Thursday, October 17, 2024
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किसानों के साथ बैठक में बोले कृषि मंत्री-कानूनों पर एक मसौदा बनाकर दें, सरकार चर्चा को तैयार

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द लीडर : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों (Farm Laws) पर छिड़े विवाद के बीच शुक्रवार को सरकार और किसान नेताओं के बीच विज्ञान भवन में आयोजित 9वें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही. किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tiket) ने कहा कि हम सरकार से ही बात करेंगे. हमारे दो ही बिंदु हैं. तीनों कानून वापस हों और एमएसपी (MSP) पर बात की जाए. उन्होंने कहा कि हम कोर्ट (Court) नहीं जाएंगे. बल्कि सरकार से ही बात करेंगे.

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि तीनों कानूनों पर चर्चा हुई. आवश्यक वस्तु अधिनियम पर भी बातचीत हुई. किसानों की शंकाओं के समाधान का प्रयास किया गया. यूनियन और सरकार ने तय किया है कि 19 जनवरी को फिर बैठैंगे.

कृषि मंत्री के मुताबिक, बैठक के दौरान हमने किसानों से कहा है कि वे अपने बीच एक अनौपचारिक समूह बना लें. ऐसे लोगों को रखें जो ठीक से कृषि कानूनों पर चर्चा कर सकें. एक मसौदा बनाकर सरकार को दें. हम उस पर खुले मन से विचार करने को तैयार हैं.

 


किसानों ने जब कह दिया कि वो कमेटी के पास नहीं जाएंगे तो फिर कमेटी का कोई मतलब नहीं बचता : भूपेंद्र मान


 

सरकार और किसानों की ये बैठक ऐसे समय हुई है, जब सुप्रीमकोर्ट बातचीत के लिए एक चार सदस्यीय समिति बना चुका है. हालांकि किसान नेताओं ने समिति के सदस्यों पर सवाल उठाए. विवाद के बीच कमेटी के एक सदस्य भूपेंद्र सिंह मान ने इससे खुद को अलग कर लिया है.

बता दें कि पिछले 51 दिनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. वे तीनों कृषि कानूनों को रद किए जाने की मांग कर रहे हैं. आंदोलन के इस अंतराल में अब तक करीब 50 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है.


किसान आंदोलन : अगले 13 दिन बेहद खास, संभलकर चलाना होगा आंदोलन


 

गत दिनों सुप्रीमकोर्ट ने कृषि कानूनों से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए किसान आंदोलन में होने वाली मौतों पर चिंता जताई थी. कोर्ट ने नए कानूनों के अमल पर रोक लगाते हुए एक कमेटी का गठन किया था.

राहुल गांधी का केंद्र पर वार, बोले-देश के अन्नदाता अहंकारी सरकार के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे

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नई दिल्ली : कृषि कानूनों के बहाने केंद्र सरकार पर हमलावर कांग्रेस ने शुक्रवार को देशभर में ‘किसान अधिकार दिवस’ मनाया. दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि, ‘जब मोदी किसानों की जमीन छीनने की कोशिश कर रहे थे, तब हमने उन्हें रोका था. मोदी सरकार एक बार फिर से किसानों पर आक्रमण कर रही है. सरकार को ये समझना चाहिए कि किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं. ये हिंदुस्तान है, जो पीछे नहीं हटता है. उनको यानी प्रधानमंत्री को आज नहीं तो कल पीछे हटना ही पड़ेगा.’

राहुल गांधी ने कहा कि देश के अन्नदाता अहंकारी सरकार के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे हैं. आज पूरा भारत किसानों पर अत्याचारर व पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के विरुद्ध आवाज बुलंद कर रहा है. उन्होंने लोगों से आंदोलन में जुड़ने का आह्वान किया है.


किसानों ने जब कह दिया कि वो कमेटी के पास नहीं जाएंगे तो फिर कमेटी का कोई मतलब नहीं बचता : भूपेंद्र मान


 

किसान अधिकार दिवस कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस नेताओं ने रैली निकाली और कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस दौरान पुलिस ने कांग्रेस नेताओं को रोकने का भी प्रयास किया, जिसमें कांग्रेस नेत्री अल्का लांबा के हाथ में चोट भी लग गई है.

