मनमीत
ऋषि गंगा कैचमेंट एरिया में हुआ हादसा 2013 में केदारनाथ में आई प्रलय से बिल्कुल अलग है। वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि हादसे के पीछे एवलांच या ग्लेशियर का टूटना कारण नहीं है।
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र को पिछले सात दिनों की मैपिंग रिव्यू में इसके कोई संकेत नहीं मिले हैं। अब ग्लेशियर की तलहटी में भूस्खलन से नदी का बहाव रुकने और उसके बाद झील बनना कारण माना जा रहा है।
ऋषि गंगा कैचमेंट एरिया में 14 ग्लेशियर हैं। इन सबका पानी नंदा देवी पर्वत श्रंखलाओं से निकलकर ऋषि गंगा नदी के रूप में आगे धौलीगंगा में मिलता है। रविवार को हुए हादसे के बाद वैज्ञानिकों ने ये आशंका जताई थी कि किसी कृत्रिम झील में एवलांच गिरा होगा, जिसके बाद झील टूटी और उसका पानी मलबे को साथ लेकर तेजी से गांव की तरफ आया।
अब उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने 31 जनवरी से सात फरवरी तक की मैपिंग जारी की है। जिसमें जिस क्षेत्र से पानी बहकर नीचे आया है, वहां पर किसी भी प्रकार की कोई झील नहीं पाई गई है।
यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने कहा, ”संभावना लग रही है कि भूस्खलन से नदी का पानी कुछ समय के लिये रुका हो। जिसके बाद प्रेशर पड़ने से वो झील ढह गई और पानी तेजी से हिमखंडो को लेकर नीचे की ओर आया हो।”
वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक डाॅ. नवीन जुयाल ने भी तकरीबन यही बात दोहराई। उन्होंने कहा, ”जिस वक्त ये आपदा आई, उसी क्षेत्र में शोधकार्य कर रहे थे। यह घटना एवलांच या ग्लेशियर के टूटने से नहीं हुई है।”
आशंका है कि भूस्खलन के कारण कई मल्टी लेक बने होंगे, जो प्रेशर पड़ने से एक के बाद एक ढहते चले गए, उन्होंने आगे जोड़ा।
प्रोफेसर जुयाल ने कहा, ”हिमालय में लगातार अब भूस्खलन हो रहा है। इस वजह से कई बार कृत्रिम झीलों का निर्माण हो रहा है, जो बाद में बड़े हादसों को जन्म देती हैं। इसके बचाव के लिये इन झीलों की लगातार माॅनीटरिंग सैटेलाइट के जरिए की जानी चाहिये। इस ओर गंभीर प्रयास की जरूरत है। कम हिमपात के चलते ग्लेशियर के नीचे की आइस भी अब पिघलने लगी है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं ज्यादा हो रही है।”
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1965 में सीआईए और भारत के सीक्रेट मिशन का हिस्सा बना नंदादेवी पर्वत
जिस नंदा देवी पर्वत श्रंखलाओं के बीचोंबीच ये हादसा हुआ, उसके गर्भ में एक बहुत बड़ा रहस्य भी छुपा हुआ है। नंदा देवी पर्वत 1965 में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और भारत सरकार के एक सीक्रेट मिशन का हिस्सा बनी थी।
1964 में चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था। चीन के इस टेस्ट की क्षमता का पता लगाने के लिए सीआईए ने भारत सरकार के साथ मिलकर एक मिशन चलाया था। इस गुप्त मिशन के तहत नंदा देवी पर कुछ सेंसर लगाए जाने थे, जो चीन में हुए न्यूक्लियर टेस्ट और इसकी क्षमता को बताने में सहायक साबित हो सकते थे।
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पहले अमेरिका के अलास्का में हुआ मिशन का ट्रायल
इन सेंसर्स को लगाने से पहले इसका ट्रायल अमेरिका में अलास्का की माउंट किनले पर 23 जून 1965 को किया था। वहां मिली सफलता के बाद नंदा देवी पर इस मिशन को अंजाम देने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन, नंदा देवी पर मौसम काफी खराब होने की वजह से इसमें सफलता हासिल नहीं हो सकी। मजबूरन वहां सेसर टीम को वापस आना पड़ा।
इस बीच में एक खास डिवाइस वहां पर छूट गया जो इस मिशन का ही हिस्सा था। मई 1966 में इस डिवाइस की खोज की गई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद 1967 और फिर 1968 में भी इसकी खोज की गई। उस वक्त भी इस डिवाइस का पता नहीं चल सका। अंत में इस डिवाइस की खोज को बंद कर दिया गया।
इतने वर्षों तक यह राज दफ्न था, लेकिन अब यह राज सभी के सामने आ चुका है। इस सिलसिले में अब तमाम रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं। इस मिशन के गवाह रहे कैप्टन मनमोहन सिंह ने इंटरव्यू में इस मिशन से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया है।
”यह मिशन बेहद सीक्रेट था। यही वजह थी कि मिशन के दौरान और बाद में भी मिशन से जुड़े सभी लोगों को यह सख्त हिदायत थी कि इस बारे में कहीं भी कभी भी किसी से कोई बात नहीं करनी है। उनके मुताबिक अमेरिका ने भी इस डिवाइस को लेकर कभी कोई बात नहीं की। जहां तक भारत की बात है तो सरकार ने मिशन के शुरू में ही अपनी बातें पूरी तरह से साफ कर दी थीं”, कैप्टन मनमोहन सिंह साक्षात्कार में बताया।