द लीडर हिंदी। भारत देश में कई पर्वो, उत्सवों और मेलों को लेकर उत्साह देखने को मिलता है. चाहे त्यौहार हिंदुओं का हो या मुसलमानों का हो या फिर ईसाइयों का. यहां तक की भारत में पारसी समुदाय के त्यौहारों की भी धूम देखने को मिलती है. बता दें कि, आज पारसी समुदाय का मशहूर त्यौहार नवरोज यानि नया साल है. पारसी नया साल को खोरदाद साल, जमशेदी नवरोज, नवरोज और पतेती नाम से भी जाना जाता है. पारसियों के लिए यह नया साल बेहद ही खास होता है. क्योंकि बाकि धर्मों से उलट पारसी धर्म में ज्यादा त्योहार नहीं होते. पारसियों के साल में तीन मुख्य त्योहार होते हैं. पहला खोरदाद साल, दूसरा भगवान प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिन और तीसरा 31 मार्च ईरान में पारसियों का न्यू ईयर.
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पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम
पारसी समुदाय के लिए पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम है. एक दौर था, जब पारसी समाज का एक बड़ा समुदाय हुआ करता था, लेकिन बदलाव के इस दौर ने हमसे हमारे दूर कर दिए. कई ने करियर और बेहतर पढ़ाई के कारण बड़े शहरों की ओर रुख किया, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो आज भी समाज को जीवित रखे हुए हैं. अगस्त माह में पारसी समाज का नववर्ष मनाया जाता है. पारसी नववर्ष को ‘नवरोज’ कहा जाता है. बदलते वक्त ने पारसी धर्म में भी जिंदगी ने कई खट्टे-मीठे अनुभव कराए, लेकिन हमारे संस्कार ही हैं जिसके दम पर आज भी अपने धर्म और इससे जु़ड़े रीति-रिवाजों को संभाले हुए हैं.
पारसी धर्म का इतिहास और परंपरा
बता दें कि, 1380 ईस्वी पूर्व जब ईरान में धर्म-परिवर्तन की लहर चली तो कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन जिन्हें यह मंजूर नहीं था वे देश छोड़कर भारत आ गए. यहां आकर उन्होंने अपने धर्म के संस्कारों को आज तक सहेजे रखा है. सबसे खास बात ये कि, समाज के लोग धर्म-परिवर्तन के खिलाफ होते हैं. अगर पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर ले, तो उसे धर्म में रखा जा सकता है, लेकिन उसके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता है. ठीक इसी तरह लड़कों के साथ भी होता है. लड़का भी यदि किसी दूसरे समुदाय में शादी करता है तो उसे और उसके बच्चों को धर्म से जुड़ने की छूट है, लेकिन उसकी पत्नी को नहीं. समाज का कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे शहर या देश से यहां आता है तो उसके रहने और खाने की व्यवस्था पूर्ण आस्था और सेवाभाव से समाजवासी करते हैं. समाज के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए उन्होंने कभी भी गलत राह नहीं पकड़ी. आज भी पारसी समाज बंधु अपने धर्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हैं. नववर्ष और अन्य पर्वों के अवसर पर लोग पारसी धर्मशाला में आकर पूजन करते हैं.
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पारसी समुदाय धर्म-परिवर्तन पर विश्वास नहीं रखता. यह सही है कि, शहरों और गांवों में इस समाज के कम लोग ही रह गए हैं खासकर युवा वर्ग ने करियर और पढ़ाई के सिलसिले में शहर छोड़कर बड़े शहरों की ओर रुख कर लिया है, लेकिन हां, कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो अपने पैरेंट्स की केयर करने आज भी शहर में रह रहे हैं. भगवान प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस मनाया जाता है. नववर्ष पर खास कार्यक्रम नहीं हो पाते, इस वजह से इस दिन पूजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यह दिन भी हमारे पर्वों में सबसे खास होता है.उनके नाम के कारण ही हमें जरस्थ्रुटी कहा जाता है.
पारसियों में 1 साल 360 दिन का माना जाता है
बता दें कि, पारसी धर्म में एक साल 360 दिन का होता है बाकि का 5 दिन वो लोग ‘गाथा’ करते हैं. गाथा का अर्थ है कि, अपने पूर्वजों को याद करने का दिन. पारसी लोग नया साल शुरू होने का जश्न मनाने के 5 दिन पहले से ही पूर्वजों के लिए पूजा-पाठ करते हैं. ये लोग रात में 3.30 बजे खास पूजा-अर्चना करते हैं. जिस तरह हिंदू धर्म में श्राद किए जाते हैं ठीक उसी तरह पारसी इन 5 दिनों के दौरान अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा करते हैं. आज के दिन पारसी समुदाय के लोग अग्नि मंदर (आगीयारी) में जाकर पूजा-पाठ करते हैं. वहीं, ईरान के कुछ हिस्सों में रहने वाले पारसी नया साल 31 मार्च को मनाते हैं.