वहीं, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में भी कांग्रेस नेताओं ने इस दिवस का आयोजन किया. रैली निकाली और कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग उठाई है.

सेना दिवस : चीन और पाकिस्तान को संदेश-हमारे सब्र का इम्तिहान न लें, कभी कामयाब नहीं होने देंगे नापाक इरादे

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नई दिल्ली : भारतीय सेना (Indian Army) दिवस पर सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे (MM Narvane) ने पड़ोसी चीन और पाकिस्तान को साफ संदेश दिया है. वो ये कि हमारे सब्र का इम्तिहान लें. हम उनके नापाक इरादों को कभी सफल नहीं होने देंगे.

शुक्रवार को सेना प्रमुख ने दिल्ली के करिय्यपा परेड मैदान पर परेड का निरीक्षण किया. और सैनिकों को उनकी बहादुरी के लिए सम्मानित किया. इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि बीता साल हमारे लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा. उत्तरी सीमाओं पर चीन के साथ तनाव से आप सब वाकिफ हैं.

एकतरफा बदलाव की इन साजिशों का हमारे सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया. सेना प्रमुख ने कहा कि मैं देश को भरोसा दिलाना चाहूंगा कि गलवान के शहीदों की शहादत बेकार नहीं जाएगी.

दिल्ली के करिय्यपा परेड मैदान पर परेड का निरीक्षण सेना प्रमुख, फोटो-साभार एएनआइ

उन्होंने कहा कि देश के सम्मान पर भारतीय सेना रत्ती भर भी आंच नहीं आने देगी. हम बातचीत और राजनीतिक कोशिशों से समाधान निकालने को लेकर प्रतिबद्ध रहे हैं. पाकिस्तान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम उनके नापाक इरादों को कामयाब नहीं होने देंगे. नियंत्रण रेखा पर भी दुश्मन के हर नापाक इरादे का जवाब दिया जा रहा है.

सीमा पार 300-400 आतंकी घुसपैठ की मंशा पाले बैठे हैं. लेकिन हम उनके इरादे सफल नहीं होने देंगे. पाकिस्तान आतंकियों को शरण देने की अपनी आदत से लाचार है.

शहीदों की शहादत को नमन

सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने सरहदों की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त शहीदों को याद किया. उन्होंने कहा कि उनकी शहादत देश और भारतीय सेना के लिए प्रेरणास्रोत है. मैं उनके परिवारों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि हम उनके साथ हमेशा खड़े हैं.


अफगानिस्तान की सरजमीन पर सेना नहीं उतरेगी: जनरल नरवणे


इंडियन आर्मी मोबाइल एप

इस दौरान सेना प्रमुख ने इंडियन आर्मी मोबाइल एप लांच किया किया है. इसे देश को समर्पित करते हुए कहा कि ये ऐप भारतीयों को भारतीय सेना के बारे में तमाम जानकारियां देगा.

नेशनल वॉर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि

इससे पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत, आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे, इंडियन एफयरफोर्स चीफ, एयर चीफ मार्शल आरके एस भदौरिया और नेवी चीफ एडमिरल करमबीर सिंह ने नेशनल वॉर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि दी.

किसानों ने जब कह दिया कि वो कमेटी के पास नहीं जाएंगे तो फिर कमेटी का कोई मतलब नहीं बचता : भूपेंद्र मान

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द लीडर : तीन नए कृषि कानूनों पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सदस्य रहे भूपेंद्र स‍िंह मान ने कहा कि आंदोलन और किसानों के हितों को देखते हुए मैं समझता हूं कि उसमें (कमेटी) में जाने का कोई मतलब नहीं है. दूसरा, जब उन्होंने यानी किसानों ने कह दिया कि वो कमेटी के सामने नहीं जाएंगे तो फिर कमेटी का कोई तुक नहीं रह जाता. इसलिए मैंने कमेटी छोड़ दी है. शुक्रवार को समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में उन्होंने ये बातें कही हैं.

