Wednesday, October 16, 2024
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राहुल गांधी का सरकार पर तंज, पूछा-इतने सारे तानाशाहों के नाम एम से ही क्यों शुरू होते?

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द लीडर : किसान आंदोलन से निपटने को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर पुलिस और सशस्त्र बलों की नाकाबंदी, दुनिया भर में सरकार की आलोचना का सबब बनती जा रही है. इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार पर बड़ा निशान साधा है. उन्होंने दुनिया के कुछ नेताओं के नाम गिनाए हैं. और ये सवाल किया है कि इतने सारे तानाशाहों के नाम एम से ही क्यों शुरू होते हैं?


किसान आंदोलन : प्रियंका का सवाल-प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध? राहुल गांधी बोले, पुल बनवाइए, दीवारें नहीं!


 

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में जो नाम लिखे हैं-उनमें, मार्कोस, मुसोलिनी, मिलोसेविक, मुबारक, मोबुतु और पाकिस्तान के जनरल रहे मुशर्रफ का नाम शामिल है. केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर राहुल, मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं. इससे पहले बुधवार को उन्होंने एक ट्वीट कर आरोप लगाया था कि मोदी सरकार के राज करने का ये अंदाज है-चुप कराओ और कुचल दो.

उनकी ये प्रतिक्रिया किसान आंदोलन को लेकर किसान नेताओं और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के ट्वीटर एकाउंट सस्पेंड किए जाने के बाद सामने आई थी. उन्होंने एक अन्य ट्वीट में सरकार को ये सलाह दी थी कि, दीवारें नहीं बुल बनवाइए.

सरकार साफ कर चुकी है कि खुले हैं बातचीत के दरवाजे

दिल्ली के सिंघु, गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर पर पिछले दो महीने से अधिक से किसानों का आंदोलन जारी है. वे तीन नए कृषि कानूनों को रद किए जाने की मांग कर रहे हैं. सरकार के साथ 11 दौर की बातचीत भी हुई, जो बेनतीजा रही. पिछले दिनों मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि किसानों के लिए वार्ता के दरवाजे खुले हैं और ये मसला केवल संवाद से ही हल होगा.

समृद्ध, खुशहाल भारत बनाना है, तो नागरिकों को एक-दूसरे से झगड़ना बंद करना होगा : जस्टिस काटजू

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भारत, कई धर्म-जातियों, भाषाओं नस्लों के साथ मिलकर एक जबरदस्त विविधता (Diversity) वाला मुल्क है. इसकी वजह यह है कि ये मोटे तौर पर अप्रवासियों (Migrants) का देश है. जैसे उत्तरी अमेरिका. पर ये विविधता हमारी बड़ी कमजोरी की जड़ भी है. तब तक, जब तक कि हम एक-दूसरे से लड़कर अपनी ऊर्जा और संसाधनों को बर्बाद करते रहेंगे. लेकिन एकजुट हो जाएं तो यही विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत का स्रोत भी बन सकती है. (India Citizens Stop Fighting Justice Katjus)

मसलन, यूएसए भी महान विविधताओं वाला देश है. यूरोप के विभिन्न देशों और बाद में एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों से लोग यहां आकर बसे. इनमें हर शख्स अपने ज्ञान, तकनीकी हुनर और संस्कृति को साथ लेकर आया. इस सबके साथ ये तेजी से आगे बढ़ा और अमेरिका दुनिया का सबसे विकसित और समृद्ध मुल्क बन गया.

फोटो, साभार- एक भारत-श्रेष्ठ भारत

अगर इस लिहाज से देखें, तो भी हमारी विविधता बहुत महान, ताकतवर और समृद्धि का माध्यम बन सकती है. बशर्ते, हमें एक-दूसरे से लड़ना बंद करना चाहिए. सभी धर्मों, संप्रदायों और समुदाय के लोगों को एक समान, सम्मान देते हुए एकजुटता के साथ काम करने की जरूरत है.


राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू


 

महान मुगल सम्राट अकबर ने ये महसूस किया था. अकबर ने सभी को एक समान, सम्मान दिया था. (एक अन्य लेख में मैं इसका जिक्र कर चुका हूं.) जिसकी वजह से भारत एक समृद्ध देश बना. और मुगल साम्राज्य इतने लंबे समय तक चल सका.

हमारा राष्ट्रीय फोकस भारत को एक अविकसित देश से उच्च विकसित, औद्योगिक और समृद्ध देश में बदलने का, होना चाहिए. वरना, हम बड़े पैमाने पर गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण से जूझते रहेंगे. हमें उचित स्वास्थ्य सेवा और अच्छी शिक्षा की जरूरत है.

