मेहनतकशों की जिंदगी से रूबरू कराने वाली ईरानी कवि सबीर हाका की कविताएं

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लाकडाउन में मजदूरों के पलायन की फाइल फोटो-साभार इंटरनेट

       सबीर हाका-


शहतूत

क्या आपने कभी शहतूत देखा है,
जहाँ गिरता है, उतनी ज़मीन पर
उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है।
गिरने से ज्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं।
मैंने कितने मजदूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,
गिरकर शहतूत बन जाते हुए।

 

ईश्वर

(ईश्वर) भी एक मज़दूर है
ज़रूर वह वेल्डरों का भी वेल्डर होगा।
शाम की रोशनी में
उसकी आँखें अंगारों जैसी लाल होती हैं,
रात उसकी क़मीज़ पर
छेद ही छेद होते हैं।

 

बंदूक़

अगर उन्होंने बंदूक़ का आविष्कार न किया होता
तो कितने लोग, दूर से ही,
मारे जाने से बच जाते।
कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं।
उन्हें मज़दूरों की ताक़त का एहसास दिलाना भी
कहीं ज़्यादा आसान होता।

 

मौत का ख़ौफ़

ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया
कि झूठ बोलना ग़लत होता है
ग़लत होता है किसी को परेशान करना
ताउम्र मैं इस बात को स्वीकार किया
कि मौत भी ज़िंदगी का एक हिस्सा है
इसके बाद भी मुझे मौत से डर लगता है
डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मज़दूर बने रहने से।

 

कॅरियर का चुनाव

मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था
खाने-पीने के सामानों का सेल्समैन भी नहीं
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं
न तो टैक्सी ड्राइवर
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं
मैं बस इतना चाहता था
कि शहर की सबसे ऊँची जगह पर खड़ा होकर
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूँ
जिससे मैं प्यार करता हूँ
इसलिए मैं बाँधकाम मज़दूर बन गया।

 

मेरे पिता

अगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्मत करूँ
तो मेरी बात का भरोसा करना,
उनके जीवन ने उन्हें बहुत कम आनंद दिया
वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था
परिवार की कमियों को छिपाने के लिए
उसने अपना जीवन कठोर और खुरदुरा बना लिया
और अब
अपनी कविताएँ छपवाते हुए
मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है
कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते।

 

आस्था

मेरे पिता मज़दूर थे
आस्था से भरे हुए इंसान
जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे
(अल्लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था।

 

मृत्यु

मेरी माँ ने कहा
उसने मृत्यु को देख रखा है
उसके बड़ी-बड़ी घनी मूँछें हैं
और उसकी क़द-काठी, जैसे कोई बौराया हुआ इंसान।
उस रात से
माँ की मासूमियत को
मैं शक से देखने लगा हूँ।

 

राजनीति

बड़े-बड़े बदलाव भी
कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं।
हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को
राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी
कितना आसान रहा, है न!
क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं
और सूली तक पहुँचाती हैं।

 

दोस्ती

मैं (ईश्वर) का दोस्त नहीं हूँ
इसका सिर्फ़ एक ही कारण है
जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं :
जब छह लोगों का हमारा परिवार
एक तंग कमरे में रहता था
और (ईश्वर) के पास बहुत बड़ा मकान था
जिसमें वह अकेले ही रहता था।

 

सरहदें

जैसे कफ़न ढँक देता है लाश को
बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढँक लेती है।
ढँक लेती है इमारतों के कंकाल को
पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है
और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो
सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है।

 

घर

मैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूँ यह शब्द
दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूँ
मैं आसमान को भी कह सकता हूँ
इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी।
लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को
नहीं कह सकता,
मैं इसे घर नहीं कह सकता।

 

सरकार

कुछ अरसा हुआ
पुलिस मुझे तलाश रही है
मैंने किसी की हत्या नहीं की
मैंने सरकार के ख़िलाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा
सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा
कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा
अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे
कि मैं एक मज़दूर हूँ
अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता
तब क्या करते वे?
फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया
कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है
जो स्कूल की सारी किताबों के पहले पन्ने पर
अपनी तस्वीर छपी देखना चाहता था।

 

इकलौता डर

जब मैं मरूँगा
अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊँगा
अपनी क़ब्र को भर दूँगा
उन लोगों की तस्वीरों से जिनसे मैंने प्यार किया।
मेर नए घर में कोई जगह नहीं होगी
भविष्य के प्रति डर के लिए।
मैं लेटा रहूँगा। मैं सिगरेट सुलगाऊँगा
और रोऊँगा उन तमाम औरतों को याद कर
जिन्हें मैं गले लगाना चाहता था।
इन सारी प्रसन्नताओं के बीच भी
एक डर बचा रहता है :
कि एक रोज़, भोरे-भोर,
कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा :
अबे उठ जा सबीर, काम पे चलना है…

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