Bihar Politics : पारस के बुझाए ‘चिराग’ से बिहार को रौशन कर सकती तेजस्वी की लालटेन-ये रहा फार्मूला

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Tejashwi Yadav Latest News of Bihar Chirag Paswan
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, लोजपा नेता चिराग पासवान.

अतीक खान


 

– प्रोफेसर वसीम बरेलवी का एक शेर है-जो बिहार की मौजूदा सूरत-ए-हाल और भविष्य की राजनीतिक तस्वीर से रूबरू कराता है. वो ये-”दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत, ये इक चिराग कई आंधियों पे भारी है.” लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजेस्वी यादव ने साबित कर दिया कि परिस्थितियां भले ही विपरीत हो, हौसले की बदौलत तूफान के भंवर में भी लालटेन की लौ को पहले से ज्यादा रौशन किया जा सकता है. उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया. बिहार के विधानसभा चुनाव इस बात के गवाह हैं. दूसरी तरफ चिराग पासवान हैं, पिता का साया हटने के आठ माह में ही यह चिराग बुझने के कगार पर है. उसे रौशन रखने के लिए भी तेजेस्वी फानूस बनने के लिए तैयार हैं. तेजेस्वी का ताजा बयान यही अहसास करा रहा है.

तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता हैं और बिहार के नेता प्रतिपक्ष. पिछले कुछ दिनों से वह दिल्ली में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ थे. इसलिए क्योंकि लंबे समय बाद लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर आए हैं. बुधवार को तेजस्वी पटना लौटे. पत्रकारों ने एयरपोर्ट पर ही घेर लिया. सवाल दागा, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की टूट पर.

लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन पर परिवार के साथ तेजस्वी यादव.

तेजस्वी के जवाब पर तवज्जो जरूरी है. उन्होंने कहा, ”अब चिराग भाई को तय करना है कि वो आगे क्या करेंगे. उन्हें फ्यूचर की सियासत के आधार पर फैसला करना चाहिए. और बंच ऑफ थॉट वालों से दूरी बना लें. ये ऐसा वक्त है, जहां उन्हें ये भी तय करना है कि गोलवलकर के विचार संग रहेंगे या फिर संविधान रचियता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की राह पर चलेंगे.”


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तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी निशाना साधा. और कहा कि वह जोड़-तोड़ की राजनीति के माहिर हैं. साल 2005 फिर 2010 में भी लोजपा को तोड़ने का प्रयास किये थे. ये वो वक्त था जब लोजपा के पास एक भी विधायक-सांसद नहीं था. तब लालू प्रसाद यादव ने ही लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान को आरजेडी कोटे से संसद पहुंचाया था.

अपने पिता और पूर्व मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान के साथ चिराग पासवान.

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप. जैसे देखें. महसूस करेंगे कि तेजस्वी ने चिराग पासवान को साथ आने का एक प्रस्ताव दे दिया है. और चिराग ऐसे संकट में हैं, जहां से बाहर आने के लिए उन्हें तेजस्वी के साथ आने के सिवाय कोई दूसरी राह नहीं सूझेगी. वो इसलिए क्योंकि, पिछले साल 2020 में जब विधानसभा चुनाव हुए. लोजपा ने एनडीए से नाता तोड़कर अलहदा चुनाव लड़ा था. अब जब लोजपा ही टूट गई तो चिराग ये दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भाजपा की सहमति पर ऐसा किया था.


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यहां ये जान लेना जरूरी है कि बिहार के तीन प्रमुख क्षेत्रीय दल हैं, आरजेडी, जेडीयू और लोजपा. इन तीनों के अस्तिव में निरंतर तीन साल का फासला है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जिसके प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हैं-का गठन 1997 में हुआ. ठीक तीन साल बाद लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) 2000 बनी. इसका नेतृत्व रामविलास पासवान ने किया. 2003 में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) वजूद में आई. इसे नीतीश कुमार ने संभाला.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

जेडीयू के वजूद में आने की तारीख से ही भाजपा का उससे गठबंधन हैं. और इस तरीके से नीतीश कुमार 7वीं बार मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. 2015 के चुनाव में भाजपा और जेडीयू का 17 साल का साथ छूट गया था. तब आरजेडी और जेडीयू ने एक साथ आकर चुनाव लड़ा. और सरकार बनाई. बाद में नीतीश आरजेडी से गठबंधन तोड़कर दोबारा भाजपा के साथ हो लिए.

