आंध्र प्रदेश : आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में एक दर्दनाक हादसे में करीब 14 लोगों की मौत हो गई है और तीन गंभीर रूप से घायल हैं, जिनका नजदीक के ही एक अस्पताल में उपचार चल रहा है. ये हादसा बस और ट्रक की भिड़ंत से हुआ है. जो इतना भयावह था कि क्षतिग्रस्त बस में फंसे शवों को मशीन के जरिये निकाला गया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आंध प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जागन समेत अन्य नेताओं ने हादसे पर दुख जताया है.
रविवार की सुबह चित्तूर जिले के कुछ लोग एक यात्री बस से राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर हाजिरी के लिए जा रहे थे, जहां उर्स चल रहा है.
स्थानीय पुलिस के मुताबिक सुबह को कुरनूल जिले में ये मिनी यात्री बस डिवाइडर से टकरा गई. इसी बीच दूसरी तरफ से एक ट्रक आ रहा था. जिससे बस-ट्रक भिड़ गए. इस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे हैं.
हादसे पर दुख जताते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमत्री वाईएस जगन ने मृतकों के परिवारों को दो-दो लाख रुपये और घायलों को एक-एक लाख रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया है.
घायलों के स्वस्थ होने की कामना करते हैं : राष्ट्रपति
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी घटना पर दुख प्रकट किया है. उन्होंने कहा कि आंध प्रदेश के कुरनूल में एक सड़क दुर्घटना में महिलाओं, बंच्चों समेत जायरीन की मौत की घटना दिल दहलाने वाली है. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उन परिवारों के साथ हैं, जो इससे प्रभावित हैं. घायल लोगों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं.
The death of pilgrims, including women and a child, in a road mishap at Kurnool, Andhra Pradesh, is a heart-rending tragedy. My deep empathy for the bereaved families and wish speedy recovery of survivors.
घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया है. उन्होंने कहा कि आंध प्रदेश के सड़क हादसे की खबर से दुखी हूं. दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं पीड़ित परिवारों के साथ हैं. आशा है कि घायल, जल्द ही स्वस्थ होंगे.
The road accident in Andhra Pradesh’s Kurnool district is saddening. In this hour of sadness, my thoughts are with those who lost their loved ones. I hope that the injured recover at the earliest: PM @narendramodi
द लीडर टीम, उत्तराखंड : सात फरवरी को आयी बाढ़ के बाद तपोवन पावर प्रोजक्ट की सुरंग में फंसे करीब 35 मजदूरों की जिंदगी की आस अब लगभग खत्म लग रही है. सोमवार को तपोवन सुरंग से तीन और मैठाणा से एक शव यानी कुल चार शव बरामद हुए हैं. जबकि रविवार को 15 शव बरामद किए गए थे. इस तरह इस आपदा में अब तक करीब 59 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. (Uttarakhand Disaster Bodies Recovered)
सात दिन से टनल में फंसे करीब 35 कामगारों की तलाश में अभियान चल रहा है. एनटीपीसी के परियोजना निदेशक उज्जवल भट्टाचार्य के मुताबिक तपोवन सुरंग में हम लोग अभी 135 मीटर पहुंच गए हैं. 10-15 मीटर तक और मलबा साफ करने के बाद पानी निकलने लगेगा. हमें उम्मीद है कि जल्द ही सुरंग में और आगे बढ़ पाएंगे.
सुरंग में फंसे लोगों के अलावा अभी लिस्ट के मुताबिक करीब 159 लोग अभी भी लापता हैंं. इनमें ज्यादातर के बाढ़ में बह जाने या मलबे में गहरे धंसे होने की आशंका है.
सुरंग के अदंर आगे गाद की मात्रा काफी है जिसे साफ करने में राहत दल को दिक्कत आ रही है और अंदर का हाल देख कर नहीं लगता कि इस गाद में कोई जिंदा मिल पाए. दोनों स्थलों पर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें दिन रात काम में लगी हैं.
सोमवार को जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने कहा कि आज अभी तक तीन शव मिले हैं. टनल और बैराज साइटपर लगातार मशीनों के जरिये काम चल रहा है.
टनल में लगातार काम चल रहा है और बैराज साइट पर भी मशीनें काम कर रही हैं। रैणी साइट पर भी काम चल रहा है। कल रैणी से 7 शव बरामद हुए, टनल से कल 6 और आज 3 शव बरामद हुए हैं: स्वाति भदौरिया, चमोली की ज़िलाधिकारी #Uttarakhandpic.twitter.com/6gDX7TiFAz
डीएम ने कहा कि रैणी क्षेत्र में भी राहत बचाव जारी है, और हमारी कोशिश है कि लापता लोगों को जल्द तलाश किया जाए.
