Wednesday, October 16, 2024
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दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने निकाला ट्रैक्टर मार्च

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नई दिल्ली : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन रहे किसानों ने हरियाणा-यूपी को जोड़ने वाले पेरिफेरल हाईवे पर ट्रैक्टर मार्च निकाला है. अन्य क्षेत्रों में भी ये मार्च निकाले जा रहे हैं. किसानों ने इसे 26 जनवरी को दिल्ली में निकाले जाने वाले ट्रैक्टर परेड का रिहर्सल (अभ्यास) बताया है. बीते 30 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने कानून रद न होने की सूरत में 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड करने की चेतावनी दी थी. (Farmers Tractor march Delhi)

किसानों ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनके पास छह महीने का एडवांस राशन है. वे घर से ये तय करके आए हैं कि जब तक कानून रद नहीं होंगे. वापस नहीं जाएंगेे. दिल्ली के आस-पास इलाकों में हजारों की संख्या में किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर मार्च निकाल रहे हैं. कुछ किसान कार तो कुछद पैदल मार्च कर रहे हैं.

दिल्ली की सीमाओं पर ट्रैक्टर मार्च निकालते किसान

आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है. हालांकि किसानों ने इसे शांतिपूर्ण आंदोलन बताते हुए कहा कि इससे किसी को समस्या नहीं आएगी. किसान नेता राकेश टिकेत ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें एक कतार में क्रमबद्ध तरीके से वाहन चलते दिख रहे हैं.


किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा


 

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 42 दिनों से किसानों का आंदोलन जारी है. वे नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए इन्हें निरस्त करने की मांग उठाए हैं. किसान और सरकार के बीच सात दौर की बातचीत हो चुकी है. जिसमें कोई हल नहीं निकला है. आठवें दौर की वार्ता 8 जनवरी को प्रस्तावित है. इससे पहले ही किसानों ने आंददोलन को बड़ा रूप देने की पहल शुरू कर दी है. (Farmers Tractor march Delhi)

किसानों ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में ही साफ किया था कि 26 जनवरी की प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड से पहले ही विभिन्न चरणों में इसी तरह के आंदोलन किए जाएंग. इसमें राजभवन के बाहर भी प्रदर्शन की बात शामिल है.

किसान मोर्चा का ऐलान, कानून रद नहीं किए तो 26 जनवरी पर ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर दिल्ली में करेंगे परेड

अमेरिकी संसद पर ट्रंप समर्थकों का धावा, गोलीबारी में चार की मौत

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द लीडर : दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने विद्रोह कर दिया है. उन्होंने अमेरिका की सबसे सुरक्षित जगहों में से एक संसद पर हमला बोल दिया. सीनेट के अंदर फायरिंग की. हिंसा में करब चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. अमेरिका की के इस घटनाक्रम ने दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को झकझोर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत विश्व के अन्य नेताओं ने इसकी निंदा करते हुए शांतिपूर्वक सत्ता हस्तातंरण का संदेश दिया है. (Trump Supporters US Parliament)

अमेरिकी सीनेट पर धाव बोलकर उत्पात मचाते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक.

अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे. इसमें जो बाइडन को 306 इलेक्ट्रोल वोटों के साथ बड़ी जीत हासिल हुई. जबिक निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 232 इलेक्ट्रोल वोटों के साथ हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि ट्रंप ने बाइडन की जीत को चुनाव में धांधली बताकर खारिज कर दिया था.

वे लगातार ऐसा करते आ रहे हैं. चूंकि आगामी 20 जनवरी को जो बाइडन को अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेनी है. उससे पहले ही ट्रंप समर्थकों के इस हिंसक रूप ने दुनिया को चौंका दिया है.

अमेरिकी सीनेट के अंदर उत्पात मचाते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक.

