2500 साल में कैसे बना यहूदी देश इस्राइल

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आशीष आनंद-

कभी उत्पीड़न की पराकाष्ठा झेलने वाले यहूदी आज उत्पीड़क की शक्ल में नजर आ रहे हैं। उन्होंने कुछ दशक नहीं, लगभग 2500 साल जहां-तहां पनाह ली और हर जगह दुत्कार, बेइज्जती और मौत मिली। लेकिन आज उनके पास अपना एक देश है इस्राएल, जो दुनिया का एक मात्र यहूदी देश है। अरब देशों से घिरा इस्राएल कभी फिलीस्तीन के दो हिस्से कर बना, लेकिन अब फिलीस्तीन के ज्यादातर हिस्से पर उसका कब्जा है। (How Israel Became Nation)

दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक यहूदी धर्म का इतिहास लगभग 3 हजार साल पुराना माना जाता है। बताया जाता है कि इस धर्म की शुरुआत येरूशलम से पैगंबर ने की। वही येरूशलम, जो यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के लिए खास है। अब्राहम को ईसाई और मुस्लिम भी खुदा का दूत कहते हैं। अब्राहम के बेटे का नाम आईजैक और एक पोते का नाम याकूब (जैकब) था। याकूब का ही दूसरा नाम इस्राएल था।

बताया जाता है कि याकूब के 12 बेटे और एक बेटी थी। इन 12 बेटों ने 12 यहूदी कबीले बनाए। फिर याकूब ने इन सबको को इकट्ठा कर इस्राएल नाम का एक राज्य बनाया। याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा था। संभवत: उनके वंशजों को यहूदी कहा गया। इनकी भाषा हिब्रू थी। धर्मग्रंथ तनख है, जिसमें तोरैत और अन्य यहूदी शास्त्र शामिल है। ये लोग येरूशलम और यूदा के इलाके में रहते थे। (How Israel Became Nation)

कहा जाता है कि लगभग 2200 साल पहले पहला यहूदी राज्य वजूद में आया, जिसमें साउल, इशबाल, डेविड और सोलोमन जैसे मशहूर शासक हुए। सोलाेमन की न्यायप्रियता और लोकप्रियता पर कहानियां पूरी दुनिया में प्रचलित हैं। सोलोमन के बाद 931 ईसा पूर्व में इस राज्य का पतन होने लगा। संयुक्त इस्राएल दो हिस्सों में बंटकर इस्राएल और यूदा के बीच में बंट गया।

700 ईसा पूर्व में असीरियाई साम्राज्य ने येरूशलम पर हमला किया। यह साम्राज्य आज के इराक वाली जगह पर था। इस हमले के बाद यहूदियों के 10 कबीले तितर-बितर हो गए। फिर 72 ईसा पूर्व रोमन साम्राज्य के हमले के बाद सारे यहूदी दुनियाभर में इधर-उधर जाकर बस गए। इस हमले में किंग डेविड के मंदिर को भी तोड़ दिया गया। इस मंदिर की एक दीवार बची थी जो आज भी यहूदियों के लिए पवित्र तीर्थ मानी जाती है। इसे ही वेस्टर्न वॉल कहा जाता है। इस घटना को एक्जोडस कहा जाता है।

कुछ जानकार इस घटना को पौराणिक किस्सा भी कहते हैं, लेकिन यह घटना यहूदियों के बीच बेहद अहम मानी जाती है। बहरहाल, वेस्टर्न वॉल के साथ ही उस जगह मुस्लिमों की पवित्र अल अक्सा मस्जिद-हरम शरीफ और ईसाइयों में पवित्र मानी जाने वाली जगह है, जहां ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया। तीन धर्मों की खास जगह एक ही है और तीनों में मान्यताओं में भी तमाम मामलों में समानता है। इसके बावजूद उनके बीच बाद में धार्मिक दुश्मनी बेहिसाब हुई, धर्मयुद्ध हुए। (How Israel Became Nation)

जैसा कि बताया गया, एक्जोडस के बाद यहूदी पूरी दुनिया में फैल गए। ज्यादातर यहूदी यूरोप और अमेरिका में बस गए। इसके बाद दुनिया में, खासतौर पर आधुनिक युग में एक शब्द प्रचलन में आया जिसे एंटी सेमिटिज्म कहा जाता है। जिसका मतलब है हिब्रू भाषा बोलने वाले लोगों यानी यहूदियों के प्रति दुर्भावना।