सुप्रीमकोर्ट की कमेटी छोड़ने वाले भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपेंद्र मान, फोटो, साभार एएनआइ

गत दिनों सुप्रीमकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद चार सदस्यीय कमेटी गठित की थी. इस कमेटी को किसानों और सरकार से बातचीत करके हल निकालना था. हालांकि कमेटी गठ‍ित होने के साथ ही उसके वजूद और सदस्यों पर सवाल उठने लगे.

किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि वो इसके समक्ष नहीं जाएंगे. इसलिए क्योंकि कमेटी के सभी सदस्य कृषि कानूनों के समर्थक हैं. भूपेंद्र मान भी उसी कमेटी का हिस्सा थे. इसके बाद मान ने गुरुवार को खुद को कमेटी से अलग कर लिया था. भूपेंद्र मान, भारतीय किसान संघ के नेता हैं.


किसान आंदोलन : अगले 13 दिन बेहद खास, संभलकर चलाना होगा आंदोलन


 

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर पिछले 51 दिन से आंदोलन जारी है. हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक धीरे-धीरे ये आंदोलन दुनियां का सबसे बड़ा आंदोलन बनता जा रहा है.

टीकरी बॉर्डर पर शर्ट उतारकर प्रदर्शन करते किसान, फोटो-साभार एएनआइ

वहीं, किसान और सरकार के बीच संवाद जारी है. शुक्रवार को 9वें दौर की वार्ता होनी है. किसान नेता दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के लिए रवाना हो चुके हैं. हालांकि इस बातचीत में भी कोई हल निकलेगा. इसकी गुंजाइश कम ही है. वो यूं कि सरकार कानून वापसी के मूड में नहीं है और किसान भी पीछे हटने को तैयार नहीं.


किसान आंदोलन : सुप्रीमकोर्ट ने नए कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगाई


 

शुक्रवार की सुबह टीकरी बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड में किसानों ने शर्ट उतारकर प्रदर्शन किया. टीकरी बॉर्डर पर अमूमन हर रोज सुबह को ऐसे प्रदर्शनों का नजारा दिखता है. किसान तीनों कानूनों को रद किए जाने की मांग पर अड़े हैं. लोहड़ी पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई थीं. और 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान कर रखा है. इसकी तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही हैं.

मेरे पास 41 विधायकों की सूची, भाजपा में शामिल कर लूं तो गिर जाएगी ममता सरकार : कैलाश

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द लीडर : पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच राजनीतिक घमासान छिड़ा है. इस बीच गुरुवार को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कैलाश विजयवर्गीय ने दावा किया है कि ‘मेरे पास 41 विधायकों की सूची है. वे भाजपा में आना चाहते हैं. मैं उन्हें भाजपा में शामिल कर लूं तो बंगाल में सरकार गिर जाएगी.’ उनके इस दावे ने राज्य की राजनीति में गर्माहट पैदा कर दी है.

बंगाल में इसी साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में विधानसभा की 294 सीटें हैं. इन पर जीत के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं. इस चुनाव में भाजपा न सिर्फ मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है बल्कि ममता सरकार को लगातार चुनौती भी पेश कर रही है.


उवैसी के बंगाल में चुनाव लड़ने के एलान पर यूपी से मौलाना तौकीर का बड़ा एलान


 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कैलाश विजयवर्गीय ने 41 विधायकों को लेकर जो दावा किया है. उसमें कहा है कि, ‘हम देख रहे हैं कि किसे लेना है और किसे नहीं. अगर किसी की छवि खराब है तो उसे नहीं लेंगे. सबको लग रहा है कि ममता बनर्जी की सरकार जा रही है.’

इससे पहले ममता सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके है. टीएमसी के कुछ और विधायक व नेताओं ने भी भाजपा ज्वॉइन कर ली है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं. वैसे-वैसे भाजपा और टीएमसी के बीच सियासी जंग रोचक होती जा रही है.


