Friday, October 18, 2024
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चौरी-चौरा के शहीदों को नमन कर बोले पीएम मोदी- आग थाने में नहीं, भारतीयों के दिल में धधकी थी

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द लीडर : आजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक घटना, चौरी-चौरा के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चौरी-चौरा में सौ साल पहले जो हुआ. वो केवल एक थाने में आग लगाने भर की घटना नहीं थी. बल्कि ये आग जन-जन के दिलों में प्रज्ज्वलित हुई थी. ये बहुत बड़ा संदेश था. इसमें शामिल सभी वीरों को नमन करता हूं.

गोरखपुर में आयोजित इस समारोह को प्रधानमंत्री ने ऑनलाइन संबोधित किया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से इस घटना को इतिहास में सही स्थान नहीं दिया गया. मगर इस ऐतिहासिक संग्राम को आज देश के इतिहास में समुचित जगह दी जा रही है. इस प्रयास के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टीम को बधाई देता हूं. इस दौरान प्रधानमंत्री ने एक विशेष डाक टिकट जारी किया.

अपने संबोधन में कहा कि आज देश जब आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. ऐसे समारोह का होना जरूरी है. चौरी-चौरा एक स्वत: स्फूर्त आंअदोल था. उन शहीदों की जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई. बोले, क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्नों में भले प्रमुख जगह न दी गई पर आज देश उनके बलिदान पर नमन कर रहा है.

भारत के शिक्षा मंत्रालय ने युवाओं से आह्वान किया है कि वे आजादी के वीर जवानों का इतिहास सामने लाएं. इसी तरह चौरी-चौरा के जितने भी वीर सेनानी हैं. आप उन्हें देश के सामने लाइए. उन वीरों के प्रति यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.


समृद्ध, खुशहाल भारत बनाना है, तो नागरिकों को एक-दूसरे से झगड़ना बंद करना होगा : जस्टिस काटजू


 

प्रधानमंत्री ने भारत की सामूहिकता की शक्ति का हवाला देते हुए कहा कि इसी से गुलामी की बेड़ियां टूटी थीं. सामूहिकता ही भारत को बड़ी ताकत बनाएगी. ये आत्मनिर्भर भारत का मूल आधार है. जिससे 130 करोड़ भारतीयों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं.

कोरोना संकटकाल को याद करते हुए कहा कि इस चुनौती के बावजूद भारत ने 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाईयां उपलब्ध कराईं. अपने नागरिकों को विदेशों से घर बुलाया और विदेशियों को उनके घर भेजा.

हाल ही में आए बजट की सराहना करते हुए कहा कि लोगों को लग रहा था कि कोरोना संकटकाल में सरकार नागरिकों पर टैक्स का बोझ डालेगी. पर ऐसा नहीं किया गया. देश को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने ज्यादा से ज्यादा खर्च करने का फैसला किया है.

जस्टिस काटजू ने खारिज किया पॉप सिंगर रिहाना पर सरकार का तर्क, बोले-ऐसे तो जर्मनी में यहूदियों के उत्पीड़न की भी चर्चा नहीं होनी चाहिए थी

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द लीडर : अमेरिकी पॉप सिंगर रिहाना, मशहूर पर्यावरणविद ग्रेटाथुनबर्ग और अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने किसान आंदोलन को लेकर अपना समर्थन जताया है. इससे ये आंदोलन दुनिया भर में चर्चा के केंद्र में आ गया है. विदेशियों के समर्थन जताने पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि ये भारत का आंतरिक मामला है.

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किसान आंदोलन को लेकर हुई पंचायत.

विदेश मंत्रालय के बचाव के बाद बॉलीवुड की कई जानमानी हस्तियों के साथ क्रिकेटर भी सरकार के समर्थन में खड़े हुए हैं. इसमें क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेता अक्षय कुमार, अजय देवगन आदि शामिल हैं.

विदेश मंत्रालय, अभिनेता और क्रिकेेटरों की विदेशियों के आंदोलन को समर्थन देने की निंदा के बीच सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश रहे जस्टिस मार्केंडय काटजू ने इस मुद्​दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. और पूर्व में दुनिया भर में हुए रंगभेद, जनसंहार, नस्लवाद की घटनाओं की समूचे विश्व में की गई आलोचनाओं के प्रति ध्यान खींचा है.


