका गांधी ने गांव, जवान और किसानों को केंद्र में रखकर सरकार पर तीखे वार किए. उन्होंने कहा कि भाजपा अरबपति दोस्तों के लिए जमाखोरी, ठेकेदारी के दरवाजे खोल रही है. ये कानून लाकर मंडी व्यवस्था, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म करने जा रही है. इस स्थिति में किसानों की आवाज झुकेगी. ऐसा कोई कानून नहीं होगा, जो किसानों की मदद करेगा.
बोलीं, पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि सरकार बनते ही गन्ने का बकाया 15 हजार करोड़ रुपये ब्याज समेत भुगतान कराएंगे. इसके उलट मोदी जी ने 16 हजार करोड़ रुपये में दो हवाईजहाज खरीदे हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इनकी जबान में कितना वजन है.
20 हजार करोड़ रुपये खर्च करके संसद का सौंदर्यीकरण कराएंगे. इस सबके बीच आपको गन्ने का 15 हजार करोड़ का बकाया आज तक नहीं मिला. तंज कसा-जिनका दिल अपने अरबपति दोस्तों के लिए धड़कता हो वो किसानों की क्या परवाह करेंगे.
मगर किसानों का दिल अपनी धरती के लिए धड़कता है. किसान ने ही हरित और श्वते क्रांति के जरिये देश को आत्मनिर्भर बनाया है. उसी किसान का बेटा सरहद की हिफाजत करते हुए कुर्बानी देता है.और प्रधानमंत्री की सुरक्षा भी करता है.
लेकिन पीएम उस किसान का दिल नहीं पहचान रहे हैं. हर रोज किसानों का अपमान किया जा रहा है. यहां तक कि खुद पीएम ने संसद में किसानों को आंदोलन जीवी कहकर मजाक उड़ाया है.
प्रियंका ने कहा कि इस देश को किसान ने बनाया है. मोदीजी अमेरिका, पाकिस्तान और चीन जा सकते हैं. मगर अपने ही देश की जिस सीमा पर किसान पिछले 78 दिनों से धरने पर बैठा है. उस तक नहीं जा सकते. किसान प्रतीक्षारत हैं कि जिन्हें हमने वोट देकर प्रधानमंत्री बनाया है. वो हमारे पास आएंगे.
बोलीं, जो देश बेच रहा हो. उनसे क्या उम्मीद करेंगे? एयर इंडिया, सेल, ओएनजीसी समेत कई सरकारी कंपनी बेच दीं. मैं आपसे ये कहने आई हूं कि कांग्रेस और मैं आपके साथ खड़ी हूं. जिससे आप उम्मीद रख रहे हैं वो आपके लिए कुछ नहीं करेंगे. उनके वादे-शब्द, सब खोखले हैं.
सवाल उठाया कि लॉकडाउन में इनके अरबपति मित्र कहां थे-जब लोग पैदल गांवों की तरफ आ रहे थे? ये सरकार जिन लोगों के लिए काम करती है-उन्हें आपकी रत्ती भर भी परवाह नहीं है. आप एक कदम पीछे मत हटिए. हम आपके साथ खड़े हैं. कांग्रेस की सरकार आएगी तो ये कानून रद होंगे.
आपकी मदद के लिए कानून बनेंगे, न कि आपको बेचने के लिए. हम आपके दिल और जीवन के साथ राजनीति नहीं करेंगे. धर्म और जाति के आधार पर न ही तोड़ेंगे और न ही बांटेंगे.
द लीडर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा के बाद लोकसभा में तीन नए कृषि कानूनों को सुधार की दिशा में अहम कदम बताकर अपनी सरकार का इरादा साफ कर दिया है. वो ये कि इन कानूनों पर सरकार पीछे नहीं हटने वाली है. प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान आंदोलन का हम सम्मान करते हैं. मगर सुधार के लिए ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं. किसानों को कोई शंका है तो बताएं. कानूनों में फेरबदल किया जाएगा. पीएम ने कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने की जरूरत जताई है.
पीएम ने कहा कि मैं किसान आंदोलन को पवित्र माानता हूं. भारत के लोकतंत्र में आंदोलन का महत्व है जो जरूरी भी है. जब आंदोलन जीवी किसी पवित्र आंदोलन को अपने लाभ के लिए निकलते हैं तो क्या होता है. जो दंगाबाज लोग जेल में हैं. आतंकवादी जेल में हैं. उनकी मुक्ति की मांग करने हैं . ऐसा करना इस किसान आंदोलन को अपवित्र करने का प्रयास है कि नहीं.
