द लीडर : उत्तर प्रदेश जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के बीच जुबानी तकरार तेज हो गई है. सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (SP President Akhilesh Yadav) के उस बयान पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह (BJP UP President Swatantra Dev Singh ) ने पलटवार किया है. इसे भी पढ़ें – ‘जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भाजपा नहीं डीएम और एसएसपी लड़ रहे’-अखिलेश यादव
जिसमें अखिलेश ने ये आरोप लगाया था कि, ”जिला पंचायत अध्यक्ष (District President Election) के नामांकन में जिस अलोकतांत्रित तरीके से पार्टी उम्मीदवारों को रोका गया-उससे इस चुनाव की निष्पक्षता और पवित्रा खत्म हो गई. ये लोकतंत्र की हत्या की एक साजिश है.” इस पर स्वतंत्र देव ने कटाक्ष किया-”अखिलेश यादव अपनी हार स्वीकार चुके हैं.”
राज्य में जिला पंचायत अध्यक्ष की 75 सीटें हैं. 3 जुलाई को अध्यक्ष चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. बीते शनिवार को नामांकन हुआ था. 18 सीटें ऐसी हैं, जहां केवल एक-एक उम्मीदवार ने ही पर्चा दाखिल किया है.
इसमें 17 प्रत्याशी भाजपा के हैं, जबकि इटावा में सपा की ओर से अभिषेक यादव हैं. मुकबाले में कोई दूसरा प्रत्याशी न होने से इन 18 सीटों पर निर्विरोध अध्यक्ष चुना जाना तय है.
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दरअसल, ये निर्विरोध चुनाव ही दोनों दलों के बीच सियासी तकरार की वजह है. अखिलेश यादव ने दावा किया कि, वाराणसी और गोरखपुर के जिला पंचायत सदस्य चुनाव में भाजपा बुरी तरह परास्त हुई थी. इस स्थिति में उनके निर्विरोध अध्यक्षों का चुना जाना, किसी चमत्कार से कम नहीं है. धन-छल और सत्ता बल की अनैतिकता ने ये साबित कर दिया है कि भाजपा जनादेश की इज्जत नहीं करती.
सपा के इन आरोपों को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने भी जवाबी हमला किया है. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ”समाजवादी पार्टी 2014 के बाद से हर चुनाव में शिकस्त का सामना करती आ रही है. फिर भी अखिलेश जी वर्क फॉर्म होम कर रहे हैं.” इसे भी पढ़ें –गोरखपुर और बस्ती में नामांकन को पहुंचे सपा नेताओं के साथ मारपीट
सिंह ने आरोप लगाया कि, ”आपदा काल में घरों में बैठे भ्रम फैलाते रहे. अब पंचायत चुनाव में करारी शिकस्त खाने के करीब हैं, तो बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं. सिंह ने जिस पार्टी में परिवारवाद ही सर्वोपरि है, उसके अध्यक्ष द्वारा लोकतंत्र की दुहाई देना शोभा नहीं देता.”
नामांकन न होने पर सपा ने हटाए थे 11 जिलाध्यक्ष
पंचायत अध्यक्ष चुनाव में पर्चा दाखिल न करा पाने से नाराज अखिलेश यादव ने 11 जिलों के अध्यक्षों को हटा दिया था. इसमें गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्धनगर, मऊ, बलरामपुर, श्रीवास्ती, भदोही, गोंडा और ललितपुर के जिलाध्यक्षों पर कार्रवाई हुई है.
तो जिलाध्यक्षों पर कार्रवाई का मुद्दा भाजपा ने लपका
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नामांकन न करा पाने के मामले में सपा को पहले दिन ही कार्रवाई से बचना चाहिए था. उसकी कार्रवाई से समाज में ये संदेश गया है कि जैसे पार्टी भितरघात का शिकार हुई है. यही वजह है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने इस मुद्दे को लपक लिया है. इसे भी पढ़ें – सपा का गंभीर आरोप, ‘पुलिस को जिला पंचायत अध्यक्ष का ठेका देकर अपहरण पर लगाया’
संभव है कि इसे आगामी विधानसभा चुनाव में भी भुनाया जाए. बेहतर होता कि सपा, सत्ताधारी दल पर जो आरोप लगा रही थी, उन्हीं पर अडिगर रहती. और समीक्षा के बाद जिला नेतृत्व में बदलाव का फैसला लेती.
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले का रिहर्सल
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव है. इस लिहाज से पंचायत चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है. मुख्य फाइट भाजपा और सपा में हैं. इसमें 18 सीटों पर स्थिति काफी हद तक साफ हो चुकी है, जिसमें 17 पर भाजपा और एक पर सपा की लीडर नजर आ रही है.
बाकी 57 सीटों पर मतदान होना है. इसमें किसका पलड़ा भारी रहेगा. इस पर सबकी नजरें टिकी हैं. बहरहाल, दोनों दल इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं. इसे भी पढ़ें – सुप्रीमकोर्ट ने हिंदुओं के कथित धर्मांतरण पर SIT जांच की मांग वाली याचिका खारिज की.