पाकिस्तान, अरबी नहीं बल्कि हिंदुस्तानी संस्कृति का हिस्सा, पाक मीडिया में छपे लेख पर जस्टिस काटजू का जवाब, पढ़िए

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Pakistan Arabic Indian Culture Justice Katju Pakistani Media

जस्टिस मार्केंडय काटजू


पाकिस्तान के ”नया दौर” में सलमान अली का एक आलेख (Article)छपा है. जिसमें उन्होंने एक सवाल उठाया है. वो ये कि क्या पाकिस्तान अरब संस्कृति (Culture)का हिस्सा है, या फिर भारतीय तहजीब का. इस पर मैं कुछ तथ्य रखता हैं. उनसे साफ होता है कि पाकिस्तान, भारतीय संस्कृति का अंग है. और किसी भी कीमत पर अरबीकरण इसे खत्म नहीं कर सकता. (Pakistan Arabic Indian Culture Justice Katju Pakistani Media)

भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से में हम दोनों एक ही भाषा बोलते हैं. हिंदुस्तानी-हिंदी और पाकिस्तानी-उर्दू में बात करते हैं. ये दोनों भाषाएं काफी हद तक एक जैसी हैंं. ख्याल रहे कि हरेक संस्कृति मुख्य रूप से अपनी भाषाओं के इर्द-गिर्द ही घूमती है.

अरबी-फारसी विदेशी भाषाएं हैं, जबकि उर्दू देसी है. थोड़ा गहराई से समझिए. अंग्रेजी में जो वर्ब होती है-उसे हिंदू में क्रिया और उर्दू में फेएल कहा जाता है. उर्दू फारसीकृत हिंदुस्तानी है और हिंदी संस्कृतनिष्ठ हिंदुस्तानी. हालांकि उर्दू में कर्ता और विशेषता ये दोनों अक्सर पर्शियन या अरबिक होते हैं. ये क्रिया ही है जो तय करती है कि वाक्य किस भाषा का है, न कि संज्ञा और विशेषण. इस पर मेरा एक विस्तृत लेख भी है.

दोनों मुल्कों के भाषण और मुशायरों को देख-सुन लीजिए. इनमें दोहा और शेर का खूब इस्तेमाल होता है. उर्दू शायरी में क्रियाएं आमतौर पर हिंदुस्तानी में होती हैं. यानी आसान हिंदी और उर्दू, जिसे आम लोग समझ सकें. जबकि संज्ञा और विशेषण अक्सर फारसी और अरबिक भाषा में होते हैं.


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इसे तरह समझिए. उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब, जोकि दिल्ली में रहते थे न कि अरब में. उनका एक शेर है. ”देखो मुझे जो दीदा-ए-इबरत निगाह हो, मेरी सुनो जो गोश-ए-नसीहत नियोश है”. इसमें ‘देखो, और सुनो’ ये दोनों क्रियाएं हिंदुस्तानी हैं.

ठीक इसी तरह किसी भी उर्दू शायर का शेर देख लीजिए. उसमें क्रिया हिंदुस्तानी ही मिलेगी. अगर क्रिया भी पर्शियन होती, तो वो शेर-पर्शियन दोहा होता, न कि उर्दू का शेर. अगर क्रिया अरबिक होती तो ये अरबी दोहा बन जाता. तो फिर किस तरह पाकिस्तानी संस्कृति, अरबी संस्कृति का अंग हो सकती है?

यह सच है कि कुरान अरबी में है. नमाज और सलात भी अरबी में है. लेकिन यूरोप में लैटिन भी चर्चों की भाषा रही है. और सदियों तक चर्चों ने लैटिन की सेवा की. यहां तक कि फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, स्पैन. लेकिन इससे क्या इन देशों को इटली का हिस्सा माना जा सकता है.


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यकीनन हिंदू और मुस्लिम दो अलग धर्म हैं. लेकिन सदियों से दोनों के साथ रहते आए हैं. हर सुख-दुख में दोनों एक-दूजे के साथ खड़े होते. त्योहारों की साझा खुशियां मनाते हैं. ये तो अंग्रेजों की राज करने की नीति के तहत समाज में फूट डाली गई थी, जिस नफरत का अंश हमें दिखाई पड़ता है. एक भारतीय, चाहें वो हिंदू हो या मुसलमान-अगर पाकिस्तान जाता है तो उसे बेशुमार प्रेम मिलता है. ठीक वैसे ही पाकिस्तानी के भारत आगमन पर यहां होता है.

सच तो ये है कि अकबर के समय से ही भारत और पाकिस्तान एक देश थे.उज्बैक शासकों की धमकी के कारण 1585 में मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा से लाहौर स्थानांतरित करनी पड़ी थी.

भारत और पाकिस्तानियों के बहुत से पकवान भी एक जैसे ही है. बिरयानी को ही ले लीजिए. पोशाक-सलवार, कमीज, साड़ी, सब मेल खाते हैं. मशहूर पाकिस्तानी सिंगर इकबाल बानों ने 1985 में लाहौर स्टेडियम में साड़ी पहनकर ही क्रांतिकारी गीत गाया था-हम देखेंगे. जनरल जियाउल हक के सैनिक शासन के खिलाफ ये उकना सबसे शक्तिशाली विरोध का तरीका था.


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भारतीय और पाकिस्तानियों के एक जैसे ही क्लासिकल संगीत हैं. मसलन, ख्याल, ठुमरी और कव्वाली आदि. मैंने अपनी यात्राओं के दौरान देखा है कि विदेशों में भारतीय और हिंदुस्तानी एकजुट रहते हैं. इस अंदाज में जैसे मानों दोनों देशों का बंटवारा ही न हुआ हो.

एक बार मैं अपनी पत्नी के साथ पेरिस गया. चैंप इलेेसी में टलहते हुए मुझे दो युवक गुब्बाारे बेचते दिखे. मैंने सोचा ये भारतीय होंगे. और उनसे हिंदी में बात करना शुरू किया. उन्होंने हिंदुस्तानी भाषा में ही जवाब दिया. एक लौहार से था और दूसरा फैसलाबाद से.

उन्होंने बताया कि वे गुब्बारे इसलिए बेच रहे हैं क्योंकि दूसरा वर्क परिमट मिलने अभी कुछ देरी है. इस तरह कुछ कमाई हो जा रही है. वे हमसे बात करके काफी खुश थे. जैसे कोई उनके देश का मिल गया हो. उन्होंने हमसें कोल्ड ड्रिंक पीने की दावत भी दी.


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एक दूसरे अवसर पर मैं अपनी पत्नी के साथ रोम में था. एक पाकिस्तानी मेरा हुलिया देखकर हिंदुस्तानी में बात करने लगा. बाद में वह काफी सहज हो गया और होटल के रास्ते तक हमारे साथ बना रहा. हालांकि उसे कहीं दूसरी जगह जाना था. इन कुछ उदहारणों से सवाल ये है कि क्या किसी अरबी व्यक्ति ने हमारे लिए यह सब किया होगा? मुझे संदेह है. तो फिर पाकिस्तान, अरबी संस्कृति या भारती संस्कृति से संबंधित है? ये समझा जा सकता है.

(जस्टिस मार्केंडय काटजू सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं.)

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