किसान आंदोलन: रेहन्ना, ग्रेटा और मीना हैरिस के बाद देसी सेलेब्रिटी मैदान में कूदे, तेंदुलकर ने की अपील, विदेश मंत्रालय ने दी सफाई


 

उन्होंने कुछ सवाल भी उठाए हैं. जस्टिस काटजू ने कहा कि ‘भारतीय विदेश मंत्रालय के तर्क से देखें तो फिर नाजी युग के दौरान जर्मनी में यहूदियों के उत्पीड़न पर जर्मनी के बाहर किसी को आलोचना नहीं करनी चाहिए थी.’

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किसान आंदोलन को लेकर दिल्ली की सीमा पर सरकार की तैयारी.

‘उस तर्क के आधार पर पाकिस्तान में अहमदियों, हिंदू, सिख और इसाईयों के उत्पीड़न की पाकिस्तान के बाहर आलोचना नहीं की जानी चाहिए थी. भारत में मुस्लिमों पर लिंचिंग और अत्याचारों की भारत के बाहर आलोचना नहीं होनी चाहिए या 1984 के सिंखों के नरसंहार की.


समृद्ध, खुशहाल भारत बनाना है, तो नागरिकों को एक-दूसरे से झगड़ना बंद करना होगा : जस्टिस काटजू


 

उन्होंने अमेरिका के नस्लवाद, अश्वेतों के प्रति बुरे व्यवहार, चीन में उइगर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद का हवाला देते हुए कहा कि तो उस तर्क के मुताबिक किसी दूसरे देश में इनकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए थी. बर्मा में रोहिंग्या के उत्पीड़न की चर्चा भी नहीं होनी चाहिए थी. आखिर ये सब भी तो उन देशों के आंतरिक मामले ही थे. ‘

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 70 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हैं. केंद्र सरकार ने किसानों को दिल्ली में प्रवेश से रोकने के लिए राहों में कीले बिछाए हैं. बैरिकेड के अलावा भारी संख्या में पुलिस और सशस्त्र बल तैनात किया है. आंदोलन स्थलों की इंटरनेट सेवा, बिजली, पानी भी रोकने की कार्रवाईयां हो चुकी हैं.

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. किसानों के बजाय सरकार के साथ खड़े होने वाले कलाकार और खिलाड़ियों को उन्होंने रीढ़विहीन बताया है.

दिल्ली सीमाओं की किलाबंदी क्यों करा रही सरकार, क्या किसानों से डर लगता : राहुल गांधी

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द लीडर : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किसान आंदोलन को लेकर एक बार फिर सरकार को घेरा है. उन्होंने कहा कि ”देश एक खतरनाक स्थिति से गुजर रहा है. जो किसान, सरकार से लड़ रहा, उसे आतंकवादी कहा जा रहा. क्या, आरएसएस को छोड़कर देश में बाकी सब किसान आतंकवादी हैं?” किसान आंदोलन को लेकर आ रहीं अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि इससे भारत की छवि को धक्का लगा है. बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस में राहुल ने ये कहा.

26 जनवरी को दिल्ली में किसान ‘ट्रैक्टर परेड’ से जुड़े एक सवाल पर राहुल गांधी ने कहा, ‘लाल किले में जो लोग घुसे. उसका जवाब गृह मंत्रालय को देना होगा. सरकार दिल्ली सीमाओं की किलाबंदी क्यों कर रही है. क्या किसानों से डरते हैं? क्या किसान देश के दुश्मन हैं. मैंने कहा कि किसान हिंदुस्तान की ताकत हैं. और इसको दबाना, मारना, धमकाना, सरकार का काम नहीं है. बल्कि उसे समाधान तलाशाना चाहिए. ये किसान पीछे नहीं हटेंगे. आखिर में सरकार को ही हटना होगा.’

बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये देश के एक प्रतिशत लोगों का बजट है. एमएसएमई, किसान, मजदूर और सेनाओं के हिस्से का पैसा देश के उन्हीं 10-15 लोगों की जेब में डाल दिया गया है. निजीकरण का लाभ भी उन्हें ही मिलेगा. इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होने वाला. सरकार को चाहिए कि सप्लाई साइड के बजाय खपत साइड पर ध्यान दे.


