Thursday, October 17, 2024
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संसद में किसानों के मुद्​दे नहीं उठा सकते तो सदन चलाने का क्या मतलब : संजय सिंह

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नई दिल्ली : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों में बने अंसतोष और आंदोलन पर चर्चा के लिए विपक्ष ने सदन में नोटिस दिया. राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि, किसानों के विरोध-प्रदर्शन पर आज नहीं, बल्कि कल यानी बुधवार को चर्चा होगी. इसको लेकर 11:30 बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित रही.

कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि कानूनों को वापस लिया जाए. विपक्ष, किसानों की मांग के साथ खड़ा है. यही वजह है कि सदन में पहले दिन ही किसानों के मुद्​दे पर विपक्ष के तेवर दिखे.

राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि, ‘सदन में सबसे पहले तीनों काले कानून वापस लेने पर चर्चा होनी चाहिए. यहां अगर हम किसान के मुद्​दे नहीं उठा सकते हैं तो सदन चलाने का मतलब क्या है.’ राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित होने पर समाचार एजेंसी एएनआइ से संजय सिंह ने यह बात कही.

एक दिन पहले ही वित्तमंत्री ने 2020-2021 का बजट किया था. और मंगलवार को सदन में इस पर चर्चा होनी है.

इसे भी पढ़ें : किसान मोर्चा ने किया 6 फरवरी को देशव्यापी चक्काजाम का ऐलान

राजनेताओं को नहीं मालूम संकट का हल, उन्हें देश की हर समस्‍या के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाना है : बजट पर जस्टिस काटजू

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भारतीय वित्त मंत्री ने संसद में जो बजट पेश किया है, वह मेरे अनुसार निराशाजनक, दिशाहीन और अवास्तविक है. हालांकि यह दावा किया गया कि यह भारत को आत्मनिर्भर बना देगा. यह स्वास्थ सेवा, राजमार्गों और महानगरों के निर्माण (विशेषकर उन राज्यों में जहां जल्द ही चुनाव होंगे), और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश पर जोर देता है. लेकिन भारतीय लोगों के लिए भोजन और नौकरियों के बिना ये कदम क्या करेंगे?

वर्तमान में चल रहे किसानों के आंदोलन से हमारी अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्र में भयानक संकट का पता चलता है (3.5-4 लाख किसानों ने पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या की है क्योंकि वे कर्ज में थे), क्योंकि किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है.

विश्व के लगभग सभी देशों में कृषि पर सब्सिडी ( subsidy) दी जाती है, यहां तक कि सबसे उन्नत देश, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी. एक मोटर कार, एक टीवी सेट या अन्य औद्योगिक उत्पादों के बिना जीवित रहा जा सकता है. लेकिन भोजन, हवा और पानी की तरह, जीवन के लिए बिल्कुल आवश्यक है. अगर कारों, टीवी सेट आदि का उत्पादन नहीं किया जाता है तो भी लोग जीवित रह सकते हैं. लेकिन कोई भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता.


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

इसलिए कृषि अन्य उद्योगों से बहुत अलग है. कृषि करना आवश्यक है, और चूंकि आधुनिक कृषि को सब्सिडी के बिना नहीं किया जा सकता है. राज्य को निश्चित करना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक मिलता है, क्योंकि ज़ाहिर है कि घाटे में किसान खेती नहीं करेगा. इसलिए, MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) सभी किसानों को दिया जाना चाहिए (वर्तमान में वह केवल 6% को दिया जाता है )

MSP उन 3 कानूनों द्वारा नहीं दिया गया है, जिनके खिलाफ किसान वर्तमान में आंदोलन कर रहे हैं, न ही आज के बजट में ( स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के बावजूद, जिसने किसानों को उनकी लागत से 50% ऊपर देने की सिफारिश की ) है. I

हाल के महीनों में, भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी मंदी आई है, जिससे निर्माण और बिक्री दोनों में तेज गिरावट आई है. जैसे ऑटो सेक्टर, रियल एस्टेट सेक्टर में I बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने के कारण बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है. भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है (ग्लोबल हंगर इंडेक्स देखें) और हर दूसरी महिला एनीमिक है. कोविड ने मुसीबतों में इजाफा किया है.