इससे पहले रविवार को एसडीआरएफ के कमांडेंट नवनीत मुल्लर करीब 14 हजार फुट की ऊंचाई पर ऋषि गंगा में बनी झील पर पहुंचे. और बताया कि झील से काफी अच्छी मात्रा में साफ पानी डिस्चार्ज हो रहा है. इसलिए खतरे की कोई बात नहीं है.
11 शवों की शिनाख्त
रविवार को तपोवन सुरंग और रैणी में मिले 11 शवों की शिनाख्त हो चुकी है, जिसमें चार उत्तराखंड, दो गोरखपुर, एक जम्मू-कश्मीर, एक फरीदाबार, एक रामपुर, एक हिमाचल और एक मृतक पंजाब से है. सुरंग में एवं रुद्रप्रयाग में देर शाम मिले दो शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई है. चमोली जिला अस्पताल में हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक सुरंग में सभी की मौत दम घुटने से हुई है.
मृतकों के नामों की सूची
आलम सिंह पुत्र सुंदर सिंह, निवासी- टिहरी गढवाल, अनिल पुत्र भगत सिंह, निवासी कालसी, देहरादून, जीतेंद्र कुमार पुत्र देशराज, निवासी जम्मू कश्मीर, शेषनाथ पुत्र जयराम, निवासी फरीदाबाद, जितेंद्र धनाई पुत्र मतवार सिंह, निवासी टिहरी गढवाल, सूरज ठाकुर पुत्र श्रीनिवास, रामपुर कुशीनगर, जुगल किशोर पुत्र राम कुमार, निवासी पंजाब, राकेश कपूर पुत्र रोहन राम, निवासी हिमाचल प्रदेश, हरपाल सिंह पुत्र बलवंत सिंह, निवासी चमोली, वेद प्रकाश पुत्र राजेंद्र सिंह, निवासी गोरखपुर, धनुर्धारी पुत्र राम ललित सिंह, निवासी गोरखपुर.
द लीडर टीम, उत्तराखंड : मौके के लाइव तस्वीरें और वीडियो हाजिर हैं। अब अटकलों पर विराम लगाकर सच समझा जा सकता है। रौंठी ग्लेसियर का टुकड़ा अपने साथ चट्टान समेट कर जब नीचे गिरा तो वहां बनी झील को फोड़ने के साथ ही ताजा जमी बर्फ तो रौंदते पिघलाते आगे बढ़ा। इस बारे में कई भूवैज्ञानिक राय दे रहे हैं।
एक मत यह भी है कि ग्लेसियर के नीचे की अंडरग्राउंड झील का पानी 7 फरवरी के प्लैश फ्लड को वेग देने वाला मुख्यकारक रहा हो। इस बहसों को रहने देते हैं। यह दिख रहा है कि ऋषिगंगा के संगम पर आइस यानी ग्लेसियर का टुकड़ा मिट्टी और पत्थरों के आवरण के साथ बायीं तरफ दो पहाड़ो के बीच से निकल रही मेन ऋषिगंगा पर एक डाट की तरह ठीक से घंस गया।
इस मलबे की ऊंचाई 100 से डेढ़ से मीटर और मोटाई करीब 500 मीटर है। यह ढलान लिए हुए है और यहां पांच दिन तक झील बनने के बाद अब ऋषिगंगा प्रवाहमान हो चुकी है। मलबे की मोटाई ठीक ठाक है और ऋषिगंगा ढलान लेकर इसे धीरे धीरे काट रही है इसलिए फिलहाल बांध टूटने और फ्लैश फ्लड का खतरा नहीं है। देखिए कुछ तस्वीरें और सुनिए मौके पर गए विशेषज्ञ क्या बता रहे हैं।
यूपी : नबीरे आला हजरत व आइएमसी के प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां ने क्यों कहा कि अगर आजादी से हमें किसी का समर्थन करने या अपनी बात रखने का इख्तियार नहीं है तो फिर आजाद रहने का भी कोई कह नहीं है. उन्होंने सीएए, किसान आंदोलन और रामपुर के सज्जादानशीन की गिरफ्तार पर और क्या कुछ कहा. सुनिए
द लीडर. वह अपने वालिद लईक अहमद जमाली के पर्दा फरमाने के बाद जब रामपुर की प्रमुख दरगाह हाफिज शाह जमालुल्लाह के सज्जादानशीन बनाए गए तो उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी. नौजवानी की दहलीज पर ही कदम रखा था लेकिन इसके बावजूद इस बड़ी मजहबी जिम्मेदारी को उन्होंने बाखूबी संभाला. बतौर सज्जादा उनका दायरा बढ़ा तो विवाद खड़े होने लगे.
