काबा का ब्लैक स्टोन यानी कि काला पत्थर, अरबी में अल हज्र असवद। जिसे हज या उमरा करने वाले चूमते हैं। इस्लामिक मान्यता में यह पत्थर अहम इस्लामिक चीजों में से एक है। इसकी हिफाजत 24 गार्ड करते हैं और इसकी निगरानी को तमाम बंदोबस्त किए गए हैं।
काबा के पूर्वी कोने में मौजूद ब्लैक स्टोन कभी भी बिना गार्ड की निगरानी नहीं होता, हर घंटे ड्यूटी बदलती रहती है गार्डों की। ऐसा खासतौर पर दो वजहों से होता है। एक तो इस्लामिक मान्यता है कि यह जन्नत का पत्थर है और दूसरा यह, एक बार लूटा भी जा चुका है।
ब्लैक स्टोन सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी में यह शामिल होता है कि हर घंटे उसके आसपास होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखे। इसके अलावा इन गार्डों की ड्यूटी यह भी रहती है कि अगर कोई आगंतुक गर्मी या किसी दूसरी वजह से बेहोश हो जाए या बीमार हो जाए तो उनकी मदद करें, ब्लैक स्टोन को चूमने का तरीका बताने और कतार ठीक से लगे होने की भी जिम्मेदारी रहती है।
लोकप्रिय इस्लामी धारणाओं के अनुसार, यह पत्थर जन्नत से गिरने के समय आदम को दिया गया था जो सफेद था। बाद में लाखों लोगों के चूमने या छूने से इसने उनके पाप सोख लिए तो काला हो गया।
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अधिकृत जानकारियों के मुताबिक, मक्का के काबा की पूर्वी दीवार (मस्जिद के भीतर छोटा धर्मस्थल) में मौजूद ब्लैक स्टोन शायद अरब के पूर्व इस्लामिक धर्म से भी संबंधित रहा है। पत्थर अगूंठीनुमा चांदी के बैंड से घिरा है। जिसे वर्ष 930 में करमाटियन हमलावर ले गए और 20 साल बाद दोबारा हासिल किया जा सका। कुछ तथ्य ऐसे भी है कि इसे आठ साल बाद पाया जा सका और तब तक हज भी बंद रहा।
करमाटियन ने फातमी खलीफा की इमामत को खारिज कर दिया था, जिसके चलते दोनों के बीच जंग हुई। करमाटियन 9 वीं से 11 वीं शताब्दी के दौरान इराक, यमन और खासतौर पर बहरीन में फले-फूले। वर्ष 903–906 में सीरिया और इराक में विद्रोह के लिए जाने गए।
दो बहरीन नेताओं अबू साद अल-जन्नबी और उनके बेटे अबू सुलेमान ने कई बार इराक पर हमला किया और 930 में मक्का पर हमला कर काबा के ब्लैक स्टोन को ले गए।