Russia Ukraine Crisis: रूसी फंदे में फंसा मध्य पूर्व, अरब लीग की माथापच्ची

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यूक्रेन युद्ध से क्या कुछ बदल रहा है और क्या बदलेगा, यह तो भविष्य की बात है। अलबत्ता, दूर बैठे देश भी इस वक्त पाला तय करने को लेकर परेशान हैं। ऐसा ही कुछ अरब देशों में है। इस मुसीबत में क्या किया जाए, इसको लेकर सोमवार को अरब लीग की बैठक हुई, जिसमें पक्ष तय करने को लेकर काफी माथापच्ची हुई, लेकिन कोई स्पष्ट फैसला नहीं लिया जा सका। (Russia Ukraine Middle East)

काहिरा स्थित संगठन के उप प्रमुख होसम जकी ने एएफपी को बताया कि सत्र विदेश मंत्रियों के स्तर पर आयोजित किया गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य संयुक्त अरब अमीरात ने शुक्रवार को उस प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया, जिसे मॉस्को ने वीटो कर दिया था, जिसमें रूस से यूक्रेन से अपने सैनिकों को वापस लेने की मांग की गई थी।

सीरिया, अल्जीरिया और सूडान सैन्य समझौतों के साथ ही कई करार के चलते रूस से बंधे हैं। अरब देशों में ज्यादातर की सबसे बड़ी परेशानी यूक्रेन और रूस दोनों से गेहूं की आपूर्ति पर निर्भरता हैं। ऐसे में कोई एक भी पक्ष लेने से अनाज की किल्लत पैदा हो गई तो उनके देशों में अशांति फैल जाएगी, जो कि पहले ही काफी फैली हुई है।

वाशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के अनुसार, अरब देशों में अनाज आपूर्ति बाधित होना बहुत बड़ी मुसीबत बन सकता है, रोटी की कीमतें बढ़ने से उन देशों में नए सिरे से विरोध और अस्थिरता के बेकाबू हालात पैदा होने की आशंकाएं हैं। (Russia Ukraine Middle East)

मानवीय मोर्चे पर भी अरब देशों को पार पाने की कोशिश करना है, उनके देशों के हजारों छात्र यूक्रेन में फंसे हैं, जिनमें से कुछ तो वापस आ गए, लेकिन वहां मौजूद बचाने की अपील कर रहे हैं और उनकी मदद कर पाना भी मुश्किल हो रहा है।

संभावित युद्ध महत्वपूर्ण खाद्य आपूर्ति, वैश्विक ऊर्जा मार्गों और क्षेत्रीय स्थिरता को बड़ी चुनौती पेश करेगा। नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग का कहना है कि रूस और यूक्रेन के बीच संकट का बढ़ना केवल यूरोप तक सीमित नहीं होगा, बल्कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में भी इसका बड़ा असर पड़ेगा।

DW की एक रिपोर्ट में इस परेशानी का अनुमानित खाका खींचा गया है। इसमें बताया गया है कि युद्धग्रस्त देश लीबिया सीधे तौर पर प्रभावित होगा।

लंदन में वैश्विक जोखिम और खुफिया फर्म इंटरनेशनल इंटरेस्ट के प्रबंध निदेशक सामी हमदी ने डीडब्ल्यू को बताया, रूस अल जुफ़्रा हवाई अड्डे का रखरखाव करता है, जिसे वह यूक्रेन के साथ युद्ध की स्थिति में कभी भी इस्तेमाल कर सकता है। यहां मौजूदा तनाव के बीच आंतरिक अस्थिरता का दौर कभी भी आ सकता है।

दिसंबर में राष्ट्रीय चुनावों राेकने के बाद त्रिपोली में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त सरकार के विरोध में रूस टोब्रुक में जनरल खलीफा हफ़्टर का मजबूत समर्थक बना रहा। एक नई अंतरराष्ट्रीय आंकाक्षा साफ देखी जा सकती है, जो अतीत में वाशिंगटन और अन्य यूरोपीय शक्तियों के संबंध में रही है। (Russia Ukraine Middle East)

राजनीतिक विश्लेषक सिंजिया बियान्को को भी डर है कि लीबिया से आने वाले शरणार्थियों की एक नई लहर के जरिए मास्को यूरोप पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है। शरणार्थियों का इस्तेमाल शक्ति बनाने में किया जा सकता है। बेलारूस-पोलैंड सीमा पर दिखाई दे रहा है कि यह कैसे हो सकता है।

इसी तरह सीरिया में भी रूस की सेना है। यहां टार्टस शहर में एक नौसैनिक बंदरगाह और एक हवाई अड्डे का रखरखाव रूस करता है। इसके साथ ही असद शासन का करीबी सहयोगी होने के नाते इस क्षेत्र में अपना समग्र प्रभाव बढ़ा सकता है।