किसान आंदोलन : अगले 13 दिन बेहद खास, संभलकर चलाना होगा आंदोलन


 

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह लगातार बंगाल का दौरा कर रहे हैं. रैलियां आयोजित कर रहैं, जिसमें जबरदस्त भीड़ भी उमड़ रही है. भाजपा राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी ममता सरकार पर हमलावर है.

इससे पहले एआइएमआइएम के मुखिया और हैदराबाद से सांसद असदुद्​दीन ओवैसी ने बंगाल से चुनाव लड़ने का एलान किया था. उनके इस ऐलान ने भी ममता सरकार की बेचैनी बढ़ा रखी है.

बेखुदी में खोया शहर : पेरिस की सेन नदी, जिसे लेखक ने महबूबा के रूप में रेखांकित किया

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हुसैन ताबिश

“वह आपसे लिपटना चाहती है. आपको चूमना चाहती है. आप उसके कोमल और नर्म हाथों की गर्माहट महसूस करते हैं. वो कल-कल करती बात-बेबात पर हंसती रहती है. और जब आप उससे नाराज होने का अभिनय करते हैं, वो और हंसती चली जाती है. उसकी सांसों की उष्णता आपमें गुदगुदी भरती है. उसकी आंखें की कोर में जाड़े का उजास है और गर्मी की शाम की सुरमई चमक एक साथ डोलती है.’’ ये वर्णन किसी प्रेमी ने अपनी प्रेयसी के लिए नहीं बल्कि एक लेखक ने फ्रांस के पेरिस शहर में बहने वाली सेन नदी के लिए किया है.

पिछले दो माह का मेरा वक्त कुछ नई-पुरानी किताबें पढ़ने और सामाजिक शोध के काम में गुजरा है. पढ़ी गई किताबों में एक किताब है ’’बेखुदी में खोया शहर’’. इसके लेखक हैं बीबीसी के पूर्व पत्रकार अरविंद दास और इसे प्रकाशित किया है दिल्ली के अनुज्ञा बुक्स प्रकाशक ने. 195 पन्नों की ये किताब कुल पांच खंडों में विभाजित है और इसमें कुल 60 लेख हैं.


अमरीकी नस्लवाद बनाम भारतीय जातिवाद


हालांकि उन्हें लेख कह देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि ये लेख किसी एक सांचे या लेखन की विद्या में फिट नहीं बैठेंगे. आपने कविता की मुक्त शैली पढ़ी और देखी होगी. लेकिन इस किताब में आप पूरे लेखन की एक मुक्त शैली से रूबरू होंगे. लेखक ने स्वयं इस संग्रह को ” एक पत्रकार के नोट्स’’ कहा है. मैं इस नोट्स में लेख, डायरी, संस्मरण और यात्रा वृतांत भी शामिल करूंगा!

किताब की भाषा शैली बिल्कुल साहित्यिक है जिसकी प्रमाणिकता इस पुस्तक के शीर्षक और ऊपर दिए पुस्तक के अंश से साबित होती है. कथ्य की सरलता, सहजता, भाव और शैली पाठक को बरबस ही अपने मोहपाश में बांध लेती है. कोई भी लेख दो पेज से ज्यादा का नहीं है. लेखन सारगर्भित और विषय समीचीन है. इसलिए पाठक एक के बाद एक लेख पढ़ता जाता है. यही इस पुस्तक और लेखक की सफलता है. इसमें शामिल लेखों के विषय की विविधता और उसका दायरा भी इस किताब को खास बनाती है.

जहां एक ओर लेखक पाठकों को अपनी बचपन की स्मृतियों में ले जाकर बिहार के मधुबनी के गांवों के आम की बाड़ियों में टिकोले चुनवाता है. वहीं यूरोप के किसी काॅफी हाउस की काॅफी का रास्वादन भी करा देता है. यहां प्रेमी जोड़े और प्रेम भी हैं. लेकिन उसका रूप वो नहीं है जो कहानियों और उपन्यासों में होता है. प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है. उसमें रोमांस का पुट नहीं है.


