Wednesday, October 16, 2024
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पढ़िए-नारीवादी, महिला संगठनों का वो खुला पत्र, जिसमें लिखा-भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा देना होगा

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श्री शरद अरविन्द बोबड़े : 

हम, भारत के तमाम नारीवादी आंदोलनों और सचेत नागरिकों की तरफ से, मोहित सुभाष चव्हाण बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य की 1 मार्च 2021 को हुई सुनवाई के दौरान, आपके द्वारा की गई गई टिप्पणियों पर हम अपना क्षोभ और क्रोध व्यक्त करना चाहते हैं।

आप एक ऐसे आदमी की गिरफ़्तारी के खिलाफ याचिका सुन रहे थे जिस पर एक नाबालिग लड़की का पीछा करने, हाथ और मुंह बांधकर, उसका बार-बार बलात्कार करने का आरोप है। साथ ही उसको पेट्रोल से जलाने, तेज़ाब फेंकने और उसके भाई की हत्या की धमकी देने का भी आरोप है।

सच तो यह है कि यह मामला सामने तब आया, जब स्कूल में पढ़ने वाली इस नाबालिग पीड़िता ने आत्महत्या करने की कोशिश की।

सुनवाई के दौरान आपने इस आदमी से पूछा कि क्या वह पीड़िता से शादी करने के लिए राज़ी है, और साथ ही यह भी कहा कि उसे किसी लड़की को आकर्षित कर के उसका बलात्कार करने से पहले उसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था।


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मुख्य न्यायाधीश साहब, मगर क्या आपने यह सोचा कि ऐसा करने से आप पीड़िता को उम्र भर के बलात्कार की सजा सुना रहे हैं? उसी ज़ुल्मी के साथ, जिसने उसको आत्महत्या करने के लिए बाध्य किया?

हम भीतर से इस बात के लिए आह्त महसूस कर रहे हैं, हम औरतों को आज हमारे मुख्य न्यायाधीश को समझाना पड़ रहा है कि आकर्षण, बलात्कार और शादी के बीच क्या अंतर होता है। वह मुख्य न्यायाधीश, जिन पर भारत के संविधान की व्याख्या कर के लोगों को न्याय दिलाने की ताकत और ज़िम्मेदारी है।

श्री बोबडे जी, आकर्षण का मतलब है, जहां दोनों भागीदारों की सहमति हो। बलात्कार उस सहमति का, और एक व्यक्ति की शारीरिक मर्यादा का उल्लंघन है, जिसका मतलब हिंसा होता है। किसी भी हाल में दोनों को एक समान नहीं समझा जा सकता।

एक दूसरे मामले में (विनय प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) भी आपने पूछा, “यदि कोई पति – पत्नी की तरह रह रहे हों, तो पति क्रूर हो सकता है, लेकिन क्या किसी शादीशुदा जोड़े के बीच हुए संभोग को बलात्कार का नाम दिया जा सकता हैं? इस टिप्पणी से न सिर्फ पति के यौनिक, शारीरिक और मानसिक हिंसा को वैधता मिलती है, साथ ही औरतों पर हो रहे सालों के अत्याचार और उसके लिए न्याय न मिलने की प्रक्रिया को भी एक सामान्य बात होने का दर्जा मिल जाता है।


पूर्वी अफगानिस्तान में तीन महिला मीडियाकर्मियों की गोली मारकर हत्या


मुंबई हाईकोर्ट ने सेशंस कोर्ट द्वारा मोहित सुभाष चव्हाण को दी गई बेल आदेश की निंदा करते हुए कहा कि “न्यायाधीश का यह नज़रिया, ऐसे गंभीर मामलों में उनकी संवेदनशीलता के अभाव को साफ-साफ दर्शाता है।” यही बात आप पर भी लागू होती है, हालांकि उसका स्तर और भी तीव्र है।

एक नाबालिग के साथ बलात्कार के अपराध को आपने जब शादी के प्रस्ताव के एक ‘सौहार्दपूर्ण समाधान’ की तरह पेश किया, तब यह न केवल अचेत और संवेदनहीन था – यह पूरी तरह से भयावह और पीड़िता को न्याय मिलने के सारे दरवाज़े बंद कर देने जैसा था।

भारत में औरतों को तमाम सत्ताधारी लोगों की पितृसत्तात्मक सोच से झूझना पड़ता है, फिर चाहे वो पुलिस अधिकारी या न्यायाधीश ही क्यों न हो – जो बलात्कारी के साथ समझौता करने वाले समाधान का सुझाव देते हैं। “लेकिन ऐसे समझौते की सच्चाई तब समझ आती है, जब अनेक निर्णय में यह लिखा जाता है कि कैसे पीड़िता या उसके किसी रिश्तेदार ने आत्महत्या कर ली या उनका कत्ल किया गया, बलात्कारी के साथ ऐसे समझौते को नकारने के कारण।”

हम साक्षी थे जब आपके पूववर्ती ने अपने पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप की खुद सुनवाई की और खुद ही फैसला सुना दिया और उन पर लगे आरोपों को झूठा करार कर फरियादी और उसके परिवार पर मुख्य न्यायालय के पद का अपमान करने और चरित्र हनन करने का आरोप लगाया गया। तब आपने उसकी निष्पक्ष सुनवाई न कर के, या एक जांच न करके, उस गुनाह में अपनी भागीदारी की।


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एक दूसरे मामले में, जब एक बलात्कार के अपराधी को अपराध से मुक्त किया गया तब, उसके ख़िलाफ़ पेश याचिका को आपने यह कहकर रद्द कर दिया कि औरत के “धीमे स्वर में ना का मतलब हां होता है।” आपने पूछा कि औरत को किसानों के आंदोलन में क्यों “रखा” जा रहा है.

