
कुवैत सरकार ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस फैसले के तहत 37,000 से अधिक लोगों की नागरिकता अचानक रद्द कर दी गई है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 26,000 से ज्यादा महिलाएं हैं, जिनमें अधिकांश ने विवाह के आधार पर कुवैती नागरिकता हासिल की थी। यह ऐतिहासिक फैसला कुवैत के शासक अमीर शेख मिशाल अल-अहमद अल-सबा की पहल पर लिया गया है। इस फैसले के पीछे तर्क दिया गया है कि कुवैत की नागरिकता अब केवल उन लोगों को दी जाएगी, जिनकी जड़ें जन्मजात कुवैती परिवारों से जुड़ी हैं।
लोगों पर अचानक आया संकट
नागरिकता रद्द होने की खबर कई लोगों को तब लगी, जब उनका रोजमर्रा का जीवन अचानक ठहर गया।
जॉर्डन से आई एक महिला, लामा (बदला हुआ नाम), को इसकी जानकारी तब हुई जब उनका क्रेडिट कार्ड अस्वीकृत हो गया। जांच के दौरान उन्हें पता चला कि उनका बैंक खाता फ्रीज कर दिया गया है और उनकी नागरिकता समाप्त कर दी गई है।
लामा ने कहा:
“मैंने बीस सालों तक एक जिम्मेदार नागरिक की तरह जीवन बिताया, लेकिन एक दिन अचानक सब कुछ खत्म हो गया। अब मुझे बताया जा रहा है कि मैं कुवैत की नागरिक नहीं हूं।”
फैसले के पीछे की सोच
इस कदम का मुख्य उद्देश्य कुवैत की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करना बताया जा रहा है।
सरकार का मानना है कि नागरिकता केवल उन्हीं को दी जानी चाहिए, जो रक्त संबंध के आधार पर कुवैती समाज से जुड़े हैं।
इसके साथ ही यह फैसला मतदाताओं की संख्या को नियंत्रित करने, राजनीतिक संतुलन बनाए रखने, और समाज के बाहरी प्रभाव को कम करने के इरादे से भी जोड़ा जा रहा है।
इतिहास में ऐसा पहले भी हुआ है
कुवैत में नागरिकता रद्द करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार की संख्या अभूतपूर्व है।
कुवैत यूनिवर्सिटी के इतिहासकार दल अल-सैफ के मुताबिक:
“कुवैत में नागरिकता रद्द करने की घटनाएं पहले भी हुई हैं, लेकिन इस बार का फैसला अपने आप में ऐतिहासिक है।”
कुवैत में पहले से ही लगभग 1 लाख “बिदून” (राज्यविहीन लोग) हैं, जो 1961 में कुवैत की आजादी के समय से ही नागरिकता से वंचित हैं। अब इस नए फैसले से विवाह के जरिए नागरिकता पाने वाले लोगों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
नागरिकता रद्द होने के बाद प्रभावित लोग:
किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं ले सकेंगे।
उनके बैंक खाते फ्रीज, आईडी कार्ड रद्द।
कानूनी स्थिति अस्पष्ट हो गई है, जिससे उनका भविष्य अनिश्चित हो गया है।
यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की नजर में भी आ गया है, जो इस पर अपनी चिंता जता रहे हैं। कुवैत के इस बड़े फैसले ने वहां के सामाजिक और राजनीतिक माहौल में भारी उथल-पुथल मचा दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है और यह फैसला कुवैत की नीति और समाज को किस दिशा में लेकर जाता है।