दुनिया में यहूदियों को लेकर एक वहम फैला कि यहूदी दुनिया की सबसे चालाक कौम है और ये किसी को भी धोखा दे सकते हैं, काबिले ऐतबार नहीं हैं।

एंटी सेमिटिज्म के चलते कई देशों में यहूदियों को अपनी धार्मिक जातीय पहचान सार्वजनिक अनिवार्य कर दिया गया। कई यूरोपीय देशों की सेनाओं में लड़ने वाले यहूदियों को अपनी वर्दी पर एक सितारा लगाकर रखना होता था। इस सितारे को डेविड का सितारा कहा जाता। इस सितारे से उनकी पहचान की जाती। यहूदियों को अपनी पहचान छिपाने या गलत बताने पर सजा मिलने के कायदे भी बन गए।

ये सिलसिला थियोडोर हर्जल के जमाने तक चलता रहा। थियोडोर हर्जल इस्राएल के राष्ट्रपिता की तरह माने जाते हैं, पाकिस्तान के मुहम्मद अली जिन्ना या भारत के महात्मा गांधी की तरह। हर्जल 2 मई 1860 में जन्मे। युवा उम्र में वह वियना में सामाजिक कार्यकर्ता हो गए। (How Israel Became Nation)

लेकिन एंटी सेमिटिज्म के चलते इन्हें वियना छोड़ना पड़ा और फ्रांस आकर पत्रकारिता करने लगे। 1890 के दशक में जब फ्रांस रूस से युद्ध हार गया तो जांच रिपोर्ट में हार की जिम्मेदारी एक यहूदी अफसर एल्फर्ड ड्रेफस पर डाल दी गई। हर्जल ने यह स्टोरी कवर की।

एंटी सेमिटिज्म के इस उदाहरण के बाद हर्जल ने तय किया कि वो सारे यहूदियों को इकट्ठा करेंगे और एक नया देश या राज्य बनाएंगे। इसके लिए उन्होंने 1897 में स्विटजरलैंड में वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस नाम से एक संस्था बनाई। यहीं से मौजूदा इस्राइल के बीज पड़े। जायन हिब्रू भाषा में स्वर्ग को कहा जाता है।

कुछ ही वक्त बीता कि वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस को दुनियाभर में छितराए यहूदी चंदा देने लगे। इस संस्था के बैनर तले यहूदी इकट्ठा होने लगे। हर साल इसका वैश्विक सम्मेलन होने लगा। लेकिन, 1904 में हर्जल की दिल की बीमारी से मौत हो गई।

world zionist congress

तब तक जायनिस्ट कांग्रेस का प्रभाव दुनियाभर के यहूदियों के बीच हो गया था। तुर्की और उसके आसपास के बड़े इलाके में ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा था। प्रथम विश्वयुद्ध के दरम्यान 2 नवंबर 1917 को ब्रिटेन और यहूदियों के बीच बालफोर समझौता हुआ।

इस समझौते में तय हुआ कि अगर ब्रिटेन युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को हरा देगा तो फिलिस्तीन के इलाके में यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश दिया जाएगा। यह एक तरह से ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का झांसा था। फिर भी समझौते के असर से आलिया में तेजी आ गई।

आलिया यहूदियों का दूसरे देशों से येरूशलम की तरफ पलायन करने को कहा जाता है। जायनिस्ट कांग्रेस को भी लगा कि अगर ब्रिटेन अपना वादा पूरा करेगा तो फिलिस्तीन में उस समय यहूदियों की एक बड़ी आबादी होनी चाहिए। इसी वजह से दुनियाभर के यहूदी अपने देशों को छोड़कर फिलिस्तीनी इलाकों में बसने लगे।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ब्रितानी सरकार ने वादा पूरा नहीं किया। अंग्रेज साम्राज्यवादी बहाने करके बालफोर समझौते को लागू करने से बचते रहे। प्रथम विश्वयुद्ध खत्म होने के अगले 20 साल तक यह समझौता लागू नहीं हुआ और फिर दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया। (How Israel Became Nation)

Children behind a barbed wire fence at the Nazi concentration camp at Auschwitz in southern Poland. (Photo by Keystone/Getty Images)