महात्मा गांधी किसानों को देश की ताकत बनाना चाहते थे और हमनें उन्हें बोझ समझ ल‍िया


 

इसी समय, भोजन और ईंधन की कीमतें बढ़ गई हैं (बजट में डीजल की कीमत में 4% की बढ़ोतरी और पेट्रोल में 2.5% की बढ़ोतरी से बोझ और बढ़ जाएगा). भविष्य और भी निराशाजनक दिखता है. राजनीतिज्ञों को नहीं मालूम है कि इस संकट को हल करने का क्या तरीका है? वे केवल ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई नाटक का सहारा ले सकते हैं.

उदाहरण स्वरूप राम मंदिर का निर्माण, गौरक्षा, योग दिवस, स्वच्छ भारत अभियान, अनुच्छेद 370 को समाप्त करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम, और मुसलमानों को देश की सभी बीमारियों के लिए बलि का बकरा बनाना (जैसे कि नाज़ी जर्मनी ने यहूदियों के साथ किया ) था. I

सवाल उठता है कि तब, इस आर्थिक संकट से निकलने का असली रास्ता क्या है?

जिस तरह से न केवल किसानों को एमएसपी दिया जाना चाहिए. देश का तेजी से औद्योगिकीकरण भी होना चाहिए, क्योंकि यही बेरोजगारी को खत्म करने और लोगों के कल्याण के लिए आवश्यक धन का सृजन करने के लिए एकमात्र उपाय है. इससे करोड़ों नौकरियां भी पैदा होंगी. I

तेजी से औद्योगिकीकरण के लिए एक बुनियादी बाधा है. वो ये कि जबकि उत्पादन बढ़ाने में कोई कठिनाई नहीं है, उत्पादों को बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि हमारे लोग गरीब हैं और इसलिए उनके पास क्रय शक्ति बहुत कम है.

भारत आज 1947 का भारत नहीं है. उस समय हमारे पास बहुत कम उद्योग और बहुत कम इंजीनियर थे. क्योंकि हमारे ब्रिटिश शासकों की नीति मोटे तौर पर हमें सामंती और पिछड़ा रखना था. आजादी के बाद, एक सीमित औद्योगीकरण हुआ. आज हमारे पास हजारों उज्ज्वल इंजीनियर, तकनीशियन और वैज्ञानिक हैं. हमारे पास अपार प्राकृतिक संसाधन हैं. इनसे हम आसानी से तेजी से औद्योगिक उत्पादन बढ़ा सकते हैं. समस्या यह नहीं है कि उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए बल्कि भारतीय जनता की क्रय शक्ति कैसे बढ़ाई जाए.


केंद्रीय बजट 2021: भौतिक, वित्तीय पूंजी और बुनियादी ढांचे के सुधारों की मुख्य झलकियां


 

भारत में हमारे पास बहुत सारे अर्थशास्त्री हैं, जिनमें से कई हार्वर्ड, येल या लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी हैं. लेकिन किसी के पास कोई धारणा नहीं है कि यह कैसे किया जा सकता है. इसलिए मैं अपने विचार प्रस्तुत करना चाहूंगा.

1914 में अमरीकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने अपने कर्मचारियों की मजदूरी 2.25 डाॅलर से 5 डॉलर प्रति दिन बढ़ा दी. वह निश्चित रूप से अपने कार्यबल को स्थिर करने के लिए किया गया था. लेकिन इसने अमेरिकी जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाया. क्योंकि अन्य अमेरिकी निर्माताओं को भी ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह संभावना नहीं है कि भारतीय उद्योगपति इसी तरह करेंगे.