घटना पर नाराजगी हुए निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि लोकतंत्र अप्रत्याशित रूप से खतरे में है. मैं राष्ट्रपति ट्रंप से अपील करता हूं कि वे संविधान की रक्षा का पालन करते हुए कैपिटल को कब्जा मुक्त कराएं. क्योंकि ये विरोध नहीं फसाद है.

अमेरिकी सीनेट पर धाव बोलकर उत्पात मचाते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक.

बाइडन को प्रमाण पत्र देने के विरोध में हिंसा

ये हिंसा उस वक्त भड़की जब सीनेट में जो बाइडन को राष्ट्रपति चुने जाने का शपथ पत्र देने को लेकर बहस चल रही थी. क्योंकि कुछ रिपब्लिकन सांसदों ने चुनाव नतीजों पर सवाल उठाए थे. वहीं, राष्ट्रपति ट्रंप उप राष्ट्रपति माइक पेंस पर शपथ पत्र न जारी करने का दबाव बनाते आ रहे हैं. सीनेट में प्रमाण पत्र की औपचारिक प्रक्रिया के बीच ये एक हिंसक भीड़ ने धावा बोल दिया.

अमेरिकी सीनेट में इस तरह घुसते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक.

 

छत दीवारों से घुसे उपद्रवी, सीटों के नीचे छिपे सांसद

हथियाबंद उप्रदवियों के सीनेटे में घुसकर तोड़फोड़ करने से सांसद हक्के बक्के रह गए. आरोप है कि एक उप्रदवी ने फायरिंग कर दी. जान बचाने के लिए कई सांसद कुर्सियों के नीछे छपने को मजबूर हुए. बहरहाल, अमेरिका के कैपिटल हिल्स में ट्रंप समर्थक अभी भी डटे हैं. दूसरी तरफ संसद के बाहर सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई है. घटना पर उप-राष्ट्रपति माइक पेंस ने भी नाराजगी जताते हुए निंदा की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में कहा कि वॉशिंगटन डीसी में हिासा की खबरों ने परेशान किया. शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का हस्तांतरण जारी रहना चाहिए. लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गैरकानूनी विरोध के माध्यम से विकृत नहीं होने दिया जा सकता.

निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने ट्वीट किया. इसमें उनका वीडियो संबोधन है.

 

कांग्रेस के इस हश्र के जिम्मेदार हैं कुछ घमंडी नेता, पीएम मोदी को सुननी चाहिए असहमति की आवाज

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नई दिल्ली : देश के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत प्रणव मुखर्जी की आखिरी किताब में आखिर ऐसा क्या है, जिसके प्रकाशन को लेकर उनके बेटे और बेटी के बीच मतभेद सामने आ चुके हैं. ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर 2012-2017’ तक ये रहस्य बना था, जो किताब के साथ खुलकर सामने आ चुका है. दरअसल, राजनीतिक शतरंज के सबसे माहिर खिलाड़ियों में शुमार रहे प्रणव दा ने कांग्रेस से लेकर भाजपा दोनों पर एक ही सख्ती से कलम चलाई है.

2014 की हार के लिए सोनिया गांधी जिम्मेदार

2014 में संयुक्त प्रगितशील गठनबंधन (UPA-2)की शर्मनाक हार के लिए प्रणव दा सीधे तौर पर सोनिया गांधी और कुछ दूसरे नेताओं को जिम्मेदार मानते हैं. वे लिखते हैं, जब यूपीए-1 बना, तो उसमें सपा, वामदल, लोजपा, आरजेडी और कई छोटे दल शामिल थे.

वामदल के समर्थन वापस लेने पर सपा साथ खड़ी रही. वहीं, जब यूपीएप-2 बना तो आरजेडी समेत कई अन्य दल उसका हिस्सा नहीं बने. हालांकि 19 सांसदों के साथ ममता बनर्जी साथ रहीं.

वर्ष 2017 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक पुस्तक विमोचन में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति नामनाथ कोविंद के साथ पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी. फोटो, साभार ट्वीटर

बाद में 2012 में ममता बर्नजी तो 2013 में डीएमके ने समर्थन वापस ले लिया. इसका सीधा अर्थ था कि यूपीए 2 की सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही है. वे लिखते हैं, अगर मैं रहता तो ममता बनर्जी को गठनबंधन के साथ रखता.

