सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संसद से किया आग्रह, स्वर्ग में बने रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं, बदलाव की जरूरत

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द लीडर हिंदी: अब महिलाएं पति और ससुराल पर झूठे मुकदमें नहीं कर सकेंगी..क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संसद से आग्रह किया है कि नई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में पत्नी को प्रताडि़त करने संबंधी आइपीसी की धारा 498ए की जगह लेने वाले प्रावधानों में आवश्यक बदलाव किए जाने चाहिए.दरअसल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एक पत्नी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दायर क्रूरता के मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.बता दें मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून के मिसयूज पर चिंता जताई है.

इसी के साथ कहा है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित नए कानून में जरूरी बदलाव करना चाहिए.भारतीय न्याय संहिता एक जुलाई से लागू होने जा रही है, जिसमें दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान धारा 85 और 86 में है. जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 एक जुलाई से प्रभाव से लागू होने वाली है. ये धाराएं IPC की धारा 498A को दोबारा लिखने की तरह है. हम कानून बनाने वालों से अनुरोध करते हैं कि इस प्रावधान के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर विचार करना चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके.

सुप्रीम कोर्ट का आग्रह
बताते चले कोर्ट ने कहा कि बीएनएस की धारा 85 और 86 ने आइपीसी की धारा 498ए को शब्दशः शामिल कर लिया गया है. संसद से आग्रह है कि व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए और पत्नी के झूठे आरोपों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के 2010 के एक निर्णय के संदर्भ में नए कानून को लागू करने से पहले ही इस धारा में जरूरी बदलाव करने चाहिए. विचारणीय मामले में कोर्ट ने पत्नी की एफआईआर को पति द्वारा घरेलू हिंसा व क्रूरता की शिकायत का बदला लेने जैसी बताते हुए रद्द कर दिया.

कोर्ट ने कहा- स्वर्ग में बने रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं
कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में आरोपों की अति-तकनीकी तरीके से जांच करना विवाह संस्था के लिए प्रतिकूल है. कई बार, पत्नी के करीबी रिश्तेदार और माता-पिता छोटी-मोटी बातों को राई का पहाड़ बना देते हैं और नफरत के कारण विवाह को खत्म कर देते हैं. वह पुलिस को इस समस्या का इलाज मानते हैं और पुलिस में मामला दर्ज होने के बाद सुलह की संभावना कम हो जाती है.