जब मुहल्ला बाजोड़ी टोला स्थित दरगाह का उर्स-मेला किला मैदान में लगने लगा तो यह बात समाजवादी के फायर ब्रांड नेता मुहम्मद आजम खां को नागवार गुजरी. इसे लेकर तकरार हुई. तब आजम खां अपनी बातचीत में सज्जादानशीन की चार शादियों का जिक्र भी चटखारे लेकर किया करते थे. शरीयत का हवाला देते हुए सज्जादानशीन की तरफ से जवाब भी करारे अंदाज में दिया जाता था.
यही सज्जादानशीन नवाब खानदान के चश्म-ओ-चिराग काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां से भी टकरा गए. सज्जादानशीन पर इल्जाम लगा कि उन्होंने नवाब खानदान के अहम शख्सियत की कब्रों से बेशकीमती पत्थर उखाड़कर बेच दिए हैं. नवाब कल्बे अली खां की कब्र भी दरगाह स्थित कब्रिस्तान में है. विवाद लंबा चला लेकिन, हाफिज साहब की दरगाह के सज्जादानशीन कमजोर नहीं पड़े.
वक्फ बोर्ड में उनकी सज्जादगी को भी चेलैंज किया गया. इसका सामना भी निडरता से किया. अपने तकरीर और बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे. जब कभी इस्लाम पर वार हुए तो आंदोलनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. यहां तक सीएए और एनआरसी को लेकर विरोध प्रदर्शनों में वह आगे खड़े दिखाई दिए.
किसान, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे तो इस आंदोलन को भी उनकी तरफ से हिमायत की गई. अब जब पुलिस ने 21 दिसंबर 2020 को रामपुर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए बवाल में हाफिज साहब के सज्जादानशीन समेत पांच प्रमुख उलमा को नोटिस थमाया तो चार के पुलिस के सामने बयान हो गए. सज्जादानशीन के नहीं हुए.
आखिरकार इसी मामले का मुख्य साजिशकर्ता मानते हुए हाफिज साहब की दरगाह के सज्जादानशीन शाह फरहत अहमद जमाली को आज (शनिवार) को उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया गया.
इससे पहले कथित तौर पर एक महिला से बात करते हुए उनका ऑडियो भी वायरल हो रहा है, करीब साढ़े चार मिनट की क्लिपिंग में महिला आइ लव यू तो जवाब में आइ लव यू टू की आवाज भी सुनाई दे रही है.
इसे लेकर भी तमाम तरह की बातें हो रही हैं. आल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के मुखिया मौलाना तौकीर रजा खां ने शनिवार को सज्जादानशीन की गिरफ्तारी के विरोध और किसान आंदोलन के समर्थन में अपनी गिरफ्तारी देने का ऐलान कर दिया है.
इस बीच पत्रकारों से बातचीत में मौलाना ने कहा कि सज्जादानशीन का चरित्रहनन करने को साजिशन ये ऑडियो वायरल किया गया. फिर अगर इस ऑडियो में कोई सच्चाई है तो, तो शरीयत के मुताबिक उस पर कार्रवाई की जाएगी.
13 फरवरी है. ये तारीख उर्दू के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की (1911-84) जयंती की है, जोकि आज है. जिन्हें, मैं बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े उर्दू शायर के तौर पर मानता हूं. हालांकि मेरे दिल में फिराक गोरखपुर समेत दूसरे कवियों के लिए भी बेशुमार इज्जत है.
साल 1981 की बात है. जब, मैं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील था. फैज साहब मेरे गृहनगर इलाहाबाद आए. उनके सम्मान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अहाते में समरोह रखा गया. उस शाम, बेशुमार भीड़ उमड़ पड़ी. मंच पर कई और कवि थे. जिनमें, फिराक गोरखपुरी, महादेवी वर्मा, फैज साहब आदि. काव्य सितारों की आकाशगंगा जैसा अद्भुत नजारा था.
