फिलिस्तीन पर मोईन बेसिस्सो की कविता: तीसरी दुनिया

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मोईन बेसिस्सो-

मुकम्मल बात है फतह
एक गोली रात की खामोशी को
तोड़ देती है
खून का फव्वारा फूट पड़ता है
हमारा खून बलबला कर निकलता है
हम खून का रंग पहचान लेते हैं
उन्होंने हमें खून का रंग
भूलने को मजबूर कर दिया था
उन्होंने हमें संदेह करने को
मजबूर कर दिया था
कि हमारी नसों में
खून बहता है या पानी
फिर भी सारे रंग
हम आज भी पहचानते हैं
पासपोर्ट अधिकारियों की आंखों के रंग
पैसों के रंग
काली सूची के रंग
सबको पहचानते थे
खून के रंग के अलावा
पर अब वह खून बह रहा है
उसने हमारे रास्ते को सींच दिया है
आओ हम अपना खून बहायें, फतह
क्योंकि हम मारे जायेंगे
अगर हमने अपने घावों का इलाज किया
हमारे खून को
दुनिया की खिड़कियों के शीशों पर
पुत जाने दो
इसे दुनिया के चेहरे पर
पुत जाने दो
इस दुनिया के
आओ हम दुनिया के
तकिए के नीचे
डाइनामाइट की एक छड़ लगा दें
जब तक हम कांटेदार तारों पर
विश्राम करते हैं
फतह
यह दुनिया चैन से नहीं सोयेगी
बहुत दिनों से यह दुनिया
खा रही है
फलस्तीन का मांस
छुरी और कांटे से
दुनिया के कान
दुनिया की आंखें
दुनिया का दिल
दुनिया का गला
उबले हुए सेब हैं
चुराए हुए सेब हैं
विजेताओं की फलों की टोकरी में
दुनिया की औरतो
तुम्हारे बच्चों की गुड़ियों पर
हमारा खून पुता हुआ है
तुम्हारे कदमों के साथ-साथ हमारा खून बहता है
अब हमारे साथ हो लो
दुनिया के आदमियों
अब हमारे साथ हो लो
दुनिया के आदमी और औरतो
अब हमारे साथ हो लो
काली, गोरी, लाल, पीली
दुनिया की नस्लों
अब हमारे साथ हो लो
क्योंकि हम तुम्हें
मनुष्य की गरिमा प्रदान करेंगे
मनुष्य का जन्म प्रमाणपत्र देंगे
और मनुष्य का नाम

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अनुवाद – रामकृष्‍ण पाण्‍डेय

 

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