अलेक्सांद्र कोलेंताई के बारे में जानिए, जिन्होंने ‘फ्री लव’ का विचार दिया

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alexandra kolantai, photo: internet
मनीष आज़ाद

स्मृति दिवस- 9 मार्च

1920 में सोवियत संघ दुनिया का पहला राज्य बना जहां महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया गया। वहां के अस्पतालों में गर्भपात की व्यवस्था निशुल्क थी। यानी पहली बार महिलाओं को अपने शरीर पर अधिकार मिला।

इसके पीछे जो विचार और कोशिश थी, उसमें अलेक्सांद्र कोलेंताई (Alexandra Kollontai)की भूमिका बेहद अहम थी। नई सोवियत सरकार में उनके पास महिला और सामाजिक कल्याण विभाग था।

उन्होंने महिलाओं को किचन के बोरिंग और जड़ काम से निजात दिलाने को सामुदायिक किचन और सामुदायिक लांड्री को व्यवहार में लाने के लिए अथक प्रयास किए। महिलाओं की शिक्षा और उनके आर्थिक स्वावलंबन पर उनका बहुत जोर था।

कोलेन्ताई के ‘फ्री लव’ के विचार को अक्सर गलत समझ लिया जाता है और उसे पूंजीवादी उपभोक्तावादी समाज के विचार ‘फ्री सेक्स’ के समकक्ष रख दिया जाता है। लेकिन उनका ‘फ्री लव’ का विचार काफी रैडिकल था।

इसका मतलब था कि प्यार को किसी भी तरीके के आर्थिक-सामाजिक-धार्मिक बन्धनों से आज़ाद होना चाहिए। यानी कि सच्चा प्यार इन बन्धनों के खिलाफ लड़ते हुए ही हासिल किया जा सकता है। इसे ही उन्होंने ‘रेड लव’ कहा।

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Courtesy: Getty Images

उनका कहना था कि दो लोगों के प्यार में राज्य का भी कोई दखल नहीं होना चाहिए। आज के समय में उनके ये विचार काफी महत्वपूर्ण हैं।

कोलेन्ताई ने अपने क्रांतिकारी जीवन में कुछ गलत राजनीतिक निर्णय लिए। काफी समय तक वो मेंशेविकों के साथ रही, लेकिन क्रांति से पहले वो बोल्शेविकों के साथ आ गईं। त्रात्स्की की लाइन पर चलते हुए उन्होंने जर्मनी के साथ सन्धि (ब्रेस्त्त लितोस्क संधि) का विरोध किया।

कुछ समय तक वे त्रात्स्की के ‘आपोज़िशन ग्रुप’ के साथ भी रही। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि वे हर बार गलत लाइन को छोड़कर सही लाइन के साथ खड़ी हुई।

लेकिन इन राजनीतिक गलतियों के कारण परंपरागत कम्युनिस्टों ने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया। दूसरी ओर उनके क्रांतिकारी भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण बुर्जुआ नारीवादी आन्दोलनों ने भी उन्हें हाशिये पर धकेल दिया। इस त्रासदी के कारण इतिहास में उन्हें वो मुकाम हासिल नही हो पाया, जिसकी वे हकदार हैं।

रोजा लक्समबर्ग की चंद राजनीतिक कमियों के बहाने उन्हें खारिज करने वालो पर हमला करते हुए लेनिन ने जो कहा था, वह कोलेन्ताई पर भी बखूबी लागू होता है। लेनिन ने कहा- ‘बाज कभी कभी मुर्गे की ऊँचाई पर भी उड़ लेता है, लेकिन मुर्गे कभी भी बाज की ऊँचाई हासिल नहीं कर सकते।’

कोलेन्ताई अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी महिला आन्दोलन की बाज हैं। उन्हें याद करने का मतलब उन उपलब्धियों को याद करना है, जिसने यह साबित कर दिया है कि महिला और पुरूष के बीच समानता और सम्मान का रिश्ता न सिर्फ संभव है, बल्कि यही हमारा भविष्य भी है।

(लेखक स्वंतत्र पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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