Thursday, October 17, 2024
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तीरथ के लिये सीट छोड़ कर महाराज जाएंगे संसद में

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द लीडर, देहरादून : अभी घोषणा तो नहीं हुई लेकिन रज़ामंदी हो गई कि तीरथ सिंह के लिए सतपाल महाराज चौबट्टाखाल की विधानसभा सीट से इस्तीफा देंगे और तीरथ की पौड़ी सीट से उन्हें संसद में भेज कर केंद्र में अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। (Maharaj Leave Seat Parliament Tirath)

भाजपा के लिए दोनों उपचुनाव जीतने का यही सबसे आसान तरीका था। सतपाल महाराज के लिए पौड़ी अपनी पुरानी सीट है और अब तीरथ रावत का भी साथ है जो इस सीट से सांसद रहे पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के बहुत करीबी रहे हैं। उनके बेटे ने तीरथ के खिलाफ चुनाव लड़ा और केंद्रीय नेतृत्व से नाराजगी के बावजूद न उन्होंने पार्टी छोड़ी न अपने बेटे को आशीर्वाद दिया।

उधर चौबट्टा खाल तीरथ सिंह की पुरानी सीट है। 2012 से 2017 तक यहां के विधायक रहे। इसी दरमियान उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व भी सौंपा गया।


तीरथ सिंह : एक बेदाग चेहरे पर दाग धोने की जिम्मेदारी


 

वैसे सल्ट सीट खाली है लेकिन वहां से न लड़ने की दो वजहें हैं । पहली ये कि पार्टी अंदर बाहर का माहौल देख कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती और दूसरी मुख्यमंत्री बनने की चाहत में ही संसद छोड़ विधायक का चुनाव लड़ने वाले महाराज की नाराजगी अगले चुनाव में पार्टी को भारी पड़ सकती है।

महाराज एक धर्मिक पहचान तो रखते ही हैं उत्तराखण्ड के ठाकुरों के बड़े नेता भी हैं। बहुत संभव है उनसे केंद्रीय मंत्री बनाने का भी वादा हुआ हो।

अब तक के घटनाक्रम से लगता है कि इस फार्मूले की कम से कम तीन दावेदारों को जानकारी थी।

जिनको अंधेरे में रखा गया था उन्हें देर सबेर कद हल्का होने का अहसास हो सकता है। त्रिवेंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों को भी आलाकमान नए मुख्यमंत्री के जरिये ऐसा अहसास करा सकती है। प्रदेश अध्यक्ष बदलने को लेकर भी अटकलें चल रही थी, हो सकता है इसे अभी टाल दिया जाय।

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हरियाणा : खट्टर सरकार के खिलाफ पेश विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिरा

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अतीक खान 

कृषि कानूनों को लेकर हरियाणा की खट्टर सरकार के खिलाफ बुध्वार को विपक्ष जो अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. वो गिर गया है. इस पर खट्टर ने कहा कि विपक्ष ने पहले ही ये मान लिया था कि वो केवल चर्चा के लिए ये प्रस्ताव लेकर आए हैं. ये सरकार गिराने के लिए नहीं है. हमने उनकी आपत्तियों पर एक-एक करके बात की और प्रस्ताव औंधे मुंह गिर गया है. (Khattar Government Haryana CM Emotional)

ये अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पेश करने के साथ विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसान आंदोलन में मारे गए 250 से अधिक किसानों के प्रति शोक-संवेदना को शामिल किए जाने की मांग की थी. इस बीच सदन से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के भावुक होने का एक वीडियो सामने आया था.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 105 दिन से किसान आंदोलन चल रहा है. दिसंबर में जब, पंजाब-हरियाणा के किसानों ने दिल्ली कूच किया था, तब हरियाणा में उन पर लाठियां भांजी गईं थीं. वाटर कैनन, आंसू गैस के गोले दाग गए थे. रास्ता रोकने के लिए हाईवे तक पर गहरी खांई खोदने का जतन हुआ था. इसको लेकर खट्टर सरकार की जबरदस्त आलोचना हुई.

बुधवार को सदन में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने उस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया कि किसानों पर सरकार के आदेश से लाठियां बरसाई गई थीं. हरियाणा में भाजपा और जेजेपी गठबंधन की सरकार है. आंदोलन की शुरुआत से ही जेजेपी के नेता और राज्‍य के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर गठबंधन से बाहर निकलने का दबाव है. यहां तक कि जेजेपी के विधायक भी अब ये बात खुलकर बोलने लगे हैं.