सोवियत संघ में 1928 में प्रथम पंचवर्षीय योजना को अपनाने के बाद औद्योगिकीकरण तेज़ी से शुरू हुआ. सोवियत नेताओं द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली मोटे तौर पर यह थी: सरकार ने सभी वस्तुओं की कीमतें तय कीं और हर दो साल में या तो उन्हें 5-10 प्रतिशत तक कम किया गया, और कभी-कभी मजदूरी में 5-10 प्रतिशत की वृद्धि भी की गई. इसके कारण अब मज़दूर अधिक सामान खरीद सकता था, क्योंकि कीमतें नियमित रूप से कम हो गई थीं. इस तरह, रूसी जनता की क्रय शक्ति राज्य की कार्रवाई से बढ़ गई थी, और इस प्रकार घरेलू बाजार में लगातार विस्तार हुआ.


सोमालिया में आतंकी हमले में पूर्व सैन्य जनरल समेत नौ की मौत, 10 लोग कार बम और गोलियों से घायल


 

इसके साथ ही, उत्पादन में भी वृद्धि हुई और बढ़े हुए उत्पादन को बेचा जा सकता था. क्योंकि लोगों के पास क्रय शक्ति अधिक थी. यह प्रक्रिया 1928 के बाद तेजी से आगे बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप सोवियत अर्थव्यवस्था का तेजी से विस्तार हुआ और बेरोजगारी को मिटाते हुए लाखों नौकरियों का निर्माण हुआ.

यह 1929 की वॉल स्ट्रीट मंदी के समय हुआ, जिसके बाद अमेरिका और अधिकांश यूरोप में ग्रेट डिप्रेशन ( Great Depressiin) था. जिसके कारण हजारों कारखाने बंद, और करोड़ों मज़दूर बेरोज़गार हो गए.

मैं, यह नहीं कह रहा हूं कि हमें भारत में सोवियत मॉडल को अपनाना चाहिए. चाहें, हम इसे निजी उद्यम या राज्य कार्रवाई द्वारा करें, हमें भारतीय जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाना होगा.

(जस्टिस मार्केंडय काटजू प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के जज रहे हैं. बजट पर ये लेख उनकी फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है. साभार, जस्टिस काटजू.)

किसान आंदोलन : सरकार ने दो फरवरी की रात 11 बजे तक के लिए बंद की इंटरनेट सेवा

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द लीडर : किसान आंदोलन के मद्​देनजर गृह मंत्रालय ने सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर इंटरनेट सेवा बंदी की मियाद बढ़ा दी है. ताजा आदेश के मुताबिक अब 2 फरवरी रात 11 बजे तक के लिए इन बॉर्डर क्षेत्रों का इंटरनेट बंद कर दिया गया है. बीती 30 जनवरी से यहां इंटरनेट बंद है. संयुक्त किसान मोर्चा इंटरनेट बंद किए जाने के सरकार के कदम की आलोचना कर चुका है.

इन तीनों बॉर्डरों पर किसानों का आंदोलन चल रहा है, जहां हजारों की संख्या में किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे हैं. वहीं, दिल्ली में आंदोलनकारी किसान प्रवेश न कर पाएं. इसके लिए बॉर्डर पर सुरक्षा-व्यवस्था के इंतजाम और कड़े किए जा रहे हैं. इसकी कुछ तस्वीरें भी सामने आई है. जिनमें सड़कें खोदकर कीले गाड़े जा रहे हैं.


पुलिस ने ‘गायब’ कर दिए तमाम आंदोलनकारी: किसान एकता मोर्चा


 

पिछले 66 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन चल रहा है. सोमवार को गाजीपुर बॉर्डर पर सुरक्षा बलों की संख्या में बढ़ोत्तरी की गई है. इसलिए क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आंदोलन में शामिल होने के लिए कुछ और किसानों के पहुंचने की संभावना है. सुरक्षा-व्यवस्था के लिहाज से चौकसी बरती गई है.

वहीं, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में लगातार पंचायतें हो रही हैं और किसानों के समर्थन में आवजें बुलंद की जा रहे हैं. किसान नेेताओं का कहना है कि आंदोलन की बढ़ती ताकत को दबाने का प्रयास किया जा रहा है.