उच्च विकसित होने की दिशा में भारत का ये एतिहासिक बदलाव पराक्रमी लोगों के संघर्ष से संभव है, जो अगले 10-20 साल तक हो सकता है. और ये संघर्ष केवल तभी तक संभव है, जब हम फिरकों में न बंटकर एकजुटता बनाए रखेंगे. जैसे कि आज हैं.


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

वर्तमान के किसान आंदोलन ने हमें एकजुट किया है. क्योंकि इसने जाति-धर्म के बंधनों को तोड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि ये हमारे संघर्ष की केवल शुरुआत भर है. और कामयाबी हासिल तक इसे जारी रखना होगा. इस यात्रा में कई मोड़ हैं. पीछे भी हटना पड़ सकता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि शुरुआत हो गई है.

इस एकजुटता के नतीजे में ऐसी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था आकार लेगी. जिससे भारत का औद्योगीकरण रफ्तार पकड़ेगा और. नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा होगा.

(ये लेख स्टिस मार्केंडय काटजू ने लिखा है. वे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस रहे हैं. अंग्रेजी में प्रकाशित लेखक का ये हिंदी अनुवाद है.)

गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में बताया, बनाए जा रहे नागरिकता संशोधन कानून के नियम

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द लीडर : केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के (CAA) के तहत नियम बनाए जा रहे हैं. लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समितियों ने नियम बनाने की समयसीमा बढ़ाकर नौ अप्रैल और नौ जुलाई 2021 तक कर दी है. ताकि इस मियाद में सीएए के नियम बन जाएं.

मंगलवार को लोकसभा में पूछे गए क प्रश्न के जवाब में गृह राज्यमंत्री ने लिखित में ये जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून, 12 दिसंबर 2019 को अधिसूचित किया गया था. और 10 जनवरी 2020 को ये लागू हो गया.

सीएए के अंतर्गत पाकिस्ताान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारत में नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है. इन देशों में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई समुदाय अल्पसंख्यक हैं.


इसे भी पढ़ें :राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू


 

भारत में सीएए कानून को लेकर काफी विवाद हो चुका है. संसद में कानून लागू होने के बाद से इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर आंदोलन हुए, जिसमें दिल्ली का शाहीन बाग प्रमुख आंदोलन स्थल बनकर उभरा था. इसी आंदोलन को लेकर पिछले साल दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी.

एएमयू के छात्रनेता शरजील उस्मानी पर भड़के पूर्व सीएम फणनवीस, बोले-क्या महाराष्ट्र में मुगलों की सरकार चल रही?

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द लीडर : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के छात्रनेता शरजील उस्मानी के एक भाषण पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. फणनवीस ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है. जिसमें साफ किया है कि अगर सरकार, उस्मानी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है तो ये समझा जाएगा कि ये सब ठाकरे सरकार के संरक्षण में हो रहा है. और भाजपा इसके खिलाफ आंदोलन करेगी. पत्रकारों से बातचीत में फणनवीस बोले कि, ‘महाराष्ट्र में क्या मुगलों का शासन चल रहा है?’

30 जनवरी को महाराष्ट्र के पुणे में एल्गार परिषद की ओर से एक कार्यक्रम हुआ था. इसमें शरजील उस्मानी भी शामिल हुए थे. आरोप है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं का हवाला देते हुए उस्मानी ने ऐसे लोगों के खिलाफ कथित रूप से अमर्यादित भाषा का उपयोग किया था. पूर्व मुख्यमंत्री का भी यही दावा है.

पत्रकारों से बातचीत में फणनवीस ने कहा कि, जब भी एल्गार परिषद होती है. उसमें ऐसी ही बातें की जातीं. सवाल उठाया कि इसे अनुमति ही क्यों दी जाती है. कोई महाराष्ट्र में आकर समाज को सड़ा हुआ कहेगा और हम बर्दाश्त कर लेंगे. ऐसा नहीं होगा.


राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू


 

अबकी भी ये परिषद केवल इसीलिए आयोजित की गई कि अलग-अलग समाजों में दुर्वभावना पैदा हो. इन समाजों के खिलाफ बोला जाए. और उसके माध्यम से कानून व्यवस्था का प्रश्न बने.

कौन हैं उस्मानी

एएमयू के छात्रनेता शरजील उस्मसानी पिछले साल सीएए-एनआरसी आंदोलन को लेकर चर्चा में आए थे. आंदोलन को लेकर उन्हें जेल जाना पड़ा था.