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जेजेपी के विधायक रघुवीर काद्यान का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वे ये कहते सुने जा रहे हैं कि अब तो हालात ये हो गए हैं कि गठबंधन का साथ छोड़ देना चाहिए. अब हमारा साथ में रहने का कोई अधिकार नहीं हैं, क्योंकि लोग हमें गांव में घुसने नहीं दे रहे हैं.

हालांकि मनोहर लाल खट्टर अविश्वास प्रस्ताव से पूरी तरह से निश्चिंत हैं. उन्होंने विपक्ष को ही निशाने पर लेते हुए कहा कि पहले वह अपने लोगों को ही संभाल लें, उसके लिए यही बहुत बड़ी बात है. सरकार के खिलाफ जो अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है, वो निश्चित ही गिरेगा.

डेढ़ साल पहले ही मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. अपने दूसरे कार्यकाल में वे किसानों के मुद्​दे पर आलोचना और अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव का सामना कर रहे हैं.


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कांग्रेस ने हरियाणा सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने घोषणा पत्र की एक प्रति साझा करते हुए लिखा कि सत्ता के भोग में खट्टर-दुष्यंत की सरकार किसानों की दुश्मन बन बैठी है.

तीरथ सिंह : एक बेदाग चेहरे पर दाग धोने की जिम्मेदारी

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दिनेश जुयाल

 

उत्तराखंड में भाजपा का सबसे साफ चेहरा तीरथ सिंह का ही है। छात्र राजनीति से लेकर संसद तक के लंबे सफर में कभी किसी विवाद में उनका नाम नहीं आया। कई अहम जिम्मेदारियां मिली लेकिन वह कभी अपने लिए पैरवी करते भी नहीं दिखे न किसी पेशबंदी का हिस्सा बने। स्वभाव से एकदम सौम्य तीरथ का नाम शुरुआत में ही संघ की ओर से भेजा गया था लेकिन दिल्ली में चल रही मोर्चाबंदी के कारण मीडिया की नज़र भी इधर नहीं गई। (Tirath Singh Responsibility Washing)

अपने ही विघ्न संतोषियों से परेशान भाजपा के नेताओं को आखिरकार संघ की ही युक्ति उचित नज़र आई और तीरथ एक बार फिर पार्टी को संकट मोचक नज़र आये। पौड़ी सीट पर उनका नाम भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में आगे किया गया। जिस फ़ज़ीहत के साथ त्रिवेंद्र की विदाई हुई औऱ विपक्ष जिस तरह ज़ीरो टॉलरेंस के उनके नारे ही धज्जी उड़ाने को तैयार बैठा है उस हिसाब से तीरथ के लिए ये अग्नि परीक्षा और कांटों का ताज सर लेने जैसी बात है।

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पार्टी संगठन पर उनकी पकड़ है। फरवरी 2013 से दिसंबर 2015 तक उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में सांसद के साथ ही राष्ट्रीय सचिव भी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी भी बनाया गया था। त्रिवेंद्र की तरह वह भी पत्रकारिता के छात्र रहे हैं और मीडिया में भी उनकी अच्छी छवि और पहचान है।

गांव सीरों, पट्टी असवालस्यूं पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में जन्मे रावत एक आम मध्यवर्गीय परिवार से हैं। 1983 से 1988 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (उत्तराखण्ड) के संगठन मंत्री और राष्ट्रीय मंत्री रहे हैं।

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हेमवती नंदन गढ़वाल विश्व विधालय में छात्र संघ अध्यक्ष और छात्र संघ मोर्चा (उत्तर प्रदेश) में प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। इसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा (उत्तर प्रदेश) के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। इसके बाद 1997 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए तथा विधान परिषद् में विनिश्चय संकलन समिति के अध्यक्ष बनाये गए।

2000 में नवगठित उत्तराखण्ड में उन्हें शिक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद 2007 में भारतीय जनता पार्टी उत्तराखण्ड के प्रदेश महामंत्री चुने गए तत्पश्चात प्रदेश चुनाव अधिकारी तथा प्रदेश सदस्यता प्रमुख रहे। 2013 उत्तराखण्ड दैवीय आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष रहे।

वर्ष 2012 में चौबटाखाल विधान सभा से विधायक निर्वाचित हुए और वर्ष 2013 में उत्तराखण्ड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने। 2019 में पौड़ी सीट से 2,85,003 मतों के अंतर से जीते। कुल मिला कर जमीन से उठ कर आये नेता हैं।