राहुल गांधी का सरकार पर तंज, पूछा-इतने सारे तानाशाहों के नाम एम से ही क्यों शुरू होते?


 

राहुल गांधी बोले, चीन भारत के अंदर आकर हमारी जमीन कब्जा लेता है. और बजट में सरकार, चाइना को क्या संदेश देती है, कि हम सुरक्षा खर्च नहीं बढ़ाएंगे. तीन-चार हजार करोड़ रुपये ही बढ़ाए हैं. ऐसा करके चाइना को क्या संदेश दिया कि आप अंदर आ सकते हैं.

आपको जो करना है करो, हम सेना को सपोर्ट नहीं करेंगे. लद्दाखर में हमारे जो जवान हैं. उन्हें कैसा लग रहा हो कि इस संकट में सरकार पैसा नहीं दे रही. हम कहते हैं कि हमारी सेनाओं को जो भी चाहिए वो देना चाहिए. सवाल उठाया ये कौन सी देशभक्ति है. सेना लद्​दाख में खड़ी है और उन्हें पैसा नहीं दे रहे.

राहुल गांधी का सरकार पर तंज, पूछा-इतने सारे तानाशाहों के नाम एम से ही क्यों शुरू होते?

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द लीडर : किसान आंदोलन से निपटने को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर पुलिस और सशस्त्र बलों की नाकाबंदी, दुनिया भर में सरकार की आलोचना का सबब बनती जा रही है. इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार पर बड़ा निशान साधा है. उन्होंने दुनिया के कुछ नेताओं के नाम गिनाए हैं. और ये सवाल किया है कि इतने सारे तानाशाहों के नाम एम से ही क्यों शुरू होते हैं?


किसान आंदोलन : प्रियंका का सवाल-प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध? राहुल गांधी बोले, पुल बनवाइए, दीवारें नहीं!


 

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में जो नाम लिखे हैं-उनमें, मार्कोस, मुसोलिनी, मिलोसेविक, मुबारक, मोबुतु और पाकिस्तान के जनरल रहे मुशर्रफ का नाम शामिल है. केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर राहुल, मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं. इससे पहले बुधवार को उन्होंने एक ट्वीट कर आरोप लगाया था कि मोदी सरकार के राज करने का ये अंदाज है-चुप कराओ और कुचल दो.

उनकी ये प्रतिक्रिया किसान आंदोलन को लेकर किसान नेताओं और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के ट्वीटर एकाउंट सस्पेंड किए जाने के बाद सामने आई थी. उन्होंने एक अन्य ट्वीट में सरकार को ये सलाह दी थी कि, दीवारें नहीं बुल बनवाइए.

सरकार साफ कर चुकी है कि खुले हैं बातचीत के दरवाजे

दिल्ली के सिंघु, गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर पर पिछले दो महीने से अधिक से किसानों का आंदोलन जारी है. वे तीन नए कृषि कानूनों को रद किए जाने की मांग कर रहे हैं. सरकार के साथ 11 दौर की बातचीत भी हुई, जो बेनतीजा रही. पिछले दिनों मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि किसानों के लिए वार्ता के दरवाजे खुले हैं और ये मसला केवल संवाद से ही हल होगा.

समृद्ध, खुशहाल भारत बनाना है, तो नागरिकों को एक-दूसरे से झगड़ना बंद करना होगा : जस्टिस काटजू

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भारत, कई धर्म-जातियों, भाषाओं नस्लों के साथ मिलकर एक जबरदस्त विविधता (Diversity) वाला मुल्क है. इसकी वजह यह है कि ये मोटे तौर पर अप्रवासियों (Migrants) का देश है. जैसे उत्तरी अमेरिका. पर ये विविधता हमारी बड़ी कमजोरी की जड़ भी है. तब तक, जब तक कि हम एक-दूसरे से लड़कर अपनी ऊर्जा और संसाधनों को बर्बाद करते रहेंगे. लेकिन एकजुट हो जाएं तो यही विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत का स्रोत भी बन सकती है. (India Citizens Stop Fighting Justice Katjus)

मसलन, यूएसए भी महान विविधताओं वाला देश है. यूरोप के विभिन्न देशों और बाद में एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों से लोग यहां आकर बसे. इनमें हर शख्स अपने ज्ञान, तकनीकी हुनर और संस्कृति को साथ लेकर आया. इस सबके साथ ये तेजी से आगे बढ़ा और अमेरिका दुनिया का सबसे विकसित और समृद्ध मुल्क बन गया.