कैसे बिहार जेडीयू-भाजपा की सियासत में छले गए चिराग

चिराग भाजपा और जेडीयू की सियासत को भांपने में चूक कर गए. इसका नतीजा ये हुआ कि विधानसभा चुनाव में लोजपा को महज 1 सीट पर जीत मिली. भाजपा ने 74 सीटें जीतीं और नीतीश के जेडीयू के खाते में 43 सीटें आईं. तेजेस्वी के नेतृत्व में आरजेडी 75 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

चूंकि एनडीए ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. और आसानी से नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बना ली. चिराग ताकते रह गए. लेकिन अगर चिराग चुनाव में आरजेडी से हाथ मिला लेते, तो राजनीतिक तस्वीर बदली होती. तब शायद उनकी लोजपा को भी ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते.


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राजनीतिक विश्लेषकों का ये मानना है कि जेडीयू को लोजपा के अलग लड़ने से ज्यादा नुकसान हुआ. इसलिए क्योंकि लोजपा ने जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. और जहां भाजपा प्रत्याशी थे, वहां रत्ती भर भी आक्रामक नहीं हुए. हालांकि इसमें बड़ा नुकसान लोजपा का ही हुआ. जो उसके टूटने का प्रमुख कारण माना जा रहा है.

चिराग की लोजपा पर चाचा का कब्जा

पिछले दिनों ही सांसद पशुपति कुमार पारस-जोकि रामविलास पासवान के भाई हैं. उन्होंने अपने भतीजे चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी. और उन्हें लोजपा पद से हटा दिया. अब पार्टी पर अधिकार को लेकर इन दोनों के बीच जंग छिड़ी है. इस बीच 17 जून को पशुपति कुमार पारस ने लोजपा के अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा कर दी.

जिसमें चिराग अकेले पड़ गए हैं. उनकी स्थिति ये बयां कर रही है कि जैसे वो राजनीति के इस खेल में मोहरे की तरह इस्तेमाल होकर रह गए.

17 जून को पशुपति कुमार पारस ने लोजपा के अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा कर दी.

पासवान ने पारस के हवाले की थी अपनी पारंपरिक सीट

8 अक्टूबर 2020 को मोदी सरकार में मंत्री रहे राम विलास पासवान का निधन हो गया था. इससे पहले उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. और अपनी पारंपरिक हाजीपुर सीट पारस कुमार पशुपति को सौंप दी थी. जहां से वह सांसद हैं. सनद रहे कि रामविलास पासवान 1977 में पहली बार हाजीपुर सीट से सांसद चुने गए थे. तब से लगातार 8 बार वह हाजीपुर से ही चुनाव लड़ते रहे. आखिर में उन्होंने अपनी ये सबसे मजबूत सीट भाई पारस के हवाले कर दी.

एक फार्मूला जिससे बदल सकती बिहार की सियासत

धर्म और जाति. राजनीति में इनका काफी महत्व है. बिहार की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि यहां जाति का क्या रोल है. बिहार में ओबीसी की तादाद 21.1 प्रतिशत है. मुस्लिम 14.7 और यादव 14.4 फीसदी. दलित और महादलितों की आबादी कोई 14.2 फीसदी है.


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लोजपा के पूर्व अध्यक्ष और चिराग पासवान के दिवंगत पिता रामविलास पासवान की अनुसूचित जाति के बीच अच्छी पैठ थी. विश्लेषकों का मानना है कि अगर चिराग, तेजस्वी साथ आ जाते हैं तो मुस्लिम-यादवों के साथ दलित-महादलित बिरादरी, इनके इकतरफा झुकाव से राज्य की सियासत का नक्शा बदल सकता है.

 

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