#UP: कोविड से हुई 10 मौतों में 4 गिनी ही नहीं गईं, यह है असली आंकड़ा

0
302

कोरोना वायरस की तीसरी लहर आने की संभावनाओं की घोषणा हो चुकी है। इस बार सामना करने का क्या बंदोबस्त है, यह जगजाहिर है। अपने सामान की स्वयं की सुरक्षा करें के अंदाज में यही संकेत है कि अपनी जान की खुद हिफाजत करें। दूसरी लहर का ठोस आकलन ही न हो तो इंतजाम करना वैसे ही मुश्किल होगा। खासतौर पर उत्तरप्रदेश में तो ऐसा लग ही रहा है।

रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया की 2019 की रिपोर्ट ने इस बात को चिह्नित किया है कि सभी अनुमानित मौतों में से यूपी ने केवल 63.3% को ही रजिस्टर किया है। जिसका मतलब यह भी है कि 10 में से यूपी में लगभग 4 मौतों का रजिस्ट्रेशन हुआ ही नहीं। इसमें भी लगभग 31 फीसदी का रजिस्ट्रेशन मौत के एक महीने बाद हुआ।

यह भी पढ़ें: #UP: जिंदा रखने का नहीं, सीधे स्वर्ग भेजने का इंतजाम

गोरखपुर में 12 करोड़ रुपये की लागत से बना श्मशान घाट

आरटीआई से मिले आंकड़े भी आरजीआई की रिपोर्ट पुष्टि करते हैं। जिसमें इस बात को दिखाया गया है कि कोविड-19 की पहली वेव के कम हो जाने के बाद भी नवंबर 2020 तक मौतों के रजिस्ट्रेशन में बढ़ोत्तरी होती रही। क्योंकि मौतों और उनके रजिस्ट्रेशन में देरी रही है। लिहाजा ऐसा भी माना जा सकता हे कि चार महीने, दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच हुई मौतों की ठीक से गिनती नहीं हो सकी, कारण जो भी रहे हों।

कोविड को लेकर सामाजिक पर्देदारी ने भी मौत के असली कारणों को छुपाने में बड़ी भूमिका निभाई। जून 2021 के एक अध्ययन में बताया गया था कि भारत में मौतें आधिकारिक आंकड़ों से 2.2 गुना ज्यादा हो सकती हैं।

उत्तरप्रदेश के छह जिलों का अलग-अलग आंकड़ा इस बात को जाहिर भी कर रहा है।

बलिया में 7300 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गईं, जो उसी दौरान 2019-20 की हुई मौतों से 120 फीसदी ज्यादा हैं और कोविड-19 से हुई मौत के आधिकारिक आंकड़े से 107 से 68 गुना ज्यादा हैं। उन्नाव में 10400 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गईं, जो 2019-20 से 134 फीसदी ज्यादा हैं और दर्ज किए गए आधिकारिक आंकड़े से 117 गुना ज्यादा है।

कानपुर देहात में 4040 ज्यादा मौतें दर्ज की गईं। यह 2019-20 के मुकाबले 134 फीसदी ज्यादा हैं और आधिकारिक मौत से 106 गुना ज्यादा है। अमेठी में सामान्य के मुकाबले 13000 लोगों की मौतें दर्ज की गईं, जो 2019-20 के मुकाबले 1700 फीसदी ज्यादा हैं और आधिकारिक आंकड़े से 335 गुना ज्यादा है। राजधानी लखनऊ में 30200 ज्यादा मौतें रजिस्टर हुईं, जो 2019-20 के मुकाबले 524 फीसदी ज्यादा हैं और आधिकारिक रूप से दर्ज किए गए आंकड़े के मुकाबले 25 गुना ज्यादा है।

बरेली में 12000 ज्यादा मौतें रजिस्टर की गईं, जो 2019-20 के मुकाबले 72 फीसदी ज्यादा हैं और आधिकारिक आंकड़े के मुकाबले 73 गुना ज्यादा है। दूसरी लहर के दौरान यहां से सांसद व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर राज्य में महामारी प्रबंधन में होने वाली लापरवाही पर गहरी चिंता जाहिर की थी।

यह भी पढ़ें: क्या 1.5 अरब ‘गड्ढे’ में डालने जा रही योगी सरकार!

भारत का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य उत्तरप्रदेश कोविड से हुई मौतों में पांचवें स्थान पर है। यहां स्वास्थ्य व्यवस्था का आलम यह है कि सामान्य जरूरत के हिसाब से ही आधा स्वास्थ्य बंदोबस्त है।

कोविड मौतों विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के बावजूद बहुत सारे राज्यों ने जानबूझकर बेहद कड़ा रुख अपनाया और केवल उन्हीं की गिनती की, जो कोविड-19 में पाजिटिव आए थे और फिर उनकी हास्टिपल में मौत हुई थी। इंडिया स्पेंड ने 1 जुलाई 2020 को इसकी रिपोर्टिंग की थी।

जबकि बहुत से लोगों की बगैर किसी जांच या फिर गिनती के घर पर ही मौत हो गई। खासकर ग्रामीण इलाकों में। जिसका नतीजा है कि 20 जून, 2021 को जारी आधिकारिक मौत के आंकड़े 3 लाख 86 हजार 785 से दस गुना ज्यादा वास्तविक मौतें हो सकती हैं।

19 जून को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कोरोना वायरस से हुई मौतों के मामले में एक एफिडेविट के माध्यम से कहा कि बगैर इस बात को देखे कि मौतें कहां हुई हैं, उन्हें कोविड मौत के तौर पर दर्ज किया जाना चाहिए। इस बात का वादा किया है कि इस नियम को न मानने वाले डाक्टरों के खिलाफ वह कार्रवाई होगी।

यह भी पढ़ें:  दूसरी लहर जिन चीजों को हमसे छीन कर ले गई, उनमें एक अभिजात्यों की ओढ़ी हुई नैतिकता है

हाल ही में एम्स के डायरेक्टर रनदीप गुलेरिया ने एनडीटीवी को बताया कि कोविड से संबंधित मौतों को लेकर भारत में हुई गिनती की लापरवाही को हल करने के लिए मौतों का ऑडिट जरूरी है, जिससे लहर के खिलाफ लड़ाई की रणनीति को विकसित करने में मदद मिल सके।

सीआरएस डाटा मौतों की निश्चित संख्या जानने में मदद करता है। सभी राज्यों में जन्म और मृत्यु के जिला स्तरीय रजिस्ट्रारों का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक महीने उनके द्वारा जारी मौतों के सर्टिफिकेट को राज्य के चीफ रजिस्ट्रार के पास भेज दे।

बायोफिजिक्स के प्रोफेसर मेनन ने कहा अगर संभावित रूप से कम मौतों की दरों की राज्य सरकारों द्वारा अपने आधिकारिक आंकड़ों में रिपोर्टिंग की जाएगी तो हमें इस बात का खतरा बना रहेगा कि लोग इस बीमारी की गंभीरता के संदेश को ग्रहण नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया कोई भी आंकड़ा उसकी सटीकता के लिए चेक किया जाना चाहिए, यहां तक कि अगर यह सरकार पर कोई नकारात्मक प्रभाव भी डालता है तब भी। क्योंकि इस तरह के आंकड़े से ही सार्वजनिक नीतियां और योजनाएं तैयार की जाती हैं।

स्रोत: आर्टिकिल 14 से साभार


यह भी पढ़ें: कोरोना की कौन सी वैक्सीन सेहत और भविष्य के लिए सुरक्षित है?


 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here