महाराष्ट्र में विलासारव देशमुख जैसे प्रमुख नेता की भरपाई के लिए शिवराज पाटिल या सुशील कुमार शिंदे को वापस लाता. इसके साथ ही तेलंगाना राज्य बनाने की मंजूरी तो हरगिज नहीं देता.


यूपी : बदायूं में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म, पसली-पैर तोड़े, फेफड़े पर हमला कर मौत के घाट उतारा


नेतृत्व को पहचाने में नाकाम रही कांग्रेस नेतृत्व

प्रणव मुखर्जी लिखते हैं कि, 2014 की हार के कारणों में से एक बड़ी वजह ये रही कि कांग्रेस अपने चमत्कारिक नेतृत्व को पहचाने में विफल रही. 2014 के परिणामों पर भरोसा करना मुश्किल था. इसलिए क्योंकि कांग्रेस को महज 44 सीटें मिली थीं. बिना नाम लिए कुछ घमंडी नेताओं को भी इसका कारण माना है. चूंकि कांग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था है जो लोगों के जीवन से जुड़ी हुई है. इसका भविष्य हर शख्स की चिंता रहा है.

नोटबंदी के फैसले की नहीं थी जानकारी

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2016 में लिये गए नोटबंदी के फैसले के बारे में भी उन्होंने लिखा है. ‘मुझे इस फैसले के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई थी. आम लोगों की तरह ही नोटबंदी का पता लगा. हालांकि इस पर मुझे हैरानी नहीं हुई. क्योंकि ऐसे फैसले इसी तरह लिए जाते हैं. बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुझसे मिले. और बातचीत की. ‘

पीएम मोदी को असंतुष्टों की आवाज सुननी चाहिए

प्रणव मुखर्जी लिखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में अक्सर बोलना चाहिए. विपक्ष को समझाने और देश को तमाम मसलों से रूबरू कराने के लिए संसद को एक मंच के तौर पर उपयोग करना चाहिए. इसके साथ ही प्रधानमंत्री को असहमति की आवाजें भी सुननी चाहिए.


सआदत हसन मंटो की कहानी : टोबा टेक सिंह


 

 

यूपी : बदायूं में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म, पसली-पैर तोड़े, फेफड़े पर हमला कर मौत के घाट उतारा

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बदायूं : उत्तर प्रदेश के हाथरस दुष्कर्म कांड (Hathras Rape Case) से उपजा गुस्सा और गम अभी हल्का ही पड़ा था कि अब बदायूं से एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है. मंदिर के लिए पूजा को निकली एक महिला की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई. वो भी इतनी बेरहमी से कि पहले महिला की पसली और पैर तोड़े गए. फिर फेफड़े को वजनदार चीज से दबाकर घटना को अंजाम दिया गया. (UP Gang Rape Badaun )

मंगलवार को पोस्टमार्ट रिपोर्ट से ये दरिंदगी उजागर हुई है. जिसे थानाध्यक्ष ने सामान्य हादसे के रूप में गढ़कर दबाने का प्रयास किया था.

उघैती में पीड़‍िता के पर‍िजनों से मुलाकात करते एडीजी अव‍िनाश चंद्रा

अब इस मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सरकार पर निशाना साधा है.

ये घटना रविवार को उघैती क्षेत्र में घटी. महिला दूसरे गांव स्थित मंदिर में पूजा के लिए निकली थीं. तब उनके साथ ये हादसा हुआ है. आरोप है कि रविवार की रात को पुजारी और दो अन्य लोग महिला को लहूलुहान हालत में घर पर छोड़कर फरार हो गए थे.