रूस सीरिया में अंतरराष्ट्रीय कैरेक्टर है, बियान्को ने कहा। मिसाल के लिए, रूस ने इस बात पर जोर दिया है कि मदद केवल असद शासन के नियंत्रण में सीमाओं के माध्यम से ही सीरिया को भेजी जा सकती है। मानवीय सहायता नियंत्रण शरणार्थियों के संभावित आवागमन से भी जुड़ा हुआ है। सीरिया में रूस को कुछ दूसरे भी फायदे हैं। रूस तुर्की के सीमा प्रशासन भी निर्भर करता है, जो पश्चिम से जुड़ा है।

सीरिया का पड़ोसी देश इजरायल भी तनाव पर करीब से नजर रखे हुए हैं। इजरायल सीरिया में ईरानी ठिकानों को निशाना बना रहा है जबकि सीरिया में मौजूद रूसी सेना इस पर आंखें मूंदे रहती है। रूस बीच-बीच सीरियाई क्षेत्र की गोलान पहाड़ियों पर इजरायल की कब्जेदारी का मुद्दा उठाकर दुखती रग पर हाथ रख देता है, जो हाल ही में किया भी।

हम्दी ने डीडब्ल्यू से कहा, इजराइल रूस और अमेरिका के बीच किसी भी युद्ध में सबसे बड़ा हारने वाला हो सकता है, क्योंकि उसे इस तरह से पक्ष लेने के लिए मजबूर किया जाएगा कि किधर भी जाने पर उसे नुकसान ही होगा। यहूदी अप्रवास और गेहूं आयात भी इसका बड़ा कारण होंगे।

अरब प्रायद्वीप भी इस तनाव से नहीं बच सकता। खासतौर पर देखा जाए तो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं। रिश्तों में एक ओर तेल और गैस की आपूर्ति और दूसरी ओर से हथियारों की बिक्री शामिल है।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, अमेरिका खाड़ी देशों को अब तक का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। हालांकि, ओपेक और तेल पर सऊदी अरब का दबदबा रूस के साथ साझेदारी में रहा है।

इसके साथ ही ऐसा भी है कि सऊदी अरब और रूस ने पिछले साल अगस्त में एक सैन्य सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसलिए, रूस और अमेरिका के बीच एक पक्ष चुनने के लिए मजबूर होना दुविधा में डालने वाला है।

कतर में अमेरिका ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियाई बलों के साथ अल उदीद हवाई अड्डे का रखरखाव करता है, जो इस क्षेत्र में सबसे बड़ा अमेरिकी हवाई अड्डा है। (Russia Ukraine Middle East)

संकट के वक्त अमेरिका अपने सहयोगियों सऊदी अरब और कतर से एक स्टैंड लेने का दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है, जैसे रूसी कटौती कर यूरोप को ऊर्जा आपूर्ति का विस्तार कराना। तेल और ऊर्जा की कीमतें अनुकूल होने पर यह अरब देशों के लिए फायदे का सौदा भी हो सकता है।

हालांकि बियान्को को नहीं लगता कि कतर के लिए ऐसा करना आसान होगा, क्योंकि लिक्विड नैचरल गैस आमतौर पर भारत या दक्षिण कोरिया में दीर्घकालिक आधार पर अनुबंधित होती है।फिर भी, कतर अमेरिका का समर्थन करने में दिलचस्पी ले सकता है क्योंकि इसमें कुछ लाभ होगा तो। इससे भारत और दक्षिण कोरिया के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।

हालांकि हम्दी को नहीं लगता कि कतर वास्तव में ऐसा कदम उठा सकता है और यूरोप को रूसी गैस आपूर्ति की भरपाई कर सकता है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, कतर असल में ‘हां, मैं गैस की आपूर्ति कर सकता हूं’ के झूठे वादे कर रहा है, शायद इस उम्मीद पर कि कोई युद्ध नहीं होगा।

वाशिंगटन स्थित मध्य पूर्व संस्थान (एमईआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन अपने अनाज का 95 फीसद काला सागर के रास्ते निर्यात करता है और इसका 50 प्रतिशत से ज्यादा गेहूं निर्यात 2020 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में हुआ।

इसका मतलब यह भी है कि युद्ध के हालात में पहले से ही कमजोर देशों में खाद्य सुरक्षा के गंभीर परिणाम होंगे। सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) ने इसकी चेतावनी जारी दी है।

अनुमान है कि लेबनान और लीबिया अपने गेहूं का लगभग 40 प्रतिशत, यमन लगभग 20 प्रतिशत और मिस्र लगभग 80 प्रतिशत रूस और यूक्रेन से आयात करते हैं। (Russia Ukraine Middle East)

लिहाजा, गेहूं की आपूर्ति में कोई भी रोड़ा मध्य पूर्व उथल-पुथल मचा देगा। रोटी की कमी या महंगी रोटी से सत्ताएं ध्वस्त होती देखी गई हैं इतिहास में। यह ऐसा मसला है, जो बर्दाश्त नहीं किया जाता और लोग सड़कों पर उतर आते हैं।


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