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तीरथ सिंह रावत के सामने कई चुनौतियां होंगी। गैरसैण को कमिश्नरी बनाने जैसे त्रिवेंद्र के कुछ फैसलों को बदलने का दबाव तो उनपर होगा ही, त्रिवेंद्र राज में अपनी मनमानी करने वाले मंत्रियों को नाथना भी आसान नहीं होगा, खासकर तब जब कुछ नेता परोक्ष रूप से पाला बदलने की धमकी दे रहे हैं।

पुराने कार्यकर्ताओं को भी उम्मीद रहेगी कि अब उनकी उपेक्षा न हो। इनसे भी बढ़कर उन चालक नौकरशाहों को साधने की चुनौती है जो त्रिवेंद्र राज में कुछ ज्यादा ही मनमानी करने लगे थे और जिनकी सलाह पर त्रिवेंद्र को असहज होना पड़ा। चुनावी वर्ष में आप और कांग्रेस को तेज होते हथियार भी उन्हें ही झेलने हैं।

पहली चुनौती के तौर पर विधानसभा उपचुनाव में अपनी सीट को जीत कर उन्हें ये नई यात्रा शुरू करनी है। पौड़ी लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर इसे भाजपा की झोली भी उन्हें ही डालना है। विधानसभा चुनाव के लिये भी सिर्फ नौ माह का समय उनके पास बचा है।जाहिर है तीरथ से बेहतर विकल्प भाजपा के पास नहीं था लेकिन दूसरों का बोया काटने में उन्हें खूब पसीना बहाना पड़ेगा। (Tirath Singh Responsibility Washing Stains)

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तब्लीगी जमात : 16 विदेशी नागरिकों ने अपना जुर्म कबूला, अदालत ने दी जेल में बिताए गए समय और अर्थदंड की सजा

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अतीक खान

 

बरेली : तब्लीगी जमात से जुड़े 16 विदेशी नागरिकों ने पिछले साल कोविड काल के दौरान लाकडाउन के उल्लंघन का जुर्म कबूल कर लिया है. इस पर अदालत ने उन्हें जेल में बिताए गए समय और अर्थदंड की सजा सुनाई है. आठ आरोपियों पर करीब 45-45 हजार और बाकी आठ को 7900 का अर्थदंड चुकाना होगा. मंगलवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट यशपाल सिंह लोधी की अदालत से फैसला सुनाय गया.

पिछले साल मार्च में तब्लीगी जमात के इन विदेशी नागरिकों को यूपी के दो जिलों से गिरफ्तार किया गया था. जमात के आठ सदस्‍य मुरादाबाद के ठाकुरद्वारा थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किए गए थे, जबकि आठ लोगों को बिजनौर के नगीना थाना क्षेत्र से गिरफ्तार कर जेल भेजा था. बाद में ये जमानत पर रिहा हो गए थे.

मुरादाबाद से जिन आठ विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था. उसमें इंडोनेशिया के नोपरियान पहलवान, आरडीएंसा, सोफियान परामेता, स्केंदर नेंदेई, इलियास मौलाना अब्दुल मलिक, सरीफुद्​दीन, रेफली कासिम और कमरुद्दीन शामिल हैं. अदालत ने इन पर करीब 45-45 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया है.

वहीं, नगीना थाना क्षेत्र के मुहल्ला पंजाबियान स्थित जामुन वाली मस्जिद से पुलिस ने 30 मार्च 2020 को आठ विदेशियों के साथ पांच भारतीयों को महामारी अधिनियम के उल्लंघन में गिरफ्तार किया था. इसमें मुफ्ती मुहम्मद तारिक, जाहिद शम्सी, मुफ्ती उस्मान, हाजी तस्लीम, शकील शम्सी, मुहम्मद इरशाद, ओकी अरिकेवरी, माहदी थोरीक अरोसिद, मुहम्मद अमीनउद्​दीन नाजिब, वसीम करेशना अखमद, नूरम मुहम्मद ईशान, इल्हम मिख्ता खुन्नूर, इतांक सोपियान शामिल हैं.


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जो आठ विदेशी नागरिक हैं, उन पर 7,900 रुपये के ह‍िसाब से अर्थदंड के साथ जेल में बिताए गए समय की सजा दी गई है. इनके ऊपर महामारी अधिनियम, विदेशी अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम की धाराओं में कार्रवाई हुई थी. और पासपोर्ट जब्‍त कर ल‍िए गए थे.