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महिला के प्राइवेट पार्ट से खून बहता देख परिजनों ने पुलिस से एफआइआर दर्ज करने की गुहार लगाई. इस बीच तक पीड़िता की मौत हो चुकी थी. आरोप है कि थानाध्यक्ष ने कार्रवाई करने के बजाय ये कहानी गढ़ी कि महिला की मौत कुएं में गिरने से हुई है.

बहरहाल, एसएसपी ने संकल्प शर्मा ने इस मामले में थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया है. घटना में शामिल दो आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जबकि मुख्य आरोपी पुजारी अभी तक फरार है.

पीएम रिपोर्ट से ये खुलासा

पीएम रिपोर्ट के मुताबिक महिला के प्राइवेट पार्ट में रॉड जैसी किसी चीज से हमला किया गया है. उनके अंदरूनी पार्ट में गंभीर चोटें आई हैं. पसली और पैर भी टूटे पाए गए. साथ ही फेफड़ों को किसी वजनदार चीज से दबाने का तथ्य उजागर हुआ है.

सपा प्रमुख अख‍िलेश यादव ने ट़वीट के जर‍िये सरकार पर न‍िशाना साधा है.

 


किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा


प्र‍ियंका का वार, महि‍ला सुरक्षा पर सरकार की नीयत में खोट 

कांग्रेस महास‍चिव प्र‍ियंका गांधी ने अपने ट़वीट में कहा क‍ि ‘हाथरस सरकारी अमले ने शुरुआत में फर‍ियादी की नहीं सुनी, सरकार ने अफसरों को बचाया और आवाज को दबाया, बदायूं में थानेदार ने फर‍ियादी की नहीं सुनी, घटनास्‍थल का मुआयना तक नहीं क‍िया, मह‍िला सुरक्षा पर यूपी सरकार की नीयत में खोट है.’
वहीं, इस मामले में पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती ने दोष‍ियों को सख्‍त सजा द‍िलाने की मांग की है.

घटना पर व‍िपक्ष के हमलावर होने के बाद शासन ने इस मामले की जांच एसटीएफ से कराने का फैसला क‍िया है: 

सुप्रीमकोर्ट ने लव ‘जिहाद कानून’ पर यूपी और उत्तराखंड सरकार को जारी किया नोटिस

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नई दिल्ली : सुप्रीमकोर्ट ने ‘लव जिहाद‘ के नाम पर बने (विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन) कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं (Petitions) पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश (UP) और उत्तराखंड (UK) सरकार को नोटिस जारी किया है. हालांकि, अदालत (Court) ने कानूनों के उन प्रावधानों पर फौरीतौर से रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिनमें शादी के लिए धर्म परिवर्तन से पहले अनुमति लेना जरूरी है. (Love Jihad Supreme Court)

चीफ जस्टिस (CJI) एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ (Bench) बुधवार को अधिवक्ता विशाल ठाकरे और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ (सिटीजन्स फॉर जस्टिएस एंड पीस) की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन याचिकाओं में उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट-2018 और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन निषेध अध्यादेश-2020 को चुनौती दी गई है.


किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा


‘लाइव लॉ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में पीठ ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित राज्य के उच्‍च न्‍यायालय (High Court) में संपर्क करने को कहा. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले से ही कानून के खिलाफ चुनौती पर विचार कर रहा है.

चीफ जस्टिस ने कहा, चुनौती पहले से ही उच्च न्यायालयों में लंबित है. आप वहां क्यों नहीं जाते. हम ये नहीं कह रहे हैं कि आपके पास एक बुरा मामला है. लेकिन आपको सीधे सुप्रीमकोर्ट के बजाय उच्च न्यायालयों का रुख करना चाहिए.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने कोर्ट में कहा कि प्रावधान दमनकारी हैं और विवाह करने से पहले इजाजत लेना एकदम अप्रिय है. उन्होंने प्रस्तुत किया-यूपी अध्यादेश के आधार पर पुलिस ने ‘लव जिहाद’ के आरोप में कई निर्देश व्यक्तियों को उठाया है.