द्वितीय विश्वयुद्ध ने यहूदी इतिहास को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। उस समय जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने एंटी सेमेटिज्म का सबसे क्रूर रूप दिखाया। हिटलर ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की योजनाबद्ध तरीके से हत्या करा दी। जर्मनी और आसपास के देशों में कंसंट्रेशन कैंप में यहूदियों को मारा गया।

यहूदियों के साथ इस अत्याचार को देख पूरी दुनिया में उन्हें हमदर्दी मिली। इसी हमदर्दी आड़ में नई साम्राज्यवादी मंशाओं के तहत 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यहूदियों की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करने पर मुहर लगा दी।

संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि फिलीस्तीन के दो हिस्से किए जाएं, एक हिस्सा यहूदियों को दिया जाए और दूसरा हिस्सा मुस्लिमों को दे दिया जाए। साथ ही यह भी कहा कि येरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर रखा जाए क्योंकि यहां यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के धर्मस्थल हैं।

यहूदियों को यह योजना पसंद आ गई। लेकिन मुस्लिम इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिलिस्तीन चारों तरफ से अरब देशों जॉर्डन, सीरिया, मिस्र घिरा हुआ था। इन देशों ने इस बंटवारे को फिलिस्तीन के मुस्लिमों के साथ नाइंसाफी करार दिया। अरब देशों ने कहा कि मुस्लिमों ने यहूदियों पर कभी अत्याचार नहीं किया, यहूदियों पर हुए अत्याचारों के लिए यूरोपीय देश और ईसाई जिम्मेदार हैं। ऐसे में अगर यहूदियों को अलग देश देना है तो यूरोप में दिया जाना चाहिए।

अमेरिकी दबदबे के चलते संयुक्त राष्ट्र में इस दलील को अनसुना कर दिया गया। अमेरिका इस तरह अरब में अपनी धाक जमाने और वहां की कुदरती दौलत पर काबिज होने के साथ ही प्रतिद्वंद्वी सोवियत संघ को तोड़ने की योजना बना चुका था। अरब देशों के बीच इस्राइल अमेरिकी गुर्गा बन गया, सारा साजोसामान अमेरिका ने उसे मुहैया करा दिया।

इसी बंटवारे के साथ शुरू हुआ इस्राएल फिलिस्तीन विवाद आज तक जारी है। इस्राइल तो एक देश बन गया, लेकिन तब से फिलिस्तीन कोई देश नहीं बन सका, महज एक इलाका या पट्टी में शुमार हो गया। इस्राएल ने फिलिस्तीनी संगठनों और अरब देशों के साथ कई लड़ाईयां लड़ीं, लेकिन सैन्य युद्ध में अरब देशों से अब तक हारा नहीं, क्योंकि उसकी पीठ पर अमेरिका हाथ रखे रहा। इस्राएल और अरब देशों के बीच में हुई लड़ाइयों में इस्राएल ने और भी जमीन हथिया ली।

यासिर अराफात की अगुवाई में शुरू हुआ फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष जारी है। दशकों से यहां फिलिस्तीनी युवा गुलेल लेकर इस्राइल के आधुनिक हथियारों से मुकाबला कर रहे हैं। ‘इंतफादा’ के नाम से मशहूर ये छापेमार लड़ाई इस्राइली सेना के लिए बेहद परेशानी का सबब है। (How Israel Became Nation)

अराफात के संगठन ने जहां दुनिया में फिलीस्तीन की मुक्ति के लिए हमदर्दी जुटाई और सैन्य सहायता ली, वही उसके प्रतिद्वंद्वी हमास ने चरमपंथी रुख अपनाकर इस्राइल से आमने सामने जंग का रास्ता तय किया हुआ है।

फिलहाल गाजा पट्टी और पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों को छोड़कर फिलीस्तीन के अधिकांश हिस्से पर भी इस्राएल का कब्जा है। येरूशलम में इस्राएल ने एक दीवार बना ली है। ये दीवार येरूशलम को फिलिस्तीन से अलग करती है। इस्राएल ने येरूशलम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया, जिसे अमेरिका ने मान्यता भी दे दी है। अमेरिका ने अपना दूतावास भी येरूशलम में खोल लिया है।


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