बुधवार को प्रधानमंत्री लोकसभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कृषि चुनौतियों से भरा क्षेत्र है. विपक्ष के साथियों ने इन कानूनों पर जो चर्चा की है. अच्छा होता कि उसमें तथ्य होते और असर पर चर्चा की जाती. जहां तक आंदोलन का सवाल है. किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं. जब वे पंजाब में थे. तब भी सरकार ने उनसे बात की और अब भी कर रहे हैं. इस बीच कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी सदन में खड़े होकर बोलने लगे. प्रधानमंत्री अपने आसन पर बैठ गए.
लोसकभा स्पीकर ओम बिरला ने अधीर रंजन से आसन पर बैठने को कहा-तब प्रधानमंत्री ने दोबारा बोलना प्रारंभ किया. पीएम ने कहा कि आंदोलनरत किसानों का हम आदर करते हैं. कानूनों में संदेह बताएं, जरूर बदलाव किया जाएगा.
मगर कानूनों को लेकर गलत धारणा पैदा की गई. जबकि सच्चाई ये है कि नए कानूनों से किसानों को एक विकल्प मिला है. वो जहां चाहें वहां अपनी उपज बेच सकेंगे. मंडियां खत्म नहीं होंगी. एमएसपी बरकरार रहेगी.
पीएम ने कहा कि कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि जब किसानों को ये कानून नहीं चाहिए तो क्यों लाए गए. क्या किसी किसान ने प्रधानमंत्री सम्मान निधि की मांग की थी, नहीं. फिर भी हमने सम्मान निधि योजना लागू की. स्वच्छ अभियान की मांग भी नहीं की थी-सरकार ने दस करोड़ शौचालय बनवाए. उन्होंने राजा राम मोहन राय, डॉ. भीमराव आंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले के समाज सुधारों का जिक्र किया.
पीएम ने कहा कि देश को पब्लिक सेक्टर की जरूरत है तो प्राइवेट सेक्टर की भी. आज दुनिया में सबसे सस्ता डाटा भारत में है. हमें देश के नौजवानों पर भरोसा होना चाहिए. कोसते रहना अच्छा नहीं होगा. उन्हें बेईमान घोषित करना. ये कल्चर अच्छा नहीं है.
द लीडर : सोशल मीडिया कंपनी टि्वटर ने कहा है कि, ‘भारत में किसी पत्रकार, मीडिया संस्थान, सामाजिक कार्यकर्ता या राजनेता के टि्वटर एकाउंट पर कार्रवाई नहीं की है. उन पर कार्रवाई करना, भारतीय कानून के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा. केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय से ब्लॉक किए जाने के लिए चिन्हित अकाउंट्स को हमने भारत में अपने Country withheld content policy के तहत हटा दिया है. लेकिन ये सभी अकाउंट दूसरे देशों में चलते रहेंगे.’ टि्वटर ने फ्री स्पीच और ओपन इंटरनेट की तरफदारी की है. (Twitter Journalists Media Activists Politicians)
26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ट्वीटर को 1100 से अधिक अकाउंट्स हटाने को कहा था. इसी को लेकर ट्वीटर ने कुछ पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं के ट्वीटर अकाउंट बंद कर दिए थे.
हालांकि बाद में उन्हें चालू कर दिया गया था. चूंकि सरकार ने जिन हैंडल्स को चिन्हित किया. उन पर पाकिस्तान, खालिस्तान समर्थित होने का आरोप है. और विदेशों से संचालित हो रहे हैं.
सरकार ने टि्वटर को ऐसे अकाउंट्स बंद करने का आदेश दिया था. इसी को लेकर टि्वटर ने बुधवार को एक ब्लॉग लिखकर अपनी सफाई पेश की है. इसमें कहा कि, ‘हमें नहीं लगता कि एक्शन लेने के लिए हमें जो निर्देश मिले हैं. वो भारतीय कानूनों के मुताबिक हैं. फ्री स्पीच और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेसशन की सुरक्षा देने की अपनी प्रतिबद्धता का हम पालन करते हैं.’