और उनको “वापस घर भिजवाने” की बात की- इसका मतलब यह हुआ कि औरतों की अपनी स्वायत्तता और व्यक्तित्व नहीं है, जैसे की मर्दों का होता हैं। और फिर कल आपने कह दिया की एक पति के द्वारा अपनी पत्नी पर किए जाने वाले शोषण को बलात्कार नहीं माना जा सकता है।

बहुत हुआ। आपके शब्द न्यायलय की गरिमा और अधिकार पर लांछन लगा रहे हैं। वहीं मुख्य न्यायाधीश के रूप में आपकी उपस्तिथि देश की हर महिला के लिए एक ख़तरा है। इससे युवा लड़कियों को यह संदेश मिलता है कि उनकी गरिमा और आत्मनिर्भरता का कोई मूल्य है।


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मुख्य न्यायलय की विशाल ऊँचाइयों से बाकी न्यायालयों और तमाम न्याय पालिकाओं को यह संदेश जाता है कि इस देश में न्याय, महिलाओं का संविधानिक अधिकार नहीं है। इससे आप उस चुप्पी को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसको तोड़ने के लिए महिलाओं और लड़कियों ने कई दशकों तक संघर्ष किया है।

और आखिर में इन सब से, बलात्कारियों को ये संदेश जाता है कि शादी बलात्कार करने का लाइसेंस है, और इससे बलात्कारी के सारे अपराध धुले जा सकते हैं। हमारी मांग है कि आप अपने इन शर्मनाक निर्णय को वापस लें और देश की सभी औरतों से माफ़ी मांगें। हम चाहते हैं कि एक पल की भी देरी किए बिना आप मुख्य न्यायाधीश के पद से इस्तीफ़ा दें।

(नोट-महिला समूहों का ये पत्र यहां ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया है. इसमें केवल व्याकरण की अशुद्धियों को एडिट किया गया है. इसमें व्यक्त विचार, तथ्यों से द लीडर का कोई सरोकार नहीं है.)

सुप्रीमकोर्ट : सरकार से अलग राय रखना देशद्रोह नहीं, याचिका खारिज कर 50 हजार का जुर्माना लगाया

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द लीडर : सुप्रीमकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर एक याचिका पर कहा कि ‘सरकार के विपरीत विचार रखना देशद्रोह नहीं है.’ शीर्ष अदालत ने रजत शर्मा और डा. नेह श्रीवास्तव की याचिका खारिज कर दी है. और उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. इसलिए क्योंकि याची अपने आरोपों को साबित करने में असफल रहे. (Supreme Court Government Treason Petition)

याचिकाकर्ताओं ने पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला द्वारा दिए गए एक लाइव बयान को लेकर याचिका दायर की थी. जिसमें दावा किया था कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने पर अब्दुल्ला ने कहा था कि इसकी बहाली के लिए चीन की मदद लेंगे.

याचि‍का में ये भी आरोप लगाया था कि वह कश्मीर को चीन के हवाले करने की कोशिश कर रहे हैं. याचिकाकर्ताओं ने अब्दुल्ला के खिलाफ आइपीसी की धारा-124-ए के तहत कार्रवाई करने और उनकी संसद सदस्यता खत्म करने की मांग की थी.


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बुधवार को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने इस मामले को सुना और याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने एक बार फिर बेहद अहम टिप्पणी की है कि सरकार से जुदा मत रखना, देशद्रोह के दायरे में नहीं आता है.

5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 समाप्त कर दिया था. इसके बाद घाटी के कई नेताओं को हिरासत में लिया गया था. जिसमें पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत अन्य नेता, एक्टिविस्ट शामिल थे. 13 मार्च 2020 को फारूक अब्दुल्ला का हिरासती आदेश रद हुआ था. इसके बाद से वे जम्मू-कश्मीर का पुराना दर्जा बहाली की मांग उठा रहे हैं.

पिछले दिनों संसद में बजट सत्र के दौरान भी फारूक अब्दुल्लाह ने जम्मू-कश्मीर में धारा-370 बहाली की मांग दोहराई थी. वहीं, धारा-370 हटाने की वैधानिकता से जुड़ी एक याचिका सुप्रीमकोर्ट में पहले से दायर है.


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यूपी : वहशियत की हदें पार, 12 साल की बच्ची को मारकर घर के गड्ढे में दबाया, दुष्कर्म की आशंका, आरोपी गिरफ्तार

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द लीडर : उत्तर प्रदेश में महिला अपराध की विभत्स घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. एक दिन पहले हाथरस में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी ने लड़की के पिता की गोली मारकर हत्या कर दी थी. अब बुधवार को बुलंदशहर से दिल दहलाने वाली दो घटनाएं सामने आई हैं. पहली घटना में नाबालिग बच्ची की हत्या और दुष्कर्म की आशंका से जुड़ी है. आरोपी ने उसे मारकर अपने घर के आंगन में दबा दिया था. (UP Killed 12 Year Girl)

मामला अनूपनगर थाना क्षेत्र के एक गांव है. 25 फरवरी को 12 साल की एक नाबालिग बच्ची अपनी मां और बहन के साथ खेत पर काम करने गई थी. जहां से वह लापता हो गई. तलाशने पर नहीं मिली, तो परिजनों ने 28 फरवरी को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. और हरेंद्र नामक व्यक्ति पर उसे गायब करने की आशंका जताई. बुधवार को पुलिस ने आरोपी हरेंद्र को हिमाचल प्रदेश से गिरफ्तार किया है.वहीं, लड़की की लाश, हरेंद्र के आंगन में एक गड्ढे से बरामद की गई है.

दुष्कर्म की आशंका से इनकार नहीं

बुलंदशहर के एसएसपी संतोष कुमार सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि आरोपी ने अपना जुर्म कबूल लिया है. उसने बताया कि लड़की घर में पानी पीने आई थी. लड़की पर उसकी नीयत खराब हो गई. दुष्कर्म का प्रयास किया. चिल्लाने पर घला घोंटकर उसकी हत्या कर दी. वहीं, बुलंदशहर के जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने भी पत्रकारों से कहा कि यौन शोषण की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. इस मामले में कठोर कार्रवाई करेंगे.


