कोरोना की दूसरी लहर का पत्रकारों पर कहर,परिवार पर भी बुरा असर

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लखनऊ । सरकार भले ही पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर न मान रहीं हो लेकिन पत्रकार कोरोना संक्रमितों के साथ घर से लेकर अस्पताल और अगर कोई अनहोनी होती है तो अस्पताल से लेकर शमशान तक साथ रहते है। यही कारण है कि पत्रकारिता जगत को इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में जहां 2 दर्जन से अधिक पत्रकारों की अभी तक मौत हो चुकी है तो उनके परिवार भी इससे अछूते नहीं हैं,बहुत से पत्रकारों ने अपने परिजनों को इस कोरोना काल में खोया है। अभी भी बहुत से पत्रकार  अस्पतालो में  जिंदगी और मौत से  लड़ रहे हैं ।

कोरोना की दूसरी लहर में जहां बीती 27 मार्च को उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के सदस्य प्रमोद श्रीवास्तव की कोरोना वायरस की वजह से मृत्यु होने के बाद ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जिसने पूरे पत्रकारिता जगत की आंखों को नम कर रखा है । यह पत्रकारों के काम करने का हौसला ही है कि वह इतना दर्द झेलने के बाद भी लगातार अपने कर्तव्य पथ पर डटे हुए हैं।

कोरोना वायरस के दुष्प्रकोप से ताविशी श्रीवास्तव जैसी अनुभवी पत्रकार को नहीं बचाया जा सका तो अंकित शुक्ला जैसे युवा पत्रकार भी करोना की वजह से हम सबके बीच नही रहे। बीते दिनों वरिष्ठ पत्रकार पी पी सिंहा, पवन मिश्रा, प्रशांत सक्सैना की कोरोना के कारण मौत हो हुई । वहीं वरिष्ठ पत्रकार राशिद मास्टर साहब, यूएनआई ब्यूरो चीफ हिमांशु जोशी, वरिष्ठ पत्रकार सच्चिदानंद सच्चे ,दुर्गा प्रसाद शुक्ला ,मोहम्मद वसीम ,हमजा रहमान और रफीक जैसे कई साहसी पत्रकार थे,जिन्हें कोरोना ने निगल लिया ।

पत्रकारों के परिवारों पर कोरोना का कहर

कोरोना ने सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं प्रभावित किया बल्कि उनके परिवारों पर भी कहर बनकर टूटा ।दैनिक जागरण के पत्रकार अंकित शुक्ला की जहां कोरोना के कारण मौत हो गई तो उसके 1 दिन पहले उनके ताऊ की और अंकित शुक्ला की मौत के 3 दिन बाद उनके पिता की भी इसी वायरस के चलते मृत्यु हो गई ।वहीं उनकी माता और पत्नी अभी भी अस्पताल में अपना इलाज करा रही है। इस तरह की विभीषिका को सुनकर शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी आंखें नम ना हो जाए। वही अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार आलोक दीक्षित की माता को कोरोना वायरस ने निगल लिया, वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव की माता की भी मृत्यु कोरोना और सिस्टम की बदहाली के कारण हुई। वरिष्ठ पत्रकार शिव शंकर गोस्वामी ने अपनी माता और दामाद को इस वायरस के कारण खो दिया।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार पुनीत मोहन और आकाश यादव के पिता की भी मौत कोरोना वायरस और बदहाल सिस्टम के कारण ही हुई। वरिष्ठ पत्रकार अल्ह्मरा खान की मां और हिंदी खबर के कैमरामैन मनोज की माता और भाभी की भी जान इस कोरोना वायरस ने ली।

कोरोना ने पत्रकारों और उनके परिवारो को बुरी तरह से प्रभावित किया हैं लेकिन सरकार इस पर कोई ध्यान नही दे रही। वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद गोस्वामी का कहना है  ” पत्रकार सबसे दयनीय अवस्था में है, पत्रकार अस्पताल से लेकर शमशान तक काम करता है लेकिन उसको फिर भी फ्रंटलाइन वर्कर क्यों नहीं माना जाता? इस संक्रमण काल के दौरान सरकार ने आज तक क्या किसी पत्रकार के परिवार की मद्त की? सरकार को पत्रकारों के परिवार के सदस्य को नौकरी देनी चाहिए।”

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उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी का कहना है कि सरकार पत्रकारों के लिए संवेदनहीन है, सरकार से पत्रकारों के लिए 25 लाख की आर्थिक मदत की मांग की जा रही है और एक पत्रकारों के लिए डेडिकेटेड अस्पताल बनाने की भी मांग की जा रही है जिससे पत्रकारों और उनके परिवार का वँहा इलाज हो सकें, ऑक्सीजन और बेड की समस्या के चलते पत्रकारों को मुसबीत झेलनी पड़ रही है।

कोरोना की दूसरी लहर जिस तरह से पत्रकारिता क्षेत्र को प्रभावित कर रही है शायद ही इतना कहर किसी और क्षेत्र पर पड़ा हो लेकिन फिर भी सोशल मीडिया पर पत्रकारों को लेकर अपशब्द बोले जाते हैं। अगली बार सोशल मीडिया पर पत्रकारों को लेकर अपशब्द लिखने से पहले उनके समर्पण पर जरूर ध्यान दें। कोरोना के इस दौर में पत्रकारों को आम लोगों की मांगो के लिए अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है जिसका सरकारी बीमा तक नही होता।

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