हर साल परिषद विवाद में आती परिषद

एल्गार परिषद के आयोजन हर साल विवादों में रहते हैं. साल 2018 के एक कार्यक्रम के दौरान भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई थी. इसके आरोप में कई बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता जेल में बंद हैं. इसमें मशहूर वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नौवलखा, आनंद तेलतुबंड़े समेत अन्य नाम शामिल हैं.

पत्रकार मनदीप को मिली जमानत, अदालत ने कहा-‘बेल नियम है, जेल अपवाद’

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द लीडर : किसान आंदोलन की कवरेज के दौरान सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार, पत्रकार मनदीप पुनिया को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट से जमानत मिल गई है. अदालत ने मनदीप को 25 हजार के निजी मुचलके पर जमानत दी है. इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. वो ये कि जमानत एक नियम है जबकि जेल अपवाद है.

मनदीप स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो किसान आंदोलन कवर कर थे. 31 जनवरी की रात को दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. और रविवार को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया था. मनदीप के खिलाफ आईपीसी की धारा-186, 323 और 353 के तहत कार्रवाई की गई थी.


एडिटर्स गिल्ड के, पत्रकारों पर कार्रवाई की निंदा के चंद घंटे बाद पत्रकार मनदीप पूनिया गिरफ्तार


मंगलवार को रोहिणी कोर्ट में उनकी जमानत पर सुनवाई हुई, जहां से जमानत मंजूर हो गई है. अदालत के फैसले पर मनदीप की पत्नी ने खुशी जताई है. दरअसल, मनदीप की गिरफ्तारी को लेकर पत्रकार और पत्रकार संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. दर्जनों पत्रकारों ने दिल्ली पुलिस के आइटीओ स्थित दफ्तर के बाहर धरना-प्रदर्शन किए और मार्च निकाले थे.

एसएचओ से अभद्रता का आरोप

मनदीप पर एसएचओ से अभद्रता का आरोप लगा है. दरअसल, गिरफ्तारी से पहले उन्होंने एक फेसबुक लाइव किया था, जिसमें शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंची उपद्रवी भीड़ में शामिल नेताओं के बारे में रिपोर्ट की थी. ये भीड़ जबरन आंदोलन हटवाने पहुंची थी.

राजदीप, मृणाल पर मुकदमा

इससे पहले 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड की कवरेज और ट्वीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा समेत छह पत्रकारों के खिलाफ यूपी और मध्यप्रदेश में कसे दर्ज हुए थे. शनिवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों पर देशद्रोह समेत अन्य धाराओं में दर्ज केस वापस लेने की मांग उठाई थी. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया इसकी निंदा कर चुका है.

राम के भारत में 93 तो रावण के श्रीलंका में 51 रुपये लीटर पेट्रोल : भाजपा सांसद स्वामी

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द लीडर : भारतीय जनता पार्टी के सबसे मुखर और बेबाक नेताओं में से एक सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में छाए रहते हैं. देश के बजट के बाद स्वामी ने डीजल-पेट्रोल के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी को लेकर अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘ राम के भारत में पेट्रोल 93 रुपये लीटर, सीता के नेपाल में 53 रुपये और रावण के श्रीलंका में 51 रुपये लीटर है.’

स्वामी का ये ट्वीट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. दरअसल, पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है. इसको लेकर विपक्ष सरकार की घेराबंदी में जुटा है. इसी बीच स्वीमा का ये ट्वीट सरकार को असहज करने वाला है.


किसान आंदोलन : प्रियंका का सवाल-प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध? राहुल गांधी बोले, पुल बनवाइए, दीवारें नहीं!


 

उन्होंने एक और ट्वीट किया है. जिसमें लिखा, कि आज हमारे पास दर्जनों सांसदों के फोन आए कि किसानों के आंदोलन से कैसे निपटा जाए. इस अनौपचारिक चर्चा में मैंने सुझाव दिया कि ये अधिनियम केवल उन्हीं राज्यों में लागू किए जाएं, जो राज्य इन्हें लागू करने के लिए केंद्र को लिखकर दें कि इसके क्रियान्वयन के लिए वे तैयार हैं. सभी सांसद सहमत थे.