बेनजीर भुट्टो की बेटी बख्‍तावर का यूएई के बिजनेसमैन से न‍िकाह, ब‍िलावल ने तस्‍वीरें साझा कर ल‍िखा, मशाअल्‍लाह

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द लीडर : पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की बेटी बख्तावर भुट्टो संयुक्त अरब अमीरात (UAE)के महमूद चौधरी की हमसफर बन गई हैं. बख्तावर के भाई और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ने ट्वटीर पर शादी की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, कई सालों बाद हमारे घर में खुशियां आई हैं. मेरी बहन की शादी हो गई. ऐसा लगता है कि मेरी मां इन लम्हों को देखकर खुश हो रही होंगी. दोनों को नई जिंदगी की मुबारकबाद.

कौन हैं बख्तावर के शौहर

महमूद चौधरी यूएई के बिजनेसमैन मुहम्मद यूनुस और बेगम सुरैया चौधरी के बेटे हैं. मूल रूप से लाहौर के रहने वाले यूनुस साल 1973 में यूएई चले गए थे. उन्होंने कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्ट का बिजनैस खड़ा किया. आज वे बड़े कारोबारियों में शुमार हैं. पिछले साल 27 नवंबर को बख्तावर और महमूद की सगाई हुई थी.

25 जनवरी 1990 को जन्मीं बख्तावर ने यूनिवर्सिटी ऑफ एडनबर्ग से उच्च शिक्षा हासिल की है. जबकि महमूद ने दरहम यूनविर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है. पाकिस्तान के बिलाबल हाउस में दोनों की शादी की रस्में हुईं. इसमें करीब 300 मेहमान शामिल हुए थे. शादी के मद्​देनजर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम किए गए थे. यहां तक आसपास के मकानों पर सुरक्षा बल तैनात किया गया था.

2007 में हुई थी बेनजीर की हत्या

पाकिस्तान की दो बार प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो की 27 दिसंबर 2007 में रावलपिंडी में हत्या कर दी गई थी. भुट्टो वर्ष 1988 से 1990 और 1993 से 1996 तक प्रधानमंत्री रही हैं.

किसान आंदोलन कवर रहे पत्रकार मनदीप की रिहाई के लिए दिल्ली के आइटीओ पर पत्रकारों का प्रदर्शन

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द लीडर : किसान आंदोलन की कवरेज को लेकर पत्रकार, पुलिस के निशाने पर आते जा रहे हैं. दिल्ली पुलिस (Delhi Police)ने स्वतंत्र पत्रकार मनदीप (Mandeep Poniya)पूनिया को सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया है. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा-186, 323 और 353 के तहत कार्रवाई की है. उनकी रिहाई की मांग को लेकर पत्रकार दिल्ली के आइटीओ पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मनदीप को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद तिहाड़ भेज दिया गया है.

मनदीप के साथ एक और पत्रकार धर्मेंद्र को भी हिरासत में लिया गया था. हालांकि धर्मेंद्र को रविवार सुबह करीब 5:30 बजे छोड़ दिया गया. पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों को शनिवार की रात सिंघु बॉॅर्डर से उस वक्त पकड़ा था, जब ये आंदोलन की कवरेज कर रहे थे. इसमें मनदीप का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वो पुलिसकर्मियों से घिरे नजर आ रहे थे.

 


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

पुलिस की इस कार्रवाई से नाराज पत्रकारों ने मनदीप के समर्थन में सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू कर दी. किसान मोर्चा ने भी मनदीप की रिहाई की मांग उठाई. अब मनदीप की फोटो सामने आई है, जिसमें वो पुलिस के बीच बेफिक्र नजर आ रहे हैं.

पुलिस की गाड़ी से सामने आई मनदीप की मुस्कुराती तस्वीर.
एसएचओ से अभद्रता का आरोप

मनदीप पर एसएचओ से अभद्रता का आरोप लगा है. दरअसल, गिरफ्तारी से पहले उन्होंने एक फेसबुक लाइव किया था, जिसमें शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंची उपद्रवी भीड़ में शामिल नेताओं के बारे में रिपोर्ट की थी. ये भीड़ जबरन आंदोलन हटवाने पहुंची थी.

