बरेली की अदालत में एक झूठ की सज़ा 4 साल, 6 माह, 8 दिन, नज़ीर क़ायम

0
16

द लीडर हिंदी: यूपी के ज़िला बरेली में कोर्ट ने एक नज़ीर क़ायम करने और सचेत हो जाने वाला फ़ैसला सुनाया है. शहर में रहने वाली उस युवती को सज़ा हुई है, जिसकी मां ने 2 सितंबर 2019 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इल्ज़ाम लगया था कि उनकी छोटी बेटी को साथ में काम करने वाला अजय उर्फ राघव बहला-फुसलाकर ले गया है. तब जबकि वो घर में अकेली थी. पुलिस ने मुक़दमा दर्ज करने के बाद युवती को ढूंढ लिया.

अजय को जेल भेज दिया गया था. उस वक़्त अपने बयानों में युवती ने बताया था कि अजय बहाने से बेहोश करके उसे दिल्ली ले गया. वहां वो और उसके दोस्त रात में आकर दरिंदगी करते थे. किसी तरह बचकर भाग निकली. पुलिस के बाद अदालत में भी युवती ने पहले यही बयान दिए लेकिन बाद में बयान से मुकर गई, कह दिया कि आरोपी अजय ने उसके साथ कोई छेड़ख़ानी या दुष्कर्म नहीं किया. तब अदालत ने अजय को दोषमुक्त कर दिया. वो 4 साल, 6 माह, 8 दिन बाद जेल से रिहा हो सका. दौरान-ए-मुक़दमा उसे ज़मानत नहीं मिल सकी थी. अदालत में बयान से मुकरने पर युवती के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया गया.

एडीजे ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने युवती को उतनी ही सज़ा सुनाई है, जितने दिन अजय उर्फ राघव जेल में रहा था. यानी 1 हज़ार 653 दिन. साथ में युवती को 5 लाख 88 हज़ार 822 रुपये 47 पैसे भी चुकाने होंगे. वह इसलिए कि जितने दिन अजय जेल में रहा, अदालत ने माना कि अगर मज़दूरी भी करता तो उतने दिन में इतनी रक़म कमा लेता. अर्थदंड का यह पैसा युवती से लेकर अजय को दिया जाएगा. अगर युवती यह पैसा नहीं देती तो छह महीने ज़्यादा वक़्त जेल में गुज़ारना पड़ेगा. इस बेहद अहम फ़ैसले की सबसे ख़ास बात अदालत की टिप्पणी है.

युवती के बयान से मुकरने पर अदालत ने कहा कि यह संपूर्ण समाज के लिए अत्यंत गंभीर स्थिति है. अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुलिस और न्यायालय को माध्यम बनाना घोर आपत्तिजनक है. अनुचित लाभ लेने के लिए महिलाओं को पुरुषों के हितों पर आघात करने की छूट नहीं दी जा सकती. अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की महिलाओं के कृत्य से वास्तव में पीड़ित महिलाओं को नुक़सान उठाना पड़ता है. अदालत का यह फ़ैसला किसी न किसी वजह से बयान बदल लेने वाली महिलाओं को सचेत करने और सच के बजाय झूठे बयान देने से पहले यक़ीनन सौ बार सोचने पर मजबूर करेगा.