UP : किरदार पर शक में पागल शख्स ने बीवी-दो बेटियों को हथौड़े से मार डाला, तीसरी बेटी लड़ रही जिंदगी की जंग


दिल्ली में मजूदरी करता था आरोपी

एसएसपी के मुताबिक आरोपी दिल्ली में मजदूरी करता था और घटना के दिन ही वो घर लौटा था. उसके मकान में कोई अन्य सदस्य नहीं रहता था. पिता एक फॉर्म हाउस पर रहते हैं, जबकि भाई नागालैंड में मजदूरी करता है. घटना को अंजाम देकर वह हिमाचल भाग गया था.

शक में बीवी के साथ दो बेटियों को मार डाला

दूसरी घटना बुलंदशहर के आंबेडकर नगर की है. सईद शख्स अपनी बीवी और बेटियों पर शक करता था. इसी वजह से उसने मंगलवार की रात बीवी और तीन बेटियों पर हथौड़े से ताबड़तोड़ हमला किया. जिसमें बीवी सफीला, बेटी रजिया और शबनम की मौके पर मौत हो गई, जबकि सुल्ताना गंभीर रूप से घायल है. पुलिस की चार टीमें आरोपी की तलाश में जुटी हैं.


कैसे आयशा की मौत ने समाज, सरकार और धर्मगुरुओं की असलियत को उजागर कर दिया!


 

UP : किरदार पर शक में पागल शख्स ने बीवी-दो बेटियों को हथौड़े से मार डाला, तीसरी बेटी लड़ रही जिंदगी की जंग

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द लीडर : उत्तर प्रदेश (UP) के बुलंदशहर में एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है. एक शख्स ने अपनी बीवी और 3 बेटियों पर हथौड़े से वार किए. इसमें बीवी और 2 बेटियों की मौके पर ही मौत हो गई. जबकि तीसरी बेटी जिंदगी की जंग लड़ रही है. एसएसपी के मुताबिक, आरोपी को अपनी बीवी और बेटियों के किरदार पर शक था. घटना के बाद से वो फरार है. उसकी गिरफ्तारी की कोशिश की जा रही है. (UP Killed Two Daughters Wife)

घटनाक्रम शिकारपुपर कोतवाली क्षेत्र के आंबेडकर नगर का है. सईद नामक एक शख्स अपने परिवार की महिलाओं के चरित्र पर शक करता था. मंगलवार की रात को उसका परिवार में विवाद हुआ था. जिसके बाद उसने सोते समय महिलाओं पर हथौड़े से हमला किया. जिसमें बीवी सफीला और दो बेटियां-रजिया और शबनम की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीसरी बेटी सुल्ताना को मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है. जहां उसकी हालत नाजुक बनी है.


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घटना के बाद सईद के बेटे शमशाद ने कोतवाली में पिता के खिलाफ तहरीर दी है. इसमें इस बात का जिक्र किया है कि पिता को महिलाओं के किरदार पर शक था. इसको लेकर अक्सर घर में झगड़े हुआ करते थे. जिससे तंग आकर 22 साल के शमशाद, जोकि शादीशुदा हैं. अपना अलग घर बनाकर रह रहे थे. एसएसपी संतोष कुमार सिंह घटनास्थल पर गए. उन्होंने कहा कि जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार किया जाएगा. इसके लिए चार टीमें बनाई गई हैं.

रिश्तों के कत्ल वाले इस घटनाक्रम से इलाके के लोग सन्न हैं. मुहल्लेवाले भी बताते हैं कि सईद के परिवार में अक्सर झगड़े हुआ करते थे. लेकिन इन झगड़ों का अंत इस तरह होगा, किसी को अंदाजा नहीं था.

कैसे आयशा की मौत ने समाज, सरकार और धर्मगुरुओं की असलियत को उजागर कर दिया!

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सम्युन खान

खुदकुशी से पहले अहमदाबाद की आयशा ने जो वीडियो बनाया. उसे देखना बेहद तक़लीफदेह है. मगर उससे भी ज्यादा अफसोसनाक वो सोच है, जिसने आयशा की जान ले ली. आखिर हम, औरतों के लिए किस तरह का दमघोटूं समाज बना रहे हैं, जिसमें हर रोज कोई आयशा, पूनम जान गंवाती चली जा रही हैं. सभ्य समाज में वहशियत की हदें पार करती ऐसी घटनाओं पर मातम मनाने से बेहतर है कि बदलाव की दिशा में आगे बढ़ा जाए. (Ayesha Exposed Society Government Religious Leaders)

आयशा का वीडियो देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें किस कदर प्रताड़ित किया गया होगा, कि शौहर आरिफ और ससुरालीजनों के जुल्म से टूटकर घातक कदम उठाने को मजबूर हो गईं. हालांकि, आयशा का ये फैसला कतई अच्छा नहीं था. उन्हें, हालात से डटकर लड़ना चाहिए था.


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अब बात करते हैं उस सोच की, जिससे आयशा हार गईं. असल में दिक्कत हमारी मानसिकता में है. परिवार और समाज की सोच में है. हमारी व्यवस्था, शिक्षा, समाज और यहां तक कि हम सब इसके लिए बराबर के दोषी हैं. इसलिए क्योंकि ये किसी एक आयशा के सुसाइड भर का मसला नहीं है.

जैसा कि हर आत्महत्या पर दोष का मुलम्मा लगाकर उसे भूल जाने के हम आदि हो चुके हैं. बल्कि ये मुद्​दा, महिलाओं की सुरक्षा, आत्म-सम्मान, बराबरी और भावना से जुड़ा है.

तो इस पर पहला सवाल यही उठता है कि, जब-धार्मिक और संवैधानिक कानून ने महिलाओं को बराबरी का हक दे रखा है. तो फिर कैसे एक पुरुषवादी सोच, औरतों के बराबरी के अधिकार पर अतिक्रमण करके बैठी है.