अदालत में दिए थे शपथपत्र

आरोपियों ने अदालत में अपना जुर्म स्वीकार के प्रार्थनापत्र अदालत में प्रस्तुत किए. इस गुहार के साथ कि वे गरीब हैं और उनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं है. अपनी मर्जी से जुर्म कबूल करना चाहते हैं. इसलिए उनके प्रार्थनापत्र पर विचार करते हुए कम से कम सजा दी जाए. आरोपियों की ओर से पेश अधिवक्ता मिलन गुप्ता ने बताया कि जुर्म स्वीकारोक्ति के आधार पर मामले का निस्तारण हुआ है.

निजामुद्​दीन मरकज की घटना के बाद मची थी खलबली

दिल्ली के निजामुद्​दीन स्थित तब्लीगी जमात के मरकज में पिछले साल एक कार्यक्रम हुआ था. उसमें सैकड़ों विदेशी नागरिक हिस्सा लेने पहुंचे थे. बाद में कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया. इस बीच मरकज में ठहरे बड़ी संख्या में लोग कोरोना पॉजिटिव हो गए.


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कुछ मौतें भी हो गईं. इसके बाद सरकार सक्रिय हुई. और मरकज के कार्यक्रम में शामिल होने वाले तब्लीगी जमात के सदस्यों की तलाश शुरू कर दी. इसी क्रम में देश के विभिन्न हिस्सों में जमात से जुड़े और मरकज से लौटने वालों के विरुद्ध कार्रवाईयां हुई थीं.

हाईकोर्ट से मिल रही राहत

तब्लीगी जमात के कई विदेशी नागरिक, जिन्हें महामारी अधिनियम के उल्लंघन में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है.

 

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मुख्यमंत्री नितीश कुमार का गुस्सा ठीक पर विधायक किसको ठोकने की कर रहे बात

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वीडियो : बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की सरकार पहले से ही कानून व्यवस्था के मुद्​दे पर घिरी है, और विपक्ष सरकार पर हमलावर है. इस बीच नितीश के एक विधायक का वीडियो सामाने आया है, जिसमें वह ठोक देने की बात कहते सुने जा रहे हैं. खुद ही सुनिए, क्या कह रह हैं विधायक.

उत्तराखंड : त्रिवेंद्र ने कुर्सी छोड़ी, विधायक कल चुनेंगे नया सीएम

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द लीडर, देहरादून। सियासी भूचाल के चौथे दिन आखिरकार त्रिवेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री का डोलता सिंघासन छोड़ दिया। अब बुधवार को विधायक दल नए नेता का चयन करेगा। मंगलवार को दिल्ली से लौटने के बाद ही त्रिवेंद्र सिंह ने राजभवन से चार बजे का समय मांग लिया था। करीब साढ़े चार बजे राज्यपाल को इस्तीफा देकर लौटे त्रिवेंद्र ने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा, यह पार्टी का निर्णय है जिसका वह पालन कर रहे हैं। (Uttarakhand Trivendra Leaves Chair)

वह अप्रत्यक्ष रूप से साफ कर गए कि अपनी मर्जी से इस्तीफा नहीं दे रहे बल्कि पार्टी ने उन्हें पद छोड़ने को कहा है। इशारों में ही वह इस फैसले पर अपनी नाराजगी भी जता गए। अपना परिचय एक पूर्व सैनिक के बेटे के रूप में देते हुए उन्होंने एक साधारण कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाने के लिये पार्टी का धन्यवाद किया और पिछले चार सालों को अपने जीवन का स्वर्णिमकाल बताया।


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चार साल में 9 दिन कम होने का जिक्र करते हुए उन्होंने थोड़ा मलाल भी जाहिर किया और अपने दो काम भी गिनाए। पहला महिलाओं को सम्पत्ति में अधिकार दिलाना और दूसरा घसियारी योजना। उनके साथ ऐसा क्यों हुआ? इस पर उनका कहना था इसका जवाब लेने आपको दिल्ली जाना पड़ेगा। त्रिवेंद्र की विदाई पर जहां कुछ समर्थक भावुक हुए, वहीं पद के एक दावेदार सांसद अजयभट्ट का कहना था कि इस फैसले का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। जो भी फैसला हुआ वह अच्छे के लिए हुआ।

अब बुधवार 10 बजे होने वाली विधानमंडल दल की बैठक पर नज़र है। आज जिस तरह हेलीकाप्टर भेज कर धन सिंह रावत को बुलाया गया उससे लगा कि आलाकमान ने उनके नाम पर मुहर लगा दी है और आज ही शपथ ग्रहण हो जाएगा। तभी दिल्ली से संदेश आया कि विधानमंडल दल की बैठक केंद्रीय पर्यवेक्षक रमन सिंह की निगरानी में कल होगी।


