Dap Rate issue: कहां है आत्मनिर्भर भारत नीति, जब विदेशों से मंगवानी पड़ रही खाद : किसान मोर्चा

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कल सरकार द्वारा जारी बयान में डीएपी के रेट वापस 1200 करने के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया गया। ऐसे समय मे जब किसान चारों तरफ से मार झेल रहे है, दिल्ली की सीमाओं सहित देश के अन्य हिस्सों में किसान 6 महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे है, पिछले महीने सरकार ने डीएपी के मूल्य बढ़ाने का फैसला किया था। किसानों के भारी दबाव के तले यह दाम वापस तो कर दिए परंतु डीएपी का मूल मुख्य 2400 हो गया है। सरकार किसी भी समय सब्सिडी हटा सकती है जिससे सारा भार किसानों पर आएगा।

डीएपी पर राहत मिलने के प्रचार पर आंदोलन कर रहे किसानों ने यह कहकर सरकार से नाराजगी जताई है।

दिल्ली की सीमाओं पर बीते 175 दिन से मोर्चा जमाए बैठे किसानाें के नेतृत्व ने प्रेस बयान जारी करके कहा, डीएपी का बैग एक महीना पहले किसान के लिए 1200 रुपए में मिलता था, जब उसका असल मूल्य 1700 रुपए था। एक महीना पहले जिस डीएपी बैग का मूल्य 1700 रुपए से बढ़ाकर 2400 रुपए कर दिया और उसमें 1200 रुपए सब्सिडी करके डीएपी का मूल्य वही 1200 रुपए ही रखा है।

इस तरह किसान को तो कुछ भी नया नहीं मिला है। किसान की सब्सिडी के नाम पर फर्टिलाइजर कंपनी को प्रति बैग पर सब्सिडी 500 रुपए से बढ़ाकर 1200 रुपए प्रति बैग कर दी है।

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Misconceptions New Agricultural Laws

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा, सरकार इस फैसले को बहुत जोर-शोर से दिखाकर इसे भी उपलब्धि बता रही है। सच्चाई यह है कि सिर्फ मीडिया हेडलाइन के लिए यह कवायद की गई है जबकि इससे धरातल पर किसानों के जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आएगा।

उन्होंने यह भी कहा, सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने खाद के दाम बढ़ाए हैं। फिर मोदी सरकार बार-बार आत्मनिर्भर भारत का नाम क्यों लेती है। इससे पहले भी मेक इन इंडिया का प्रचार क्यों करती थी, देश की सरकारी व घरेलू संस्थाएं भी खाद बनाने में सक्षम क्यों नहीं है?

दरअसल, सरकार आत्मनिर्भर भारत को सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है, दूसरी ओर देश में कृषि सेक्टर के सरकारी संस्थानों को लगातार घाटे में रखकर बंद करने पर मजबूर किया जा रहा है। इसकी आड़ में बड़े कॉर्पोरेट्स को उत्पादन का एकाधिकार देकर किसानों का शोषण करने की नीति अपनाने पर जोर है।

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आंदाेलनकारी किसानों ने कहा, अगर तीन नए कृषि कानून लागू होते हैं और एमएसपी की कानूनी गांरटी नहीं मिलती तो डीएपी के ये भाव भी किसानों का बहुत नुकसान करेंगे। सरकार को कृषि इनपुट कॉस्ट में कमी करनी चाहिए और पूरी पारदर्शिता के साथ एमएसपी की गणना होनी चाहिए। यह सब एमएसपी पर कानून बनने से व्यवस्थित रूप में होगा इसलिए किसान एमएसपी के कानून की मांग कर रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा, बहस का मुख्य मुद्दा तीन कृषि कानून और एमएसपी ही होना चाहिए। 470 किसानों की मौत के बाद भी सरकार किसानों को दिखावे के तौर पर खुश रखना चाहती है तो यह बहुत शर्म की बात है। सरकार अपनी इमेज पर ज्यादा ध्यान देती है न कि किसान कल्याण पर। सरकार को किसानों की मांगे मानकर असल मे किसान कल्याण करना चाहिए। सरकार किसानों से दुबारा बातचीत शुरू करें व किसानों की मांगें माने।

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