आजादी के गुमनाम नायक… जिनका परिवार आज बदहाली की ज़िंदगी गुजार रहा

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द लीडर हिंदी। अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन जो देश के लिए जीता है और देश के लिए मरता है वह केवल एक सैनिक ही है। जिसकी बदौलत हम लोग अपने घरों में सुरक्षित दिन का चैन और रात के सुकून की सांस ले पाते हैं। 15 अगस्त सन 1947 को भारत देश आजाद हुआ। निश्चित रूप से भारत देश को आजादी दिलाने में भारत मां के तमाम वीर सपूतों ने अपनी कुर्बानी दे दी। जिसकी कुर्बानी को हम भुला नहीं सकते हैं।

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कहीं न कहीं उनकी कुर्बानियों को ही याद करने के लिए यह राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इसी के साथ उसी आजादी को सहेज कर रखने में अब तक जिन जवानों अपने प्राणों की आहुति दी गई है। उनको भी द लीडर हिंदी विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए नमन वंदन और अभिनंदन करता है।

एक वीर सपूत की दास्तां… जिसका परिवार आज है बेहाल

आज हम आपको ऐसे ही एक वीर सपूत की दास्तां सुना रहे हैं। जो भारत मां की सेवा करते करते अपनी जवानी कुर्बान कर दिया। ऐसे वीर सपूत अमेठी जिले के जोगापुर अमरपुर गांव के रहने वाले एक गरीब और साधारण ब्राम्हण परिवार राम सुंदर मिस्र के घर जन्मे केदारनाथ मिश्र की है। स्वर्गीय रामसुंदर के तीन पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र केदारनाथ मिश्र का जन्म सन उन्नीस 1968 में हुआ था। वह शुरू से बहुत ही मेहनती और होनहार था।

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देश सेवा का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था। जिसके परिणाम स्वरूप सन 1985 में हुआ था देश की सबसे बड़ी फोर्स केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में भर्ती हुए। देश सेवा करते हुए वह देश के विभिन्न भागों में तैनात रहे। और देश सेवा करने के साथ-साथ घर में सबसे बड़े होने का फर्ज निभाते रहे। इसी बीच सूबेदार मेजर केदारनाथ मिश्र को लगभग 2-2 वर्षों के अंतराल पर चार संताने हुई। जिसमें 2 पुत्र और दो पुत्रियां शामिल हैं। धीरे-धीरे परिवार बढ़ता गया जिम्मेदारियां बढ़ती गई। लेकिन इस जवान ने कभी उफ तक नहीं की। इसी बीच श्रीनगर के लाल चौक में 17 अगस्त वर्ष 2006 का वह काला दिन आ गया।

जब आतंकवादियों पर टूट पड़े थे सूबेदार मेजर केदारनाथ मिश्र

जब सूबेदार मेजर केदारनाथ मिश्र दिनभर की ड्यूटी के उपरांत कैंप में पहुंचकर विश्राम करने जा रहे थे। तभी आतंकवादियों ने लाल चौक पर हमला कर दिया। अभी वह अपनी टोपी उतारे ही थे जब तक समझ पाते तब तक दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई। केदारनाथ के साथी नौजवान सैनिक बताते हैं। आतंकवादियों के द्वारा चलाई गई एक गोली उनके गर्दन पर लगी और वह गिर पड़े। लेकिन इसके बावजूद फिर उठे और आतंकवादियों पर टूट पड़े। लेकिन तभी ऊंचाई पर खड़े आतंकवादी ने सीधे उनके सिर पर दूसरी गोली से निशाना लगाया। दोबारा जब वह जमीन पर गिरे तब उठ नहीं सके और वहीं पर 38 वर्ष का यह नवयुवक वीरगति को प्राप्त हो गया।

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बात यहीं नहीं खत्म हो जाती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि, शहीद के परिजनों को सरकार और शासन प्रशासन के द्वारा लगातार उपेक्षित रखा गया। शहीद को जो सुविधाएं प्रदान की जाती है। जैसे शहीद स्मारक, शहीद द्वार और शहीद के घर तक पक्की सड़क जैसी कामन चीजें भी इस परिवार को नहीं मुहैया हो पाई। स्वर्गीय केदारनाथ मिश्र के सभी बच्चे छोटे थे घर में किसी को सरकारी नौकरी भी नहीं मिली। सहारे के नाम पर कुछ है तो सिर्फ शहीद की पत्नी को पेंशन मिल रही है। उसी से वह अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर काबिल इंसान बनाने का प्रयास कर रही है।

केदारनाथ मिश्र का परिवार प्रतिदिन तिल-तिल कर शहीद हो रहा

इस पूरे परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस परिवार के पास रोजमर्रा के पानी भरने के लिए एक हैंडपंप तक नहीं है। लेकिन शासन-प्रशासन जनप्रतिनिधि विधायक सांसद सरकार किसी ने भी एक हैंडपंप तक लगवाने की जहमत नहीं उठाई। ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि केवल केदारनाथ मिश्र ही शहीद नहीं हुए हैं। वास्तव में उनका परिवार प्रतिदिन तिल तिल कर शहीद हो रहा है।

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आखिर कब तक सरकारें इस परिवार को उपेक्षित रखेगी और कब अपनी नजरें इस परिवार पर इनायत करेंगी। सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी 2 अक्टूबर जैसे राष्ट्रीय पर्व पर झंडा फहराने से कुछ नहीं होता है। जब तक हम भारत मां के ऐसे सच्चे वीर सपूतों को सम्मान नहीं देंगे। उनके परिवार को उनका हक नहीं दिलाएंगे। तब तक सब कुछ बेमानी का लगेगा। ऐसे परिवार के लिए कुछ करना देश के लिए करने के बराबर है।

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