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इसके बाद बाकी सभी नामों पर फिर से चर्चा होने लगी। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों के हिसाब से नई टीम का हिसाब लगाया जा रहा है। निशंक, अजय भट्ट, सतपाल महाराज, अनिल बलूनी और धन सिंह के नाम अब तक चर्चा में है। कल यह ख़बर भी खूब उड़ी कि इनमें एक को अमित शाह ने फटकार लगाई और उनका नाम सूची से हटा दिया।

जो हालात है, उससे बुधवार की बैठक में हंगामे से इनकार नहीं किया जा सकता। त्रिवेंद्र आज विधायक दल की बैठक बुलाना चाहते थे लेकिन इसमें शक्तिपरीक्षण की आशंका जान आलाकमान ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। त्रिवेंद्र इस्तीफे से पहले प्रेस से बात करना चाहते थे। इसका ऐलान प्रवक्ता ने किया लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया और इस्तीफे के बाद छोटी सी ब्रीफिंग के बाद त्रिवेंद्र चले गए।

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टूलकिट प्रकरण : निकिता जैकब, शांतनु के खिलाफ 15 मार्च तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं होगी, कोर्ट से राहत

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द लीडर : दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने टूलकिट मामले में आरोपी निकिता जैकब और शांतनु मुलुक के खिलाफ किसी तरह की कड़ी कार्रवाई किए जाने की संरक्षण मियाद बढ़ा दी है. इस मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी. इसके साथ ही कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी सूचीबद्ध कर ली है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने अपने आदेश में कहा कि इस अंतराल में आरोपियों के विरुद्ध कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी. इससे पहले कोर्ट ने शांतनु के संरक्षण की अवधि 9 मार्च तक बढ़ाई थी. (Toolkit Case Nikita Jacob Shantanu Court)

निकिता और शांतनु उस टूलकिट मामले में आरोपी हैं, जिसमें क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवी की गिरफ्तारी हुई थी. दिशा जमानत पर रिहा हो चुकी हैं. जबिक शांतनु और निकिता अग्रिम जमानत के लिए अदालत की शरण में हैं.

दिल्ली पुलिस ने फरवरी में दिशा रवि, निकिता जैकब और शांतनु को टूलकिट एफआइआर में आरोपी बनाया था. इस दावे के साथ कि इन तीनों ने ही स्वीडिश क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को टूलकिट भेजी थी, जिसे ग्रेटा ने ट्वीट किया था. ये टूलकिट किसान आंदोलन को लेकर थी, जिसमें कथित रूप से देश को बदनाम करने वाली सामग्री थी.


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दिशा रवि की गिरफ्तारी के साथ ही टूलकिट का मुद्​दा दुनियाभर में छाया रहा. और दिशा के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की निंदा हुई. दिशा को जमानत देते समय कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी.

दरअसल, टूलकिट मामले के तीनों आरोपी, किसान आंदोलन के समर्थक हैं. इस तरह, किसानों के मुद्​दे पर उन्होंने सरकार की आलोचना की. 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकाली गई थी और इसमें हिंसा भड़क गई.

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इसके बाद ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी पॉप सिंगर रेहाना, अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस समेत अन्य लोगों ने किसानों के समर्थन में ट्वीट किए. ग्रेटा के इसी ट्वीट में कथित रूप से टूलकिट थी, जिसे बाद में उन्होंने डिलीट कर दिया था.

हाईकोर्ट ने लगाई थी निकिता की गिरफ्तारी पर रोक

एफआइआर में नामजद होने के बाद पुलिस निकिता जैकब की गिरफ्तारी के लिए एक्टिव हो गई थी. निकिता बॉम्बे हाईकोर्ट की शरण में गईं. 17 फरवरी को हाईकोर्ट ने निकिता जैकब को गिरफ्तारी से तीन सप्ताह के लिए सुरक्षा दी थी.

कोर्ट में शांतनु का केस वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और निकिता जैकब का केस वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका देख रही हैं.