फिराक साहब काफी बुजुर्ग हो चले थे. इतने कि मानसिक सक्रिय होने के बावजूद ठीक से चल नहीं पा रहे थे. विश्वविद्यालय के कुछ लड़के, उन्हें मंच तक लेकर गए.
चूंकि, उर्दू शायरी मुझे बेहद पंसद है. खासकर फैज की शायरी का मैं दीवाना हूं. इसलिए समरोह में पहुंचा. साथ में अपने 6 साल के बेटे विक्रम को भी ले गया, जो उस वक्त महज छह साल का था. ये जानते हुए भी कि विक्रम को कुछ समझ नहीं आएगा. लेकिन, एक दिन बड़ा होकर वो अपने दोस्तों को बता सकेगा कि मैंने फैज और फिराक को देखा है. ये सोचकर मैं उसे साथ ले गया.
खुशनुमा माहौल में संचालक ने फिराक का एक शेर पढ़कर महफिल की शुरुआत की. आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी, हम-असरो जब वो जानेंगी कि तुमने फिराक को देखा है.
फिर उन्होंने कहा कि मैं शेर को को थोड़ा बदलना चाहूंगा, और पढ़ा- आने वाली नस्लें तुमसे रश्क करेंगी हम-असरो, जब वो जानेंगी कि तुमने फैज, फिराक और महादेवी वर्मा को देखा है.
इसके बाद विश्वविद्यालय की कुछ लड़कियों ने फैज की मशहूर नज्म-गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले, पढ़ी. मैंने इस नज्म को कई मर्तबा सुना. लेकिन कभी भी उतनी खूबसूरती से नहीं सुन सका, जितना 40 साल पहले विश्वविद्यालय की लड़कियों ने उस यादगार शाम में सुनाया था.
मंच से काव्य पाठ प्रारंभ हुआ. आखिर में फैज साहब की बारी आई. जिनका, हम सबको बेसब्री से इंतजार था. जैसे ही वे बोलने उठे तो, महफिल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी. उस इंसान के लिए जो, ताउम्र अपने सिद्धांतों के साथ खड़ा रहा.
पाकिस्तान में मॉशर्ल लॉ के दौरान उन्हें कई साल तक जेल में रखा गया. रॉवलपिंडी मामले में झूठा फंसा गया. जिसने लिखा था, बोल की लव आजाद हैं तेरे, बोल-जुबां अब तक तेरी है. असल में वे हमारी नजर में हीरो थे.
फैज साहब ने कहा कि उन्हें ऋषि भारद्वाज की नगरी इलाहाबाद से होने पर फख्र है. जहां भगवान राम, अपने वनवास के दौरान आए और अन्य ऋषि मुनि भी. फिर उन्होंने हमें 1930 के प्रगतिशील लेखक संघ से जोड़ा, जिसके लिए फैज ने काम किया था. उन्होंने कुछ कलाम सुनाए. उस यादगार शाम की स्मृति आज भी अमिट है.
जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया है कि फैज 20वीं सदी के मेरे सबसे पसंदीदा उर्दू कवि हैं. हालांकि मैं मिर्जा गालिब को अब तक का सबसे बड़ा उर्दू शायर मानता हूं. सुप्रीमकोर्ट के अपने फैसलों में मैंने उनके शेरों का उल्लेख भी किया है.
जब मैंने, पाकिस्तान में बंद भारतीय नागरिक गोपाल दास की रिहाई के लिए पाकिस्तान सरकार को अपने फैसले के जरिये एक अपील की. जो जासूसी के इल्जाम में 27 सालों से पाकिस्तान की जेल में सजा काट रहे थे. मैंने फैज के एक इस शेर के साथ शुरुआत की-‘कफस उदास है यारो सबा से कुछ कहो, कहीं तो बहर-ए-खुदा आज जिक्र-ए-यार चले.’
पाकिस्तानी अधिकारियों पर इस शेर का इतना ज्यादा असर पड़ा कि, उन्होंने ऐलान किया-पाकिस्तान सरकार, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई अपील का सम्मान करेगी. दुनिया के न्यायिक इतिहास में कभी भी किसी कोर्ट द्वारा इस तरह की अपील पहले नहीं की गई थी. और कभी भी इसे इतना सम्मान नहीं दिया गया था. ये उर्दू शायरी की ताकत है.