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कोर्ट ने एडवोकेट चंदर उदय सिंह और प्रदीप कुमार की दलीलें सुनने के बाद अपना विचार बदल किया वे दो राज्यों के कानूनों को चुनौती दे रहे हैं, जो समाज में व्यापक समस्याएं पैदा कर रहे हैं. अधिवक्ताओं ने प्रस्तुत किया कि मध्यप्रदेश, हरियाणा जैसे और राज्य समान कानूनों को लागू कर रहे हैं.

जब मामले एक से अधिक उच्च न्यायायों में लंबित हैं, तो ये उचित है कि सुप्रीमकोर्ट इस मामले पर विचार करे. अधिवक्ताओं के काफी मनाने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा, ‘ठीक है. हम नोटिस जारी करेंगे.’

उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद पर रोक के लिए नवंबर में राज्य सरकार अध्यादेश लाई थी. इसके लागू होने के बाद से ही ये काफी चर्चा में बना है. इसके अंतर्गत राज्य में अब तक करीब 14 मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 50 के आस-पास गिरफ्तारियां हो चुकी हैं.

कुछ मामलों पर गलत तरीके से फंसाने के आरोप भी लगे हैं. इसमें एक मामला बरेली जिले का है, जिसमें पुलिस जांच में सामने आया था कि तीन युवकों के खिलाफ नए कानून के अंतर्गत जो मामला दर्ज किया गया है. दरअसल वो फर्जी है. पुलिस ने उस केस को रद कर दिया था.

किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा

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नई दिल्ली : सुप्रीमकोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नजर नहीं आया है. चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीश पीठ ने टिप्पणी में कहा कि अदालत का मकसद किसानों और सरकार के बीच संवाद को प्रोत्साहित करना और सुविधाजनक बनाना है. (Supreme Court Farmers Protest )

अदालत नए कृषि कानूनों की वैधानिकता (legality)को चुनौती देने वाले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बेंच में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्य शामिल थे. हालांकि सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत (Court) में कहा कि किसानों के साथ सरकार की बातचीत जारी है.

विवादित कृषि कानूनों को चुनौती देने के अलावा अदालत दिल्ली-एनसीआर के बाहरी हिस्सों में जारी किसानों के विरोध प्रदर्शन को खत्म करने संबंधी याचिका भी सुन रही है. जिसमें सड़कें बंद किए जाने से नागरिकों को असुविधा का हवाला दिया गया है. ये याचिका विधि के छात्र ऋषभ शर्मा की ओर से दायर की गई है.

क‍िसान आंदोलन की फाइल फोटो

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कृषि कानून और किसान आंदोलन के मामले में सुनवाई की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि अभी दोनों पक्षों के बीच संवाद चल रहा है. ‘आज तक’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पर चीफ जस्टिस (Chief Justice)ने कहा कि हम सोमवार को मामले को देखेंगे. अगर बातचीत सकारात्मक रही तो सुनवाई टाल देंगे.

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दिल्ली (Delhi)की सीमाओं पर पिछले 41 दिनों से किसानों का धरना-प्रदर्शन (Protest) जारी है. किसान, तीनों कानूनों (Laws)को रद किए जाने की मांग पर डटे हैं. सरकार और किसान नेताओं के बीच सात दौर की बातचीत हो चुकी है, जो बेनतीजा रही है. अगली बातचीत 8 जनवरी को तय है.

इस बीच किसान आंदोलन को और तेज करने का ऐलान कर चुके हैं. सरकार के साथ बातचीत में कोई हल न निकलने की सूरत में गणतंत्र दिवस पर 26 जनवरी को किसानों ने दिल्ली में ट्रैक्टर-ट्रॉली से परेड की घोषणा कर रखी है. इस बीच किसान नेताओं ने दिल्ली राजभवन के बाहर भी प्रदर्शन की योजना बनाई है.

