भारत के मजदूरों ने भी उठाई आवाज, फिलीस्तीनी जनता के कत्लेआम का विरोध करो!

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दुनियाभर में इस्राइल के फिलिस्तीन पर हमले के खिलाफ प्रदर्शनों के बीच भारत के मजदूरों ने आवाज बुलंद की है। हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले इंकलाबी मज़दूर केंद्र ने फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता जाहिर की है। मजदूरों के बीच प्रचार के लिए एक पर्चा भी जारी किया है, जिसमें संगठन की ओर से इस मामले पर समझ को विस्तार रखा गया है।

‘इमके’ नेतृत्व ने कहा है, हमारा संगठन इस्राइली जियनवादी शासकों द्वारा निर्दोष फिलीस्तीनी जनता के कत्लेआम की पुरजोर मुखालफत करता है और मज़दूर वर्ग का आह्वान करता है कि फिलीस्तीनी जनता के कत्लेआम के विरोध में अपनी आवाज उठाएं, फिलीस्तीनी जनता के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के साथ खड़े हों।

इस संगठन ने भारत सरकार से मांग की है कि वह इस्राइल के साथ अपने सभी संबंध खत्म करे, फिलीस्तीनी जनता के कत्लेआम की सार्वजनिक मुखालफ़त करे और अंतराष्ट्रीय मंचों से गाज़ा पट्टी पर किए जा रहे हवाई हमलों को तत्काल रोकने की मांग करे।

‘इमके’ की ओर से जारी पर्चे में कहा गया है, पश्चिम एशिया में अमेरिकी लठैत इस्राइल द्वारा फिलीस्तीन के गाज़ा पट्टी पर भीषण हवाई हमले लगातार जारी हैं। 10 मई से जारी इन हमलों में अभी तक 200 से अधिक निर्दोष फिलीस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।

इतना ही नहीं वेस्ट बैंक में घोर दक्षिणपंथी फ़ासिस्ट यहूदी समूहों द्वारा इस्राइली सरकार के संरक्षण में फिलीस्तीनियों पर लगातार हमले कर उन्हें उनके घरों से खदेड़ा जा रहा है। गौरतलब है कि वेस्ट बैंक की कुल आबादी में 20 प्रतिशत फिलीस्तीनी हैं।

इस्राइली जियनवादी शासकों के संरक्षण में फ़ासिस्ट यहूदीवादी समूहों द्वारा रमजान के महीने में जानबूझकर पूर्वी येरुशलम में फिलीस्तीनी आबादी वाले इलाकों से भड़काऊ जुलूस निकालकर हिंसा का माहौल बनाया गया। इसके बाद मुसलमानों की तीसरी सबसे पवित्र अल अक्सा मस्जिद में फिलीस्तीनियों को नमाज अदा करने से रोका गया और उन पर हमला किया गया। अल अक्सा मस्जिद में की गई इस हिंसा में इस्राइली पुलिस भी सीधे-सीधे शामिल थी।

इस उकसावेपूर्ण कार्यवाही की प्रतिक्रिया में जब गाज़ा पट्टी स्थित कट्टरवादी संगठन हमास ने इस्राइल पर दर्जनों रॉकेट दाग दिये तो बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने हमास को नष्ट करने के नाम पर गाज़ा पट्टी की इमारतों, स्कूलों, अस्पतालों और सरकारी कार्यालयों पर भारी बमबारी करते हुए निर्दोष फिलीस्तीनियों का कत्लेआम शुरु कर दिया, जो कि अभी भी लगातार जारी है।

 

‘इमके’ का कहना है कि इस्राइली विस्तारवादी शासकों द्वारा पिछले कई दशकों से फिलीस्तीनी इलाकों का अतिक्रमण कर उन पर कब्जा किया जाता रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद के संरक्षण में अंतराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन कर और फिलीस्तीनी जनता के प्रतिरोध को निर्ममता से कुचल कर इस्राइली जियनवादी शासकों द्वारा फिलीस्तीनियों को उन्हीं के घर से बेदखल किया जाता रहा है।

आज फिलीस्तीनियों को महज गाज़ा पट्टी के छोटे और वेस्ट बैंक के कुछ इलाकों में समेत दिया गया है। इस्राइली जियनवादियों द्वारा येरुशलम को इस्राइल की राजधानी की घोषणा को अमेरिकी साम्राज्यवादी अपनी मान्यता दे चुके हैं, जो कि 1980 के संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का खुला उल्लंघन है।

मौजूदा समय में बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार इसी इस्राइली विस्तारवादी अभियान को आगे बढ़ाने के साथ साथ इस्राइल में यहूदीवादी अंधराष्ट्रवादी गुबार पैदा कर अपने राजनीतिक संकट को भी हल करने की कोशिश कर रही है। गौरतलब है कि इस्राइल में पिछले दो साल में चार आम चुनाव होने के बावजूद अभी भी राजनीतिक स्थिरता नहीं कायम हो पाई है। ख़ुद बेंजामिन नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोपों में बुरी तरह घिरे हुए हैं।

इस दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ जहां हिंसा रोकने की नपुंसक अपीलें कर रहा है वहीं अरब मुल्क एवं रुस व चीन भी औपचारिक विरोध से आगे नहीं जा रहे हैं। अमेरिकी और यूरोपीय साम्राज्यवादी पूरी बेशर्मी के साथ इस्राइल के साथ खड़े हैं तो वहीं तुर्की फिलीस्तीनियों का रहनुमा बनने की कोशिश कर असल में अपना उल्लू सीधा कर रहा है। जबकि भारत सरकार अपनी अमेरिका परस्त विदेश नीति को जारी रखते हुए हमास के रॉकेट हमलों का तो विरोध कर रही है लेकिन निर्दोष फिलीस्तीनियों के कत्लेआम पर चुप्पी साधे हुए है।

पिछले कई दशकों से फिलीस्तीनी जनता अपनी राष्ट्रीय मुक्ति के लिए लगातार संघर्षरत है। 1980 के दशक में शुरु हुये फिलीस्तीनी आवाम के इंतिफ़ादा बगावत) अनुगूंज पूरी दुनिया में सुनाई देती रही है, लेकिन आज के विपरीत वैश्विक हालातों में फिलीस्तीनी मुक्ति संघर्ष न सिर्फ अपनी मंजिल हासिल नहीं कर पा रहा है अपितु हमास जैसे कट्टरवादी संगठनों के प्रभाव में जाकर अंधेरी सुरंग में भी भटक रहा है।

ऐसे में इस्राइल, फिलीस्तीन समेत पूरी दुनिया में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध मज़दूर वर्ग के आंदोलनों की बढ़त ही वास्तव में फिलीस्तीनी मुक्ति संघर्ष को भी सही दिशा प्रदान करेगी।

स्रोत: इंकलाबी मजदूर केंद्र की ओर से जारी अपील


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