 

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उत्तराखंड : त्रिवेंद्र का इस्तीफा तैयार, धन सिंह को बुलाया

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द लीडर, देहरादून : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस्तीफा तैयार है। जिसे वह राज्यपाल को सौंपने 4 बजे जाएंगे। पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने आनन फानन में पत्रकारों को बुला कर सिर्फ इतना बताया कि मुख्यमंत्री खुद तीन बजे पत्रकारों को सब बताएंगे। (Uttarakhand Trivandra Ddhan Singh)

त्रिवेंद्र की प्रेस कांफ्रेंस में कुछ विलंब भी संभावित है। 4 बजे उन्होंने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मिलने का समय लिया है।

इस बीच उच्च शिक्षा राज्यमंत्री धन सिंह रावत को सरकारी हेलीकॉप्टर भेज कर श्रीनगर से बुला लिया गया है। धन सिंह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की ही पसंद बताए जा रहे हैं। उपमुख्यमंत्री के लिए पुष्कर धामी का नाम भी आ रहा है।

आगे क्या होने वाला है इस पर मुन्ना सिंह का जवाब था मुख्यमंत्री लगातार परामर्श में लगे हैं। इससे लगता है बहुत संभव है जो चर्चा है उससे इतर भी कुछ हो जाये। इस बीच पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नए सीएम का शपथग्रहण 11 को हो सकता है, तब तक सीन बदल भी सकता है।

त्रिवेंद्र रावत पहले विधानमंडल दल की बैठक बुलाकर अपनी ताकत दिखाना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने रात को निमंत्रण भी भेज दिए थे. बाद में आलाकमान की आपत्ति पर इस बैठक को रद कर दिया गया है. अब चर्चा है कि केंद्रीय पर्यवेक्षक रमन सिंह की मौजूदगी में विधायक दल की बैठक बुलाई जाएगी. इसमें मुख्यमंत्री का चुनाव होगा.

उत्तराखंड : त्रिवेंद्र देहरादून लौटे, चार बजे राजभवन में खुलेगा खेल

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री दिल्ली में विरोधियों के बरक्श अपनी जोर आजमाइश के बाद मंगलवार सुबह देहरादून लौट आये हैं। एयरपोर्ट पर किसी से बात किये बिना वे सीधे अपने आवास पहुंचे। खबर है कि उन्होंने शाम चार बजे राज्यपाल से राजभवन जाकर मिलने का समय ले लिया है। वह इस्तीफा देंगे या नहीं और विकल्प कौन तैयार हुआ इसका खुलासा शाम को ही होगा।

त्रिवेंद्र जिस तरह गंभीर मुद्रा में लौटे हैं उससे चार बजे राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने की अटकलों को ही बल मिल रहा है। उनकी कुर्सी खींचने में लगे खेमे से इतना संकेत दिया जा रहा है कि नया नाम चौंकाने वाला होगा।

बीती रात पहले दिल्ली से त्रिवेंद्र का संदेश मिलने पर उनके निवास पर ही शाम को विधानमंडल दल की बैठक बुलाने की सूचना जारी की गई। पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात होने के बाद फिर संदेश आया कि बैठक नहीं होगी।

तदनुसार नए सिरे से विधायको को सूचना भेजी गई। कल रात ही त्रिवेंद्र सी एम के दावेदारों में शामिल अनिल बलूनी से भी मिले। इस मुलाकात के बाद खबर आई कि त्रिवेंद्र मंगल को अनिल बलूनी को साथ लेकर ही देहरादून पहुंचेंगे।


उत्तराखंड संकट : कोश्यारी दिल्ली पहुंचे, महाराज का नाम सबसे ऊपर


 

त्रिवेंद्र अकेले ही आये। इस बीच रात भर दिल्ली से नए नए अपडेट मिलते रहे। जिनका संदेश यही बन रहा था कि अमित शाह ने त्रिवेंद्र का संकट टालने की कोशिश तो बहुत की लेकिन विरोधियों की जबरदस्त मोर्चाबंदी औऱ त्रिवेंद्र के खिलाफ रखे दूसरे तथ्य भारी पड़ते दिखे। बताते हैं कि एक दावेदार को तो अमित शाह ने बुरी तरह डांट भी दिया। बहरहाल अब त्रिवेंद्र समर्थक भी ज्यादा मुखर नहीं हैं।

बीती रात पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने भी मीडिया से बात की । त्रिवेंद्र को हटाए जाने संबंधी सवाल को वह आलाकमान का मामला बता कर टाल गए।
पहले नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं को खुल कर नकार रहे प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का भी अभी कोई नया बयान नहीं आया है। इस बीच सियासी हलकों में मुख्यमंत्री के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष के भी बदलने की चर्चा चल पड़ी है।


हरिद्वार कुंभ में महामंडलेश्वर बनने जा रहीं मुस्लिम समुदाय की छोटी बेगम


 

