द लीडर। इस साल यानि 2021 में प्रतिष्ठित साहित्य के क्षेत्र में उपन्यासकार अब्दुलरजाक गुरनाह (Abdulrazak Gurnah)को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है। बता दें कि, उपन्यासकार अब्दुलराजाक गुरनाह को उपनिवेशवाद के प्रभावों और संस्कृतियों व महाद्वीपों के बीच की खाई में शरणार्थी की स्थिति के चित्रण के लिए साहित्य में 2021 नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
ब्रिटिश पुस्तक प्रकाशकों ने इस बार के साहित्य के लिए पुरस्कार की दौड़ में मुख्य रूप से केन्या के नगुगी वा थियोंगओ, फ्रांसीसी लेखिका एनी एरनॉक्स, जापानी लेखक हरूकी मुराकामी, कनाडा की मार्गरेट एटवुड और एंटीगुआई-अमेरिकी लेखिका जमैका किनकैड को शामिल किया था, लेकिन इन सब को पछाड़ कर अब्दुलरजाक गुरनाह ने पुरस्कार जीता है। उपन्यासकार अब्दुलरजाक गुरनाह को साहित्य का नोबल पुरस्कार दिये जाने की घोषणा हुई है। अब्दुलरजाक गुरनाह ने उपनिवेशवाद के प्रभावों शरणार्थी के भाग्य पर लेखन के लिए यह पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी है। अब्दुल रजाक तंजानिया के उपन्यासकार हैं।
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अब्दुलराजक गुरनाह का जन्म जंजीबार में हुआ था
अब्दुलराजक गुरनाह का जन्म 1948 में तंजानिया के जंजीबार में हुआ था। लेकिन 1960 के दशक के अंत में एक शरणार्थी के रूप में वह इंग्लैंड पहुंचे। रिटायरमेंट के पहले तक वह केंट विश्वविद्यालय, कैंटरबरी में अंग्रेजी और उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के प्रोफेसर थे। आजकल वो ब्रिटेन में रह रहे हैं. यह पुरस्कार जीतने वाले वह पहले अफ्रीकी हैं. गुरनाह के 10 उपन्यासों में ‘मेमरी ऑफ डिपार्चर’, ‘पीलिग्रीम्स वे’ और ‘डोट्टी’ में प्रवासियों की समस्याओं और अनुभवों का जिक्र है. गुरनाह के चौथे उपन्यास ‘पैराडाइज’ (1994) ने उन्हें एक लेखक के रूप में पहचान दिलाई थी। उन्होंने 1990 के आसपास पूर्वी अफ्रीका की एक शोध यात्रा के दौरान यही लिखी थी। यह एक दुखद प्रेम कहानी है जिसमें दुनिया और मान्यताएं एक-दूसरे से टकराती हैं। गुरनाह ब्रिटेन में एक शरणार्थी के रूप में आए थे इसलिए उनके उपन्यासों में शरणार्थियों का दर्द भी साफ झलकता है। वे केंट विश्वविद्यालय, कैंटरबरी में अंग्रेजी और उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के प्रोफेसर भी रह चुके हैं।
शरणार्थियों का मार्मिक वर्णन
शरणार्थी अनुभव का अब्दुलराजक ने जिस तरह वर्णन किया है वह कम ही देखने को मिला है। वह पहचान और आत्म-छवि पर फोकस करते हैं। उनके चरित्र खुद को संस्कृतियों और महाद्वीपों के बीच, एक ऐसे जीवन में पाते हैं जहां ऐसी स्थिति पैदा होती है जिसका कोई हल नहीं निकल सकता। अब्दुलराजक गुरनाह के दस उपन्यास और कई लघु कथाएं प्रकाशित हुई हैं। उनकी लेखनी में शरणार्थी की समस्याओं का वर्णन अधिक है। उन्होंने 21 वर्ष की उम्र से लिखना शुरू किया था, हालांकि शुरुआत में उनकी लिखने की भाषा स्वाहिली थी। बाद में उन्होंने अंग्रेजी को अपनी साहित्य लेखनी का माध्यम बनाया।
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BREAKING NEWS:
The 2021 #NobelPrize in Literature is awarded to the novelist Abdulrazak Gurnah “for his uncompromising and compassionate penetration of the effects of colonialism and the fate of the refugee in the gulf between cultures and continents.” pic.twitter.com/zw2LBQSJ4j— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 7, 2021
इससे पहले, रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के जर्मन वैज्ञानिक बेंजामिन लिस्ट और प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डेविड डब्ल्यूसी मैकमिलन को दिये जाने की बुधवार को घोषणा की गई। मैकमिलन का जन्म स्कॉटलैंड में हुआ था। उन्हें ‘एसिमेट्रिक ऑर्गेनोकैटलिसिस’ नामक अणुओं के निर्माण के लिए एक नया तरीका विकसित करने में उनके उल्लेखनीय काम के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है। विजेताओं की घोषणा ‘रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज’ के महासचिव गोरान हैन्सन ने की। नोबेल समिति ने कहा कि, लिस्ट और मैकमिलन ने 2000 में स्वतंत्र रूप से कैटेलिसिस का एक नया तरीका विकसित किया था। नोबेल समिति के एक सदस्य, पर्निला विटुंग-स्टाफशेड ने कहा कि, यह पहले से ही मानव जाति को बहुत लाभान्वित कर रहा है। पुरस्कार की घोषणा के बाद लिस्ट ने कहा कि उनके लिए पुरस्कार एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। उन्होंने कहा, मुझे इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी।
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