‘केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय की धारा 69-ए, के तहत हमें कई ब्लॉकिंग ऑर्डर मिले थे. इनमें दो इमरजेंसी आदेश थे. इसका पालन करे हुए इन्हें बंद कर दिया गया. हालांकि भारतीय कानूनों को ध्यान में रखते हुए दोनों अकाउंट्स को दोबारा चालू कर दिया गया है. इसकी जानकारी सूचना मंत्रालय को दी तो हमें नॉन कंप्लायंस नोटिस भेज दी गई ‘
फेसबुक, टि्वटर, वाट्सएप जैसी प्रमुख सोशल साइट्स इन दिनों आलोचना का सबब बनी हैं. इस बात को लेकर कि इनके माध्यम से फेक न्यूज, भड़काऊ बयानबाजी, फोटो सामग्री साझा की हो रही है.
ट्रंप का बंद कर दिया था अकाउंट्स
पिछले दिनों अमेरिका के कैपिटल हिल्स पर हिंसा के बाद टि्वटर ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट बंद कर दिया था. फेसबुक ने भी उनके विरुद्ध यही कार्रवाई की थी.
फेसबुक और टि्वटर इंडिया हेड दे चुके इस्तीफा
बीते साभ भर के अंदर भारत में फेसबुक और टि्वटर इंडिया के दो प्रमुख अधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं. पिछले साल फेसबुक इंडिया की पॉलिसी प्रमुख अंखी दास ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. जबकि तीन दिन पहले ही टि्वटर इंडिया की प्रमुख महिमा कौल ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इन दोनों इस्तीफों को फेकन्यूज, दुष्प्रचार और भारत में कंपनी की पॉलिसी से जोड़कर देखा जा रहा है, ये अलग बात है कि कंपनी इन दोनों इस्तीफों को निजी कारण बताकर पल्ला झाड़ रही है.
द लीडर : उत्तर प्रदेश (UP) के कासगंज जिले में पुलिस (Police) पर हमले का एक मामला सामने आया है. इसमें एक सिपाही (Constable) की मौत हो गई. और सब इंस्पेक्टर गंभीर रूप से घायल हैं. बुधवार को पुलिस ने हमलावरों में शामिल कथित रूप से एक आरोपी का एनकाउंटर कर दिया है. राज्य सरकार ने मृतक सिपाही के परिजनों को 50 लाख रुपये का मुआवजा और एक आश्रित को नौकरी देने की घोषणा की है. (UP Police Hostage Encounter)
मंगलवार को सब इंस्पेक्टर (SI) अशोक कुमार और कांस्टेबल देवेंद्र कागसगंज के नगला धीमर गांव पहुंचे थे. बताते हैं कि गांव में अवैध शराब के कारोबार की सूचना मिली थी. आरोप है कि शराब माफियाओं ने सिपाही और दारोगा को बंधक बना लिया. और बेरहमी से पिटाई की. इसमें सिपाही देवेंद्र की मौत हो गई.
पुलिस टीम जब क्षेत्र के भ्रमण पर निकली, तो दोनों पुलिसकर्मी खून से लथपथ हालत में मिले. तब तक सिपाही की मौत हो चुकी थी. पुलिसकर्मियों को बंधक बनाकर हत्या की घटना ने पुलिस विभाग को झकझोर दिया.
बुधवार को सुबह पुलिस ने इस घटना के एक कथित आरोपी को मुठभेड़ में मार गिराया है. उसकी पहचान एलकार नामक शख्स के रूप हुई है, जो इस पुलिस पर हमले के मुख्य आरोपी मोती धीमर का भाई बताया गया है.
Accused Moti Dhimar & his brother among others attacked police, during search in Nagla Dhimar village,Kasganj. During exchange of fire, Constable Devendra Singh lost his life & SI Ashok Kumar was injured. We shot down main accused while search for others underway: ADG Law & Order pic.twitter.com/q1JeUcftqV
पुलिस के मुताबिक हमलावरों की तलाश के लगातार दबशें दी जा रही थीं, काली नदी के खादर में बदमाशों से मुठभेड़ हुई. जिसमें गोली लगने से एलकार घायल हो गया. जबकि अन्य बदमाश भाग निकले. एलकार को सिढ़पुरा सीएचसी ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
जिलाधिकारी सीपी सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सब इंस्पेक्टर और कांस्टेबल मंगलवार को नगला धीमर गांव में अपराधी की तलाश में गए थे. एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कांस्टेबल देवेंद्र ने अपनी जान गवां दी है. मुख्यमंत्री ने कांस्टेबल के परिवार को 50 लाख रुपये अनुग्रह राशि और नौकरी देने की घोषणा की है.
