मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट, ‘सेंट्रल विस्टा’ को सुप्रीमकोर्ट कोर्ट की मंजूरी

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Supreme Court Stayed High Court
सुप्रीमकोर्ट, फोटो साभार ट़वीटर

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महात्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा‘ परियोजना को सुप्रीमकोर्ट से हरी झंडी मिल गई है. इसके साथ ही संसद की नई और भव्य इमारत बनने का रास्ता लगगभ साफ हो गया है. करीब 20 हजार करोड़ रुपये के लागत वाली इस परियोजना को केंद्र सरकार ने धन की बर्बाद नहीं, बल्कि बचत का माध्यम बताया है. सरकार ने अदालत में कहा कि इस प्रोजेक्ट के तैयार होने के बाद हर साल करीब 1,000 करोड़ की बचत होगी, जो अभी किराये के भवनों पर खर्च होता है. (Supreme Court Central Vista)

केंद्र की परियोजना को लेकर सुप्रीमकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं थीं. बीते दिनों कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को इसकी बुनियाद रखने की इजाजत दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परियोजना की नींव रख थी.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने परियोजना पर सुनवाई की. बेंच में जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे. कोर्ट ने पर्यावरण समिति की रिपोर्ट को नियमों के अनुरूप माना है.

सेंट्रल विस्ट प्रोजेक्ट का प्रस्तावित नक्शा. फोटो, साभार ट्वीटर

अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि हम सेंट्रल विस्ट परियोजना को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों को बरकरार रखते हैं. इसके साथ ही निर्माण कार्य शुरू करने के लिए हेरिटेज संरक्षण समिति की मंजूरी जरूरी है.

बेंच का ये फैसला दो-एक के बहुमत से है. कुछ बिंदुओं पर जस्टिस संजीव खन्ना का अलग मत रहा. वह लैंड यूज के बदलाव से सहमति नहीं हैं. उन्होंने कहा कि परियोजना की शुरुआत से पहले हेरिटेज संरक्षण समिति की मंजूरी लेनी आवश्यक थी.


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किराये के भवनों पर एक हजार करोड़ खर्च

सरकार ने कोर्ट में कहा कि परिजनों पर 20 हजार करोड़ का खर्च धन की बर्बाद नहीं हैं, बल्कि भविष्य में इससे बड़ी बचत होगी. अभी दस इमारतों, जिनमें मंत्रालयों के कार्यालय हैं, उनके सालाना किराये पर करीब एक हजार करोड़ रुपये का खर्च होता है. नई प्रोजेक्ट के बाद ये धन बचेगा. साथ ही मंत्रालयों के बीच समन्वय भी अच्छा होगा.

1927 में बनी था संसद भवन

दिल्ली के लुटियंस जोन में वर्तमान संसद भवन का निर्माण 1927 में हुआ था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि जब लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र बुलाया जाता है. तब सदस्यों के बैठने की जगह और संसाधन दोनों कम पड़ जाते हैं. एक तरह से ये सदस्यों की गरिमा का भी मामला है.

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