 

दिल्ली सीमाओं की नाकाबंदी पर सपा मुखिया अखिलेश यादव का तंज-सियासत तू कमाल है

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नई दिल्ली : किसान आंदोलन को लेकर सरकार दिल्ली सीमाओं की जबरदस्त नाकेबंदी में जुटी है. बॉर्डर पर कीले गाड़कर भारी बैरिकेड लगाया गया है. और पुलिस बल के साथ सशस्त्र बल तैनात किया है. इंटरनेट सेवाएं पहले ही बंद की जा चुकी हैं. किसानों से निपटने की इस सरकारी कसरत पर विपक्ष, कानूनविद, एक्टिविस्ट ने सरकार पर निशाना साधा है.

अखिलेश यादव का शायराना तंज

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शायराना अंदाज में सरकार पर वार किया है, ‘सियासत तू कमाल है, उठाके रास्ते में दीवार-बिछाकर कंटीली तार, कहती है आ करें बात.’ किसान आंदोलन को लेकर अखिलेश यादव लगातार सरकार को घेर रहे हैं.

 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कहा है कि, पुल बनवाइए, दीवारे नहीं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बॉर्डर की एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा, ‘प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध?’

प्रशांत भूषण बोले-सैन्य घेराबंदी जैसा आलम
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कल रात किसानों के विरोध स्थल पर बिजली बंद कर दी गई. इंटरनेट बंद है. ये सब एक सैन्य घेराबंदी जैसा है. किसानों के आंदोलन स्थल तक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं. उन्हें हटाने के लिए सशस्त्र पुलिसकर्मी, पैरामिलिट्री फोर्स तैनात है. किसानों को हटाने के लिए पत्थरवाज गुंडे भेजे गए.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दो महीने से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने आगामी 6 फरवरी को तीन घंटे के चक्काजाम का आह्वान किया है.


संसद में किसानों के मुद्​दे नहीं उठा सकते तो सदन चलाने का क्या मतलब : संजय सिंह


 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों मन की बात में कहा था कि, किसानों से एक फोन की दूरी पर हैं. हालांकि बॉर्डर पर किसानों से निपटने के लिए अब जो तैयारियां चल रही हैं, उससे सरकार की आलोचना हो रही है.

किसान आंदोलन : प्रियंका का सवाल-प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध? राहुल गांधी बोले, पुल बनवाइए, दीवारें नहीं!

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नई दिल्ली : किसान आंदोलन को लेकर सरकार दिल्ली सीमाओं की जबरदस्त नाकेबंदी में जुटी है. बॉर्डर पर कीले गाड़कर भारी बैरिकेड लगाया गया है. और पुलिस बल के साथ सशस्त्र बल तैनात किया है. इंटरनेट सेवाएं पहले ही बंद की जा चुकी हैं. किसानों से निपटने की इस सरकारी कसरत पर विपक्ष, कानूनविद, एक्टिविस्ट ने सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कहा है कि, पुल बनवाइए, दीवारे नहीं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बॉर्डर की एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा, ‘प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध?’

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शायराना अंदाज में सरकार पर वार किया है, ‘सियासत तू कमाल है, उठाके रास्ते में दीवार-बिछाकर कंटीली तार, कहती है आ करें बात.’

प्रशांत भूषण बोले-सैन्य घेराबंदी जैसा आलम
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कल रात किसानों के विरोध स्थल पर बिजली बंद कर दी गई. इंटरनेट बंद है. ये सब एक सैन्य घेराबंदी जैसा है. किसानों के आंदोलन स्थल तक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं. उन्हें हटाने के लिए सशस्त्र पुलिसकर्मी, पैरामिलिट्री फोर्स तैनात है. किसानों को हटाने के लिए पत्थरवाज गुंडे भेजे गए.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दो महीने से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने आगामी 6 फरवरी को तीन घंटे के चक्काजाम का आह्वान किया है.


संसद में किसानों के मुद्​दे नहीं उठा सकते तो सदन चलाने का क्या मतलब : संजय सिंह


 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों मन की बात में कहा था कि, किसानों से एक फोन की दूरी पर हैं. हालांकि बॉर्डर पर किसानों से निपटने के लिए अब जो तैयारियां चल रही हैं, उससे सरकार की आलोचना हो रही है.

संसद में किसानों के मुद्​दे नहीं उठा सकते तो सदन चलाने का क्या मतलब : संजय सिंह

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नई दिल्ली : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों में बने अंसतोष और आंदोलन पर चर्चा के लिए विपक्ष ने सदन में नोटिस दिया. राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि, किसानों के विरोध-प्रदर्शन पर आज नहीं, बल्कि कल यानी बुधवार को चर्चा होगी. इसको लेकर 11:30 बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित रही.

कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि कानूनों को वापस लिया जाए. विपक्ष, किसानों की मांग के साथ खड़ा है. यही वजह है कि सदन में पहले दिन ही किसानों के मुद्​दे पर विपक्ष के तेवर दिखे.

राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि, ‘सदन में सबसे पहले तीनों काले कानून वापस लेने पर चर्चा होनी चाहिए. यहां अगर हम किसान के मुद्​दे नहीं उठा सकते हैं तो सदन चलाने का मतलब क्या है.’ राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित होने पर समाचार एजेंसी एएनआइ से संजय सिंह ने यह बात कही.

एक दिन पहले ही वित्तमंत्री ने 2020-2021 का बजट किया था. और मंगलवार को सदन में इस पर चर्चा होनी है.

इसे भी पढ़ें : किसान मोर्चा ने किया 6 फरवरी को देशव्यापी चक्काजाम का ऐलान

राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू

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भारतीय वित्त मंत्री ने संसद में जो बजट पेश किया है, वह मेरे अनुसार निराशाजनक, दिशाहीन और अवास्तविक है. हालांकि यह दावा किया गया कि यह भारत को आत्मनिर्भर बना देगा. यह स्वास्थ सेवा, राजमार्गों और महानगरों के निर्माण (विशेषकर उन राज्यों में जहां जल्द ही चुनाव होंगे), और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश पर जोर देता है. लेकिन भारतीय लोगों के लिए भोजन और नौकरियों के बिना ये कदम क्या करेंगे?

वर्तमान में चल रहे किसानों के आंदोलन से हमारी अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्र में भयानक संकट का पता चलता है (3.5-4 लाख किसानों ने पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या की है क्योंकि वे कर्ज में थे), क्योंकि किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है.

विश्व के लगभग सभी देशों में कृषि पर सब्सिडी ( subsidy) दी जाती है, यहां तक कि सबसे उन्नत देश, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी. एक मोटर कार, एक टीवी सेट या अन्य औद्योगिक उत्पादों के बिना जीवित रहा जा सकता है. लेकिन भोजन, हवा और पानी की तरह, जीवन के लिए बिल्कुल आवश्यक है. अगर कारों, टीवी सेट आदि का उत्पादन नहीं किया जाता है तो भी लोग जीवित रह सकते हैं. लेकिन कोई भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता.


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

इसलिए कृषि अन्य उद्योगों से बहुत अलग है. कृषि करना आवश्यक है, और चूंकि आधुनिक कृषि को सब्सिडी के बिना नहीं किया जा सकता है. राज्य को निश्चित करना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक मिलता है, क्योंकि ज़ाहिर है कि घाटे में किसान खेती नहीं करेगा. इसलिए, MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) सभी किसानों को दिया जाना चाहिए (वर्तमान में वह केवल 6% को दिया जाता है )

MSP उन 3 कानूनों द्वारा नहीं दिया गया है, जिनके खिलाफ किसान वर्तमान में आंदोलन कर रहे हैं, न ही आज के बजट में ( स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के बावजूद, जिसने किसानों को उनकी लागत से 50% ऊपर देने की सिफारिश की ) है. I

हाल के महीनों में, भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी मंदी आई है, जिससे निर्माण और बिक्री दोनों में तेज गिरावट आई है. जैसे ऑटो सेक्टर, रियल एस्टेट सेक्टर में I बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने के कारण बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है. भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है (ग्लोबल हंगर इंडेक्स देखें) और हर दूसरी महिला एनीमिक है. कोविड ने मुसीबतों में इजाफा किया है.


महात्मा गांधी किसानों को देश की ताकत बनाना चाहते थे और हमनें उन्हें बोझ समझ ल‍िया


 

इसी समय, भोजन और ईंधन की कीमतें बढ़ गई हैं (बजट में डीजल की कीमत में 4% की बढ़ोतरी और पेट्रोल में 2.5% की बढ़ोतरी से बोझ और बढ़ जाएगा). भविष्य और भी निराशाजनक दिखता है. राजनीतिज्ञों को नहीं मालूम है कि इस संकट को हल करने का क्या तरीका है? वे केवल ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई नाटक का सहारा ले सकते हैं.

उदाहरण स्वरूप राम मंदिर का निर्माण, गौरक्षा, योग दिवस, स्वच्छ भारत अभियान, अनुच्छेद 370 को समाप्त करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम, और मुसलमानों को देश की सभी बीमारियों के लिए बलि का बकरा बनाना (जैसे कि नाज़ी जर्मनी ने यहूदियों के साथ किया ) था. I

सवाल उठता है कि तब, इस आर्थिक संकट से निकलने का असली रास्ता क्या है?