राजदीप, मृणाल पर मुकदमा

इससे पहले 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड की कवरेज और ट्वीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा समेत छह पत्रकारों के खिलाफ यूपी और मध्यप्रदेश में कसे दर्ज हुए थे. शनिवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों पर देशद्रोह समेत अन्य धाराओं में दर्ज केस वापस लेने की मांग उठाई थी.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में वरिष्ठ पत्रकारों की एक बैठक में पुलिस कार्रवाईयों की सामूहिक निंदा की थी. खास बात ये है कि एडिटर्स गिल्ड की इस निंदा और मांग के चंद घंटों बाद ही पुलिस ने मनदीप को गिरफ्तार कर लिया. ये स्थिति एडिटर्स गिल्ड के लिए झटके जैसी है.

राहुल गांधी बोले-सच से डरते हैं

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मनदीप की गिरफ्तारी से जुड़ा एक वीडियो शेयर करते हुए सरकार पर निशाना साध है. उन्होंने लिखा, जो सच से डरते हैं, वे सच्चे पत्रकारों को गिरफ्तार करते हैं.

 

एडिटर्स गिल्ड के, पत्रकारों पर कार्रवाई की निंदा के चंद घंटे बाद पत्रकार मनदीप पूनिया गिरफ्तार

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द लीडर : किसान आंदोलन की कवरेज को लेकर पत्रकार, पुलिस के निशाने पर आते जा रहे हैं. दिल्ली पुलिस (Delhi Police)ने स्वतंत्र पत्रकार मनदीप (Mandeep Poniya)पूनिया को सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया है. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा-186, 323 और 353 के तहत कार्रवाई की है. आज-रविवार को उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा सकता है. ( Journalist Mandeep Arrested Editors Guild)

मनदीप के साथ एक और पत्रकार धर्मेंद्र को भी हिरासत में लिया गया था. हालांकि धर्मेंद्र को रविवार सुबह करीब 5:30 बजे छोड़ दिया गया. पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों को शनिवार की रात सिंघु बॉॅर्डर से उस वक्त पकड़ा था, जब ये आंदोलन की कवरेज कर रहे थे. इसमें मनदीप का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वो पुलिसकर्मियों से घिरे नजर आ रहे थे.


किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि


 

पुलिस की इस कार्रवाई से नाराज पत्रकारों ने मनदीप के समर्थन में सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू कर दी. किसान मोर्चा ने भी मनदीप की रिहाई की मांग उठाई. अब मनदीप की फोटो सामने आई है, जिसमें वो पुलिस के बीच बेफिक्र नजर आ रहे हैं.

पुलिस की गाड़ी से सामने आई मनदीप की मुस्कुराती तस्वीर.
एसएचओ से अभद्रता का आरोप

मनदीप पर एसएचओ से अभद्रता का आरोप लगा है. दरअसल, गिरफ्तारी से पहले उन्होंने एक फेसबुक लाइव किया था, जिसमें शुक्रवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंची उपद्रवी भीड़ में शामिल नेताओं के बारे में रिपोर्ट की थी. ये भीड़ जबरन आंदोलन हटवाने पहुंची थी.

राजदीप, मृणाल पर मुकदमा

इससे पहले 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड की कवरेज और ट्वीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा समेत छह पत्रकारों के खिलाफ यूपी और मध्यप्रदेश में कसे दर्ज हुए थे. शनिवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों पर देशद्रोह समेत अन्य धाराओं में दर्ज केस वापस लेने की मांग उठाई थी.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में वरिष्ठ पत्रकारों की एक बैठक ने पुलिस कार्रवाईयों की सामूहिक निंदा की थी. खास बात ये है कि एडिटर्स गिल्ड की इस निंदा और मांग के चंद घंटों बाद ही पुलिस ने मनदीप को गिरफ्तार कर लिया. ये स्थिति एडिटर्स गिल्ड के लिए झटके जैसी है.