जाहिर है विधायकों का समर्थन या विरोध राज्यपाल से मिलने की वजह नहीं हो सकती। भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में है और विपक्ष को मुख्यमंत्री बदलने से कोई सरोकार नहीं। ऐसे में मौजूद हालात के मद्देनजर त्रिवेंद्र के राज्यपाल से मिलने की वजह एक ही हो सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आज ही दूसरे मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण भी हो सकता है लेकिन फिलहाल अभी तक ऐसी कोई तैयारी नहीं दिख रही है।

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कानून ने महिलाओं को बराबरी का हक दिया, परिवार और समाज कर रहे भेदभाव

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मोईन खान

भारत, जिसने आजाद होते ही अपने हर नागरिक को समान अधिकार दिए. हाशिये पर खड़ी महिलाओं को बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की. फिर आखिर क्या कारण है कि महिलाओं की एक बड़ी आबादी आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्तर पर पिछड़ेपन के जंजाल में फंसी है. उनके खिलाफ हिंसक घटनाएं चरम पर हैं. हर रोज देश के किसी न किसी हिस्से वे बलात्कार, आत्महत्या और कथित आत्मसम्मान के कारण मौत की भेंट चढ़ रही हैं. (Law Equal Rights Women Discriminating)

28 फरवरी 1909 में सोशल पॉर्टी ऑफ अमेरिका ने पहला अंतरराष्ट्रीय दिवस न्यूयॉर्क शहर में मनाया था. उस समय दो कैलेंडर चलते थे. ग्रेगेरियन कैलेंडर के मुताबिक उस दिन 8 मार्च था. आगे चलकर 1975 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तारीख 8 मार्च ही मुकर्रर कर दी. तब से दुनिया भर में इस तारीख को महिलाओं के योगदान, उनकी उपलब्धियों का जिक्र करके सम्मानित किए जाने का सिलसिला जारी है.

अब हम भारत में महिलाओं के अधिकार और उनकी स्थिति को संविधान की रोशनी में समझने का प्रयास करते हैं, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक-इन तीन बिंदुओं पर.

सामाजिक स्थिति और संविधान

भारती संविधान का अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार की बात करता है. हाल ही में सुप्रीमकोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए. जो धर्म को आधार बनाकर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और कुरीतियों से जुड़े हैं. इसमें एक बार में तीन तलाक और सबरीमाला केस प्रमुख है. महिलाओं के लिए दोनों मामले बेहद अहमद है. एक बार में तीन तलाक के खिलाफ महिलाओं ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून-2019 बनाया.


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दरअसल, अनुच्छेद 14 में दो बातें साफ हैं. ये समानता की बात तो करता ही है, दूसरी तरफ राज्य को ये भी अधिकार देता है कि वह सकारात्मक नजरिये से भेदभाव भी कर सकता है. हाल ही में केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए इकॉनमिक वीकर सेक्शन आरक्षण व्यवस्था लागू की है.

जो उसी सकारात्मक और तर्कसंगत भेदभाव का दूसरा पहलू है. इसी तरह अनुच्छेद 15 (3) में देखने को मिलता है कि राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बना सकते हैं. यहीं से महिलाआें के लिए आरक्षण का रास्ता बनता है, ताकि इतिहास में हुए भेदभाव से उबरकर महिलाएं बराबरी पर आ सकें.


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आजादी के साथ ही वोट का अधिकार

आजाद भारत ने महिला-पुरुष दोनों को मताधिकार दिया. जिससे देश और सरकार में सबकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. इसके साथ ही समय आने पर स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रणाली की व्यवस्था की. राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए ये प्रयास होते रहे.

आर्थिक समानता का जटिल रास्ता

अनुच्छेद 39 (D)समान आय और समान काम के विषय में बात करता है. लेकिन इसका पालन करना काफी मुश्किल है. इसका बड़ा कारण है महिलाओं को लेकर हमारे समाज की सोच में. जिसे बदले बना आर्थिक समानता का रास्ता सुगम नहीं होगा. पहला-महिलाओं को लेकर समाज को अपना नजरिया बदलना होगा, वो ये कि वे केवल घेरलू कामों के लिए बनी हैं.

घर से मिटाना होगा भेदभाव

आज जो स्थितियां हैं, उससे एक बात तो साफ है कि कानून ने महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया है. मगर वे अपने परिवार और समाज में भेदभाव का शिकार हैं. इस‍ल‍िए महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए हर व्यक्ति को अपने घर से शुरुआत करनी होगी. लड़का-लड़की में रत्ती भर भी फर्क किए बिना उनकी शिक्षा, प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. धार्मिक आधार पर भेदभाव, कुरीतियों से बचना होगा. ऐसा समाज बनाना होगा जहां महिलाएं बेफिक्री के साथ जी सकें.