इसका जवाबदेह कौन है? क्या इस सोच में महिलाएं शामिल नहीं हैं? धर्म के हर मामले में दखल देने वाले धर्मगुरुओं की क्या इस पर कोई जवाबदेही नहीं बनती?


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दूसरा-महिला सशक्तिकरण के लिए बड़ी-बड़ी बातें और दावे किए जाते हैं. सरकारें, कहते नहीं थकतीं कि महिलाओं को आत्मनिर्भर किए बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता. लेकिन हकीकत क्या है? क्या वे महिलाओं को सुरक्षा, आत्मबल देने में विफल नहीं हैं?

अगर ऐसा नहीं है तो फिर कैसे कोई सिरफिरा हाथरस की उस लड़की के पिता को सरेआम गोली मारकर कत्ल कर देता है, जिसकी बेटी का वो उत्पीड़न कर चुका होता है. इस तरह एक बाप बेटी के इंसाफ की जंग में अपनी जान गंवा बैठता है.

हाथरस, उन्नाव, कठुआ, दिल्ली निर्भया केस और बदायूं तक. ऐसी घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जिसमें बेटियों के आंसुओं पर देश में गम का सैलाब दिखता है, जो दूसरे ही पल हमारी स्मृतियों से ओझल भी हो जाता. महिलाओं के मुद्​दे पर ये आदत बदलने की जरूरत है. (Ayesha Exposed Society Government Religious Leaders)


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बेटियों को मानसिक सशक्त बनाएं

आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ बेटियों को मानसिक और भावनात्मक रूप से ताकतवर बनाने की जरूरत है. कोई लड़की प्रेम में धोखे का शिकार हो जाए, तो वो मौत को नहीं बल्कि जिंदगी का खूबसूरत रास्ता चुने. ससुराल की ज्यादती के खिलाफ डटकर खड़ी हो जाए. लड़े कि लड़ना है मुकद्दर. हमारी सरकारों को भी अधिक संवेदनशील और प्रशासनिक व्यवस्था को जिम्मेदार बनाना पड़ेगा कि, वे महिलाओं के खिलाफ अपराध को प्राथमिकता पर देखें.

धर्मगुरु अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें

महिलाओं के खिलाफ ऐसी घटनाएं रोकने के लिए हर समाज के धर्मगुरुओं को आगे आकर बड़ी भूमिका निभानी होगी. समाज के एक बड़े हिस्से पर धर्मगुरुओं का प्रभाव है. निश्चित रूप से दहेज प्रथा जैसी कुरीति के खिलाफ इनकी पहल सकारात्मक बदलाव ला सकती है. (Ayesha Exposed Society Government Religious Leaders)


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मौत किसी मसले का हल नहीं

फिर कहूंगी कि किसी हादसे से टूटकर मौत को गले लगाना, किसी मसले का हल नहीं है. बल्कि मौत नए मसलों को जनती है. जिसमें, परिवार बिखरते हैं. परिवार बेटियों से नजदीकी बढ़ाए. बेटियों के साथ बेटों को भी शिक्षित करें. ताकि बच्चे ऐसे नकारात्मक विचारों से आजाद रहकर सकें. कम से कम उन तमाम आयशाओं को जेहन में रखते हुए कि आखिर कोई आयशा इस कदर नकारात्मकता में कैसे घिर गई कि उसने अपना जीवन ही समाप्त कर लिया. (Ayesha Exposed Society Government Religious Leaders)

 

(लेखिका समाजसेवी हैं और समाजवादी पार्टी से जुड़ी हैं)

बेशक, आयशा लड़ाई के लिए नहीं बनींं पर इस तरह मरने को भी नहीं! काश ये जान पातीं

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‘अल्लाह से दुआ करती हूं कि अब दोबारा इंसानों की शक्ल न दिखाए.’ आयशा! बिल्कुल ठीक कहा. इंसान है ही इतना फितरती. फरेब, बेईमान, हिंसा और औरतों पर राज करने की भस भरे किरदार वाला. अब देखो. तुम्हारे साबरमती में कूदकर जान देते ही, पूरे कुनबे में बेचैनी रिस आई है. बड़ा तरस खा रहे हैं, तुम्हारी उस वीडियो वाली सूरत पर. वो भी, जो दहेज की खातिर बीवियों पर हर रोज जुल्म ढाते हैं. खैर, तुम्हें सुसाइड नहीं करनी चाहिए था. (Ayesha Born Die battle)

तुमने कहा था कि ‘मेरे पीठ पीछे जो भी हो, प्लीज ज्यादा बखेड़ा मत करना.’ लेकिन यहां तो सोशल मीडिया पर बवंडर खड़ा है. कुछ लोग हैं, जो तुम्हारे इस तरह मौत को गले लगाने को कतई अच्छा नहीं मानते हैं. मैं भी नहीं. तुम्हें डटकर लड़ना चाहिए था. तुम्हारे कहे अनुसार बेशक, ‘आयशा लड़ाईयों के लिए नहीं बनी है’. लेकिन कोई आयशा इस तरह मरने के लिए भी पैदा नहीं होती है.

तुम्हें पता है, जिस कथित दहेज प्रताड़ना से तंग आकर तुम साबरमती नदी में समां गईं. उस जुल्म की आग में देश की करीब 13,264 और आयशाएं 2019 से तप रही हैं. साल दर साल ये आंकड़ा बदलता रहता है. हालात नहीं. तुम चाहती तों महिलाओं पर जुल्म के किस्सें पढ़ सकती थीं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वेबसाइट पर सब कुछ दर्ज है. मुझे लगता है कि अगर तुम पढ़तीं तो यकीनन तुम्हें हिम्मत मिलती. कम से कम उस कमजर्फ आरिफ से लड़ने की, जिसके जुल्म में तुम फना हो गईं.