बीते रविवार से दिल्ली का मौसम खराब है. कड़ाके की ठंड के बीच लगातार बारिश हो रही है. इससे आंदोलनरत किसान बेहाल है. बिस्तर, राशन भीगने और ठंड के कारण उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. किसान नेताओं के मुताबिक आंदोलन के दौरान अब तक 50 से अधिक किसानों की जानें (Death)जा चुकी हैं.

उमर खालिद समेत यूएपीए के तहत बंद अन्य आरोपियों को जेल में मिलेगी चार्जशीट की सॉफ्ट कॉपी

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नई दिल्ली : गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम-2020 (UAPA) के तहत जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद (Umar Khalid) समेत अन्य आरोपियों को चार्जशीट (Charge Sheet)की सॉफ्ट कॉपी जेल में मुहैया कराई जाएगी. दिल्ली की एक अदालत (Court)ने आरोपी उमर खालिद द्वारा दिए गए आवेदन के बाद ये आदेश पारित किया है. (Umar UAPA JNU Delhi )

इसके साथ ही आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम, देवांगना कालिता, नताशा नरवाल समेत अन्य आरोपियों की न्यायिक हिरासत 19 जनवरी तक के लिए बढ़ा दी गई है.

पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून (CAA)को लेकर जारी आंदोलन के दौरान पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क गए थे. इसमें 50 से अधिक नागरिकों की मौत हुई थी. घटना में दिल्ली पुलिस ने 2200 से अधिक गिरफ्तारियां की थीं. जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कई छात्र और छात्रनेता भी आरोपी बनाए गए हैं.

प‍िछले साल द‍िल्‍ली में भड़के दंगे के बाद क्षेत्र की एक फाइल फोटो

इसी प्रकरण से जुड़े (राज्य बनाम ताहिर हुसैन) मामले की सुनवाई दिल्ली की एक अदालत कर रही है.

बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मंगलवार को सुनवाई के दौरान आरोपी उमर खालिद जेल से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अदालत के समक्ष हाजिर हुए. उन्होंने अदालत को बताया कि आरोप पत्र की अक्षमता निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार का उल्लंघन है. (Umar UAPA JNU Delhi )

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खालिद की ओर से पेश अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि उन्हें दिए गए 30 मिनट के कानूनी साक्षात्कार में, चार्जशीट की सामग्री पर चर्चा करना संभव नहीं था, क्योंकि उनकी कानूनी रणनीति को प्राप्त करने में उसी समय का उपयोग किया जाना था. ये जोड़ा गया था कि चार्जशीट तक पहुंच की अनुमति देने से प्रभावी निर्देश भी मिलेंगे.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, देवांगना कालिता को छोड़कर, जिनके लिए पेनड्राइव के रूप में ई-चार्जशीट पहले ही प्रदान की जा चुकी है, सभी आरोपी व्यक्तियों को चार्जशीट की सॉफ्ट कॉपी प्रदान की जाती है.

इससे पहले उमर खालिद ने कोर्ट ये बताया था कि उन्हें चार्जशीट प्राप्त नहीं हुई है, जबकि ये पहले ही मीडिया में लीक हो चुकी है.

पाकिस्तान की सुप्रीमकोर्ट का आदेश, दो सप्‍ताह के अंदर शुरू करें तोड़ी गई समाधि का न‍िर्माण

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द लीडर : पाकिस्तान की सुप्रीमकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि हिंदू संत श्री परमहंस जी महाराज की तोड़ी गई समाधि का दो हफ्ते के अंदर दोबारा निर्माण शुरू कराया जाए. इसके साथ ही खैबर पख्तूनवाह प्रांत की सरकार को कोर्ट में इसकी रिपोर्ट पेश करने को कहा है. अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस घटना से पूरी दुनिया में मुल्क की छवि खराब करने वाला संदेश गया है.

