
आजकल इंटरनेट हर सवाल का जवाब देने वाला एक तेज़ माध्यम बन चुका है। लेकिन जब बात हो सेहत की, खासकर किशोरों की, तो अधूरी या गलत जानकारी गंभीर नुकसान पहुँचा सकती है। गूगल पर इलाज ढूंढना अब एक आम चलन बन चुका है, लेकिन यह आदत किशोरों की शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रही है।
समस्या की जड़ क्या है?
किशोर उम्र में जिज्ञासा, संकोच और गोपनीयता की भावना उन्हें डॉक्टर या माता-पिता से बात करने की जगह गूगल का सहारा लेने के लिए प्रेरित करती है।
चाहे वह यौन स्वास्थ्य से जुड़ा कोई सवाल हो, त्वचा की समस्या, या शारीरिक विकास से जुड़ी चिंता – किशोर सीधे इंटरनेट पर समाधान ढूंढते हैं।
वे कुछ वेबसाइट्स पर भरोसा करके बिना डॉक्टर की सलाह के दवाएं ले लेते हैं, जो उनके स्वास्थ्य को और बिगाड़ देती है।
जमीनी हकीकत: अस्पतालों में बढ़ रहे मामले
एक जिले के किशोर परामर्श केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि हर माह 40 से 45 किशोर ऐसे मामलों में पहुंच रहे हैं, जहां उन्होंने गूगल के भरोसे इलाज किया और फिर हालत बिगड़ गई।
काउंसलर के अनुसार, सबसे अधिक मामले यौन स्वास्थ्य, त्वचा रोग और शारीरिक विकास से संबंधित होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर
लगातार इंटरनेट का सहारा लेना, समस्या को छिपाना, और अकेलापन किशोरों को मानसिक दबाव में डाल देता है।
भोजन में अनियमितता, पढ़ाई में मन न लगना, और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण सामने आते हैं। समय रहते परामर्श न मिले तो यह अवसाद जैसी गंभीर स्थिति में बदल सकता है।
सच्चे उदाहरण से सीख
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एक 17 वर्षीय किशोर ने यौन समस्या के लिए गूगल से दवा खरीदी। जब तक परिजन को पता चला, स्थिति बिगड़ चुकी थी। काउंसलिंग और इलाज के बाद अब सुधार है।
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एक 14 साल के किशोर की आंखें कमजोर हो गईं। कारण? मोबाइल की लत और स्क्रीन टाइम। समय रहते परामर्श मिला तो इलाज संभव हुआ।
समाधान क्या है?
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गूगल से केवल जानकारी लें, इलाज के लिए डॉक्टर से मिलें।
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कोई परेशानी हो तो माता-पिता, शिक्षक या काउंसलर से बात करें।
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माता-पिता को चाहिए कि बच्चों में संवाद बनाए रखें, और अगर कोई बदलाव दिखे तो अनदेखी न करें।
गूगल हमारी मदद जरूर कर सकता है, लेकिन वह डॉक्टर नहीं है। किशोर अवस्था में सही मार्गदर्शन, संवाद और विशेषज्ञ से सलाह ही उन्हें स्वस्थ बनाए रख सकती है।
“जानकारी जरूरी है, लेकिन इलाज विशेषज्ञ से ही कराएं।”