फोटो, साभार- एक भारत-श्रेष्ठ भारत

अगर इस लिहाज से देखें, तो भी हमारी विविधता बहुत महान, ताकतवर और समृद्धि का माध्यम बन सकती है. बशर्ते, हमें एक-दूसरे से लड़ना बंद करना चाहिए. सभी धर्मों, संप्रदायों और समुदाय के लोगों को एक समान, सम्मान देते हुए एकजुटता के साथ काम करने की जरूरत है.


राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू


 

महान मुगल सम्राट अकबर ने ये महसूस किया था. अकबर ने सभी को एक समान, सम्मान दिया था. (एक अन्य लेख में मैं इसका जिक्र कर चुका हूं.) जिसकी वजह से भारत एक समृद्ध देश बना. और मुगल साम्राज्य इतने लंबे समय तक चल सका.

हमारा राष्ट्रीय फोकस भारत को एक अविकसित देश से उच्च विकसित, औद्योगिक और समृद्ध देश में बदलने का, होना चाहिए. वरना, हम बड़े पैमाने पर गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण से जूझते रहेंगे. हमें उचित स्वास्थ्य सेवा और अच्छी शिक्षा की जरूरत है.

उच्च विकसित होने की दिशा में भारत का ये एतिहासिक बदलाव पराक्रमी लोगों के संघर्ष से संभव है, जो अगले 10-20 साल तक हो सकता है. और ये संघर्ष केवल तभी तक संभव है, जब हम फिरकों में न बंटकर एकजुटता बनाए रखेंगे. जैसे कि आज हैं.


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

वर्तमान के किसान आंदोलन ने हमें एकजुट किया है. क्योंकि इसने जाति-धर्म के बंधनों को तोड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि ये हमारे संघर्ष की केवल शुरुआत भर है. और कामयाबी हासिल तक इसे जारी रखना होगा. इस यात्रा में कई मोड़ हैं. पीछे भी हटना पड़ सकता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि शुरुआत हो गई है.

इस एकजुटता के नतीजे में ऐसी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था आकार लेगी. जिससे भारत का औद्योगीकरण रफ्तार पकड़ेगा और. नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा होगा.

(ये लेख स्टिस मार्केंडय काटजू ने लिखा है. वे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस रहे हैं. अंग्रेजी में प्रकाशित लेखक का ये हिंदी अनुवाद है.)

गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में बताया, बनाए जा रहे नागरिकता संशोधन कानून के नियम

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द लीडर : केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के (CAA) के तहत नियम बनाए जा रहे हैं. लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समितियों ने नियम बनाने की समयसीमा बढ़ाकर नौ अप्रैल और नौ जुलाई 2021 तक कर दी है. ताकि इस मियाद में सीएए के नियम बन जाएं.

मंगलवार को लोकसभा में पूछे गए क प्रश्न के जवाब में गृह राज्यमंत्री ने लिखित में ये जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून, 12 दिसंबर 2019 को अधिसूचित किया गया था. और 10 जनवरी 2020 को ये लागू हो गया.

सीएए के अंतर्गत पाकिस्ताान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारत में नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है. इन देशों में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई समुदाय अल्पसंख्यक हैं.


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भारत में सीएए कानून को लेकर काफी विवाद हो चुका है. संसद में कानून लागू होने के बाद से इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर आंदोलन हुए, जिसमें दिल्ली का शाहीन बाग प्रमुख आंदोलन स्थल बनकर उभरा था. इसी आंदोलन को लेकर पिछले साल दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी.

एएमयू के छात्रनेता शरजील उस्मानी पर भड़के पूर्व सीएम फणनवीस, बोले-क्या महाराष्ट्र में मुगलों की सरकार चल रही?