पुस्तक परिचय : गुगी वा थ्योंगा’ की मशहूर पुस्तक ‘खून की पंखुड़ियां’


 

इस किताब को पढ़ते हुए पाठक भारत के दिल्ली, बैंगलुरू, पुणे और श्रीनगर जैसे शहरों से लेकर जर्मनी, फ्रांस, चीन, श्रीलंका और

ऑस्ट्रिया जैसे देशों की राजधानियों और उनके शहरों की कला, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास बोध और वहां के लोगों से एक राब्ता कायम कर लेता हैं. लेखक ने लंदन, वियना, पेरिस, शंघाई और कोलंबों जैसे ढेर सारे शहरों की तरुणाई भरी भोर, अलसाई दोपहरी और सुरमई अलमस्त शामों के साथ वहां की नदियों, पहाड़ों और प्राकृतिक सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है.

वो अखबार, जिसने ब्रिटिशराज के खिलाफ बागियों की फौज तैयार कर दी थी

संघाई का समाजवाद और मार्क्स के दर्शन की मौत जैसे लेखों में लेखक ने उन देशों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं को भी टटोलने की कोशिश की है.
किताब के दूसरे हिस्से में लेखक भारत में उदारीकरण, भूमंडलीकरण और निजीकरण की आमद के बाद राष्ट्रभाषा हिंदी, राष्ट्रवाद, पत्रकारिता, न्यूज चैनल्स, रेडियो और सिनेमा में आए बदलावों की पड़ताल करता है.

न्यूज़ रूम राष्ट्रवाद से लेखक काफी खौफजदा है. वहीं “ग्लोबल से लोकल होता बाॅलीवुड’’ लेख में हाल के दिनों में ’गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ’आंखों देखी’, ’मसान’, ’दम लगा के हईशा’, ’बरेली की बर्फी’, और ’अनारकली ऑफ आरा’ जैसी फिल्मों में चुटीली कहानियों के जरिए छोटे-शहरों, कस्बों की जिंदगी, परिवार, नाते-रिश्तेदारी और अस्मिता को उकेरने को लेखक उम्मीद भरी निगाहों से देखता है.


प्रेमचंद की कहानी : जुरमाना


लेकिन चिंता इस बात की है कि अगर इन फिल्मों की पहुंच एक बड़े दर्शक वर्ग तक नहीं हुई तो अपने उद्देश्यों में यह समांतर सिनेमा की तरह ही पिछड़ सकती है. लेखक हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के क्षेत्रीय फिल्मों का भी जिक्र करता है जिनमें असीम संभावनाओं के द्वार हैं.

किताब का तीसरा हिस्सा पूरी तरह लोक कला, संस्कृति और भाषा को सपर्पित है. इसमें लेखक ने मिथलांचल के सांप्रदायिक सद्भाव, मैथिली भाषा-साहित्य, मिथिला पेंटिंग, भित्तचित्र, कोहबर, सिक्की कला जैसे अनेक लोक कलाओं और उनसे जुड़े कलाकारों से रूबरू कराया है. लेखक ने यहां दम तोड़ती लोक संस्कृति, कलाओं और गाथाओं को लेकर

कई गंभीर सवाल भी उठाए हैं.
बिहार के सौ साल पूरे होने पर दिल्ली हाट में एक प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें बिहार के विभिन्न कला रूपों की झांकी थी. प्रदर्शनी में जहां मिथिला पेंटिंग के कई स्टाॅल थे वहीं सिक्की कला का कोई नामलेवा नहीं था.

मिथिला में शादी-ब्याह के अवसर और लड़कियों के गौना के समय सिक्की से बनी कलाकृतियों को भेजने का पुराना रिवाज है, जो आज भी कायम है. हालांकि कलाकारों का कहना है कि इस कला में जितनी रुचि इस देश के बाहर विदेश के लोगों की है, उतनी स्थानीय स्तर पर नहीं है. स्थानीय स्तर पर इस कला का कोई बाजार अभी तक विकसित नहीं हो पाया है.