सुप्रीमकोर्ट के एक और फैसले में मैंने फैज के एक शेर का हवाला दिया-‘बने हैं अहले हवस मुद्दई भी, मुंसिफ भी, किसे वकील करें किससे मुंसिफी चाहे’. मतलब, जब स्वार्थी लोग ही याचिकाकर्ता और न्यायाधीश होते हैं, इस हालत में मुझे किसको अपना वकील करना चाहिए और किससे न्याय मांगना चाहिए.
मेरे फैसले के कुछ दिनों बाद एक वकील मित्र पाकिस्तान गए, जिन्होंने बताया कि आपके उस शेर का हवाला देकर पाकिस्तान के वकील पर्चे बांटे रहे हैं. एक और मित्र ने मुझे बताया कि पाकिस्तान के एक उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसलों में मेरे निर्णय का हवाला दिया है.
मैं, 45 साल पहले की एक शरारत का जिक्र करके इस पोस्ट को समाप्त करता हूं, जिसे मैंने आज तक साझा नहीं किया है. घटना, 1972 या 73 की है. तब मैं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में काफी जूनियर वकील था. आज, जब 75 साल की उम्र में मेरे अंदर इतना जुनून है तो 26 साल में क्या आलम होगा, आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं.
हुआ यूं कि एक जज आए. जो लगभग सभी याचिका और अपील खारिज कर देते थे. कुछ वकील मेरे पास आए. बोले काटजू साहब, बचिए. ये तो हमें बर्बाद कर देंगे. हमें बचा लीजिए. मैंने, उनसे कहा-फिक्र मत कीजिए.
उस शाम को मैंने लिखा, ‘ये हाईकोर्ट या कसाईघर. नीचे मैंने फैज के उसी शेर का जिक्र किया-बने हैं अहले हवस मुद्दई भी, मुंसिफ भी, किसे वकील करें, किससे मुंसिफी चाहे. मैंने ये भी लिखा था कि, यह जज जब से आए हैं, तब से लगभग सभी मामलों को खारिज ही कर रहे हैं. उच्च न्यायालय की हालत बूचड़खाने जैसी हो गई है.’
किसी, प्रेस ने इस पत्र को छाप दिया. और अगली सुबह उच्च न्यायालय परिसर में इसे बांट दिया गया. इसकी प्रतियां हर कोर्टरूम में जजों की मेज पर रख दी गईं थीं. जब, जज कोर्टरूम में दाखिल हुए, तो उन्होंने पत्र देखा-पढ़ते ही हंगामा खड़ा हो गया.
कई जज तो गुस्से में कमरे से बाहर निकल गए. ये कहते हुए कि ये क्या बदतमीजी है. खैर, उस पत्र का असर ये हुआ कि उसके बाद जज अधिक उदार हो गए थे. इसका श्रेय फैज साहब को ही जाता है.
(मशहूर शायर फैज अहमद फैज की जयंती पर उनकी स्मृति में ये लेख जस्टिस मार्केंडय काटजू ने लिखा है, जो सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस कांउसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं. अंग्रेजी में लिखे उनके लेख का ये हिंदु अनुवाद है.)
द लीडर : नबीर-ए-आला हजरत एवं ऑल इंडिला इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के सुप्रीमो, मौलाना तौकीर रजा खां के रामपुर में प्रेस कांफ्रेंस करके जाने के बाद अगले दिन ही दरगाह हजरत हाफिज शाह जमालुल्लाह के सज्जादानशीन शाह फरहत अहमद जमाली को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है. गिरफ्तारी को लेकर सज्जादानशीन का कहना है कि उन पर यह कार्रवाई किसान आंदोलन का समर्थन करने पर की गई है.
रामपुर के अपर पुलिस अधीक्षक संसार सिंह ने बयान जारी किया है कि फरहत जमाली की गिरफ्तारी एनआरसी और सीएए को लेकर हुए बवाल में बतौर मुख्य साजिशकर्ता की गई है. गुजरे 21 दिसंबर को हुए बवाल में पुलिस की गोली लगने से एक युवक की मौत हो गई थी. पथराव और जमकर आगजनी हुई थी. आक्रोशित भीड़ ने पुलिस जीप को भी फूंक दिया था.
हाफिज साहब दरगाह के सज्जादानशीन की गिरफ्तारी से एक दिन पहले ही मौलाना तौकीर ने रामपुर पहुंचकर उनका समर्थन किया था. यह भी कहा था कि अगर फरहत मियां को गिरफ्तार किया गया तो वह भी गिरफ्तारी देंगे. पुलिस ने उनके इस एलान को दरकिनार करते हुए शनिवार सुबह आठ बजे बाजोड़ी टोला में दरगाह स्थित आवास पर दबिश देकर फरहत जमाली को गिरफ्तार कर लिया.
