Pandora Papers: ‘चोरों की जन्नत’ Tax Haven क्या हैं?

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       मुकेश असीम-

पेंडोरा पेपर्स ने दुनियाभर के अमीरों की चोरी की कलई खोल दी है, कि किस तरह गरीबी में डूबी दुनिया को गिरोह बनाकर लूटा गया है। नामचीन शख्सियतों का नाम उजागर होने के बाद हंगामा मचा हुआ है। यह सब हुआ टैक्स हैवेन के जरिए। क्या है ये टैक्स हैवेन? इसको समझिए। (Pandora Papers Tax Haven)

स्विस बैंक, मॉरीशस, सिंगापुर, पनामा, आइल ऑफ मैन, वर्जिन आइलैंड, वगैरह टैक्स पनाहगाहों की चर्चा हमने पिछले सालों में खूब सुनी है। बहुतेरे लोग इन्हें कोई गैरकानूनी चीज समझते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। ये भी विश्व पूंजीवादी व्यवस्था का एक अहम हिस्सा हैं और उसके तहत बिल्कुल कानूनी हैं।

इनका जन्म दो तरह से हुआ – कुछ थोड़े, जैसे स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, मोनाको आदि 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के डर से वजूद में आए। फ्रांस व शेष यूरोप के अभिजात वर्ग यानी अमीरों द्वारा अपनी संपत्ति को छिपाकर रखने के लिये ये पैदा हुए। इसके लिए गुप्त खाते चालू हुए, जिनका इस्तेमाल बाद में नाजियों ने यूरोप भर से की गई लूट को छिपाने के लिए भी किया। (Pandora Papers Tax Haven)

इनमें से ज्यादातर टैक्स पनाहगाह ब्रिटिश उपनिवेशवाद की देन हैं। वर्ष 1929 के एक ब्रिटिश कानून के अंतर्गत इनकी स्थापना हुई। लिहाजा, इनमें से ज्यादातर पहले, और कुछ अभी भी, ब्रिटिश शासन के तहत छोटे द्वीप थे या हैं।

इनका उपयोग पहले ब्रिटिश और बाद में दूसरे साम्राज्यवादी देशों की कंपनियों ने किया। पहले, एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के देशों की लूट के लिए और फिर खुद अपने देशों में भी टैक्स व अन्य कानूनों से चोरी के लिए।

20वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रत्यक्ष उपनिवेशवाद समाप्त होने के बाद जब नव स्वाधीन देशों और खुद साम्राज्यवादी देशों में भी जनवादी आंदोलनों के दबाव में बने नियमों का दबाव साम्राज्यवादी पूंजी पर पड़ा तो उन्होंने इन पनाहगाहों को अपना अड्डा बनाया, जहां उन्हें न टैक्स देना था, न अपने कारनामों की कोई जानकारी सार्वजनिक करनी जरूरी थी। (Pandora Papers Tax Haven)

‘चोरों की जन्नतें’ कैसे और किस काम आती हैं?

उदाहरण एक – जांबिया से तांबा खनन करने वाली कंपनी पनामा या मॉरीशस में रजिस्टर अपनी ही कंपनी को 2000 डॉलर प्रति टन पर तांबा बेचती है और यह कंपनी तांबे के असली खरीदार को 6000 डॉलर प्रति टन पर। तांबा पनामा या मॉरीशस नहीं जाता (वहां तांबे का प्रयोग करने वाले कोई उद्योग ही नहीं हैं) लेकिन 4000 डॉलर प्रति टन वहां जाता है, जबकि जांबिया पहुंचता है सिर्फ 2000 डॉलर।

यह जांबिया के संसाधनों की सीधी लूट है और इस पर कंपनी के मूल देश में भी कोई टैक्स नहीं। इस चोरी किए पैसे के इस्तेमाल पर कोई नियम-कायदा भी लागू नहीं होता। (Pandora Papers Tax Haven)

उदाहरण दो- पिछले कुछ सालों में बिजली बनाने वाली भारतीय कंपनियों ने मॉरीशस में रजिस्टर अपनी ही कंपनियों से कोयला आयात किया। इन कंपनियों ने कोयले को ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से बाजार भाव पर खरीद दुगुने दामों पर भारत में निर्यात दिखाया।

इकॉनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ सालों में करीब 60 हजार करोड़ रुपया चोरी का धन बैंकिंग चैनल से ही मॉरीशस पहुंच गया। ऊपर से ईंधन की लागत ज्यादा दिखाकर इन कंपनियों ने बिजली के रेट भी बढ़वा लिए – जनता से और भी लूट। (Pandora Papers Tax Haven)

फिर यही चुराई पूंजी मॉरीशस से विदेशी निवेश के रूप में भारत आई और उस पर यहां होने वाला मुनाफे पर भी टैक्स रियायत मिली। इसमें अडानी, अम्बानी, टाटा, मित्तल, अग्रवाल आदि की कम्पनियां शामिल थीं।

हालत यह कि 2004 की मिशिगन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी कंपनियों के कुल विदेशी निवेश का 8.4 प्रतिशत उन देशों में था, जहां दुनिया की 1 फीसद जनसंख्या ही रहती है और जहां उद्योग, कृषि, खनन, जंगल कुछ नहीं होता। तब से यह और बढ़ा ही है।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)


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