मधुबनी पेंट‍िंंग

सआदत हसन मंटो की कहानी : टोबा टेक सिंह


 

मैथिली भाषा को लेकर एक स्थान पर लेखक ने कहा है, “वर्ष 2004 में मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर भाषा का दर्जा दिया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश 21वीं सदी के दूसरे दशक में भी यह सवाल उसी रूप में मौजूद है कि मैथिली भाषा-साहित्य में ब्राहमणों और कर्ण कायस्थों की उपस्थिति ही सभी जगह क्यों है, जबकि पूरे मिथिला भूभाग में यह बोली और समझी जाती रही है.’’

पुस्तक के चौथे और पांचवे हिस्से में गांव, गरीबी, पीड़ा, बचपन, प्रेम, जवानी, संघर्ष, मृत्यु शोक और विद्रोह के स्वर हैं. इससे हिस्से को लेखक ने उम्मीद-ए- शहर और स्मृतियों का कोलाज नाम दिया है. ‘चंपारण सत्याग्रह के कलमाकर’ लेख में लेखक ने लिखा है, ’’ मेरे लिए आश्चर्य की बात है कि महात्मा गांधी, जो खुद एक पत्रकार भी थे, ने चंपारण सत्याग्रह के कलमकार, पत्रकार सत्याग्रही पीर मुहम्मद मूनिस का नाम उल्लेख करना कैसे चूक गए.

मूनिस चंपारण के एक युवा पत्रकार थे. गांधी जी को चंपारण आने का निमंत्रण और वहां के हालात से उन्होंने ही चिट्ठी लिखकर गांधी जी को अवगत कराया था. मुनिस उन दिनों कानपुर से निकलने वाले ’’ प्रताप’’ ( संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ) के संवाददाता थे. किताब में लेखक अरविंद दास लिखते हैं कि इस पत्रकार का नाम न तो गांधी जी की आत्मकथा में मिलता है न ही आधुनिक भारत के किसी इतिहास में.

यहां तक बिहार की पत्रकारिता के इतिहास में भी उनको स्थान नहीं दिया गया. इस तरह की कई रोचक जानकारियां इस किताब में दर्ज हैं. अगर आप छोटे-छोटे लेखों से ढेर सारे बड़े-बड़े मुद्दों को समझना, पढ़ना और देखना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके लिए ही लिखी गई है. मात्र 250 रुपये की यह किताब अमेजन पर उपलब्ध है.

(लेखक दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो मूलरूप से बिहार के निवासी हैं.)

कुवैत में सियासी घमासान, प्रधानमंत्री ने अमीर को सौंपा मंत्रीमंडल का इस्‍तीफा

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द लीडर : तेल संपदा के धनी कुवैत (Kuwait) में सियासी घमासान सतह पर आ गया है. कुवैत के प्रधानमंत्री सबाह-अल-खालिद-अल-सबाह ने बुधवार को देश के अमीर (शासक) शेख नवाफ अल-अहमद-अल-सबाह को अपने मंत्रीमंडल का इस्तीफा सौंप दिया है. कुवैत की समाचार एजेंसी कुना के हवाले से ये खबर सामने आई है. संसद और सदस्यों के बीच उपजे मतभेदों के चलते ये इस्तीफे हुए हैं.

नेशनल असेंबली और सरकार के मध्य पैदा हुए इस गतिरोध के बीच उप-प्रधानमंत्री शेख हमद जाबेर-अल-अली-अल सबाह ने मंगलवर को सभी कैबिनेट सदस्यों के इस्तीफे पेश किए थे. कुवैत संविधान के मुताबिक कैबिनेट के इस्तीफे प्रधानमंत्री को सौंपना जरूरी है. और प्रधानमंत्री को उन इस्तीफों को अमीर के समक्ष रखना आवश्यक है.

कुवैत नैशनल असेंबली, फोटो साभार व‍िक‍िपीड‍िया

अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक हालिया घटनाक्रम तब पैदा हुआ जब कैबिनेट के 38 सदस्यों ने प्रधानमंत्री से सवाल करने की गुजारिश की. इसमें सदस्यों ने कैबिनेट कार्यक्रम पेश करने में असफल रहने का आरोप लगाया.

