कोरोना की कौन सी वैक्सीन सेहत और भविष्य के लिए सुरक्षित है?

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आशीष आनंद-

कोरोना की महामारी जब दुनिया में फैली तो इसकी कोई दवा हो, इस उम्मीद के साथ लोग चिंता में डूबे रहे। उसी वक्त कई देशों से खबरें आईं कि साल के आखिर तक वैक्सीन आ जाएगी। इस साल एक के बाद एक कई वैक्सीन बाजार में आ भी गईं। इतनी जल्दी ये सब कैसे हुआ, यह रहस्य है?

इसी रहस्य में तमाम खतरे भी हैं। जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर में भारत के अंदर डरावने हालात बने हैं कि लोग सांस लेने में भी घबरा रहे हैं। सरकार सबको वैक्सीन लगवाने को कह रही है, हर किसी के मन में बचाव के लिए वैक्सीन के अलावा कोई चारा नजर नहीं आ रहा, सियासत भी इसी वैक्सीन पर हो रही है। लगता यही है कि भविष्य की चुनावी राजनीति का प्रमुख एजेंडा वैक्सीन ही होने वाला है।

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बहरहाल, जब वैक्सीन को लेकर इतनी बात हो ही रही है तो यह तो जान ही लेना चाहिए कि कौन सी वैक्सीन लगवाना ठीक रहेगा, किस वैक्सीन से खतरा है। इसके बावजूद कि तमाम लोगों ने उपलब्ध वैक्सीन की कम से कम एक खुराक तो ले ही ली है। काफी लोग वैक्सीन लगवाने के बाद संक्रमित हुए हैं, कई की जान भी गई है और तमाम लोग गहरे संक्रमण से बचे भी हैं।

वैक्सीन लगवाने का कोई फायदा नहीं, ऐसा नहीं है। महामारी को रोकने का पुख्ता बांध वैक्सीन ही है, बशर्ते उसे 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को छोटे अंतराल पर लगा दिया जाए। हाल ही में ऐसा करने वाला एकमात्र देश है भूटान। भूटान ने महज पंद्रह दिन में लगभग 90 फीसद आबादी को वैक्सीन की खुराक दे दी और इस वक्त वहां संक्रमण के मामले लगभग शून्य हैं। अक्सर ऐसा न होने से दुनियाभर में तमाम बीमारियां, जिनकी वैक्सीन भी है, पूरी तरह नियंत्रित नहीं होतीं और जब तब महामारी के तौर पर फूटती रहती हैं।

कोरोना वैक्सीन के मामले में तो इससे भी खराब स्थिति है। जल्दबाजी में बनी वैक्सीनों का हर मानक पर परीक्षण नहीं हुआ है। कितनी डोज लेना है, कितने समय तक सुरक्षा रहेगी, यह सब अभी अंधेरे में अनुमान लगाने जैसा ही है। फिर भी, वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा काे यह तो माना ही जा रहा है कि दोनों डोज लेने के बाद छह महीने तक सुरक्षा मिलने की उम्मीद है। संक्रमण होगा भी तो वैक्सीन लगने के बाद घातक नहीं होगा।

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भारत में इस छोटे से लाभ के लिए भी संभावनाएं बहुत बुरी हालत में हैं। वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वालों को ऑनलाइन तारीख अगस्त तक तो मिल ही नहीं रही। जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर वैक्सीन लग पा रही है, वहां वैक्सीन का विकल्प नहीं है। काफी लोग कोविशील्ड वैक्सीन की पहली खुराक ले चुके हैं, अब स्पूतनिक भी जल्द मुहैया होने की खुशखबरी मीडिया माध्यमों से दी जा रही है। आधा दर्जन से ज्यादा नाम वैक्सीन के सामने आ चुके हैं, जिनके असर को लेकर कई तरह के दावे हुए हैं।

यह सच है कि वैक्सीन लगने के बाद, लगवाने वाला व्यक्ति ज्यादा संक्रमण फैलाने लगता है, जबकि उसमें लक्षण भी नहीं दिखाई देते। इस वजह से लापरवाही उनके लिए घातक हो सकती है, जो संक्रमित नहीं हुए हैं। वैक्सीन लगवाने वाले को खुद भी दो लेयर वाला मास्क पहनना चाहिए, बाकी को तो लगाना ही चाहिए।

इनमें से लगवाया किसे जाए, जिससे जान बचे? इस सवाल पर इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की महामारी डिवीजन के हेड व प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.बीआर सिंह ने हाल ही में रिसर्च गेट पर अपनी राय जाहिर की है। उन्होंने यह बात अपने ब्लाॅग आजाद इंडिया पर भी की है।

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क्या कहा है उन्हाेंने! इसे जानने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि डॉ.बीआर सिंह स्वास्थ्य संबंधी रिसर्च लेखन में दुनिया के आठवें नाम हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन चौथे नंबर पर है। कोरोना महामारी पर उनके दर्जनों रिसर्च सालभर में प्रकाशित हुए हैं।

भूटान ने पूरे देश में पंद्रह दिन में टीकाकरण अभियान उनका रिसर्च प्रकाशित होने के बाद ही चलाया, हालांकि भूटान ने पिछले साल ही महामारी रोकने को बेहतरीन उपाय किए थे। जिस वक्त भारत में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम हुअा, भूटान ने भारत समेत किसी भी देश से आवाजाही प्रतिबंधित कर दी थी।

