अयोध्या : हिंदुओं ने हाफिज अजीमुद्दीन को चुना अपना ग्राम प्रधान, जीत के लिए मंदिर में कराया सुंदरकांड-रामायण पाठ

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Ayodhya Hafiz Azimuddin Pradhan
पंचायत चुनाव में जीत के बाद ग्रामीणों से मुलाकात करते ग्राम प्रधान हाफिज अजीमुद्दीन.

अतीक खान


अयोध्या का एक गांव है-राजनपुर. ये भगवान श्रीराम की नगरी से कोई 60 किलोमीटर दूर आबाद है. हिंदू बहुल गांव है. आबादी लगभग 1400 है. और 807 मतदाता हैं. बस्ती में एकमात्र मुस्लिम घर है. बाकी सारे मकान हिंदुओं के हैं. लेकिन हिंदुओं ने हिंदू प्रत्याशियों को नकारकर हाफिज अजीमुद्दीन को अपना ग्राम प्रधान चुना है. इस भरोसे के साथ कि अजीमुद्दीन हाफिज हैं. इसलिए वे गांव की भलाई करेंगे. अन्याय नहीं करेंगे. और गरीबों को उनका हक दिलाएंगे.

राजनपुर में हाफिज अजीमुद्दीन का ग्राम प्रधान बनना, न केवल हिंदू-मुस्लिम एकता निशानी है. बल्कि भारतीय समाज में हाफिज, हाजी और मौलवी का जो सम्मान, रुतबा और उसके भरोसे की भी जीत है. एक हाफिज पर हिंदुओं का ये अटूट भरोसा कि उन्हें अपना मुखिया चुन लिया. उसी की मिसाल है. खासकर ऐसे माहौल में, जब देश की राजनीति सांप्रदायिक जहर से लबालब भरी है. सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हिंदू और मुसलमानों के नाम पर लड़े और जीते, जाते हैं. तब देश की सबसे छोटी पंचायत के चुनाव में राजनपुर के मतदाताओं का फैसला यकीनन लोकतंत्र में दम भरता है.


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बीते 3 मई को पंचायत चुनाव के नतीजे आए थे. इसमें हाफिज अजीमुद्दीन 191 मतों के साथ विजयी घोषित हुए थे. तभी से ये गांव चर्चा में है. इसलिए भी क्योंकि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी थी. उसके बाद से भारतीय राजनीति में अयोध्या का नाम सांप्रदायिक खाद-पानी की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है.

लेकिन अयोध्या में हिंदू-मुसलमान कैसे रहते हैं? राजनपुर गांव ने पूरे देश को ये हकीकत दिखला दी है. ग्रामीण रामतीरथ की राजनपुर गांव में ही डेयरी है. द लीडर से बातचीत में वह कहते हैं कि हमारे गांव में हिंदू-मुस्लिम जैसा कुछ भी नहीं है. सब एक हैं. धार्मिक आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ. हाफिज अजीमुद्दीन हमारी तरह ही हैं, इसलिए हमने उन्हें अपना नेता बनाया है.

राजनपुर के ही पतिराम नल मिस्त्री हैं और हाफिज अजीमुद्दीन के समर्थक भी. कहते हैं कि हाफिज साहब तो हमारे लिए मसीहा हैं. रामायण, पूजा-पाठ, होली-दीवाली, हर कार्यक्रम में शरीक होते हैं. हम सब उनके त्योहारों में शामिल होते. गांव में एक घर है. पूरा गांव उनका सम्मान करता है. इन्हें प्रधान क्यों चुना और अब अब क्या उम्मीदें हैं? पतिराम जवाब देते हैं कि ये धार्मिक व्यक्ति हैं. इसलिए एक आदर्श भी हैं. पिछले 20 साल से दूसरे लोगों को चुनते अा रहे हैं. लेकिन गांव के जिन गरीबों को उनका हक मिलना चाहिए था. नहीं मिला. मुख्य समस्याएं नाली, खड़ंजा, पेयजल, आवास की हैं. हमें पूरा भरोसा है कि हाफिज साहब न्यायपूर्ण तरीके से विकास करेंगे.


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हाफिज अजीमुद्दीन का परिवार कभी संडवा गांव में रहता था, 75 साल पहले उनके दादा राजनपुर गांव में आकर बस गए. हाफिज अजीमुद्दीन के पिता सलाउद्दीन को राजनपुर वालों ने 25 साल पहले ग्राम प्रधान चुना था. तब राजनपुर, कुनरा ग्राम पंचायत का मजरा हुआ करता था और इसमें चार गांव शामिल थे. बाद में परिसीमन हुआ और राजनपुर भी ग्राम पंचायत बन गई.

जीत के बाद गांव के घर में पहुंचे हाफिज अजीमुद्दीन.

ग्रामीण उदयचंद कहते हैं कि हाफिज साहब के पिता काफी नेक इंसान थे. पूरा गांव उनकी भलाई पर फिदा था. और इसीलिए उन्हें प्रधान चुना था. वैसी ही उम्मीदें हमें हाफिज अजीमुद्दीन से हैं. ये मौलवी हैं. अच्छा ही करेंगे. हमारी बस ये ख्वाहिश है कि जो गरीब हैं, जिनका सरकारी योजनाओं पर पहला हक है. उन्हें लाभ मिलना चाहिए.

हाफिज की जीत के लिए मंदिरों में सुंदरकांड-रामायण पाठ

राजनपुर गांव में दो मंदिर हैं. हाफिज अजीमुद्दीन बताते हैं कि 3 मई को जब मतगणना हो रही थी. तब दोनों मंदिरों में मेरी जीत के लिए सुंदरकांड और रामायण पाठ किए जा रहे थे. इस बात से आप हमारे गांव में हिंदू-मुस्लिम एकता का अंदाजा लगा सकते हैं. गांव में मुसलमानों का एक घर है. वो भी हमारा. हम चार भाई हैं. दो भाई-इस्लामुद्दीन और एहसामुद्दीन सऊदी अरब में जॉब करते हैं. छोटे भाई फखरूद्दीन प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं. और मैं पास के ही एक गांव के मदरसे में पढ़ाता हूं.

देश की राजनीति में कौन सा एजेंडा चलता है और सफल है. ये दूसरा विषय है. लेकिन हमारे गांव में सांप्रदायिक सौहार्द है. मुहब्बत है. एक हिंदू बहुल गांव में हिंदू समाज के भाईयों ने मुझे अपना नेता चुना है. इससे मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई है. मैं लोगों की भलाई के काम आ सकूं. ये मेरी खुशकिस्मती होगी.


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हाफिज अजीमुद्दीन कहते हैं कि गांव में स्कूल हैं. लेकिन एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बेहद जरूरत है. आस-पास 18 किलोमीटर तक कोई स्वास्थ केंद्र नहीं है. शासन-प्रशासन से मेरी एक मांग और अपील रहेगी कि हमारी पंचायत में एक स्वास्थ केंद्र स्थापित कराएं.

वह जोर देकर कहते हैं कि मैं गांव की तरक्की के लिए हरसंभव कोशिश करूंगा. मसलन, गांव में जिन जिन बुजुर्ग, विधव माताओं की पेंशन नहीं बनी है. उन्हें पेंशन मिले. बाकी शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल ये सारी सुविधाएं बेहतर हों. ग्रामीणों के लिए सरकार की बहुत सारी योजनाएं हैं. जो पात्र हैं, उन तक योजनाओं का लाभ पहुंचे.

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