तेल समृद्ध कुवैत में कानूनविदों और सत्तारूढ़ परिवार के नेतृत्व वाली सरकार के बीच करीब एक दशक से भी अधिक समय से राजनीतिक विवाद बने हुए हैं. जिससे ये देश पूरी तरह से हिला चुका है. इस अंतराल में कई बार संसद और मंत्रिमंडल भी भंग हो चुके हैं.


नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने भारत से कालापानी समेत दो अन्य क्षेत्र वापस लेने का लिया संकल्प


 

पिछली कैबिनेट ने भ्रष्टाचार और घुसपैद के आरोपों के बीच नवंबर 2019 में कदम रखा था, जबकि दिसंबर 2020 के चुनावों में आखिरी कैबिनेट को बदल दिया गया था.

हाल ही में कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचाई है. कुवैत पर इसकी दोहरी मार पड़ी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दामों में गिरावट से उसकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा है.

अफगानिस्तान की सरजमीन पर सेना नहीं उतरेगी: जनरल नरवणे

खाड़ी में कुवैत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो इकलौती निर्वाचित संसद है. संविधान के मुताबिक अमीर को बेशुमार अधिकार हैं. वे सरकार की सिफारिश पर विधायिका को भंग भी कर सकते हैं.

मौजूदा अमीर शेख नवाफ अल-अहमद-अल-सबाह करीब 91 साल के हैं. अपने भाई शेख सबाह की मौत के बाद सितंबर में उन्होंने पद्भार संभाला था. करीब 4.8 मिलियन आबादी वाले कुवैत में लगभग 70 प्रतिशत आबादी विदेशी है.

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किसान आंदोलन : अगले 13 दिन बेहद खास, संभलकर चलाना होगा आंदोलन

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नई दिल्ली : किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई है. किसान नेताओं ने उससे बातचीत करने से साफ इनकार कर दिया है. स्पष्ट किया है कि अगर हम कमेटी बनाए जाने के पक्षधर होते, तो भी इन सदस्यों से किसी भी सूरत में बात नहीं करते, जिन्हें कमेटी में रखा गया है. किसान नेता दर्शनपाल सिंह ने ‘द लीडर’ से खास बातचीत में कमेटी के गठन पर ही आपत्ति जाहिर की है.

क्या इस पर सुप्रीमकोर्ट की अवमानना का कुछ मामला बन सकता है? इसके जवाब में दर्शनपाल सिंह कहते हैं कि नहीं, ऐसा नहीं लगता. क्योंकि कमेटी बनाने के लिए हमने कोई सहमति नहीं दी थी.

कुछ आता है तो देखेंगे. किसान नेताओं ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड को लेकर साफ किया है कि ये कार्यक्रम होगा. इस बीच उन्होंने आंदोलन को बेहद संभालकर चलाए जाने की चिंता भी जाहिर की है.

कानून होल्ड करेंगे इसकी उम्मीद नहीं थी

दर्शनपाल सिंह कहते हैं कि सुप्रीमकोर्ट कमेटी बनाएगा. ऐसा तो लगता था, पर कानूनों को कुछ देर के लिए होल्ड कर दिया जाएगा. ये उम्मीद नहीं थी. मेरे ख्याल से कमेटी नहीं बनानी चाहिए थी. फिर उसमें भी चारों लोग कानून बनाने वाले या उसके पक्ष में हैं जो उन्हें लागू भी कराना चाहते हैं. उन्हें रखा गया है. इसका मतलब है कि जानबूझकर ऐसा किया गया है.

15 जनवरी को बातचीत क संभावना कम

केंद्र सरकार और किसानों के बीच 8 दौर की बातचीत हो चुकी है. 9वें दौर की बात 15 जनवरी को प्रस्तावित है. क्या अब ये बातचीत हो पाएगी? दर्शनपाल सिंह कहते हैं कि इसकी संभावना कम है. सरकार कहेगी कि सुप्रीमकोर्ट की कमेटी के पास जाओ.


