द लीडर हिंदी, लखनऊ | उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से तैयारियों में जुट गई है. यह इस वजह से भी है क्योंकि इस बार के बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था जिसके चलते पार्टी पर एक धब्बा लग गया था.

यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल प्रचार का दौर छाया हुआ है. पूरे प्रदेश समेत दिल्ली और आस पास के इलाकों में आप अगर बाहर निकलते होंगे तो एक न एक बार “उत्तरप्रदेश देश में नंबर 1 ” का पोस्टर ज़रूर देखा होगा.

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यह पोस्टरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि हर आदमी के ज़हन में छापा हुआ है. एअरपोर्ट से लेकर पेट्रोल पंप तक सभी जगहों पर यह विज्ञापन इस तरीके से लगाया गया है कि आम आदमी की नज़र आसानी से आ जाए. इसी पोस्टर की एक फोटो कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

क्या है वायरल फोटो ?

वायरल फोटो दरअसल उसी विज्ञापन की है. उत्तर प्रदेश को नंबर 1 बताने वाला विज्ञापन. इस विज्ञापन को एक ट्रक पर लगाया गया था और वह ट्रक खराब सड़क की वजह से ज़मीन में धसा हुआ दिख रहा है. यह फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद बीजेपी की काफी आलोचना की जा रही है.

यूपी का एक भी शहर रहने के लिहाज में नहीं

बीते साल स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के तहत 111 शहरों के सर्वे में से 49 शहर 10 लाख से अधिक आबादी वाले थे, जबकि 62 शहर 10 लाख से कम कम आबादी वाले। इससे पहले 2018 में शहरों की रैंकिंग की गई थी।

रहने के लिहाज से देश के 111 शहरों के टॉप दस में उत्तर प्रदेश का एक भी शहर नहीं है। हालांकि, दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की टॉप 50 की रैकिंग में लखनऊ (26), वाराणसी (27), कानपुर (28), गाजियाबाद (30), प्रयागराज (32), आगरा (35), मेरठ (36), बरेली (47) को रहने लायक माना गया था।

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क्या है मिशन 2022?

भारतीय जनता पार्टी हमेशा की तरह सबसे पहले सियासी मैदान में उतर गई थी. शुरुआत हुई थी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के परिणाम आने के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी ने यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी, सपा (समाजवादी पार्टी) को करारी हार से नवाज़ा था.

उसी के अगले दिन पूरे उत्तर प्रदेश में सपा के विधायकों और सांसदों के घर ED और CBI के छापेमारी की खबर ने सुर्खियाँ बटोर ली. दरअसल यह छापेमारी अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट घोटाले को लेकर थी.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी लगातार यूपी पर कोई न कोई टिप्पणी की है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ भी. कोरोना को काबू में रखना हो या उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था हो, पीएम ने हमेशा योगी आदित्यनाथ के पक्ष में ही बयान दिए है. हलांकि सच्चाई सामने रखते हुए विपक्ष ने पूरी तरह से पीएम की हर बात को झूठा साबित करने का प्रयास भी किया है.

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क्या है मुख्य विपक्षी पार्टी सपा की रणनीति ?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बार जमकर मैदान में उतरे हैं. 2022 के चुनाव के लिए उन्होंने अपनी पार्टी को एक नारा भी दिया है. वह नारा “नई हवा है, नई सपा है” के रूप में हम सब तक पहुँचाया गया है.

अखिलेश यादव ने अपनी तरफ से बीजेपी को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है. सरकार की ज़्यादातर नाकामियों पर अखिलेश ने जमकर निशाना साधा है फिर चाहे वो हाथरस रेप कांड हो या फिर कोरोना के बेकाबू हो जाने वाला दौर.

कुछ दिनों पहले अखिलेश क्यों थे सुर्ख़ियों में ?

अभी थोड़े दिन पहले अखिलेश यादव की दो तस्वीरे सोशल मीडिया पर राज कर रही थी. एक फोटो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के साथ थी जिसमे वह अपने पिता मुलायम सिंह और लालू यादव के साथ अपने घर में चाय पीते दिख रहे थे. अखिलेश यादव ने खुद अपने ट्विटर अकाउंट से वह फोटो को साझा किया था और लिखा था कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी.

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दूसरी तस्वीर अभी कुछ दिन पहले की ही थी जिसमें अखिलेश यादव कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के घर पर डिनर पर जाते दिखाई दिए थे. कपिल सिब्बल ने अपने घर पर सभी विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया था जिसमें अखिलेश भी नज़र आए थे.

इस आमंत्रण को सियासी दावत का नाम दिया गया था क्यूोंकि इसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, आम आदमी पार्टी से सांसद संजय सिंह, कश्मीर के नेता उमर अब्दुल्लाह और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत कई अन्य विपक्षी नेता शामिल हुए थे. कहा गया था कि यह मीटिंग आने वाले विधानसभा चुनाव पर रणनीति बनाने के लिए बुलाई गई थी.

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यूपी में क्या कांग्रेस पैर पसार पाएगी ?

बात अगर कांग्रेस की करें तो फिलहाल इस खेमे में सन्नाटा पड़ा हुआ है. हालांकि कुछ दिनों पहले प्रियंका गांधी 2 दिनों के लखनऊ दौरे पर आईं थीं जिसमें उन्होंने जमकर हल्ला बोला था. लखनऊ के परिवर्तन चौक पर वह प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के साथ मौन धरने पर बैठ गईं थीं और योगी आदित्यनाथ की गलत नीतियों पर सवाल उठाए थे.

सबसे प्रमुख हरकत कांग्रेस की तरफ से हाथरस रेप कांड में देखने को मिली थी जिसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने हाथरस पर एक लम्बा सियासी बवाल खड़ा कर दिया था. उसके बाद से ही कांग्रेस की तरफ से कुछ ख़ास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है.

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किसका पलड़ा है भारी ?

देखा जाए तो मुख्य लड़ाई समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच देखने को मिलेगी. हालांकि समाजवादी पार्टी ने यह एलान कर दिया है कि इस बार वह किसी भी बड़ी पार्टी के साथ नहीं बल्कि तमाम छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करके आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी.

बात अगर भारतीय जनता पार्टी की करें तो अभी तक कोई औपचारिक खबर इस खेमे से नहीं सुनने को मिली है. ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी इस बार कड़ी टक्कर दे सकती है लेकिन मोदी लहर में कुछ भी कह पाना मुश्किल ही होगा.

नई पार्टियों का क्या रहेगा रोल ?

इस बार आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एलान किया था कि 2022 में यूपी विधानसभा चिनाव में उनकी पार्टी भी प्रवेश करेगी. आप किसी के साथ गठबंधन करके नहीं बल्कि खुद अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. यह खबर के बाद ऐसा कहा जा रहा था की भारतीय जनता पार्टी के वोट काटने का खतरा थोड़ा बढ़ गया है.

वहीं दूसरी तरफ एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा था कि वह इस बार 100 विधानसभा सीटों पर अपनी किस्मत आज़माएँगे. दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर ओवैसी ने 5 सीटें अपने नाम की थीं जिसके बाद वह अब यूपी की सियासत में भी अपनी किस्मत आज़माना चाहते हैं.

ओवैसी के इस एलान के बाद यह कहा गया था कि ओवैसी सपा से मुस्लिम वोट काट कर अपने खेमे में कर लेंगे जिससे समाजवादी पार्टी को नुकसान और भारतीय जनता पार्टी को साफ़ तौर पर फायदा होगा.

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