पहले उन्हें थाना लाया गया और वहां कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद जेल भेजा जा रहा है. इस संबंध में पुलिस की तरफ से वक्तव्य भी जारी किया गया है. अपर पुलिस अधीक्षक संसार सिंह ने कहा है कि रामपुर में 21 दिसंबर 2020 को जो बवाल हुआ था, उसमें बाजोड़ी टोला निवासी फरहत जमाली मुख्य साजिशकर्ता हैं. इससे पहले पुलिस ने फरहत जमाली समेत रामपुर के पांच प्रमुख उलमा को नोटिस जारी करके बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया था.
फरहत जमाली को छोड़कर शेष सभी थाने जाकर अपने बयान दर्ज करा आए. इनमें शहर इमाम मौलवा मुफ्ती महबूब अली भी शामिल हैं. इससे उलट सज्जादानशीन फरहत जमाली ने अपने समर्थन में बरेली में दरगाह आला हजरत खानदान से ताल्लुक रखने वाले मौलाना तौकीर रजा खां को बुला लिया.
इतना होने के बाद पुलिस ने कार्रवाई तेज करते हुए फरहत जमाली को गिरफ्तार कर लिया.
इससे पहले एक महिला से बातचीत का ऑडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें अश्लील बातचीत रिकॉर्ड की गई है. खैर सज्जादानशीन की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है. उनके समर्थन में मौलाना तौकीर रजा खां भी सोमवार को एडीजी दफ्तर पहुंचकर गिरफ्तारी देंगे.
आला हजरत खानदान खानदान से ताल्लुक रखने वाले और आइएमसी के प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां ने आवास पर प्रेस कांफ्रेंस करके शाह फरहत की गिरफ्तारी को, दरगाह और खानकाहों पर हमला करार दिया है.
उन्होंने कहा है कि किसानों के आंदोलन से सरकार की जो बदनामी और नुकसान हुआ है. उसकी भरपाई के लिए वो पुराने तरीके, खालिस्तानी-पाकिस्तानी का माहौल बनाने की कोशिश की कर रही है. ‘मैं समझता हूं कि यह तानाशाही है कि जिससे आजादी भी खतरे में है.
इससे पहले कि दूसरे लोगों पर झूठे इल्जाम लगाए जाएं. अगर मुझे आजादी से किसी का समर्थन करने या अपनी बात कहने का हक नहीं है. तो हमें आजाद रहने का कोई हक नहीं. मैं शाह फरहत जमाली की गिरफ्तारी और किसानों के समर्थन में अपनी गिरफ्तारी दूंगा.
रामपुर : उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में किसान आंदोलन के समर्थन से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. आंदोलन के समर्थन पर पुलिस द्वारा कथित रूप से हड़काने का आरोप लगाने वाले सज्जादानशीन फरहत मियां को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है. और दरगाह के आस-पास बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया. एक दिन पहले ही बरेली की दरगाह, आला हजरत खानदान से ताल्लुक रखने वाले और आइएमसी के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां ने रामपुर जाकर फरहत मियां से मुलाकात की थी. और एक प्रेस कांफ्रेंस कर पुलिस की इस कथित करतूत की निंदा की थी.
फरहत मियां, दरगाह-हाफिज शाह जमाल-उल्लाह के सज्जादानशीन हैं. उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया था. बताते हैं कि वे आंदोलन में शामिल होने भी गए थे. आरोप है कि इस पर पुलिस ने उन्हें और कुछ अन्य लोगों को तलब किया. और सज्जादानशीन को अकेले में जमकर हड़काया.
इस सूचना पर मौलाना तौकीर रजा खां शुक्रवार को रामपुर पहुंचे. उन्होंने वहीं की मस्जिद में नमाज अदा की. और अपनी तकरीर में घटनाक्रम की निंदा की थी.
मौलाना ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि महज आंदोलन में शामिल होने भर से किसी के साथ अभद्रता की जाए. अपमानित किया जाए. ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अगर एक वर्ग विशेष के लोगों को निशाना बनाकर गलत कार्रवाई की जाएगी, तो इसका कड़ा विरोध करेंगे.