सुप्रीमकोर्ट ने जो कमेटी बनाई है, उसके सभी सदस्य कृषि कानूनों को सही मानते : किसान नेता


 

26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड को लेकर वे कहते हैं कि जिला मुख्यालयों पर इसका अभ्यास चल रहा है. हजारों की संख्या में ट्रैक्टर शामिल हो रहे हैं. परेड में बड़ी तादाद में किसान आएंगे. किसान नेताओं को 26 जनवरी तक ये आंदोलन बहुत संभलकर और संभालकर चलाना होगा. इसके बाद ये और बड़ा होगा. ऐसी उम्मीद जताते हैं. उन्‍होंने दोहराया क‍ि तीनों कृषि कानून वापस न होने तक आंदोलन जारी रहेगा.

असम से लेकर यूपी तक जहरीली शराब का धंधा, मध्यप्रदेश में 20 लोगों की मौत से हरकत में शिवराज सरकार

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द लीडर : अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद ड्रग्स को लेकर जिस तरह का शोर मचा था. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB)ने मुंबई में ताबड़तोड़ छापेमारी की. अभिनेत्री रिया चक्रवती (Riya Chakravarty) और उनके भाई शौविक चक्रवती को जेल जाना पड़ा. क्या, जहरीली शराब की बिक्री पर ऐसी ही किसी सक्रिय अभियान की दरकार नहीं? खासकर मध्यप्रदेश (MP) और उत्तर प्रदेश (UP) में, जहां आए दिन जहरीली शराब से मौतों का तांडव जारी है. मध्यप्रदेश में एक बार फिर इसी जहरीली शराब से 20 लोगों की मौत हो गई है.

ताजा घटनाक्रम मुरैना के छेरा मानपुर और पहवाली गांव का है. गांवों के 20 लोग जहरीली शराब पीकर मर गए हैं. घटना से लोगों में आक्रोश है. उन्होंने विरोध-प्रदर्शन भी किया है. दूसरी तरफ विपक्ष सरकार पर हमलावर है. इस सबके बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shiv Raj Singh) ने एक उच्च स्तरीय बैठक की है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि घटना की जांच कर आरोपियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी. बहरहाल, जिलाधिकारी और एसपी ग्रामीण को उनके पद से हटा दिया गया है.


अफगानिस्तान की सरजमीन पर सेना नहीं उतरेगी: जनरल नरवणे


उज्जैन में हो चुकीं 12 मौतें

मध्यप्रदेश के ही उज्जैन में ही पिछले साल जहरीली शराब पीकर 12 लोग मर गए थे. तब पुलिस आरक्षक सुदेश खोड़े, शेख अनवर और नवाज शरीफ को बर्खास्त किया गया था. घटना से जुड़े 18 आरोपियों को जेल हुई थी.

बुलंदशहर में मारे गए 5 लोग

हाल ही में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जीतगढ़ी गांव में जहरीली शराब 5 लोगों की जिंदगियां लील चुकी है. इसमें 19 लोगों को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गयाथा. घटना के मुख्य आरोपी कुलदीप की गिरफ्तारी हुई थी.


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यूपी में एनएसए के तहत कार्रवाई के आदेश

राज्य में जहरीली शराब से लगातार मौत की घटनाएं सामने आने पर जब हंगामा बरपा. तब मुख्यमंत्र योगी आदित्यनाथ ने आरोपियों के विरुद्ध एनएसए के तहत कार्रवाई के निर्देश जारी किए. स्पष्ट किया कि आरोपियों की संपत्ति भी जब्त की जाएगी. इसे नीलाम कर पीड़ित परिवारों को मुआवजे के रूप में दिया जाएगा. उस समय भी लखनऊ, फिरोजाबाद, प्रयागज और मथुरा में जहरीली शराब से 6 मौतें सामने आई थीं.

असम में 120 लोगों की मौत से भी सबक नहीं

पूर्वोत्तर के राज्य, असम में साल 2019 में जहरीली शराब से एक बड़ा हादसा हुआ था. इसमें करीब 120 लोगों की मौत हो गई थी. इतनी बड़ी घटना से भी राज्य सरकारों और प्रशासन ने जहरीली शराब के खिलाफ कार्रवाई का सबक नहीं लिया.