एनसीआरबी की साल 2019 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 4,05,861 महिला अपराध के मामले दर्ज हुए हैं. इसमें 32,264 मामले तो रेप के हैं. जानकर हैरत होगी कि इसमें 28,799 रेप के आरोपी पीड़ित महिलाओं-लड़कियों के पहचान के हैं. मसलन, कोई रिश्तेदार है, पड़ोसी-चाचा, ताऊ और भाई. मगर ये सब लड़ रही हैं, न. (Ayesha Born Die battle)


आसिफ इकबाल तन्हा का कुबूलनामा मीडिया में लीक होने की जांच रिपोर्ट पर हाईकोर्ट की दिल्ली पुलिस को फटकार


 

अब, हाथरस केस ही देख लीजिए. सोमवार को यौन उत्पीड़न के एक आरोपी ने लड़की के पिता की गोली मारकर हत्या कर दी. मंगलवार को वो लड़की, हाथरस पुलिस स्टेशन के बाहर इंसाफ मांगने खड़ी थी. तुम भी अदालत जातीं. जैसे हजारों और लड़कियां हर रोज, कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रही हैं.

सुसाइड से पहले जारी किया था लाइव वीडियो

अहमदाबाद की 23 साल की आयशा ने 26 फरवरी को साबरमती नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली थी. 2018 में उनकी शादी आरिफ खान से हुई थी. आरोप है कि आरिफ ने दहेज की मांग की खातिर आयशा को घर से बेदखल कर दिया था. इसी से टूटकर आयशा ने अपनी जान गवां दी. सोशल मीडिया पर आयशा ने आत्महत्या से पहले लाइव वीडियो जारी किया था, जिसको लेकर लोगों में जबरदस्त आक्रोश है.


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दहेज प्रथा पर पाकिस्तानी फोटो से असर नहीं

हाल ही में पाकिस्तानी मॉडल ने एक तस्वीर जारी की थी. जिसमें, औरत बुग्गी लेकर चल रही थी. और शौहर दहेज के साथ बुग्गी पर सवार था. दहेज प्रथा को बयां करती इस तस्वीर पर भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में खूब चर्चा हुई. जैसे, आज आयशा की मौत पर हो रही है. लेकिन दहेज को लेकर लोगों की मानसिकता पर कोई असर नहीं दिखा. आयशा की मौत इसका प्रमाण है.

दहेज प्रथा का हाल बयां करती पाकिस्तानी मॉडल की ये तस्वीर. साभार, ट्वीटर

आयशा के पिता के लियाकत मकरानी कहते हैं कि आयशा वापस नहीं आएगी. मैं जानता हूं. समाज से एक अपील करते हैं-हिंदू-मुस्लिम के झगड़े बहुत कर लिए. अब बेटियों के लिए लड़िए. फिर कोई आयशा इस तरह हमसे जुदा न हो पाए. वो तमाम बेटियां मेरी आयशा हैं, जिन्हें दहेज का दानव निगलने को आतुर है. उन्हें बचा लीजिए. (Ayesha Born Die battle)

आसिफ इकबाल तन्हा का कुबूलनामा मीडिया में लीक होने की जांच रिपोर्ट पर हाईकोर्ट की दिल्ली पुलिस को फटकार

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द लीडर : दिल्ली दंगा आरोपियों के कुबूलनामे (Statements) मीडिया में लीक होने और उसके ट्रायल (Media Trial) की जांच रिपोर्ट पर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने पुलिस को जमकर लताड़ लगाई है. ये कहते हुए कि ये जांच रिपोर्ट ‘अधपकी और कागज के बेकार टुकड़े के समान है.’ हाईकोर्ट ने जांच रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण देने के लिए विजिलेंस के कमिश्नर को 5 मार्च को अदालत में तलब किया है. (Asif Iqbal Tanha Delhi Police)

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा, दिल्ली दंगें के आरोप में जेल में बंद हैं. एफआइआर 59 के तहत उनकी गिरफ्तारी हुई थी.

दिल्ली दंगों की फाइल फोटो, साभार ट्वीटर.

इसके साथ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) कार्रवाई शामिल है. इसी एफआइआर में जेएनयू के पूर्व छात्रनेता उमर खालिद का भी नाम है, जिसमें वे जेल में बंद हैं. पिछले साल आसिफ इकबाल ने पुलिस के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया था.

आसिफ का ये कबूलनामा मीडिया में लीक हो गया. एक न्यूज चैनल समेत अन्य पोर्टल पर कथित रूप से गलत तरीके से खबर चलाई गई थी. इस मीडिया ट्रायल के खिलाफ आसिफ कोर्ट गए और याचिका दायर की.


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जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए थे. ये पता लगाने के लिए कि आसिफ इकबाल का कुबूलनामा मीडिया में कैसे लीक हुआ? कोर्ट ने पुलिस के साथ संबंधित न्यूज चैनल को भी नोटिस भेजा था.

पुलिस ने इसी मामले की जांच रिपोर्ट अब कोर्ट में पेश की है. मंगलवार को हाईकोर्ट ने इस जांच रिपोर्ट को देखा और सख्त टिप्पणी करते हुए पुलिस को फटकार लगाई है. चूंकि जांच हाईकोर्ट की निगरानी में हुई थी.

इसके बावजूद रिपोर्ट में कई अहम पहलू शामिल नहीं थे. हालांकि पुलिस ने अपने बचाव में कोर्ट को अवगत कराया कि इकबाल के बयान की रिपोर्ट दिल्ली सरकार के साथ गृहमंत्रालय को भी भेजी गई थी. और पुलिस के स्तर से बयान लीक नहीं हुए हैं.

आसिफ इकबाल ने ये उठाए थे सवाल

आसिफ इकबाल तन्हा ने कबूलनामा, मीडिया में लीक होने पर कोर्ट में कहा था कि ये निष्पक्ष जांच पर प्रभावित कर सकता है. दूसरा उनकी छवि भी खराब हो रही है. इससे पहले उमर खालिद भी अपने बयान के मीडिया में लीक होने के मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं.