An inspector &a constable had gone in search of criminal in Nagla Dhimar village in Kasganj on Tuesday. In an unfortunate incident, constable Devendra lost his life. CM has announced to give ex-gratia of Rs 50 lakhs & job to a family member of the constable: Kasganj DM CP Singh pic.twitter.com/rIgeVEaUho
इसी तरह की एक घटना पिछले साल भी हुई थी. कानपुर के चौबेपुर क्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस विकास दुबे की गिरफ्तारी के लिए पहुंची थी. विकास दुबे ने पुलिस पर हमला कर दिया था. इसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे. इस घटना ने पूरे देश का ध्यान का खींचा था. बाद में पुलिस ने विकास दुबे का एनकाउंटर कर दिया था.
जिस ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट को रोकने के लिए उत्तराखड (Uttarakhand) के लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी और जिन्हें सुप्रीमकोर्ट (Supreme Court) ने भी एक बार रोक दिया था. उन्हें गुस्साए हिमालय ने आखिरकार अपनी गंगा में वेग लाकर बहा दिया. 2014 में इनके साथ ही 24 बांधों का काम रोका गया था. 2013 में पूरे उत्तराखंड में जल प्रलय जैसी हुई जिसे पूरा देश सिर्फ केदारनाथ हादसे के रूप में याद करता है, तब भी इन दोनों परियोजनाओं को नुकसान हुआ. विकास के नाम पर अंधी व्यवस्था दांव पेंच में लगी रही और एक-एक कर परियोजनाओं को फिर हरी झंडी मिलने लगी. (Rishiganga Floods Warning Injured Himalayas)
ऋषिगंगा पर एक प्रोजेक्ट तो बन गया लेकिन दो रोक दिए गए. जाहिर ये बने होते तो ये भी बह गए होते. 530 मेगावाट के तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट पर काम चल ही रहा था. यहां भी कई हजार करोड़ फिर से बह गए. अपनी पुस्तक में प्रोफेसर शेखर पाठक जिस उत्तराखंड को चुप प्रदेश बताते हैं. दरअसल वह पिछले 45-50 सालों से तो लगातार हिमालय को बचाने की धाद दे ही रहा रहा है.
इन धाद देने वालों में एक आवाज खुद उनकी भी है. हिमालय पुत्रों की ये आवाजें इस देश की सर्वोच्च अदालत में एक बार नहीं कई बार गूंजी, लेकिन समय पर ठीक से सुनी नहीं गई और फिर हिमालय ने बड़े हादसों के रूप में चेतावनियां दी. 2013 की केदारनाथ आपदा और अब ऋषिगंगा की बाढ़ ऐसी ही चेतावनियां हैं. इन आवाजों की, चीत्कारों की और चेतावनियों की लंबी फेहरिस्त है.
चार धाम नाम की जिस परियोजना पर दिल्ली और देहरादून के शाह इतरा रहे हैं उस पर भी सुप्रीम कोर्ट की हाईपावर कमेटी की सिफारिशों पर पानी डालते हुए काम जारी है और यह एक ऐसा कथित विकास हो रहा है जिसका खामियाजा आने वाली कई पीड़ियों को भुगतना पड़ेगा.
ये ताजा हादसा चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी के गांव के पास हुआ है. यही वह जमीन है जहां से हिमालय के संरक्षण के लिए अनपढ़ महिलाओं ने 1974 में पेड़ों से लिपट कर चिपको आंदोलन शुरू किया था. कई पुरस्कारों से नवाजे गए सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसीद भट्ट की प्रेरणास्थली है.
उत्तराखंड में स्थानीय जरूरतों और हिमालय की संवेदनशीलता के हिसाब से विकास के लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलन की शुरुआत भी इसी जमीन को माना जाना चाहिए क्योंकि इसी चिपको आंदोलन में उसका बीज था. आज उस रैणी गांव समेत करीब तीस गांव और मजरे शेष भारत से कट गए हैंं. फौज को चीन सीमा तक पहुंचाने वाला पुल भी नहीं बचा.
नंदा देवी पर्वत माला के घेरे ऊंची चट्टानों के बीच से बहुत ही वेग और पतली धार से निकलने वाली ऋषिगंगा यहीं से कुछ आगे बाहर निकलती है. परियोजना के लिए बन रही सुरंगों के धमाकों से परेशान यहां के लोगों की आवाज सुनकर ही पर्यावरणविद चंड़ी प्रसीद भट्ट और वैज्ञानिक नवीन जुयाल सुप्रीम कोर्ट तक गए थे.
विकास की अंधी सोच को आगाह किया, किसी ने नहीं सुना और नतीजा सामने है. आसपास के 11 गाव वाले ऋषिगंगा परियोजना के 46 लोग यहीं आसपास से नदी की धार में खो गए. यहां से और आगे तपोवन के पास बन रहे तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट में कंपनी के लोगों ने 203 लापता लोगों की सूची बनाई है.