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हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है नवरोज का त्यौहार
बता दें कि, पारसियों के लिए यह दिन सबसे बड़ा होता है. इस अवसर पर समाज के सभी लोग पारसी धर्मशाला में इकट्ठा होकर पूजन करते हैं. पारसी समाज में अग्नि का भी विशेष महत्व है और इसकी खास पूजा भी की जाती है. नागपुर, मुंबई, दिल्ली और गुजरात के कई शहरों में आज भी कई सालों से अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है. इस ज्योत में बिजली, लकड़ी, मुर्दों की आग के अलावा तकरीबन 8 जगहों से अग्नि ली गई है. इस ज्योत को रखने के लिए भी एक विशेष कमरा होता है जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की, दक्षिण में दीवार होती है. पारसी नववर्ष का त्योहार दुनिया के कई हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमें ईरान, पाकिस्तान, इराक, बहरीन, ताजिकिस्तान, लेबनान तथा भारत में भी यह दिन विशेष तौर पर मनाया जाता है.
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बता दें कि, तीन हज़ार साल पहले जिस दिन ईरान में शाह जमशेद ने सिंहासन ग्रहण किया उसे नया दिन या नवरोज़ कहा गया. यह दिन जरथुस्त्र वंशियों का नए वर्ष का पहला दिन माना जाने लगा. पारसी लोग नवरोज फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी. पारसी लोग मानते हैं कि, इस दिन पूरी कायनात बनाई गई थी. पारसी लोग नववर्ष के दिन विशेष पकवान बनाते हैं. इनमें मीठा रवा, सिवई, पुलाव, मछली तथा अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं. इस दिन घर आने वाले मेहमानों का स्वागत गुलाब जल छिड़कर किया जाता था. पारसी परंपरा के अनुसार, इस दिन लोग मेज पर कुछ पवित्र वस्तुएं रखते हैं. इनमें जरथुस्त्र की तस्वीर, मोमबत्ती, दर्पण, अगरबत्ती, फल, फूल, चीनी, सिक्के आदि शामिल हैं. माना जाता है कि इससे परिवार के लोगों की आयु और समृद्धि बढ़ती है. नवरोज के दिन पारसी परिवार अपने उपासना स्थलों पर जाते हैं. इस दिन उपासना स्थलों में पुजारी धन्यवाद देने वाली प्रार्थना करते हैं जिसे जश्न कहा जाता है. इस दिन पवित्र अग्नि को लोग चंदन की लकड़िया चढ़ाते हैं. प्रार्थना के बाद पारसी लोग एक-दूसरे को साल मुबारक कहते हैं.
राष्ट्रपित और प्रधानमंत्री ने दी शुभकामनाएं
वहीं देश में पारसी नववर्ष मनाए जाने के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को शुभकामनाएं दी हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि पारसी समुदाय के लोगों ने भारत के विकास और विकास के कई पहलुओं में अपार योगदान दिया है. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत विभिन्न क्षेत्रों में पारसी समुदाय के उत्कृष्ट योगदान का सम्मान करता है. राष्ट्रपति के ट्वीट किया कि, नवरोज मुबारक! पारसी समुदाय के लोगों ने भारत के विकास और विकास के कई पहलुओं में अपार योगदान दिया है. पारसी नव वर्ष सभी के जीवन में एकता, समृद्धि और खुशी लाए और हमारे नागरिकों के बीच सद्भाव और भाईचारे की भावना को और मजबूत करे.
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Navroz Mubarak! People of Parsi community have made immense contribution to several aspects of India's growth & development. May the Parsi New Year bring unity, prosperity & happiness in everyone’s life and further strengthen the spirit of harmony & fraternity among our citizens.
— President of India (@rashtrapatibhvn) August 16, 2021
वहीं पीएम मोदी ने भी पारसी नववर्ष की शुभकामनाएं दी. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि, नव वर्ष की बधाई. सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य से भरे साल के लिए प्रार्थना. भारत विभिन्न क्षेत्रों में पारसी समुदाय के उत्कृष्ट योगदान का सम्मान करता है. नवरोज मुबारक!
Parsi New Year greetings. Praying for a year filled with happiness, prosperity and good health. India cherishes the outstanding contributions of the Parsi community across different sectors.
Navroz Mubarak!