इस बातचीत के दौरान कुछ स्थानीय उलमा भी मौजूद थे. मौलाना शाम को रामपुर से लौट गए. और शनिवार को पुलिस ने फरहत मियां के विरुद्ध कार्रवाई कर दी है. इससे बरेली के उलमा तक सन्न रह गए हैं. सज्जादानशीन की हिरासत को लेकर मौलाना तौकीर रजा खां ने दोपहर को प्रेस कांफ्रेंस बुलाई है.
मनमीत, देहरादून : ये क्रिकेट भी अजब खेल हो गया। इसमें जितना माल है, उतनी ही सियासत भी। क्रिकेट संघों, एसोसिशनों की सियासत के चक्कर में उत्तराखंड के खिलाड़ियों को एक काबिल उस्ताद खोना पड़ा। हद तो ये है कि उस्ताद का नमाजी होना मुद्दा बना दिया गया और इसमें आग लगाई एक पत्रकार ने। जब इस घटिया हरकत की देश दुनिया में निंदा होने लगी तो आरोप लगाने वाले सफाई देते फिर रहे हैं। बहरहाल उस्ताद ने जिल्लत भरी दलदल से खुद्दारी में रहना पसंद किया और इस्तीफा दे दिया। (Uttarakhand Cricket Association Wasim Jaffer)
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी और कई अन्य सैलिब्रिटी के जाफर के समर्थन में किये गये टवीट के चलते ये पूरा मामला राज्य क्रिकेट से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है। जिसके चलते क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड अब मुंह छुपाती दिख रही है।
भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज और उत्तराखंड क्रिकेट टीम के हेड कोच पद से इस्तीफा दे चुके वसीम जाफर पर सांप्रदायिक होने के आरोप एसोसिएशन के सचिव महिम वर्मा ने लगाये थे। जाफर ने भी प्रेस वार्ता कर आरोप लगाये थे कि एसोसिएशन उनके काम में न केवल दखल देता हैं, बल्कि जो खिलाड़ी लायक ही नहीं, उसे टीम में शामिल करने के लिये दबाव डाला जाता है।
उन्होंने सांप्रदायिक होने के आरोप पर बस इतना ही कहा कि उनका भारतीय क्रिकेट में लंबा इतिहास रहा है। आज तक किसी ने उनके खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगाये। क्रिकेट अपने आप में एक धर्म होता है। वहीं, मीडिया में जाफर की बात सामने आने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व स्पिन गेंदबाज अनिल कुंबले, इरफान पठान, डोडा गणेश और बल्लेबाज मनोज तिवारी समर्थन में आ गये।
सबने ट्वीट कर जाफर का समर्थन किया। कुंबले ने जाफर के सांप्रदायिक होने के आरोप पर कहा कि उनका पूरा कैरियर बेदाग रहा है। ये आरोप बेबुनियाद है।
उधर, मामला बढ़ता देख शुक्रवार को बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला देहरादून पहुंचे। बताया जा रहा है कि उन्होंने एसोसिएशन के सचिव महिम वर्मा और उनके पिता पीसी वर्मा को तलब किया और बिना बात का विवाद खडा करने के लिये फटकार लगाई। बताया जाता है कि महिम वर्मा के सिर पर राजीव शुक्ला का हाथ होने के चलते ही उन्हें, पहले बोर्ड के उपाध्यक्ष का पद मिला।
वहां से बिना किसी कारण के दो महीने में ही हटाये गये तो फिर बोर्ड एसोसिएशन के बाईलाज के खिलाफ जाते हुये महिम तो लगातार चैथी बार ऑफिस बियरर बना दिया गया। महिम पर टीम चयन में दखलंदाजी करने का आरोप लगाकर जाफर ने इस्तीफा दिया तो देश भर में हंगामा मच गया। महिम ने जाफर पर आरोप लगाया कि वो कटटरपंथी है और मैदान में मौलवी बुलाकर नमाज पढ़ते हैं.