लोग ऐसे ही कह दे रहे हैं कि नदी में कोई हिमखंड गिरा होगा या हिमनद टूटा होगा. हो सकता है ऋषिताल ही टूट गया हो. उत्तराखंड में रिमोट सेंसिंग केंद्र की जिम्मेदारी है कि ग्लेशियरों की गतिविधियों पर नजर रखें लेकिन उनकी नजर में कुछ नहीं हैं. हादसे से साफ है कि ये एक प्लैश फ्लड था, यानी अचानक कहीं रुका हुआ पानी पूरे वेग से बाहर निकला.
अब अगर वहां कुछ दिनों से कोई झील बन रही थी या किसी झील में एवलांच या ग्लेशियर के टुकड़े के गिरने से दबाव बना तो उसमें समय लगा होगा. केदारनाथ हादसे की तरह इस हादसे की सही वजह कुछ समय बाद ही पता चलेगी.
अब सवाल ये कि हिमालय की इस नई चेतावनी के बाद सरकार क्या कर रही है और क्या करेगी? प्रधानमंत्री ने तुंरत बंगाल से ही इस आपदा पर चिंता जाहिर कर दी थी और उत्तराखंड के लोगों के साथ होने का अहसास दिलाया.
मुख्यमंत्री ने हवाई दौरा कर आश्वस्त किया था कि मैदानों तक बाढ़ नहीं पहुंचेगी. पहाड़ों के बीच ही नदी सामान्य हो गई है. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ , बीएसएफ और प्रशासनिक मशीनरी काम में जुट गई. कुछ शव, कुछ मानव अंग किनारों से बटोरे गए हैं. नुकसान का आकलन हो रहा है.
आपदा राहत की एक खेप का ऐलान हो चुका. आगे क्या करेंगे? क्या ऋषिगंगा प्रोजेक्ट फिर से बनेगा? क्या तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट को हुए करोड़ों के नुकसान की भरपाई के बाद फिर वही 530 मेगावाट के प्रोजेक्ट पर काम शुरू होगा, या अब की बार उससे भी बड़ा बांध बनाने की सोचेंगे? लगता तो ऐसा ही है. आपदा में अवसर तलाशने वाले अपनी जुगत में होगे.
इस सबक के बाद सरकार कुछ अलग भी सोच सकती है क्या? क्या दूसरी परियोजनाओं की फिर से समीक्षा होगी? कुछ बांध परियोजनाएं रद्द होंगी? क्या चार धाम प्रोजेक्ट पर अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप काम होगा? पर्यावरण के मानक, भगीरथी इको सेंसिटिव जोन के प्रावधानों, सड़क परिवन मंत्रालय के अपने कायदे {2018 का नोटिफिकेशन}, इंडियन रोड कांग्रेस और हिल मैनुअल के प्रावधानों को लागू किया जाएगा?
पिछले साल सरकार ने चारधाम रोड के मामले में सुप्रीमकोर्ट की हाईपावर कमेटी के चैयरमैन रवि चोपड़ा, वैज्ञानिक डा नवीन और डा हेमंत ध्यानी को खलनायक बनाने के लिए जिस तरह मीडिया और सोशल मीडिया में कुछ पेड लोगों ने उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश की, उससे तो ऐसा नहीं लगता. चार धाम परियोजना में अब सरकार ने चीन का हौव्वा खड़ा कर रक्षा मंत्रालय को भी मोर्चे पर लगा दिया है, लेफ्टिलेंट जनरल काला जैसे अफसर सेना के बहाने को बेतुका मानते हैं.
उत्तराखंड के सीएम (CM) रह चुके मेजर जनरल खंडूड़ी यह कह कर बात टालते हैं कि यह तो चार धामों की रोड है, जब सेना (Army) के लिए सड़क बनेगी तो सेना की राय ली जाएगी. थल सेनाअध्यक्ष रहते हुए विपिन रावत (Vipin Rawat) ने कह ही दिया था कि सेना को मूव करना होगा तो ऐसे भी कर लेगी साजो सामान तो एयर लिफ्ट हो जाता है. तो फिर कई जगह तीखी ढलान वाले पहाड़ पर 900 किलोमीटर की 12 मीटर चौड़ी सड़क के लिए इतनी जिद क्यों है? इतने आंदोलनों और अदालतों में हार के बाद भी हिमालय पर बांध बनाते जाने की जिद क्यों?
