राजस्थान में बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन का मामला SC पहुंचा, जानिए क्यों लड़कियों के स्वास्थ्य को घातक है बाल विवाह

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  • अब राजस्थान में बाल विवाह का होगा रजिस्ट्रेशन

  • राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 पास

  • बीजेपी ने बिल का किया विरोध, कहा- ये ‘काला कानून’ है

  • देश में बढ़ रहे है बाल विवाह के मामले

द लीडर। राजस्थान की गहलोत सरकार ने बीते दिनों एक विवादित कानून पास किया था. ये कानून बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन से जुड़ा था. अब राजस्थान में बाल विवाह के लिए रजिस्ट्रेशन हो सकेंगे. बता दें कि, जब ये कानून विधानसभा में पेश हुआ तो विपक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया. लेकिन विरोध के बीच गहलोत सरकार ने ये कानून पेश कर दिया. वहीं अब इस कानून को चुनौती भी मिलने वाली है. नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स यानी NCPCR का कहना है कि वो राजस्थान के इस कानून का विरोध करेगा. NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है कि, वो 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देने वाले कानून का विरोध करेंगे.


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कानून रद्द करने को लेकर SC में याचिका दायर

राजस्थान के इस कानून को रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर हुई है, जिसमें NCPCR को भी पार्टी बनाया गया है. प्रियंक कानूनगो का कहना है कि, वो अदालत में इस कानून का विरोध करेंगे. उन्होंने बताया कि, राजस्थान सरकार का ये कानून चाइल्ड मैरिज एक्ट और पॉक्सो एक्ट का उल्लंघन करता है.

शुक्रवार को ही पास हुआ था कानून

राजस्थान सरकार ने इस विवादित कानून को बीते शुक्रवार (17 सितंबर) को विधानसभा में पास कराया. प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारवाल ने इसे सदन में रखते हुए दावा किया था कि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत बाल विवाह को रजिस्टर्ड करने की अनुमति दी जा रही है. इस कानून में प्रावधान है कि, अगर शादी के वक्त लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल है, तो उनके माता-पिता को 30 दिनों के भीतर इस शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. इस पर बीजेपी विधायक और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का कहना था कि, बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन करना, इसे कानूनी मान्यता देने जैसा है. इसके जवाब में शांति धारवाल ने कहा था कि, वो सिर्फ रजिस्ट्रेशन करने को कह रहे हैं, कानूनी मान्यता नहीं दे रहे हैं.


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भाजपा ने बिल पर उठाए सवाल

बता दें कि, राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के कड़े विरोध के बीच विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. भाजपा ने सवाल उठाते हुए पूछा कि, पंजीकरण की क्या आवश्यकता है और बिल का उद्देश्य क्या है. भाजपा विधायक अशोक लाहोटी ने सवाल उठाते हुए कहा कि. क्या विधानसभा हमें सर्वसम्मति से बाल विवाह की अनुमति देती है? यह विधेयक विधानसभा के इतिहास में काला अध्याय लिखेगा. वहीं, विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि कांग्रेस की ओर से पारित किया गया यह संशोधन विधेयक हिंदू मैरिज एक्ट के खिलाफ है. हिंदुओं में नाबालिग की शादी गैरकानूनी है, लेकिन कांग्रेस इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है.

बाल विवाह करने वाले जोड़ों को पंजीकरण कराने का आदेश

इस पर राज्य के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि, इस विधेयक का मकसद हर विवाहित (चाहे बाल विवाह ही क्यों नहीं हो) को पंजीयन कराना होगा. उन्होंने कहा कि, संशोधन कही नहीं कहता कि, ऐसे विवाह वैध होंगे. कलेक्टर या डीएम चाहे तो उनपर कार्रवाई कर सकते हैं. यह विधेयक केंद्रीय कानून का विरोधाभास नहीं है. विवाह प्रमाण पत्र एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके अभाव में विधवा को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है.


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बढ़ रहे हैं बाल विवाह के मामले

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के मुकाबले 2020 में बाल विवाह के मामलों में करीब 50% बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देशभर में बाल विवाह के 785 मामले सामने आए हैं. उससे पहले 2019 में 523 और 2018 में 501 केस प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत दर्ज हुए थे. वहीं, 2017 में इस एक्ट के तहत 395, 2016 में 326 और 2015 में 293 केस दर्ज हुए थे. भारतीय संविधान के मुताबिक, अगर 21 साल की उम्र से पहले लड़के या 18 साल की उम्र से पहले लड़की की शादी होती है तो उसे बाल विवाह माना जाएगा.

क्या है बाल विवाह निषेध अधिनियम?

बता दें कि, संसद ने साल 2006 में बाल विवाह निषेध अनियम, 1929 और उसके बाद के संशोधनों को निरस्त करते हुए “बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006” पारित किया था. इसमें महिला की 18 साल और पुरुष की 21 वर्ष से कम आयु में शादी नहीं की जा सकती. इस अधिनियम के तहत बाल विवाह दंडनीय अपराध और गैर-जमानती है. इसमें दोषियों को दो साल का कारावास या एक लाख रुपये का जुर्माना अथाव दोनों की सजा का प्रावधान है.


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कर्नाटक में दर्ज हुए सबसे अधिक मामले

NCRB के रिकॉर्ड के अनुसार, भारत में पिछले साल दर्ज बाल विवाह के 785 मामलों में से कर्नाटक में 184 मामल दर्ज किए गए हैं. इसी तरह असम में 138, पश्चिम बंगाल में 98, तमिलनाडु में 77 और तेलंगाना में 62 मामले दर्ज हुए हैं.

लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए घातक बाल विवाह

भले ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोग रोजगार की कमी और जिम्मेदारियों से मुक्त होने के लिए बच्चों का बाल विवाह कर रहे हैं, लेकिन यह लड़कियों के लिए बेहद घातक है. बाल विवाह का मतलब यह नहीं कि लड़कियों के शिक्षा और जीवन के अवसर खत्म हो जाते हैं, इसका सबसे बड़ा प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. ऐसे में बाल विवाह को पूरी तरह से खत्म करना जरूरी है.

जागरूकता का अभाव बन रहा कारण

एक रिपोर्ट के अनुसार, कलकत्ता हाई कोर्ट के अधिवक्ता कौशिक गुप्ता ने कहा कि, सरकारी विभाग, कलक्टर और स्थानीय पंचायत जागरूक हो गए हैं. इसके कारण शिकायतों में इजाफा हुआ है. उन्होंने कहा कि, उनके हिसाब से बाल विवाह में इजाफा न होकर शिकायतों में इजाफा हुआ है. सबसे महत्वपूर्ण है कि सरकारी विभाग भी चाहते हैं मामलों को रोककर अपनी दक्षता दिखाए और सरकार को बताएं कि उन्होंने इतने बाल विवाह रुकवाएं हैं.


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कोरोना महामारी के कारण बाल विवाहों में वृद्धि

सेव द चिल्ड्रन के निदेशक अनिंदित रॉय चौधरी ने कहा कि, कोरोना महामारी ने बाल विवाह में वृद्धि की है और यह समुदायों में देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि, ग्रामीण और झुग्गी बस्तियों में काम करने वाले उनके कर्मचारियों ने बताया कि, महामारी के कारण बाल विवाह बढ़े हैं. कई परिवारों के अपनी आजीविका खोने के कारण परिजनों को लग रहा है कि, उन्हें बच्चों की शादी कर देनी चाहिए. इससे उनकी जिम्मेदारी कम हो जाएगी.

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