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द लीडर : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के छात्रनेता शरजील उस्मानी के एक भाषण पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. फणनवीस ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है. जिसमें साफ किया है कि अगर सरकार, उस्मानी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है तो ये समझा जाएगा कि ये सब ठाकरे सरकार के संरक्षण में हो रहा है. और भाजपा इसके खिलाफ आंदोलन करेगी. पत्रकारों से बातचीत में फणनवीस बोले कि, ‘महाराष्ट्र में क्या मुगलों का शासन चल रहा है?’

30 जनवरी को महाराष्ट्र के पुणे में एल्गार परिषद की ओर से एक कार्यक्रम हुआ था. इसमें शरजील उस्मानी भी शामिल हुए थे. आरोप है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं का हवाला देते हुए उस्मानी ने ऐसे लोगों के खिलाफ कथित रूप से अमर्यादित भाषा का उपयोग किया था. पूर्व मुख्यमंत्री का भी यही दावा है.

पत्रकारों से बातचीत में फणनवीस ने कहा कि, जब भी एल्गार परिषद होती है. उसमें ऐसी ही बातें की जातीं. सवाल उठाया कि इसे अनुमति ही क्यों दी जाती है. कोई महाराष्ट्र में आकर समाज को सड़ा हुआ कहेगा और हम बर्दाश्त कर लेंगे. ऐसा नहीं होगा.


राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू


 

अबकी भी ये परिषद केवल इसीलिए आयोजित की गई कि अलग-अलग समाजों में दुर्वभावना पैदा हो. इन समाजों के खिलाफ बोला जाए. और उसके माध्यम से कानून व्यवस्था का प्रश्न बने.

कौन हैं उस्मानी

एएमयू के छात्रनेता शरजील उस्मसानी पिछले साल सीएए-एनआरसी आंदोलन को लेकर चर्चा में आए थे. आंदोलन को लेकर उन्हें जेल जाना पड़ा था.

हर साल परिषद विवाद में आती परिषद

एल्गार परिषद के आयोजन हर साल विवादों में रहते हैं. साल 2018 के एक कार्यक्रम के दौरान भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई थी. इसके आरोप में कई बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता जेल में बंद हैं. इसमें मशहूर वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नौवलखा, आनंद तेलतुबंड़े समेत अन्य नाम शामिल हैं.

पत्रकार मनदीप को मिली जमानत, अदालत ने कहा-‘बेल नियम है, जेल अपवाद’

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द लीडर : किसान आंदोलन की कवरेज के दौरान सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार, पत्रकार मनदीप पुनिया को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट से जमानत मिल गई है. अदालत ने मनदीप को 25 हजार के निजी मुचलके पर जमानत दी है. इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. वो ये कि जमानत एक नियम है जबकि जेल अपवाद है.

मनदीप स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो किसान आंदोलन कवर कर थे. 31 जनवरी की रात को दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. और रविवार को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया था. मनदीप के खिलाफ आईपीसी की धारा-186, 323 और 353 के तहत कार्रवाई की गई थी.


एडिटर्स गिल्ड के, पत्रकारों पर कार्रवाई की निंदा के चंद घंटे बाद पत्रकार मनदीप पूनिया गिरफ्तार


मंगलवार को रोहिणी कोर्ट में उनकी जमानत पर सुनवाई हुई, जहां से जमानत मंजूर हो गई है. अदालत के फैसले पर मनदीप की पत्नी ने खुशी जताई है. दरअसल, मनदीप की गिरफ्तारी को लेकर पत्रकार और पत्रकार संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. दर्जनों पत्रकारों ने दिल्ली पुलिस के आइटीओ स्थित दफ्तर के बाहर धरना-प्रदर्शन किए और मार्च निकाले थे.

एसएचओ से अभद्रता का आरोप

मनदीप पर एसएचओ से अभद्रता का आरोप लगा है. दरअसल, गिरफ्तारी से पहले उन्होंने एक फेसबुक लाइव किया था, जिसमें शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंची उपद्रवी भीड़ में शामिल नेताओं के बारे में रिपोर्ट की थी. ये भीड़ जबरन आंदोलन हटवाने पहुंची थी.