जीडी अग्रवाल अविरल गंगा के लिए 115 दिन के उपवास के बाद दम तोड़ देते हैं, सरकार को फर्क नहीं पड़ता. सरकार को वैज्ञानिकों की बात समझ में नहीं आती है. प्रोफेसर शेखर पाठक हिमालय के इनसाइक्लोपीडिया हैं. उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक हरी भरी उम्मीद में तफ्सील से हिमालय की पीड़ा के साथ वो सारे तथ्य़ हैं जिनसे कथित विकासजीवियों की आंखें खुल जाएंगी.
डा नवीन और प्रोफेसर एस पी सती जैसे हिमालय के अध्येता वैज्ञानिकों की लेखमालाएं हैं. चंडी प्रसाद भट्ट जैसे बुजुर्ग अभी हमारे बीच बचे हैं. सरकार इन आवाजों को सुनना ही नहीं चाहती. बांधों के लिए हिमालय के अंदर 700 किलोमीटर से ज्यादा की सुरंगे खोदी गई हैं. दिल्ली में विकास के नक्शे बनाने वालों को इस बात की कोई परवाह नहीं कि हिमालय के लिहाज से भी अत्यधिक संवेदनशील है.
विशाल बांध बनाने की जिद कायम
विकास की इतनी जल्दी है कि हिमालय को समझने में समय नहीं गंवाना चाहते. पंचेश्वर जैसा विशाल बांध बनाने की जिद कायम है. जन सुनवाई भी फर्जी तरीके से हुई. हिमालय की बात उठाने वालों के साथ बदसलूकी हुई, एक पार्टी के कार्यकर्ता ही आम जनता बन गए. मैंने पिछले साल खुद क्षेत्र का दौरा कर लोगों से बात की. लोग बांध के रूप में तबाही नहीं चाहते, लेकिन सरकार कहती है जनता ने हरी झंडी दे दी है. दरअसल हजारों करोड़ों बिछाने में जिन लोगों का फायदा होता है वे जिस भी खेमे में जिस भी हैसियत में हों, वे बहुत बलवान हैं .
कर्नल पलफोर्ट अंग्रेजी हुकूमत में रायवाला यानी हरिद्वार के पास तैनात एक सुप्रिंटेडेट इंजीनियर का नाम है. जुलाई 1883 में उन्हें सूचना मिली है सुदूर हिमालय में अलकनंदा का सहायक नदी विरही में एक पहाड़ दरक कर बीच में आ गया है और बड़ी झील बन गई है. इसे गौना झील कहा गया. उन्होंने मौके पर अफसर तैनात किए वहां से रायवाला तक आनन फानन में टेलीफोन लाइन बिछाई ताकि पल पल की खबर मिले.
अध्ययन कर हिसाब लगया कि 15 अगस्त 1984 तक ये झील फट जाएगी. इस बीच झील में फिसिंग भी गई. और जैसे ही समय करीब आया हरिद्वार तक सारे किनारे खाली करा लिए. कुछ पुल भी हटा लिए गए. तय समय के 13 दिन बाद 27 अगस्त को बांध का एक हिस्सा टूटा लेकिन जनहानि शून्य रही. दूसरी बार जब यह झील पूरी तरह टूटी तो अंग्रेज जा चुका था 1970 की इस तबाही में कई लोग मारे गए.
(लेखक देहरादून में रहते हैं. हिंदुस्तान और अमर उजाला में संपादक रह चुके हैं.)
द लीडर. इंग्लैंड ने भारतीय टीम को उसी की धरती पर और उस चेन्नई के चेपक यानी एमए चिदंबरम मैदान पर जहां कि वह 35 साल तक अजेय रहा, उसे पराजित कर दिया. पराजय भी 227 रनों के विशाल अंतर से हुई है. तब जबकि विराट कोहली के अलावा सीनियर खिलाड़ी टीम का हिस्सा बन चुके थे. इस बड़ी हार ने ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में युवा ब्रिगेड के रौंदकर आने का मजा किरकिरा कर दिया.
दूसरी इनिंग में 420 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए टीम 58.1 ओवर खेलकर महज 192 रन ही बना सकी. इंग्लैंड के स्पिनर जैक रीच ने चार, जबकि तेज गेंदबाज जेम्स एडरसन ने तीन विकेट हासिल किए. जोफ्रा आर्चर, बेन स्टोक्स और डोमिनिक बेस ने एक-एक विकेट लेकर भारतीय टीम की कमर तोड़ दी.