जिस तरह से न केवल किसानों को एमएसपी दिया जाना चाहिए. देश का तेजी से औद्योगिकीकरण भी होना चाहिए, क्योंकि यही बेरोजगारी को खत्म करने और लोगों के कल्याण के लिए आवश्यक धन का सृजन करने के लिए एकमात्र उपाय है. इससे करोड़ों नौकरियां भी पैदा होंगी. I

तेजी से औद्योगिकीकरण के लिए एक बुनियादी बाधा है. वो ये कि जबकि उत्पादन बढ़ाने में कोई कठिनाई नहीं है, उत्पादों को बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि हमारे लोग गरीब हैं और इसलिए उनके पास क्रय शक्ति बहुत कम है.

भारत आज 1947 का भारत नहीं है. उस समय हमारे पास बहुत कम उद्योग और बहुत कम इंजीनियर थे. क्योंकि हमारे ब्रिटिश शासकों की नीति मोटे तौर पर हमें सामंती और पिछड़ा रखना था. आजादी के बाद, एक सीमित औद्योगीकरण हुआ. आज हमारे पास हजारों उज्ज्वल इंजीनियर, तकनीशियन और वैज्ञानिक हैं. हमारे पास अपार प्राकृतिक संसाधन हैं. इनसे हम आसानी से तेजी से औद्योगिक उत्पादन बढ़ा सकते हैं. समस्या यह नहीं है कि उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए बल्कि भारतीय जनता की क्रय शक्ति कैसे बढ़ाई जाए.


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भारत में हमारे पास बहुत सारे अर्थशास्त्री हैं, जिनमें से कई हार्वर्ड, येल या लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी हैं. लेकिन किसी के पास कोई धारणा नहीं है कि यह कैसे किया जा सकता है. इसलिए मैं अपने विचार प्रस्तुत करना चाहूंगा.

1914 में अमरीकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने अपने कर्मचारियों की मजदूरी 2.25 डाॅलर से 5 डॉलर प्रति दिन बढ़ा दी. वह निश्चित रूप से अपने कार्यबल को स्थिर करने के लिए किया गया था. लेकिन इसने अमेरिकी जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाया. क्योंकि अन्य अमेरिकी निर्माताओं को भी ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह संभावना नहीं है कि भारतीय उद्योगपति इसी तरह करेंगे.

सोवियत संघ में 1928 में प्रथम पंचवर्षीय योजना को अपनाने के बाद औद्योगिकीकरण तेज़ी से शुरू हुआ. सोवियत नेताओं द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली मोटे तौर पर यह थी: सरकार ने सभी वस्तुओं की कीमतें तय कीं और हर दो साल में या तो उन्हें 5-10 प्रतिशत तक कम किया गया, और कभी-कभी मजदूरी में 5-10 प्रतिशत की वृद्धि भी की गई. इसके कारण अब मज़दूर अधिक सामान खरीद सकता था, क्योंकि कीमतें नियमित रूप से कम हो गई थीं. इस तरह, रूसी जनता की क्रय शक्ति राज्य की कार्रवाई से बढ़ गई थी, और इस प्रकार घरेलू बाजार में लगातार विस्तार हुआ.


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इसके साथ ही, उत्पादन में भी वृद्धि हुई और बढ़े हुए उत्पादन को बेचा जा सकता था. क्योंकि लोगों के पास क्रय शक्ति अधिक थी. यह प्रक्रिया 1928 के बाद तेजी से आगे बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप सोवियत अर्थव्यवस्था का तेजी से विस्तार हुआ और बेरोजगारी को मिटाते हुए लाखों नौकरियों का निर्माण हुआ.

यह 1929 की वॉल स्ट्रीट मंदी के समय हुआ, जिसके बाद अमेरिका और अधिकांश यूरोप में ग्रेट डिप्रेशन ( Great Depressiin) था. जिसके कारण हजारों कारखाने बंद, और करोड़ों मज़दूर बेरोज़गार हो गए.

मैं, यह नहीं कह रहा हूं कि हमें भारत में सोवियत मॉडल को अपनाना चाहिए. चाहें, हम इसे निजी उद्यम या राज्य कार्रवाई द्वारा करें, हमें भारतीय जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाना होगा.

(जस्टिस मार्केंडय काटजू प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के जज रहे हैं. बजट पर ये लेख उनकी फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है. साभार, जस्टिस काटजू.)