किसान आंदोलन पर जस्टिस काटजू को ऐसा क्यों लगता है क‍ि, विनाश काले विपरीत बुद्धि

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बताया गया है कि दिल्ली के गाज़ीपुर, टीकरी और सिंघू बॉर्डर पर इंटरनेट सेवाओं को अधिकारियों ने बंद कर दिया है. अधिकारी शायद समझते हैं कि ऐसा करने से वे किसानों के आंदोलन को दबा देंगे, लेकिन मेरी राय में यह केवल स्थिति को और भयावह बनाएगा और बिगाड़ेगा .

अधिकारीगण इंग्लैंड के किंग कैन्यूट ( King Canute ) की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिन्होंने ज्वार की लहरों को चले जाने के लिए कहा था. उन्होंने अपने गोएबेल्सियन ( Goebbelsian) प्रचार द्वारा (जो बेशर्म ‘गोदी मीडिया के माध्यम से फैलाई गया) किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी, माओवादी, देशद्रोही आदि के रूप में चित्रित करने की कोशिश की, लेकिन इसका विश्वास किसी ने नहीं किया किया .

Farmer Movement Shadow Violence
क‍िसान आंदोलन

तब उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठे हुए किसानों पर हमला करने के लिए गुंडे भेजे, लेकिन किसानों ने उनका सामना कर उन्हें वहां से भगा दिया . पुलिसकर्मियों को उन्हें तितर-बितर करने के लिए भी भेजा गया, लेकिन मुझे एक युवा मित्र ने सूचित किया, जो नियमित रूप से किसानों के पास जाते हैं और उन्हें भोजन, पानी की बोतलें आदि की आपूर्ति करते हैं, कि कई पुलिसकर्मियों ने किसानों को गले लगाया और रोए.


भाजपा किसान आंदोलन को हिंदू-सिख का मसला बनाना चाहती है : किसान मोर्चा


 

हालांकि उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे इसका वीडियो न निकालें ताकि उन्हें पीड़ित न किया जाए. आखिरकार, अधिकांश पुलिसकर्मी (और सेना के जवान) किसानों के बेटे हैं, और उनके दिल में उनके प्रति सहानुभूति होगी ही.

यह घटना हमें 25 जुलाई 1830 में फ्रांसीसी राजा चार्ल्स ( Charles X ) द्वारा जारी किये गए सेंट क्लाउड ऑर्डिनेंस ( Saint Cloud Ordinance )की याद दिलाती हैं. ये ऑर्डिनेंस प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए जारी किया गया था ,जिसका परिणाम हुआ 1830 की जुलाई क्रांति, जिसने 3 दिनों की बैरिकेड लड़ाई के बाद राजा को पदहीन कर दिया.

फरवरी 1917 में रूसी सैनिकों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था, जिससे उनमें उल्टा प्रदर्शनकारियों के साथ अपनेपन का एहसास जगा, और परिणामस्वरूप फरवरी क्रान्ति ( February Revolution) हुई, जिससे ज़ारिस्ट ( Czarist ) शासन का पतन हुआ.


गृह मंत्रालय ने किसान आंदोलन स्थलों पर बंद की इंटरनेट सेवाएं


भारत के किसान संख्या में लगभग 75 करोड़ (750 मिलियन) हैं, जो एक बहुत बड़ी ताकत है, और जो अब एक ज्वार की लहर के भाँति उठ खड़ी हो गयी है. नेपोलियन ने चीनी लोगों के बारे में कहा था कि “सोने वाले विशाल जीव को सोने दो, क्योंकि जब वो जागेगा तो दुनिया हिल जाएगी”. आज भारतीय किसानों के बारे में भी यही कहा जा सकता है, जो अब तक कुंभकर्ण की तरह सो रहे थे.

धरने पर बैठे क‍िसान

भारत अब तक प्रगति नहीं कर सका क्योंकि हम जाति और धर्म के आधार पर विभाजित थे, और आपस में लड़ रहे थे. और इस कमजोरी का उपयोग हमारे स्वार्थी राजनेताओं ने समाज के ध्रुवीकरण और जाति और सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को उकसाकर अपने लिए वोट बैंक बनाने के लिए किया.

वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ कर लोगों को एकजुट कर दिया है, जो एक महान ऐतिहासिक उपलब्धि है. इसके अलावा, इन्होंने राजनेताओं को इस मामले से दूरी बनाये रखने के लिए कहा है.


