![Koshyari Uttarakhand Crisis Koshyari Delhi Maharaj](https://theleaderhindi.com/wp-content/uploads/2021/03/Koshyari.jpg)
द लीडर देहरादून : उत्तराखंड (Uttarakhand) के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अचानक दिल्ली पहुंच गए हैं। बताया जा रहा है, शाम को उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के साथ भी होनी है। अब नई तरह की अटकलें शुरू हो गई हैं। कोई कह रहा है कि संघ और दिल्ली में मजबूत पकड़ वाले भगत दा त्रिवेंद्र के संकट मोचक बन कर आ रहे हैं, वही नाराज विधायकों को समझाएंगे। (Trivandra Rawat Koshyari Chief Minister Uttarakhand)
इस बीच अपने अपने समर्थकों के साथ जमे सीएम पद के दावेदारों के नाम के पत्ते फेंटे जा रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह के कक्ष में चल रही बैठक में सतपाल महाराज का नाम ज्यादा बार ऊपर आ रहा है। तीरथ सिंह रावत के लिए भी कुछ लोग पैरवी कर रहे हैं।
कुछ लोगों ने कोश्यारी को ही विकल्प के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है तो अचनाक एक नया नाम पार्टी के महामंत्री सुरेश भट्ट का भी चलने लगा है। निशंक, अनिल बलूनी के अलावा धन सिंह रावत का नाम भी चल ही रहा है। धन सिंह त्रिवेंद्र के सबसे खास लोगों में गिने जाते हैं।
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पार्टी त्रिवेंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले को भी गंभीरता से ले रही है जिसकी 10 मार्च को सुनवाई है। हालांकि त्रिवेंद्र खेमा यह फीलर दे रहा है कि इसमें खतरा नहीं है सरकार ने अपना पक्ष तैयार रखा है।
भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक से पहले कोश्यारी के भी दिल्ली पहुंचने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को कुर्सी से उतारने में उनकी अहम भूमिका थी और फिर कुर्सी उन्हीं को मिल गई थी। एनडी तिवारी के बाद भाजपा सत्ता में लौटी तो भी कोश्यारी प्रबल दावेदार थे लेकिन, भुवन चंद्र खंडूड़ी दिल्ली की पसंद बने।
फिर तो कोश्यारी का मोर्चा खुला ही रहा। एक बार वह खंडूड़ी की कुर्सी गिराने में कामयाब हुए लेकिन कुर्सी मिली निशंक को। हालांकि उन्हें अंत में ये कुर्सी खंडूड़ी को ही वापस करनी पड़ी। कुर्सी की उस लंबी लड़ाई में त्रिवेंद्र रावत, भगत दा के खास साथी थे।
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फिर कांग्रेस राज आया तो हरीश रावत के कार्यकाल में कॉग्रेस का कुनबा तोड़ भाजपा में ले जाने वाली मुहिम में भी उनका ही अहम किरदार था। भाजपा सत्ता में लौटी तो उनकी उम्र आड़े आ गई। न मुख्यमंत्री बने न केंद्र में मंत्री। आखिरकार राज्यपाल पद से नवाज कर उन्हें खुश किया गया।
तर्क दिया जा रहा है कि त्रिवेंद्र को हटाने की स्थिति में भाजपा को सबसे कम विवादित और सबको समेट सकने वाला नेता चाहिए। तो क्या भगत दा खुद समाधान के रूप में सामने आएंगे? अटकलों का दौर है तो एक ये भी सही। भगत दा के बीच में आने से त्रिवेंद्र समर्थक कह रहे हैं कि भगत दा अपने छोटे भाई को बचा लेंगे। माना जा रहा है कि सोमवार रात या मंगल की सुबह तक संशय के बादल छंट जाएंगे।