त्रिवेंद्र ने विधायक दिल्ली बुलाये, कोश्यारी संकट मोचन में जुटे

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Trivendra Called MLA Delhi Koshyari

द लीडर, देहरादून। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी का संग्राम सोमवार को चरम पर रहा। त्रिवेंद्र को दिल्ली तलब किये जाने के बाद उनके पुराने गुरु महाराष्ट्र के राज्यपाल भी संकट मोचन के लिए दिल्ली पहुंच गए। शाम को सतपाल महाराज का नाम बार बार आने पर त्रिवेंद्र ने अपने विधायकों को भी दिल्ली बुला लिया। रात नौ बजे एक नई चर्चा शुरू हुई कि मंगलवार को देहरादून में विधायकों की बैठक बुलाई जा सकती है। (Trivendra Called MLA Delhi Koshyari)

भगत दा, त्रिवेंद्र के संकट मोचक के रूप में नाराज विधायकों को समझा रहे हैं। इधर कुछ लोगों ने खुद कोश्यारी को ही विकल्प के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। निशंक, अनिल बलूनी के अलावा सतपाल महाराज और धन सिंह रावत का नाम भी चल ही रहा है।

ऐसे संकटों में कोश्यारी अक्सर अहम भूमिका निभाते रहे हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को कुर्सी से उतारने में कोश्यारी की अहम भूमिका थी और फिर कुर्सी उन्हीं को मिल गई थी। एन डी तिवारी के बाद भाजपा सत्ता में लौटी तो भी कोश्यारी प्रबल दावेदार थे लेकिन भुवन चंद्र खंडूड़ी दिल्ली की पसंद बने।


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फिर तो कोश्यारी का मोर्चा खुला ही रहा। एक बार वह खंडूड़ी की कुर्सी गिराने में कामयाब हुए लेकिन कुर्सी मिली निशंक को। हालांकि उन्हें अंत में ये कुर्सी खंडूड़ी को ही वापस करनी पड़ी। कुर्सी की उस लंबी लड़ाई में त्रिवेंद्र रावत भगत दा के खास साथी थे। फिर कांग्रेस राज आया तो हरीश रावत के कार्यकाल में कॉग्रेस का कुनबा तोड़ भाजपा में ले जाने वाली मुहिम में भी उनका ही अहम किरदार था।

भाजपा सत्ता में लौटी तो उनकी उम्र आड़े आ गई। न मुख्यमंत्री बने न केंद्र में मंत्री। आखिरकार राज्यपाल पद से नवाज कर उन्हें खुश किया गया। तर्क दिया जा रहा है कि त्रिवेंद्र को हटाने की स्थिति में भाजपा को सबसे कम विवादित और सबको समेट सकने वाला नेता चाहिए। तो क्या भगत दा खुद समाधान के रूप में सामने आएंगे? अटकलों का दौर है तो एक ये भी सही। बहरहाल भगत दा के बीच में आने से त्रिवेंद्र समर्थको को लग रहा है भगत दा अपने छोटे भाई को बचा लेंगे।

उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन पर संघ अपनी राय दे चुका है। बताते हैं प्रधानमंत्री से भी परामर्श कर लिया गया है। पर्यवेक्षक रमन सिंह की रिपोर्ट आलाकमान को मिल चुकी है। संसदीय बोर्ड की बैठक में एक ट्रक यह भी रखा गया कि राज्यों के चुनाव तक मामले को लटकाए रखा जाय।


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अब इस पूरे प्रकरण को गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने अंजाम तक पहुंचाना है। बताया जा रहा है कि कोश्यारी दावेदारों के साथ ही विधायकों का भी फीडबैक लेकर भाजपा नेतृत्व की मदद कर रहे हैं। कई विधायक सीधे अमित शाह से मिलना चाहते थे लेकिन उनकी मुलाकात संभव नहीं हो पाई।

त्रिवेंद्र समर्थक विधायकों को बुलाये जाने से लगता है मामला निर्णायक मोड़ पर है। त्रिवेंद्र हार मानने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में लंबित मामले पर भी उन्होंने आश्वस्त किया है कि 10 मार्च की सुनवाई में उन्हें किसी विपरीत फैसले की उम्मीद नहीं है । उनका पक्ष मजबूती से रखा जाएगा।

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