बीते दिनों कट्टरपंथियों की एक भीड़ ने खैबर पख्तूनवाह प्रांत के करक जिले में स्थित संत श्री परमंस जी की समाधि ढहा दी थी. इस घटना के वायरल वीडियो ने पूरी दुनियां का ध्यान खींचा था. इस पर भारत सरकार ने भी पाकिस्तान के समक्ष कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी.

समाध‍ि स्‍थल का फाइल फोटो,

बहरहाल, पाकिस्तान के सुप्रीमकोर्ट ने घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की. मंगलवार को चीफ जस्टिस गुलजार अहमद की अगुवाई में तीन सदस्यीय बेंच ने मामले को सुना. कोर्ट ने कहा कि समाधि का न सिर्फ पुननिर्माण कराया जाए, बल्कि इसके खर्च की वसूली तोड़ने वालों से की जाए.

इसे भी पढ़ें: पाकिस्तान में शिया हाजरा समुदाय के 11 खनिकों की अगवा कर हत्या

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के वक्त आइजी सनाउल्ला ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में करीब 92 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया जा चुका है. जबकि 109 लोगों की गिरफ्तार की गई है. उन्होंने एक मौली पर हिंसा भड़काने की जानकारी दी है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि पुलिस अधिकारियों का निलंबन काफी नहीं है. सरकार के आदेश का किसी भी हाल में पालन होना चाहिए.

अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने पर आलोचना

अल्पसंख्यकों को निशाना बनाये जाने को लेकर पाकिस्तान की आलोचना होती रही है. हाल ही में बलूचिस्तान प्रांत में 11 कोयला खनिकों को अगवा कर मौत के घाट उतारने का मामला सामने आ चुका है. मृतक शिया हाजरा समुदाय के थे. इसको लेकर पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं.

घोटाले में फंसा वो IPS अफसर जिसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने रखा 50 हजार का ईनाम

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लखनऊ : पुलिस का इकबाल बुलंद रखने की शपथ लेने वाले भारतीय पुलिस सेवा (IPS)के एक अधिकारी आज खुद ही पुलिस से छिपते फिर रहे हैं. ये अफसर हैं अरविंद सेन, जो फिलहाल डीआइजी के पद से निलंबित चल रहे हैं. करीब नौ करोड़ रुपये के एक घोटाले में आरोपी हैं. इनकी धरपकड़ के लिए ईनामी राशि 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी गई है.

उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग में 292 करोड़ रुपये के एक फर्जी टेंडर में सेन फंसे हैं. मध्यप्रदेश के इंदौरी निवासी कारोबारी मंजीत सिंह भाटिया ने 13 जून 2020 को लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक एफआइआर दर्ज कराई थी. इसमें आरोप लगाया था कि गेहूं, दाल, चीनी, आटा आदि की सप्लाई का टेंडर दिलाने के नाम उनसे 9.72 करोड़ रुपये ठगी की गई है.

जबिक हकीकत में विभाग की ओर ऐसा कोई टेंडर निकाला ही नहीं गया. शुरुआत में हजरतगंज पुलिस ने मामले की जांच की. बाद में ये प्रकरण एसटीएफ के हवाले कर दिया गया.

मंत्री के प्रधान सचिव समेत 9 को जेल

करीब छह महीने तक चली जांच के बाद पुलिस ने इस मामले में पशुपालन राज्य मंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव समेत 10 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. करीब 10 हजार पन्नों की इस चार्जशीट में सरकारी गाडियों तक के उपयोग की बात सामने आई थी. बहरहाल, अब तक एसटीएफ नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है.

कोर्ट में हाजिर न होने पर भगौड़ा करार दिये गए सेन

एंटी करप्शन कोर्ट में हाजिर न होने पर अरविंद सेन को भगोड़ा घोषित किया जा चुका है. कोर्ट में उपस्थित न होने की स्थिति में उनकी संपत्ति कुर्क किए जाने के आदेश भी जारी हो चुके हैं. इसी मामले में अब सेन के लखनऊ और अयोध्या स्थित आवास पर नोटिस चस्पा किए गए हैं.


मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट, ‘सेंट्रल विस्टा’ को सुप्रीमकोर्ट कोर्ट की मंजूरी


हाईप्रोफाइल रैकेट ने रची साजिश

इस घोटाले की साजिश अधिकारी-कर्मचारियों के इस हाई प्रोफाइल रैकेट ने रची. इसमें पशुधन राज्यमंत्री के प्रधान सचिव रहे रजनीश दीक्षित, धीरज कुमार, कथित पत्रकार एके राजीव आदि शामिल थे. बहरहाल, अब अरविंद सेन पर शिकंजा कसा जाने लगा है. संभावना जताई जा रही है कि वे जल्द ही आत्मसमर्पण कर देंगे या पुलिस गिरफ्तार कर लेगी.

2003 बैच के अफसर हैं सेन

उत्तर प्रदेश पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक अरविंद सेन 2003 बैच के आइपीएस अफसर हैं. मूलरूप से फैजाबाद, अब अयोध्या के निवासी सेन ने एलएलबी के साथ एमए की डिग्री ली है.

मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट, ‘सेंट्रल विस्टा’ को सुप्रीमकोर्ट कोर्ट की मंजूरी

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नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महात्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा‘ परियोजना को सुप्रीमकोर्ट से हरी झंडी मिल गई है. इसके साथ ही संसद की नई और भव्य इमारत बनने का रास्ता लगगभ साफ हो गया है. करीब 20 हजार करोड़ रुपये के लागत वाली इस परियोजना को केंद्र सरकार ने धन की बर्बाद नहीं, बल्कि बचत का माध्यम बताया है. सरकार ने अदालत में कहा कि इस प्रोजेक्ट के तैयार होने के बाद हर साल करीब 1,000 करोड़ की बचत होगी, जो अभी किराये के भवनों पर खर्च होता है. (Supreme Court Central Vista)

केंद्र की परियोजना को लेकर सुप्रीमकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं थीं. बीते दिनों कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को इसकी बुनियाद रखने की इजाजत दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परियोजना की नींव रख थी.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने परियोजना पर सुनवाई की. बेंच में जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे. कोर्ट ने पर्यावरण समिति की रिपोर्ट को नियमों के अनुरूप माना है.

सेंट्रल विस्ट प्रोजेक्ट का प्रस्तावित नक्शा. फोटो, साभार ट्वीटर

अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि हम सेंट्रल विस्ट परियोजना को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों को बरकरार रखते हैं. इसके साथ ही निर्माण कार्य शुरू करने के लिए हेरिटेज संरक्षण समिति की मंजूरी जरूरी है.

बेंच का ये फैसला दो-एक के बहुमत से है. कुछ बिंदुओं पर जस्टिस संजीव खन्ना का अलग मत रहा. वह लैंड यूज के बदलाव से सहमति नहीं हैं. उन्होंने कहा कि परियोजना की शुरुआत से पहले हेरिटेज संरक्षण समिति की मंजूरी लेनी आवश्यक थी.


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किराये के भवनों पर एक हजार करोड़ खर्च

सरकार ने कोर्ट में कहा कि परिजनों पर 20 हजार करोड़ का खर्च धन की बर्बाद नहीं हैं, बल्कि भविष्य में इससे बड़ी बचत होगी. अभी दस इमारतों, जिनमें मंत्रालयों के कार्यालय हैं, उनके सालाना किराये पर करीब एक हजार करोड़ रुपये का खर्च होता है. नई प्रोजेक्ट के बाद ये धन बचेगा. साथ ही मंत्रालयों के बीच समन्वय भी अच्छा होगा.

1927 में बनी था संसद भवन

दिल्ली के लुटियंस जोन में वर्तमान संसद भवन का निर्माण 1927 में हुआ था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि जब लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र बुलाया जाता है. तब सदस्यों के बैठने की जगह और संसाधन दोनों कम पड़ जाते हैं. एक तरह से ये सदस्यों की गरिमा का भी मामला है.