— Narendra Modi (@narendramodi) August 16, 2021
भारत में पारसी एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय
बता दें कि, भारत में पारसी एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय है, लेकिन इस समुदाय से देश को विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रख्यात शख्सियत मिली हैं. पारसी नववर्ष को नवरोज के नाम से भी जाना जाता है. पारसियों के लिए यह दिन सबसे बड़ा होता है. इस दिन को नए फारसी कैलेंडर की शुरुआत के लिए मनाया जाता है. फारसी भाषा में ‘नव’ का अर्थ है नया, और ‘रोज’ का अर्थ है नया दिन.
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भारत में कैसे आया पारसी धर्म
पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है. ईरान के बाहर मिथरेज्म के रूप में रोमन साम्राज्य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ. इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है. ईरान पर इस्लामी विजय के पश्चात पारसियों को इस्लाम कबूल करना पड़ा तो कुछ पारसी धर्म के लोगों ने अपना गृहदेश छोड़कर भारत में शरण ली. कहा जाता है कि, इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा. दीव से वे गुजरात में बस गए. गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए. धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पारसी धर्म व समाज भारतीयों के निकट है. पारसी 9वीं-10वीं सदी में भारत आए, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण हैं. भारत में प्रथम पारसी बस्ती का प्रमाण संजाण (सूरत निकट) का अग्नि स्तंभ है- जो अग्निपूजक पारसीधर्मियों ने बनाया.
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अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवत 1 लाख से अधिक नहीं है. ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं. पहले पारसी लोग कृषि में व बाद में व्यापार व उद्योग में लगे. भारतीय जहाज निर्माण को इन्होंने पुनःजीवित कर योरपियों से भारत को सौंपा. पारसियों द्वारा निर्मित जहाज ब्रिटिश नौसेना खरीदती थी (तब तक भाप के इंजन न थे). फ्रामजी माणेकजी, माणेकजी बम्मनजी आदि ये पारसी नाम इस संबंध में प्रसिद्ध हैं.अंगरेज शासन के साथ इन्होंने संबंध सामान्य रखे परंतु अपनी भारतीय मान्यताओं व स्वाभिमान को अक्षत रखकर उन्होंने भारत को अपना देश मानकर भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया.
भारत के निर्माण में पारसी समुदाय का योगदान
ऐतिहासिक रूप से पारसी पंथ की शुरुआत 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई. एक ज़माने में पारसी धर्म (जोरोएस्ट्रिनिइजम) ईरान का राजपंथ हुआ करता था.उन्होंने भारत में शरण ली. तबसे आज तक पारसियों ने भारत के उदय में बहुत बड़ा योगदान दिया है. ईरान पारसी देश हुआ करता था फारसियों के इस्लाम ग्रहण करने के उपरांत समस्त ईरान को मुस्लिम देश बना दिया गया. कहा जाता है कि, दशकों पूर्व पारसी लोग सौराष्ट्र आए और राजा से वहां बसने की अनुमति मांगी. राजा ने दूध से भरा लोटा पारसी लोगों को पहुंचाया, जिसका आशय था कि, हमारा समाज भरे हुए लोटे की तरह है और इसमें अब जगह नहीं है. पारसी लोगों ने दूध से भरे लोटे में चीनी मिलाकर वापस भेजा, यानी हम चीनी की तरह भारत में समाहित हो जाएंगे. पारसी समुदाय का धर्म है और उनके इष्ट देव अग्नि है, इसीलिए सिगरेट-बीड़ी पीना वर्जित है.
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बहरहाल, हमारे बही-खातों में लाभ-शुभ और शुभ-लाभ लिखा होता है, जिसका आशय है कि व्यवसाय में वही लाभ-शुभ है, जिसका कुछ अंश समाज के हित में खर्च किया जाता है. सच तो यह है कि वैदिक मान्यता को यथार्थ का जामा पारसी लोगों ने पहनाया. उन्होंने व्यवसाय से प्राप्त लाभ का एक अंश हमेशा समाज हित में लगाया है. आपको कभी भिखारियों की भीड़ में कोई पारसी व्यक्ति नहीं दिखेगा. वे ईमानदार, समर्पित और मेहनती लोग हैं. पहले पारसी लोग कृषि में व बाद में व्यापार और उद्योग में लगे. भारतीय जहाज निर्माण को इन्होंने पुनर्जीवित कर योरपियों से भारत को सौंपा. पारसियों द्वारा निर्मित जहाज ब्रिटिश नौसेना खरीदती थी (तब तक भाप के इंजन न थे). फ्रामजी माणेकजी, माणेकजी बम्मनजी आदि ये पारसी नाम इस संबंध में प्रसिद्ध हैं. अंगरेज शासन के साथ इन्होंने संबंध सामान्य रखे परंतु अपनी भारतीय मान्यताओं व स्वाभिमान को अक्षत रखकर. उन्होंने भारत को अपना देश मानकर भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया.
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