विराट की अगुवाई वाली भारतीय टीम की हालत वैसी ही दिख रही है, जैसी पहले टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 36 रन के सबसे कम स्कोर पर आउट होने पर हुई थी. ऑस्ट्रेलिया से पिछली टेस्ट सीरिज में जिस तरह युवाओं ने जीत का परचम गाड़ा था, लग रहा था कि टीम अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगी.
तब तो और भी नहीं, जब कप्तान कोहली पैटरनिटी लीव से लौट आए. इशांत शर्मा और बुमराह की चोट से उबरने के बाद टीम में वापसी हुई. कार्यवाहक कप्तान बनकर टीम को ऑस्ट्रेलिया से विजयी बनाकर लौटे अजिंक्य रहाणे का प्रदर्शन भी इंग्लैंड के खिलाफ पहले टेस्ट में शर्मनाक रहा.
पहली इनिंग में महज एक और दूसरी में शून्य पर आउट हो गए. अजिंक्य की तरह उपकप्तान रोहित शर्मा ने भी निराश किया. दो पारियों में छह और फिर 12 रन का ही योगदान दे सके. टीम की हार का एक बड़ा कारण यह भी रहा. ओपनर शुभमन गिल का प्रदर्शन संतोषजनक कहा जा सकता है लेकिन वह अर्द्धशतक के इर्द-गिर्द ही मंडरा रहे हैं.
विराट ने दूसरी पारी में टीम की तरफ से सबसे ज्यादा 72 रन बनाए लेकिन जिस तरह इंग्लैंड टीम के कप्तान जो रूट ने लाजवाब पारी खेलकर दोहरा शतक और फिर दूसरी पारी में भी अपनी टीम की तरफ से सर्वाधिक 40 रन बनाए, ऐसा प्रदर्शन भारतीय कप्तान नहीं कर सके. 35 साल बाद इंग्लैंड चेपक मैदान पर परचम लहराने में कामयाब हो गया.
इंग्लैंड अब से पहले 1985 में यहां विजयी रही थी. खैर सेलेक्टर के लिए यह सोच का विषय है कि वह सीनियर खिलाडि़यों पर युवा ब्रिगेड को तरजीह दें.
द लीडर : सिने जगत के लीजेंड अभिनेता रहे राजकपूर के सबसे छोटे बेटे राजीव कपूर का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. रणधीर कपूर ने अपने भाई राजीव की मौत की पुष्टि की है. उनके मौत से सिनेमा जगत को एक और बड़ा झटका लगा है. पिछले साल राजीव के भाई ऋषि कपूर और इरफान खान का निधन हो गया था.
25 अगस्त 1965 को जन्में राजीव कपूर को राम तेरी गंगा मैली हो गई-फिल्म से शोहरत मिली. बतौर अभिनेता, उन्होंने इस फिल्म में शानदार अभिनय किया था. राजीव कपूर ने कई फिल्में कीं. एक्टिंग के साथ प्रोड्यूसर के तौर पर भी काम किया.
जिन फिल्मों में प्रोड्यूसर की भूमिका निभाई. वो हैं, प्रेमग्रंथ, आ अब लौट चलें और हेन्ना. इसके अलावा जिम्मेदार, नाग-नागिन, शुक्रिया, हम तो चले परदेस, जलजला, प्रीति, लवर ब्वॉय, लावा, मेरा साथी और आसमान जैसी अन्य फिल्मों में एक्टिंग की है. प्रेमग्रंथ फिल्म का निर्देशन भी राजीव कपूर ने ही किया.
राजकपूर के तीन बेटे हैं-रणधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर. ऋषि और राजीव की असमय मौत ने कपूर परिवार को गहरा आघात पहुंचाया है. सिनेमा को नई ऊंचाई देने में कपूर परिवार का अहम रोल माना जाता है.
आरती सभरवाल, राजीव कपूर की पत्नी हैं. रणधीर कपूर ने बताया कि सुबह को राजीव की तबीयत खराब हुई थी. वे उन्हें फौरन अस्पताल लेकर गए. डॉक्टरों ने हर संभव कोशिश की, मगर राजीव को बचाया नहीं जा सका. राजीव कपूर के निधन पर कई फिल्मीं सितारों ने शोक जताया है.
