क्या रूस-यूक्रेन युद्ध से फिर वजूद में आएगी ऑटोमन खिलाफत?- PART-1

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रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया के शक्ति संतुलन में बदलाव होने के पूरे आसार हैं, ऐसा ज्यादातर विश्लेषक मान रहे हैं। इसी के साथ ऐसी हलचल भी है कि सालभर बाद इतिहास में गुम हुआ ऑटोमन साम्राज्य फिर वजूद में आ जाएगा, यानी कि खिलाफत। ऐसा होगा कैसे और इसका इशारा क्या है, इसकी चर्चा कई सिरे से शुरू हो चुकी है। (Ottoman Caliphate Come Back)

ऑटोमन अंपायर का केंद्र तुर्की है, जो मौजूदा हालात में शक्ति संतुलन को भांप रहा है और भविष्य की ताकत की ओर झुका सा दिखाई दे रहा है। इसके लिए उसका सीरिया में रूसी सहयोग से दखल, लाखों सीरियाइयों को पनाह देना, मध्यपूर्व के गरीब देशों से लेकर अफ्रीका में पकड़ मजबूत करने का सिलसिला पहले से जारी है।

मुसलमानों का अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर मुसलमानों के मुद्दों पर तुर्की हमेशा सक्रिय रहता है। इसके पीछे वजह यह भी बताई जा रही है कि 2023 में वह संधि समाप्त हो रही है, जिसमें ऑटोमन साम्राज्य की सरहदें समेट दी गई थीं और बहुत से विशेषाधिकार सीज कर दिए गए थे। संधि की ये बंदिशें पहले विश्वयुद्ध के वक्त लगी थीं। (Ottoman Caliphate Come Back)

पहले विश्वयुद्ध में ऑटोमन साम्राज्य मुस्तफा कमाल पाशा के क्रांतिकारी आंदोलन के चलते खत्म हो गया था। उस दौर में विजयी होने वाली वैश्विक ताकतों- ब्रिटेन, फ्रांस, इटली वाले गठजोड़ ने दुनियाभर में उथल-पुथल कम करने की रणनीति बनाई। इसी कड़ी में विजयी दलों ने ऑटोमन के अधिकारों को प्रतिबंधित करने को संधि के जरिए साम्राज्य को विभाजित कर दिया। तुर्की को साइप्रस, लीबिया, मिस्र, सूडान, इराक और लेवेंट पर संप्रभुता का त्याग करना पड़ा, सिवाय उन शहरों को छोड़कर जो सीरिया में मौजूद थे, जैसे कि उरफा, अदाना, गाजियांटेप, केल्स और मार्श।

पुराने तुर्क क्षेत्र यूरोपीय कब्जे में चले गए। सीरिया और लेबनान पूरी तरह से फ्रांसीसी कब्जे में आ गए। मिस्र, सूडान और इराक आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गए।

फिलिस्तीन को ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों में सौंप दिया गया, जिसने बाद में वहां यूरोप-अमरीका की सहमति से इजरायल देश का गठन कर दिया। लीबिया को इतालवी कब्जे में आ गया और साइप्रस साम्राज्यवादी नीतियों से लगभग तबाह ही हो गया। (Ottoman Caliphate Come Back)

एजियन सागर और काला सागर के बीच तुर्की जलडमरूमध्य को सभी शिपिंग के लिए खुला घोषित किया गया, लेकिन तुर्की को कुछ विशेषाधिकार दिए गए, एक तरह से दरबान की जिम्मेदारी। यह ग्रीक-तुर्की आबादी की आवाजाही का समुद्री रास्ता भी है।

तुर्की पर तमाम दूसरे प्रतिबंध भी लगाए गए, जैसे तेल या गैस के निकालने पर बंदिश।

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विजयी साम्राज्यवादी ताकतों ने इसी के साथ आधिकारिक तौर पर तुर्क साम्राज्य की मौत के साथ नए तुर्की के जन्म का ऐलान किया। इसी के साथ अरब देशों और मध्य पूर्व की आज मौजूद सीमाओं को भी नया रूप दिया।

1923 में कई दौर की बातचीत के बाद इस समझौते को लागू किया गया। तब केवल सोवियत संघ ही तुर्की की मदद को खड़ा था, जिसका केंद्र रूस था। जहां रूसी मजदूरों ने जारशाही को क्रांति करके समाप्त कर दिया था और साम्राज्यवादी ताकतों से जूझते हुए मजदूर वर्ग की सरकार बनाई। (Ottoman Caliphate Come Back)

मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने आज के तुर्की की मूल सीमाओं को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत की और तुर्की की जमीन हिफाजत में कामयाब रहे।

इस समझौते को लॉज़ेन की संधि के रूप में जाना जाता है, जिसकी समाप्ति जुलाई 2023 में होना तय हुई थी। यही वजह है कि तुर्की के लिए अपनी पुरानी महत्वाकांक्षाओं को जिंदा करने करने की हसरतें हिलोरें ले रही हैं।

Content Source: SEE NEWS & Agencies


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