सिंघु बॉर्डर से जबरन किसानों का आंदोलन खाली कराने पहुंची भीड़ का पथराव, हालात नाजुक


 

यह आंदोलन, जो वर्तमान में केवल आर्थिक मांगों के लिए है, जैसे कृषि उपज के लिए उचित मूल्य आदि ,बाद में भारतीय जनता के एक विशाल राजनैतिक और सामाजिक जनसंघर्ष में विकसित होगा, जो 10-15 वर्षों तक चल सकता है. लेकिन अंततोगत्वा इसका परिणाम होगा एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बनाना जिसके तहत भारत तेज़ी से औद्योगिकीकरण करेगा. और भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाएगा और भारतीय जनता को उच्च जीवन स्तर और सभ्य जीवन भी देगा.

(जस्टिस मार्केंडेय काटजू प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं. ये लेख उनकी फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है.)

स्मार्ट सिटी इंदौर से मानवता की सबसे गंदी तस्वीर, बेसहारा बुजुर्गों को डंपर में भरकर शहर से बाहर फेंकने भेजा

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द लीडर : इंदौर, मध्यप्रदेश का वो शहर जो पिछले कुछ सालों से देश की स्वच्छता रैंकिंग में पहले पायदान पर बना है. इस ऊंचाई पर बने रहने के जुनून में नगर निगम के अफसर किस हद तक जा सकते हैं. इसकी, एक शर्मनाक तस्वीर सामने आई है, जिसने मानवता पर यकीन रखने वाले हर इंसान को हिलाकर रख दिया. निगम ने शहर के बेसहारा बुजुर्ग, भिक्षुओं को एक डंपर में भरकर बाहर फिंकवाने भेज दिया. घटना सामने आने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निगम के उपायुक्त समेत दो अन्य कर्मचारियों को निलंबित किया है. (Dirtiest Picture Humanity Indore)

घटनाक्रम गुरुवार का है. नगर निगम के कर्मचारियों ने शहर में बेसहारा बुजुर्ग, महिलाओं को एक डंपर में भरा. कुछ तो ऐसी हालत में थे जो ठीक से बैठ भी नहीं सकते.

जिस तरह से पशुओं को डंपर में भरा जाता है-उतना ही अमानवीय तरीका इन वृद्धजनों के साथ अपनाया गया. कर्मचारी इन्हें डंपर में लादकर शहर से बाहर ले जा रहे थे. शिप्रा नदी के करीब कुछ ग्रामीणों ने डंपर में बुजुर्गों को भरा देखा, तो गड़बड़ी की आशंका हुई.


सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी बोले, किसानों से एक फोन की दूरी है


 

इस पर उन्होंने कर्मचारियों से पूछा कि इन्हें कहां ले जा रहा हैं. जब सही जवाब नहीं मिला तो ग्रामीणों ने डंपर की एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. जिस किसी ने ये वीडियो देखा-वो सिहर उठा. और निगम की इस करतूत की हर तरफ निंदा होने लगी.

घटना पर कांग्रेस, राज्य सरकार पर हमलावर हो गई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे देखकर रोष से भर गए. उन्होंने कहा, ‘इंदौर में नगर निगम कर्मचारियों द्वारा वृद्धजनों के साथ अमानवीय व्यवहार के संबंध में मुझे जानकारी मिली है.

इस मामले में जिम्मेदार नगर निगम उपायुक्त समेत दो कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने और कलेक्टर को बुजुर्गों की समुचित देखभाल करने का निर्देश दिया है. बुजुर्गों के प्रति अमानवीय व्यवहार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मेरे लिए नर सेवा ही नारायण सेवा है. हर वृद्ध को आदर, प्रेम और सम्मान मिलना चाहिए. यही हमारी संस्कृति और मानव धर्म भी.’

बुजुर्गों के सम्मान में कांग्रेस मैदान में

घटना को लेकर कांग्रेस ने सरकार की घेराबंदी की है. शनिवार को कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने बुजुर्गों के सम्मान में कांग्रेस मैदान में का नारा देते हुए विरोध प्रदर्शन किया हैै.

सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी बोले, किसानों से एक फोन की दूरी है

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द लीडर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार की सर्वदलीय बैठक में ये साफ किया है कि किसानों के साथ बातचीत का दरवाजा हमेशा खुला है. और किसानों का मसला बातचीत से ही हल होगा. उन्होंने कहा कि वे किसानों से केवल एक फोन दूर हैं. पिछली बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जो प्रस्ताव दिया था. सरकार उस पर चर्चा के लिए तैयार है.

बजट सत्र से पहले सरकार ने ये सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. इसमें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में तृणमूल के कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय, अकादली दल से बलविंदर सिंह भूंदड़ समेत अन्य दलों के नेता शामिल हुए.

बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी पत्रकारों ने पत्रकारों से बात की. और बैठक की जानकारी साझा की. उन्होंने कहा कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं. अगर आप तैयार हैं तो हम एक फोन कॉल पर हाजिर होंगे. किसानों को दिया गया प्रस्ताव बरकरार है. ऐसा, प्रधानमंत्री ने दोहराया है.

बैठक में प्रधानमंत्री ने अमेरिका के कैलिफोर्निया में महात्मा गांधी की प्रतिमा क्षतिग्रस्त किए जाने की भी कड़ी निंदा की है.


गृह मंत्रालय ने किसान आंदोलन स्थलों पर बंद की इंटरनेट सेवाएं


 

दरअसल, कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बैठक हो चुकी है. इसी 11वीं बैठक में कृषि मंत्री ने किसानों को ऑफर दिया था कि वे चाहें तो कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक के लिए होल्ड पर रखा जा सकता है.

एक कमेटी गठित की जाएगी, जो कानूनों पर चर्चा करेगी. किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. ये कहते कि कानून रद होने पर ही वे आंदोलन खत्म करेंगे.

चूंकि बीती 26 जनवरी को किसानों ने जो ट्रैक्टर परेड निकाली थी, उसमें हिंसा हो गई थी. इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे और किसानों को चोटें आई थीं. यहां तक कि यूपी के रामपुर जिले के युवा किसान नवरीत की मौत भी हो गई थी.

इस घटना के बाद आंदोलन के तेवर थोड़े नरम पड़े थे, मगर गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत की एक भावुक वीडियो सामने आने के बाद ये और तेजी से बढ़ने लगा है.

गृह मंत्रालय ने किसान आंदोलन स्थलों पर बंद की इंटरनेट सेवाएं

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द लीडर : गृह मंत्रालय ने किसान आंदोलन स्थल-सिंघु बॉर्डर, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर क्षेत्र की इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से बंद कर दी हैं. 31 जनवरी तक ये रोक लागू रहेगी. हरियाणा के कई जिलों में इंटरनेट बंद किया जा चुका है. किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने सरकार के इस कदम की निंदा की है. उन्होंने कहा कि कभी बिजली बंद कर देते हैं तो कभी पानी रोक दिया जाता.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 66 दिनों से हजारों किसान इन बॉर्डरों पर आंदोलनरत हैं. वे कानूनों को रद किए जाने की मांग उठाए हैं. सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है. हालात ये हैं कि अब बॉर्डर स्थलों पर तनाव की घटनाएं सामने आने लगी हैं.


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सिंघु बॉर्डर पर गुरुवार और शुक्रवार-इन दोनों दिनों में उपद्रवियों की एक भीड़ जबरन आंदोलन हटवाने पहुंची. झड़प के बीच किसान और पुलसकर्मियों को चोटें भी आई हैं. शुक्रवार की रात एक प्रेस कांफ्रेंस में किसान नेताओं ने कहा था कि इंटरनेट सेवाएं बंद करके सरकार हमारी आवाज को नहीं दबा सकती है. ये मांग की थी कि इंटरनेट चालू किया जाए.

वहीं, गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत की भावुक वीडियो सामने आने के बाद ये आंदोलन और गति पकड़ने लगा है. भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि कल बागपत में पंचायत के बाद हम दिल्ली के लिए कूच करेंगे.