राजदीप, मृणाल पर मुकदमा

इससे पहले 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड की कवरेज और ट्वीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा समेत छह पत्रकारों के खिलाफ यूपी और मध्यप्रदेश में कसे दर्ज हुए थे. शनिवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों पर देशद्रोह समेत अन्य धाराओं में दर्ज केस वापस लेने की मांग उठाई थी. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया इसकी निंदा कर चुका है.

राम के भारत में 93 तो रावण के श्रीलंका में 51 रुपये लीटर पेट्रोल : भाजपा सांसद स्वामी

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द लीडर : भारतीय जनता पार्टी के सबसे मुखर और बेबाक नेताओं में से एक सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में छाए रहते हैं. देश के बजट के बाद स्वामी ने डीजल-पेट्रोल के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी को लेकर अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘ राम के भारत में पेट्रोल 93 रुपये लीटर, सीता के नेपाल में 53 रुपये और रावण के श्रीलंका में 51 रुपये लीटर है.’

स्वामी का ये ट्वीट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. दरअसल, पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है. इसको लेकर विपक्ष सरकार की घेराबंदी में जुटा है. इसी बीच स्वीमा का ये ट्वीट सरकार को असहज करने वाला है.


किसान आंदोलन : प्रियंका का सवाल-प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध? राहुल गांधी बोले, पुल बनवाइए, दीवारें नहीं!


 

उन्होंने एक और ट्वीट किया है. जिसमें लिखा, कि आज हमारे पास दर्जनों सांसदों के फोन आए कि किसानों के आंदोलन से कैसे निपटा जाए. इस अनौपचारिक चर्चा में मैंने सुझाव दिया कि ये अधिनियम केवल उन्हीं राज्यों में लागू किए जाएं, जो राज्य इन्हें लागू करने के लिए केंद्र को लिखकर दें कि इसके क्रियान्वयन के लिए वे तैयार हैं. सभी सांसद सहमत थे.

 

दिल्ली सीमाओं की नाकाबंदी पर सपा मुखिया अखिलेश यादव का तंज-सियासत तू कमाल है

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नई दिल्ली : किसान आंदोलन को लेकर सरकार दिल्ली सीमाओं की जबरदस्त नाकेबंदी में जुटी है. बॉर्डर पर कीले गाड़कर भारी बैरिकेड लगाया गया है. और पुलिस बल के साथ सशस्त्र बल तैनात किया है. इंटरनेट सेवाएं पहले ही बंद की जा चुकी हैं. किसानों से निपटने की इस सरकारी कसरत पर विपक्ष, कानूनविद, एक्टिविस्ट ने सरकार पर निशाना साधा है.

अखिलेश यादव का शायराना तंज

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शायराना अंदाज में सरकार पर वार किया है, ‘सियासत तू कमाल है, उठाके रास्ते में दीवार-बिछाकर कंटीली तार, कहती है आ करें बात.’ किसान आंदोलन को लेकर अखिलेश यादव लगातार सरकार को घेर रहे हैं.

 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कहा है कि, पुल बनवाइए, दीवारे नहीं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बॉर्डर की एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा, ‘प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध?’

प्रशांत भूषण बोले-सैन्य घेराबंदी जैसा आलम
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कल रात किसानों के विरोध स्थल पर बिजली बंद कर दी गई. इंटरनेट बंद है. ये सब एक सैन्य घेराबंदी जैसा है. किसानों के आंदोलन स्थल तक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं. उन्हें हटाने के लिए सशस्त्र पुलिसकर्मी, पैरामिलिट्री फोर्स तैनात है. किसानों को हटाने के लिए पत्थरवाज गुंडे भेजे गए.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दो महीने से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने आगामी 6 फरवरी को तीन घंटे के चक्काजाम का आह्वान किया है.


संसद में किसानों के मुद्​दे नहीं उठा सकते तो सदन चलाने का क्या मतलब : संजय सिंह


 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों मन की बात में कहा था कि, किसानों से एक फोन की दूरी पर हैं. हालांकि बॉर्डर पर किसानों से निपटने के लिए अब जो तैयारियां चल रही हैं, उससे सरकार की आलोचना हो रही है.