(लेखक छात्र हैं, ये उनके निजी विचार हैं.)

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त्रिवेंद्र ने विधायक दिल्ली बुलाये, कोश्यारी संकट मोचन में जुटे

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द लीडर, देहरादून। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी का संग्राम सोमवार को चरम पर रहा। त्रिवेंद्र को दिल्ली तलब किये जाने के बाद उनके पुराने गुरु महाराष्ट्र के राज्यपाल भी संकट मोचन के लिए दिल्ली पहुंच गए। शाम को सतपाल महाराज का नाम बार बार आने पर त्रिवेंद्र ने अपने विधायकों को भी दिल्ली बुला लिया। रात नौ बजे एक नई चर्चा शुरू हुई कि मंगलवार को देहरादून में विधायकों की बैठक बुलाई जा सकती है। (Trivendra Called MLA Delhi Koshyari)

भगत दा, त्रिवेंद्र के संकट मोचक के रूप में नाराज विधायकों को समझा रहे हैं। इधर कुछ लोगों ने खुद कोश्यारी को ही विकल्प के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। निशंक, अनिल बलूनी के अलावा सतपाल महाराज और धन सिंह रावत का नाम भी चल ही रहा है।

ऐसे संकटों में कोश्यारी अक्सर अहम भूमिका निभाते रहे हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को कुर्सी से उतारने में कोश्यारी की अहम भूमिका थी और फिर कुर्सी उन्हीं को मिल गई थी। एन डी तिवारी के बाद भाजपा सत्ता में लौटी तो भी कोश्यारी प्रबल दावेदार थे लेकिन भुवन चंद्र खंडूड़ी दिल्ली की पसंद बने।


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फिर तो कोश्यारी का मोर्चा खुला ही रहा। एक बार वह खंडूड़ी की कुर्सी गिराने में कामयाब हुए लेकिन कुर्सी मिली निशंक को। हालांकि उन्हें अंत में ये कुर्सी खंडूड़ी को ही वापस करनी पड़ी। कुर्सी की उस लंबी लड़ाई में त्रिवेंद्र रावत भगत दा के खास साथी थे। फिर कांग्रेस राज आया तो हरीश रावत के कार्यकाल में कॉग्रेस का कुनबा तोड़ भाजपा में ले जाने वाली मुहिम में भी उनका ही अहम किरदार था।

भाजपा सत्ता में लौटी तो उनकी उम्र आड़े आ गई। न मुख्यमंत्री बने न केंद्र में मंत्री। आखिरकार राज्यपाल पद से नवाज कर उन्हें खुश किया गया। तर्क दिया जा रहा है कि त्रिवेंद्र को हटाने की स्थिति में भाजपा को सबसे कम विवादित और सबको समेट सकने वाला नेता चाहिए। तो क्या भगत दा खुद समाधान के रूप में सामने आएंगे? अटकलों का दौर है तो एक ये भी सही। बहरहाल भगत दा के बीच में आने से त्रिवेंद्र समर्थको को लग रहा है भगत दा अपने छोटे भाई को बचा लेंगे।

उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन पर संघ अपनी राय दे चुका है। बताते हैं प्रधानमंत्री से भी परामर्श कर लिया गया है। पर्यवेक्षक रमन सिंह की रिपोर्ट आलाकमान को मिल चुकी है। संसदीय बोर्ड की बैठक में एक ट्रक यह भी रखा गया कि राज्यों के चुनाव तक मामले को लटकाए रखा जाय।


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अब इस पूरे प्रकरण को गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने अंजाम तक पहुंचाना है। बताया जा रहा है कि कोश्यारी दावेदारों के साथ ही विधायकों का भी फीडबैक लेकर भाजपा नेतृत्व की मदद कर रहे हैं। कई विधायक सीधे अमित शाह से मिलना चाहते थे लेकिन उनकी मुलाकात संभव नहीं हो पाई।

त्रिवेंद्र समर्थक विधायकों को बुलाये जाने से लगता है मामला निर्णायक मोड़ पर है। त्रिवेंद्र हार मानने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में लंबित मामले पर भी उन्होंने आश्वस्त किया है कि 10 मार्च की सुनवाई में उन्हें किसी विपरीत फैसले की उम्मीद नहीं है । उनका पक्ष मजबूती से रखा जाएगा।

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