शुक्रवार को आया नया मोड
क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव महिम वर्मा बैकफुट पर आ गये हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने ये आरोप कभी नहीं लगाया और न ही जाफर के खिलाफ उन्हें ऐसी कोई शिकायत मिली है। उन्होंने बताया कि टीम के मैनेजर नवनीत मिश्रा ने ये आरोप लगाये। महिम वर्मा ने बताया कि ये बयान हमारे टीम मैनेजर नवनीत मिश्रा की ओर से दिये गये है।
मैंने उनसे लिखित में स्पष्टीकरण मांगा है। वर्मा ने बताया कि नवनीत मिश्रा ने ही सबसे पहले मीडिया को ये बयान दिये। उधर, नवनीत मिश्रा ने बताया कि उन्हें एक स्थानीय पत्रकार का फोन आया था, जिसने मुझसे पूछा कि क्या चार पांच बार मौलवी आये थे। तो मैंने जवाब में बस इतना ही कहा कि नहीं, सिर्फ दो बार आये थे। नवनीति मिश्रा ने बताया कि उन्होंने कभी भी जाफर के संप्रदायिक होने की बात नहीं की।
इस पूरे मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भी हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है। मुख्यमंत्री रावत भी पूर्व में उत्तराखंड को क्रिकेट मान्यता मिलने से पहले एक एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके थे। मान्यता के लिये उन्होंने अपने एसोसिएशन को क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड के साथ खड़ा कर दिया था। उत्तराखंड के खेल विषेशज्ञ देवेंद्र सिंह नेगी बताते हैं, इस बिना बात के विवाद में जिसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा वो है उत्तराखंड के खिलाडी।
द लीडर : गृहमंत्री अमित शाह, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार को लगातार तुष्टीकरण और वोटबैंक की राजनीति के मुद्दे पर घेर रहे हैं. शुक्रवार को एक बार फिर उन्होंने ममता सरकार पर जोरदार हमला किया. शाह ने कहा-तृणमूल कांग्रेस, जय श्रीराम के नारे को धार्मिक नारा समझाने की कोशिश कर रही है, जो गलत है. दरअसल, जय श्रीराम का नारा-जो आक्रोश के साथ सुनाई पड़ता है. वो ममता बनर्जी सरकार की, वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति की जो इंतेहां हो गई है, उसके खिलाफ है. (Bengal Religious Amit Shah)
मुझे मालूम नहीं है ममता दीदी जय श्रीराम के नाम से इतना क्यों चिढ़ती है।
जय श्रीराम को धार्मिक नारे के रूप में इंटरप्रेट करने का जो प्रयास TMC कर रही है, वो गलत है।
जय श्रीराम ममता सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ आक्रोश व परिवर्तन का नारा है। pic.twitter.com/0le6Wfkmip
इंडिया टुडे के कांक्लेव में जय श्रीराम के नारे को लेकर पूछे गए सवाल पर शाह ने बातें हीं. उन्होंने कहा कि मैं, बंगाल की जनता की नस-नस जानता हूं. अगर ये धार्मिक नारा होता तो, वो कभी स्वीकृति नहीं देती. जय श्रीराम प्रतीक है तुष्टीकरण के खिलाफ.
बोले-अगर आपको बंगाल में दुर्गा पूजा निकालने के लिए हाईकोर्ट के द्वार खटखटाने पड़ें. बच्चे, बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा नहीं कर पाएंगे. रामनवमी के दिन आप शोभायात्रा नहीं निकाल पाएंगे. नाराजगी जाहिर करते हुए कहा-कहां जी रहे हैं हम. किस स्थिति में पहुंचा दिया है.
मुझे नहीं पता कि दीदी जय श्रीराम के नारे से क्यों चिढ़ती हैं. एक सवाल के जवाब में शाह ने कहा कि नारे तभी बनते हैं, जब जनता उन्हें स्वीकार करती है. चाहे वंदे मातरम हो, इंकलाब जिंदाबाद या जय श्रीराम. वरना नेता बोलते रहते हैं.
ममता बनर्जी को एक और झटका
टीएमसी के राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि मेरे राज्य में हिंसा हो रही है और हम यहां बस बैठे हुए हैं. कुछ बोल नहीं सकते. तो इससे अच्छा है कि मैं अपना त्यागपत्र दे दूं. इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया. इससे पहले ममता सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं.
पत्रकारों से क्या बोले त्रिवेदी
इस्तीफे के बाद पत्रकारों से बातचीत में त्रिवेदी ने कहा कि हमारा इतिहास रहा है कि हमने हिंसा के खिलाफ बोला है. हम कहां बात करें, किसी के पास समय नहीं है. जब पार्टी कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स के हाथ में चली जाती है. जिसको राजनीति का कुछ पता नहीं-वो हमारे नेता बन जाते हैं. दिनेश त्रिवेदी, संप्रग सरकार में रेल मंत्री रहे हैं.
बंगाल में इसी साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव हैं. भाजपा पूरी शिद्दत के साथ टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में जुटी है. उसकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ भी उमड़ रही, जिसे भाजपा नेता बदलाव की बयार बता रहे हैं.