हाथरस : जमानत पर चल रहे यौन शोषण के आरोपी ने लड़की के पिता को गोली मारी, मौत


 

एक अन्य आरोपी खालिद सैफी के मामले में भी ये बयान लीक होने का मामला सामने आ चुका है. यानी दिल्ली दंगा मामले की जांच में मीडिया ट्रायल समय-समय पर सामने आता रहा है और पुलिस की अदालत में किरकिरी होने का सिलसिला बना है.

दिल्ली में पिछले साल फरवरी में दंगे भड़क गए थे. इसमें करीब 53 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हुए थे. इस प्रकरण में जामिया, जेएनयू समेत अन्य शिक्षण संस्थानों के छात्र-छात्राएं, सामाजिक कार्यकर्ता जेल में बंद हैं.

हाथरस : जमानत पर चल रहे यौन शोषण के आरोपी ने लड़की के पिता को गोली मारी, मौत

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द लीडर : उत्तर प्रदेश के हाथरस से एक झकझोर देने वाली घटना सामने आई है. जमानत पर जेल से बाहर आए यौन शोषण के आरोपी ने लड़की के पिता की गोली मारकर हत्या कर दी है. घटना का एक वीडिया सामने आया है, जिसमें पीड़ित लड़की अपने साथ हुए घटनाक्रम और पिता को गोली मारने का कारण बता रही है. इस घटना ने महिला सुरक्षा के मुद्​दे पर एक बार फिर कानून व्यवस्था को आईना दिखाया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोपियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA)के तहत कार्रवाई का आदेश दिया है. (Hathras Accused Sexual Exploitation Shoots Girls Father)

घटनाक्रम हाथरस के सासनी क्षेत्र का है. पुलिस के मुताबिक मृतक ने आरोपी गौरव शर्मा पर 2018 में बेटी के साथ यौन शोषण का केस दर्ज कराया था. जिस मामले में उसे एक महीने जेल की सजा हुई थी. सोमवार को आरोपी की पत्नी और चाची मंदिर गईं थीं. वहीं मृतक की लड़की भी मंदिर गईं थी. पुराने केस को लेकर दोनों परिवारों के बीच कहासुनी हुई. आरोपी गौरव शर्मा और मृतक बाद में पहुंचे. आरोप है कि इसी बीच कुछ और लोग आ गए. और गौरव शर्मा ने लड़की के पिता को गोली मार दी.

घटना के बाद पीड़ित लड़की पुलिस स्अेशन के बाहर रोती-बिलखतरी रही. एक ही गुहार लगाती रही कि मुझे न्याय दो. लड़की ने बताया कि पहले उसने मेरे साथ छेड़खानी की और अब मेरे पिता को गोली मार दो. वो हमारे गांव भी आया था. पूछने पर पीड़िता बताती है कि गौरव शर्मा ने मेरे पिता को गोली मारी है.

इस मामले में पुलिस ने चार लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया और दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.

क्या लालू यादव की तरह बंगाल में भाजपा का रथ रोक पाएंगे तेजस्वी, क्यों मिलाया ममता से हाथ

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द लीडर : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव भाजपा के धुर विरोधी माने जाते हैं. यही पहचान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है. मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में यही दो ऐसे क्षत्रप दल हैं, जो भाजपा से सीधे मुचैटा ले रहे हैं. नजर दौड़ाकर देखेंगे तो बाकी, ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां रक्षात्मक मुद्रा में नजर आएंगी. चूंकि बंगाल में विधानसभा का सियासी रण सजा चुका है. ऐसे में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव का बंगाल जाकर ममता बनर्जी के साथ खड़ा होना, दो मायनों में खास है. (Bengal Tejaswi Mamta Lalu Yadav)

पहले ये जान लें कि बंगाल की 294 विधानसभा सीटों पर 27 मार्च से 8 चरणों में चुनाव होंगे. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC)और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला है, इसमें कोई दोराय नहीं. कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन है. हैदराबाद से सांसद असदुद्​दीन ओवैसी की (AIMIM)भी बंगाल में चुनाव लड़ेगी.

इस सबके बीच बंगाल में भाजपा का जनधार लगातार मजबूत हो रहा है. जिसका श्रेय, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह के बेमिसाल नेतृत्व को है.


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केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा आज देश की सबसे ताकतवर पार्टी है. जाहिर है कि उसके सामने टीएमसी अकेली और छोटी नजर आती है. जिस पर भाजपा ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने का इल्जाम भी मढ़ रखा है.

ऐसे में बिहार-विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का ममता बनर्जी के साथ खड़े होने का पहला संदेश तो भाजपा को है. तेजस्वी, ममता के साथ जाकर ये जतना चाहते हैं कि पिता लालू यादव के नक्शेकदम पर चलकर, हर मोर्च पर भाजपा से डटकर लड़ेंगे.

इसके दो लाभ है. पहला-तेजस्वी की छवि लालू यादव जैसे बेबाक और धाकड़ नेता की बनेगी. जैसी कोशिश दिखती है. दूसरा, राजनीतिक स्तर पर ये संदेश जाएगा कि लालू की आरजेडी, हर हाल में भाजपा से लड़ने का दम रखती है. बंगाल जाने से न सिर्फ बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी तेजस्वी और उनकी पार्टी का कद ऊंचा होगा. इसमें कोई शंका नहीं है.


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दरअसल, पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को भाजपा-जदयू गठनबंधन से शिकस्त खानी पड़ी थी. मगर चुनाव के बाद से तेजस्वी मुख्यमंत्री नितीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार को शिक्षा, रोजगार और कानून व्यवस्था के मुद्​दे पर लगातार कठघरे में खड़ा करते रहे हैं.

सदन में ऐसा भी एक मौका आ चुका है, जब मुख्यमंत्री नितीश कुमार को तेजस्वी यादव पर भड़कते देखा गया.

हाल में तेजस्वी यादव ने जिस तरह से रोजगार के मुद्​दे पर नितीश सरकार की नाक में दम कर रखा है. और डबल इंजन की सरकार बोलकर हमला कर रहे हैं. वह एक मजबूत विपक्षी नेता की छवि बनाने में सफल होते दिख रहे हैं. और जिसे वह बड़े फलक पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश में द‍िखते हैं.