अब डॉ.सिंह नई बात यह कह रहे हैं कि लोग जल्दबाजी में गलती न कर बैठें। क्या गलती हो सकती है, या हो रही है? उनका कहना है कि कोविशील्ड, स्पुतनिक वी और जेनसेन एंड जेनसेन के टीके जेनेटिकली मोडिफाइड एडिनोवायरस वेक्टर टीके हैं। उनका कहना है कि अध्ययनों से यह साबित है कि वेक्टर वायरस हमारे डीएनए में एकीकृत हो सकता है और उसमें बदलाव को प्रेरित कर सकता है।

डॉ.सिंह का कहना है कि वैक्सीन की एक खुराक के जरिए एक अरब एडिनोवायस वेक्टर पार्टिकल शरीर में पहुंचते हैं। शरीर की एक हजार कोशिकाओं में एक पार्टिकल जीन से तक पहुंच सकता है। डीएनए में दस लाख तक एकीकृत हो सकते हैं। यह पहले से तथ्य है कि एकीकृत वेक्टर कम से कम 50 कोशिकीय विभाजन के लिए कायम रहा। कुछ स्थिर सेल क्लोन ने जीन में बदलाव दिखाया जो एकीकृत वेक्टर डीएनए में संरचनात्मक बदलावों के साथ थे।

शरीर की 15 ट्रिलियन कोशिकाओं में कितनी काेशिकाओं में वेक्टर वायरस पहुंचकर डीएनए में क्या और कितना बदलाव करेगा, इसकी फिलहाल कल्पना ही की जा सकती है। डीएनए और जीन में इस असर से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लेकर पागल होने या ऐसा ही कुछ और हो सकता है।

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ब्लॉग में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.बीआर सिंह कहते हैं, कोई नहीं जानता कि अगर एडेनोवायरस वैक्टर हमारे कोशिकाओं में एकीकृत हो गया तो क्या हो सकता है। यह आपके युग्मकजनन कोशिकाओं के जीनोम को बदल सकता है जो कि शुक्राणुओं या अंडों में एक परिवर्तित डीएनए हो सकता है या कैंसर या कई और चीजें पैदा कर सकता है, जिनकी अभी तक कल्पना नहीं की गई है। मनुष्यों में वैक्सीन की सुरक्षा पर दीर्घकालिक अध्ययन की कमी के कारण यह जानकारियां नहीं है।

इसी तरह की आशंकाओं के कारण ही जीएम खाद्य पदार्थों को उगाने और उपभोग करने की अनुमति अब तक नहीं दी गई है। इसके बावजूद कोविशील्ड और स्पुतनिक वी जैसे जीएम टीकों के टीकाकरण के लिए खुद को मजबूर पा रहे हैं।

जबकि यूके समेत दुनिया के अधिकांश विकसित देशों ने 55 साल से कम उम्र के अपने लोगों में ऐसे सभी टीकों के उपयोग को रोक दिया है, यूके पर तो कोविशिल्ड के पेटेंट अधिकार हैं। यहां तक कि ब्रिटेन में जिन लोगों के पहली डोज कोविशील्ड एस्ट्रेजेनेका लग चुकी है, उन्हें दूसरी डोज लेने से राेक दिया गया है। फिर भारत और कई विकासशील या गरीब देश इसके सार्वभौमिक उपयोग की वकालत क्यों कर रहे हैं?

क्या हमें म्यूटेशन का ऐसा कोई डर नहीं होना चाहिए, क्या हमारे लोग विकसित दुनिया में रहने वाले लोगों से कम हैं या हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों की परवाह नहीं है?

बिना जांच परख और गलत तरीके से टीकाकरण का नतीजा देखने को हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं। भारत में ही जानवरों में एफएमडी टीकाकरण बरसों से हो रहा है और यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है, इसी तरह ब्रुसेल्लोसिस का हाल है। हजारों करोड़ का बजट हर साल खपा दिया जाता है, जबकि वैक्सीन के तमाम बैच बिना जांच के ही बाजार में पहुंच गए।

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इस पर डॉ.सिंह ने समाधान भी सुझाया है। उनका कहना है कि एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा वैक्सीन के प्रत्येक बैच को सख्त गुणवत्ता नियंत्रण से गुजारा जाए। इस काम में देरी न हो इसलिए तब तक ड्रग कंट्रोलर और वैक्सीन उत्पादकों को कोविड-19 के टीकों की रैंडम सैंपलिंग शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि भारत में हर महत्वपूर्ण दवा और जैविक धोखाधड़ी के धंसी या घटिया हो सकती है। निष्क्रिय वायरस टीकों में आवश्यक मात्रा में एंटीजन और वायरस की उचित निष्क्रियता सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम परीक्षण या एमआरएनए टीकों में आवश्यक खुराक एमआरएनए या वेक्टरेड टीकों में वाहक वायरस डीएनए मात्रा का ठहराव तुरंत शुरू किया जाना चाहिए ताकि टीकाकरण फिजूल कसरत बनकर न रह जाए।

ब्लॉग के आधार पर सोशल मीडिया के जरिए जब डॉ. सिंह से पूछा गया कि फिलहाल मौजूद वैक्सीन में किस पर ऐतबार किया जा सकता है, जिससे कम से कम नुकसान तो न हो। इस पर उनका कहना है कि भारत की कोवैक्सीन और चीन की वैक्सीन एक हद तक सुरक्षित है, क्योंकि यह निष्क्रिय वायरस पर आधारित है। पिछले दिनों अमेरिकी शोध में कोवैक्सीन को लेकर यह बात सामने भी आ चुकी है। सरकार को विज्ञान के आधार पर उपाय करने की जरूरत है, न कि किसी अन्य आधार पर, यह कहकर उन्होंने बात को पूरा किया।

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