आधुनिक तुर्की के शिल्पी कमाल पाशा का आज जन्मदिन है, जिन्होंने इस्लामिक नेताओं से तगड़ा पंगा लिया

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तुर्की की आज जो तरक्की और चमकती सूरत दिखाई देती है, उसके शिल्पी कमाल पाशा रहे। आज ही के दिन 19 मई 1881 में वे जन्मे थे। उन्होंने तुर्की को तरक्की की पटरी पर दौड़ाने के लिए लोकतंत्र राह पकड़ी। इस राह में जो भी विचार आया, उसे सख्ती से धकेलकर आगे बढ़ गए।

इस्लामिक दकियानूसी गुटों ने कई बार विद्रोह किए, लेकिन वे उनके जीते जी कभी कामयाब नहीं हो पाए। यह वही कमाल पाशा थे, जिनके खिलाफ भारत में खिलाफत आंदोलन चला और उस आंदोलन को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के साथ जोड़ लिया था।

भारत के क्रांतिकारी दल कमाल पाशा से खासे प्रभावित हुए और राम प्रसाद बिस्मिल ने तो बाकायदा उनके ऊपर लिखा तक। कमाल पाशा का लोकतंत्र के लिए कुछ भी कर जाने की मिसाल यह तक है कि जिस जगह के लिए ईसाई और मुसलमान अपने दावे करके उसी तरह झगड़ रहे थे जैसे अयोध्या विवाद, वहां उन्होंने दोनों पक्षों में सहमति न बनने पर म्यूजियम बनवा दिया।

बरसों इस जगह को लोग म्यूजियम बतौर ही देखने आते रहे, लेकिन अब यह जगह तुर्की की मौजूदा कट्टरपंथी सरकार फिर से मस्जिद में तब्दील करा दी।

कमाल देश को प्रजातंत्र घोषित कर प्रथम राष्ट्रपति बने। कट्टरपंथी समूह उनका लगातार विरोध कर रहे थे। इस पर कमाल पाशा ने सरकारी अखबारों में इस्लाम दकियानूसी और पोंगापंथ के िखिलाफ प्रचार शुरू करा दिया। जवाब में धार्मिक नेताओं ने उनके खिलाफ फतवे जारी कर दिए और यह कहना शुरू किया कि कमाल ने अंगोरा में स्त्रियों को पर्दे से बाहर निकालकर देश में आधुनिक नृत्य का प्रचार किया है, जिसमें पुरुष स्त्रियों से सटकर नाचते हैं, इसका खात्मा होना चहिए। हर मस्जिद से यह ऐलान किया गया।

तब कमाल ने 1924 के मार्च में खिलाफत प्रथा का करके तुर्की को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित करने को विधेयक संसद में रखा। अधिकांश संसद सदस्यों ने विरोध किया, लेकिन कमाल पाशा की दलीलों के आगे उनकी एक न चली और विधेयक पारित हो गया। खिलाफत प्रथा का अंत होने की खबर से दुनिया के दूसरे देशों में बसे धार्मिक नेता भी सक्रिय हो गए।

भारत में आंदोलन ही शुरू हो गया। जिसको समर्थन देकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को मजबूत किया। यानी खुद प्रजातंत्र की मांग करने वाले आंदोलन ने प्रजातंत्र का विरोध किया। खिलाफत आंदोलन के प्रभाव में कुछ नौजवान तो तुर्की को रवाना हो गए, जो रूसी इलाके में गिरफ्तार होने के बाद आगे नहीं गए और वहां से आधुनिक युग की इबारत लिखने का ज्ञान लेकर भारत लौटे। उन नौजवानों ने भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की बुनियाद रखने की कोशिश की।

इस बीच कमाल पाशा पर जोर तो नहीं चला, लेकिन तुर्की के रूढ़िवादी इस्लामिक समूह और धार्मिक नेता के बीच बगावत की आग सुलगती रही। कमाल पाशा के कई पुराने साथी भी उनसे जा मिले। उन्होंने विदेशी पूंजीपतियों से धन लेकर बगावत साजिश रची।

कमाल ने एक दिन साजिश रचने वाले मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया। कमाल ने देखा कि केवल फांसी पर चढ़ाने से काम नहीं चलेगा, देश को आधुनिक रूप से शिक्षित कर पुराने रीति रिवाजों और पहनावे को भी समाप्त करना पड़ेगा। फिर यह अभियान शुरू हो गया।

कमाल ने पहला हमला तुर्की टोपी पर किया। विद्रोह हुए, पर कमाल ने सेना भेज दी। इसके बाद इस्लामी कानूनों को हटाकर नई संहिता स्थापित की जिसमें स्विटज़रलैंड, जर्मनी और इटली की सब अच्छी-अच्छी बातें शामिल थीं। बहु-विवाह गैरकानूनी घोषित कर दिया।

इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ ढोरों की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव रखें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया। सेवाओं में घूस लेना गैर कानूनी कर दिया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएं दीं। औरतों के पहनावे से पर्दा उठा दिया गया और पुरुष पुराने ढंग के कपड़े छोड़कर सूट पहनने लगे।

कमाल पाशा यहीं नहीं रुके। इससे भी बड़ा सुधार यह था कि अरबी लिपि को हटाकर पूरे देश में रोमन लिपि की स्थापना की गई। कमाल खुद सड़कों पर जाकर रोमन वर्णमाला में तुर्की भाषा पढ़ाते। नतीजतन तुर्की संगठित होकर एक हो गया और अलगाव की भावना खत्म हो गई। कहा तो यह भी जाता है कि कमाल पाशा ने मस्जिदों में अजान और नमाज के लिए भी अरबी की जगह तुर्की भाषा को लागू करवा दिया था।

इसके साथ ही कमाल ने तुर्की सेना को अत्यन्त आधुनिक ढंग से संगठित किया। इस तरह तुर्क जाति आधुनिक बनी। सन् 1938 के नवंबर महीने की 10 तारीख को मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की मृत्यु हुई। तब तक आधुनिक तुर्की के निर्माता के रूप में उनका नाम हर कोई जान चुका था।

उनका निजी जीवन भी मिसाल है। उनकी शादी लतीफी उस्साकी से हुई, लेकिन कोई संतान नहीं हुई। बीवी के मरने के बाद मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने दूसरी शादी नहीं की। उन्होंने 13 अनाथ बच्चों को गोद लिया और उनकी बेहतर ढंग से परवरिश की। इन 13 बच्चों में भी 12 लड़कियां और एक लड़का था।

कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफ़ा कमाल पाशा को 20 वीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक नेताओं में से एक माना जाता है।


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