सोमवार को तेजस्वी यादव ने बंगाल में ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद जो संदेश दिया. पहले, उसे समझ लीजिए. तेजस्वी ने कहा कि, ‘जहां भी जरूरत पड़े हम, ममता बनर्जी के साथ खड़े हैं. हमारी पहली कोशिश है कि भाजपा को यहां बढ़ने से रोकना.


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ममता जी को जिताने में हम पूरी ताकत लगाएंगे. भाजपा ने देश के लोगों को ठगने का काम किया है.’ इस दौरान तेजस्वी ने लोगों से ममता बनर्जी के पक्ष में वोट डालने का आह्वान भी किया है. इस बयान में भी तेजस्वी भाजपा को निशाने पर लिए हैं.

वहीं, तेजस्वी से मिलकर ममता बनर्जी ने कहा कि, ‘हम लड़ रहे हैं तो तेजस्वी भाई लड़ रहे हैं. अगर तेजस्वी लड़ रहे हैं तो हम लड़ रहे हैं. यह संदेश भाजपा को जाना चाहिए. आप जान लीजिए बिहार में आपकी सरकार नहीं टिकेगी. बंगाल में भी आपको कुछ नहीं मिलने वाला है.’

बंगाल में आरजेडी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी. पत्रकारों के इस सवाल को तेजस्वी टाल गए. हालांकि बंगाल में आरजेडी का कोई मजबूत जनाधार नहीं है. और जिस तरह से उन्होंने ममता के साथ खड़े होने का संदेश दिया है. उससे इस बात की संभावना कम ही बचती है कि आरजेडी अपने कैंडिटेड खड़े करेगी.

पाकिस्तान से अलग होकर भारत में शामिल हो गया यह गांव

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मनमीत

भारत के सबसे उत्तरी छोर पर हिमालय की काराकोरम शृंखलाओं के दामन पर बसा है खूबसूरत गांव तुर्तुक। साढ़े तीन सौ की आबादी वाले तुर्तुक गांव की सुबह भी कुछ वैसी होती है, जैसे उच्च हिमालयी गांव की अलसाई सुबह शर्माते बलखाते हुये आती है और उसकी नजाकतें हमारी अलसाई देह को उठने पर मजबूर कर देती हैं।

स्कूल जाते बच्चों की चहचहाहट, खेतों के मुंडेरों से गुजरती मदमस्त घंटियों को बजाती हुई गायों का झुंड। खेतों में पानी छोड़ते मर्द और ओंस लगे पेड़ों से खुबानी-आड़ू झाड़ती औरतें। जो थोड़ा अलग था वो था नदी के पार पश्चिम की ओर अकड़ में खड़ा एक पहाड़। जिसके पीछे हर शाम तुर्तुक का सूरज छिपता और पहाड़ के ऊपर बैठे पाकिस्तानी चेकपोस्ट से गांव की ओर झांकती ‘एलएमजी’। जिसकी परवाह अब न तुर्तुक के बच्चों को थी और न किसी भी आम गांववासी को. Turtuk Village Pakistan India

तुर्तुक गांव कभी बाल्टिस्तान रियासत का हिस्सा था। तुर्तुक ही नहीं, उसके आसपास के सभी गांव मसलन त्यासी और चालुंगा भी। 1965 के युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्ता के बाद ये इलाका पाकिस्तान द्वारा प्रशासित होने लगा। लेकिन, 1971 के युद्ध में भारत ने इस खूबसूरत इलाके को वापस पा लिया। तब से यहां के बाशिदें हैं।

यब्गो वंश के सबसे पहले राजा सारेल गजाली के वंशों ने यहां पर 18वीं सदी तक राज किया। कई हमले झेले और कई बार जीते भी। सेंट्रल एशिया के तुर्किमनिस्तान से आये यग्बो वंश ने बाल्टी समाज की नींव रखी। जो लेह लद्दाख से लगभग 250 किलोमीटर ऊपर नुबरा वैली से कुछ आगे स्यॉक नदी के किनारों से शुरू होकर पाकिस्तान प्रशासित गिलगिट-बाल्टिक तक जाता था।

हम तुर्तुक पहुंचे तो गुलाम हुसैन हमारे स्वागत में पहले से सड़क किनारे खड़े थे। उन्होंने हमें और हमने उन्हें सलाम किया। चालीस साल के गुलाम हुसैन ने लपक कर हमारा सामान को उठा लिया। हमनें उन्हें मना किया, लेकिन वो नहीं माने। सड़क से बीस मिनट की खड़ी चढ़ाई के बाद हम तुर्तुक गांव के सदर इलाकों में पहुंचे। वहां गुलाम ने अपने घर की ऊपरी मंजिल में हमारे रहने की बेहतरीन व्यवस्था की हुई थी। जहां हमें अगले दो दिन रुकना था। हम गुलाम से ज्यादा उसके पिता इब्राहिम से मिलने के लिए ललायित थे। हाजी इब्राहिम की उम्र 86 साल है। जब हम घर पहुंचे तो इब्राहिम नमाज पढ़ने गये हुए थे।

हमें चाय पीने को दी गई। दालचीनी और अदरक डली हुई चाय मैंने पहली बार पी । हम सुस्ता ही रहे थे कि हमारे खाने का इंतजाम होने लगा। गुलाम हुसैन तीन किलो का जिंदा जंगली मुर्गा हमारी खुराक के लिए ले आये। जिसे पूरा परिवार मिलकर बनाने लगा। देर शाम साढ़े सात बजे इब्राहिम छड़ी के सहारे हमारे कमरों के बाहर आये और हमारा प्यार से माथा चूमा। शायद यहां ऐसे ही प्यार से बुजुर्ग दुआ देते हों।

 

