जाटों से जस्टिस काटजू का आह्वान, मुजफ्फरनगर दंगों के लिए मुसलमानों से माफी मांग लें

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जस्टिस मार्केंडय काटजू

द लीडर : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में साल 2013 के दंगों ने हिंदू-मुसलमानों के बीच नफरत की जो गहरी खांई खड़ी कर दी थी. क्या, किसान आंदोलन उस पर मिट्टी डालकर पाटने का काम रहा है? इसका सामाजिक और राजनीतिक विशलेषण जारी है. इस बीच सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश रहे जस्टिस मार्केंडय काटजू ने जाटों से एक अपील की है. उन्होंने 2013 के उस घटनाक्रम के लिए मुसलमानों से माफी मांगने का आह्वान किया है. (Justice Katju Muzaffarnagar Riots Muslims)

मुफ्फरनगर दंगें में करीब 43 लोगों की मौत हो गई थी. और बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था. तब से इस क्षेत्र में सामाजिक भाईचारा बहाली की कोशिशें चली आ रही हैं, जो नफरत की उस दरार को भरने में असफल थीं. मगर किसान आंदोलन उन घावों का मरहम बन रहा है.


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शनिवार को जस्टिस काटजू ने कहा कि ‘2013 के दंगों के बाद जाटों को लेकर मेरी राय बदल गई थी. उन्होंने (जाटों ने) क्या किया, और किस तरह से धुव्रीकरण हुआ. सब कुछ साफ है. हालांकि मौजूदा किसान आंदोलन में वे जिस तरह खड़े हो रहे और उनमें मुसलमान भी शामिल हैं. उससे मेरी राय फिर बदली है. ऐसा लगता है कि मुसलमानों से उनकी दुश्मनी खत्म हो चुकी है.’

मुफ्फरनगर की महापंचायत में किसान नेता राकेश टिकैत, जयंत चौधरी के साथ गुलाम मुहम्मद जौला. फोटो, ट्वीटर

जस्टिस काटजू कहते हैं कि ‘स्पष्ट है कि कुछ स्वार्थी राजनेताओं के सांप्रदायिक दुष्प्रचार ने उन्हें गुमराह किया था. हर किसी से गलती होती है. लेकिन समझदार वो है, जो अपनी गलतियों से सबक लेकर माफी मांगता है. इसलिए मैं, जाटों से आह्वान करता हूं कि वे 2013 के लिए मुसलमानों से माफी मांगें.’


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पश्चिम उत्तर प्रदेश को जाट लैंड के तौर पर भी जाना जाता है. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकेत, जो कि वर्तमान आंदोलन का बड़ा चेहरा बनकर उभरे राकेश टिकेत कि पता थे. गुलाम मुहम्मद जौला, उनके सबसे करीबी माने जाते थे. यहां तक कि वे महेंद्र सिंह टिकेत के मंचों का संचालन भी किया करते थे. मगर 2013 के दंगों के बाद जौला और टिकेत परिवार अलग हो गए थे.

पश्चिमी यूपी की महापंचायत में उमड़ी भीड़

पिछले दिनों जब गाजीपुर बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन से राकेश टिकेत का एक भावुक वीडियो सामने आया. उसने इस क्षेत्र के सामाजिक तानेबाने को भी बदलकर रख दिया है. नफरतें, आंसुओं में बहने लगीं. इसके बाद पश्चिमी यूपी में महापंचायतें प्रारंभ हुईं. एक मंच पर गुलाम मुहम्मद जौला भी आए. उन्होंने मंच से जाट समुदाय को उनकी 2013 की गलती याद दिलाई. अब पश्चिमी यूपी में नफरत की दीवारें ढह रही हैं.

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