भारत के बारे में कुछ तत्थ हैं. द्रविड़ भारत के मूल निवासी नहीं थे. वे, आर्यो की तरह ही पश्चिम से भारत आए. लेकिन द्रविड़ पूर्व की जनजातियां-जैसे, भील्स, गोंड, संभाल, टोडा आदि. (भारत ऑनलाइन क्या है-ये मेरा लेख देखें.) ये आज हमारी आबादी का करीब 6 से 7 प्रतिशत ही हैं. (Religious Division Akbars Justice Katju)
इसलिए मोटे तौर पर भारत अप्रवासियों का देश है, जैसे उत्तरी अमेरिका. बस अंतर इतना है कि उत्तरी अमेरिका में मुख्य रूप से यूरोप से अप्रवासी आए. और बाद में अन्य देशों से भी. भारत में वे हजारों वर्षों से अप्रवासी आ रहे हैं.
भारत में लोग क्यों आ रहे हैं? इसलिए क्योंकि, असहज क्षेत्रों से लोग आराम की जगह की तरफ पलायन करना पसंद करते हैं. कोई भारत से अफगाानिस्तान क्यों पलायन करेगा. जोकि ठंडा है, साल के कई महीनों तक बर्फ से ढका रहता है. और चट्टान, पहाड़ियों के से घिरा कठोर, असुविधाजनक इलाका है.
औद्योगिक क्रांति से पहले कोई आधुनिक उद्योग नहीं थे. हर जगह कृषि समाजथा. खेतीबाड़ी के लिए जो जरूरी है. वो है भूमि, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता का होना. हमारे उपमहाद्वीप में ये सब बहुत बड़े पैमाने पर उपलब्ध था.
ये भारत की विविधता की व्याख्या करता है. अप्रवासियों का प्रत्येक समूह अपने साथ अपनी संस्कृति, धर्म, भाषा आदि लेकर आया. इसलिए केवल एक ही नीति है जो भारत को एकजुट रखकर तरक्की की राह पर ले जा सकती है. वो है, महान मुगल बादशाह अकबर की सुलेह-ए-कुल नीति.
जिसने सभी समुदाय के लोगों को एक जैसा सम्मान दिया. ‘सम्राट अकबर-असली पिता, सत्यम ब्रुयत नामक मेरे ब्लॉग पर लेख देखें.’ इसके सिवा कोई भी दूसरी नीति, जैसे कि आज धार्मिक धुव्रीकरण की नीति का पालन किया जाएगा, निश्चित रूप से अराजकता और आपदा का कारण बनेगी.
द लीडर : कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म हो रहा है. मंगलवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलाम नबी आजाद की दिलखोलकर तारीफ की है. इस कदर कि उनके साथ अपने रिश्ते, आत्मयीता और सहयोग के भाव को याद करते हुए पीएम मोदी भावुक हो गए.
पीएम ने कहा, ‘जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और गुलामनबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. हम दोनों की काफी नजदीकी थी. एक बार गुजरात के यात्रियों पर आतंकी हमला हो गया. मुझे, सबसे पहला जो फोन आया, वो गुलाम नबी का था. ये सिर्फ एक फोन नहीं था, बल्कि उनके (गुलामनबी) के अांसू रुक नहीं रहे थे.’ इसी घटना को याद करते हुए पीएम भावुक हो गए.
पीएम मोदी ने कहा कि ‘उस वक्त प्रणव मुखर्जी रक्षामंत्री थे. मैंने उनसे कहा कि, मृतकों के शव लाने के लिए सेना का हेलीकॉप्टर मिल जाए, तो उन्होंने कहा चिंता मत करिए. मैं, इंतजाम करता हूं. गुलामनबी उस रात को एयरपोर्ट पर थे. उन्होंने मुझे फोन किया और इस तरह से फिक्र की जैसे कोई परिवार का शख्स करता है. पीएम बोले, सत्ता, पद और प्रतिष्ठता जीवन में आते रहते हैं.
लेकिन उसे किस तरह पचाना है. कोई गुलामनबी से सीखे. वो पल मेरे लिए बड़ा भावुक था. एक दोस्त और घटनाओं के अनुभव के आधार पर मैं उनका सम्मान करता हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि उनकी सौम्यता, नम्रता और देश की खातिर कुछ कर गुजरने का जज्बा उन्हें चैचन से बैठने नहीं देगा. और देश उनके अनुभवों से लाभान्वित होगा. मुझे ऐसी आशा है.’
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामनबी आजाद ने अपने सरकारी बंगले को भी बेहद खूबसूरती के साथ संजोकर रखा है. उन्हें एक शौक है, वो बगीचे का. उनके बंगले में बड़ा खूबसूरत बगीजा है. जो हर बार कम्प्टीशन में पहला नंबर पाता रहा है.