हमने हाजी इब्राहिम से कुछ सवाल पूछे। उन्हें बताते वक्त बुजुर्ग इब्राहिम अतीत के बीते रास्तों पर कहीं खो गये। वो हमें अपने साथ 1965 के उस दौर में ले गये जब उनके गांव को मालूम चला कि अब वो पाकिस्तान का हिस्सा है। गांव के कई परिवारों ने जश्न मनाया कि वो अब एक मुस्लिम देश के अभिन्न हिस्सा होंगे। लेकिन अगले दस सालों में पाकिस्तानी फौज ने उन्हें अहसास करा दिया कि धर्म के नाम पर बने देश अगर जन्नत होते तो हर ओर खुशहाली न होती।

इब्राहिम बताते हैं, चालुुंगा तक पाकिस्तान का हिस्सा था। वो हर दिन आते और हमारे साथ मनमानी करते। हमारे घरों में घुस जाते। हम उन्हें बताते कि हम और तुम एक ही धर्म के हैं। लेकिन, वो हमारे साथ खुन्नस रखते। मालूम नहीं क्यों जनाब। ये सब बोलने के बाद इब्राहिम कुछ खामोश हो जाते हैं।

अगले दिन हम यब्गो वंश के अंतिम राजा मोहम्मद खान काचू के महल पहुँचते है। जो सबसे ऊंचाई में है। काचू बताते हैं कि, हमारे वंश का यहां तुर्तुक में बहुत बड़ा महल था। सैकड़ों साल तक हमारे पूर्वजों इस हजारों किलोमीटर क्षेत्रफल पर राज किया। 1965 के बंटवारे के बाद मेरे दो भाई पाकिस्तान के गिलकिट-बाल्टिस्तान चले गये। वहां भी हमारे महल थे। मेरा परिवार पाकिस्तान के इस हिस्से में तुर्तुक के महल में रहने लगे। हमने सोचा पाकिस्तान हुकुमत हमें सम्मान देगी। लेकिन हुआ इसके उलट।

तुर्तुक के महल को पाक फौज ने कब्जा लिया और नार्दन फ्रंटियर का मुख्यालय बना दिया गया। हम बेखर हो गये। कई सालों बाद मैंने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। उसके कुछ साल बाद हमारे पक्ष में फैसला आया और पाक फौज को मेरा महल खाली करने का आदेश हुआ।

इससे पाकिस्तान की फौज तिलमिलाई और उसने आरडीएक्स लगा कर मेरा महल उड़ा दिया। एक लंबी सांस लेते हैं और फिर आगे कहते हैं। जनाब फिर 12 दिसंबर 1971 को वो दिन आया। जिसका शायद हम सभी को इंतजार था। हम सोये हुये थे। धमाकों की आवाज आई गोलाबारी होने लगी। हम घरों के पीछे बने हुये बंकरों में चले गये। कुछ दिन वहीं रहे। लगभग 15 दिन बाद हम वापस आये तो पता चला कि हम हमार गांवों में भारत का कब्जा है। हम इतने डर गये कि लगा अब हमारा अंतिम वक्त आ गया है। हिन्दुओं की सेना हमे मार देगी।

डरते डरते हम अपने घरों तक पहुंचे। पूरा गांव सोच रहा था कि हम किसी तरह पाकिस्तान भाग जायें। इसी दौरान सेना के एक बहुत बड़े अधिकारी हमारे गांव आये। हम सभी को पोलो ग्राउंड में बुलाया गया। हमें लाइन में लगने को कहा गया। हमें लगा कि हमें गोली मारी जायेगी। इतने में सेना का एक ट्रक आया और उससे बच्चों के लिए बिस्कुट और हमारे के लिए राशन उतरने लगा। हमें पहले विश्वास नहीं हुआ। सोचा जहर न हो। इसलिए बच्चों को खाने से रोका। सेना के उस अधिकारी ने हमारे बच्चों को पुचकारा और एक बिस्कुल खुद खाया। फिर हम भी खाने लगे।

मोहम्मद खान काचू आगे बताते हैं, पाकिस्तान सेना ने हमारे आशियाने तक उजाड़ दिये थे। लेकिन जब से भारत की सेना ने कब्जा किया। अब हमारे पास पक्की सड़क है, अस्पताल है। हमारे बच्चे सरकारी नौकरी कर रहे है। इतने में बीच में ही गुलाम हुसैन बोल पड़ा, जनाब मैं खुद सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूल में अध्यापक हूं।

लेकिन हमारे गांव के बच्चे सेना की ओर से बनाये गये मिलिट्री पब्लिक स्कूल में पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। पहले मेरे बच्चे मदरसे में पढ़ते थे। अब तीनों पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे हैं। तभी उसने एक बच्चे को बुलाया और बच्चा छट से अंग्रेजी की एक कविता सुनाने लगे। सब हंसने लगे। स्थानीय लोगों ने बताया अभी 10 अगस्त को गांव में पोलो टूर्नामेंट हुआ। जिसके लिए सेना ने तीन लाख रुपये नगद दिए।

मेने गुलाम हुसैन के साथ खड़े चार-पांच युवाओं से पूछा, शेष कश्मीर के लोग पाकिस्तान के साथ शामिल होना चाहते हैं। आप लोगा क्या उनका समर्थन करते हैं ? उनमें से एक बोला। जनाब, हम पाकिस्तान की हुकुमत मंे लगभग 25 साल रहे। हमें पता है हकीकत क्या है। इन्हें नहीं पता। लिहाजा, आंखों पर पट्टी बांध कर लड़ रहे है।

हम तो भारत की सेना का पूरा समर्थन करते हैं। इसलिए हमारे गांवों की सीमाओं पर कभी गोलाबारी भी नहीं होती। यहां के लोगों को दुख इस बात का है कि जब हम अपने ही देश के दूसरे हिस्सों में जाते हैं तो हमें भी श्रीनगर या अन्य आतंक प्रभावित इलाकों के बाशिंदों की तरह समझा जाता है। जबकि हम देश भक्त कौम हैं।