अय्यूबी वंश की शहजादी ज़ैफा खातून, जिनके हुनर और काम पर है तारीख को नाज

खुर्शीद अहमद


 

अय्यूबी वंश के पुरुष अपनी वीरता और बहादुरी के लिए मशहूर हैं. इन्होंने यूरोपीय सेनाओं का डटकर मुकाबला किया. उन्हें पराजित करके बैतुल मुक़द्​दस और फिलिस्तीन को वापस छीन लिया. वह कुशल शासक थे. इल्म से भरपूर और अदब यानी साहित्य से खासा लगाव रखते थे. न्याय और स्वास्थ्य सेवाओं पर उनका खास जोर रहता था. (Princess Zaifa Khatoon History)

लेकिन इनकी औरतें भी कुछ कम नहीं थीं. वे बड़े प्रशासनिक ओहदों पर काम करतीं. कई शहजादियां तो शेरो-शायरी और साहित्य में काफी मशहूर हुईं. हदीस के इल्म में शाहज़ादी मोनिसा खातून ने अपना खास मुकाम बनाया. सित्तु अल-शाम-फातिमा खातून ने दवा की फैक्ट्री खोली.

विश्व इतिहास में में ये पहली ऐसी दवा फैक्ट्री थी, जिसका स्थापना और संचालन महिलाओं ने किया. यहां तक कि फैक्ट्री की कर्मचारी भी सभी महिलाएं थीं. अय्यूबी वंश की ऐसी 14 महिलाओं का जिक्र मिलता है, जिन्होंने अपने इल्म और काम के जरिये इतिहास पर मजबूत छाप छोड़ी है. (Princess Zaifa Khatoon History)

इन्हीं रानियों व शाहजादियों में से एक हैं ज़ैफा खातून, जिनका विशेष स्थान है. वह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की भतीजी थीं. और उनके बेटे सुल्तान ग़ाज़ी की बीवी भी, जो हलब के गवर्नर थे.


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इनकी पैदाइश हलब के किला में सन् 1185 ईस्वी में हुई थी. जैफा की शिक्षा का खास इंतजाम किया गया. उन्हें सैनिक ट्रेनिंग भी दी गई. शादी के बाद वह मलिका बन गईं पर शिक्षा व साहित्य में इनकी दिलचस्पी बाकी रही.

सन् 1235 में जेफा खातून ने अपनी दौलत से एक मदरसा बनाया. जिसका नाम रखा मदरसा फ़िरदौस. प्रथम विश्व युद्ध के बाद ये मदरसा बंद हो गया, लेकिन इसके भवन के निशान अभी तक बाकी हैं. (Princess Zaifa Khatoon History)

यूं तो मदरसा फ़िरदौस सिर्फ एक मदरसा था. पर उसमें क्या कुछ न था. एक शानदार लाइब्रेरी, सभी सुविधाओं से लैस हाॅस्टल, मुसाफिर खाना वगैरह. यहां तक कि कुफ्र ज़ैता और ताहून नाम के दो गांव केवल इस मदरसे के लिए वक्फ किए गए थे.

बेघर औरतों के लिए जैफा खातून ने एक हास्टल बनवाया. देश के अलग-अलग हिस्सों में 10 मुसाफिरखाने, दरवेशों के लिए एक बहुत बड़ी खानकाह बनवाई और इन सब अपना निजी माल खर्च किया.

जैफा खातून के शौहर के इंतकाल के बाद उनके बेटे अज़ीज़ सुल्तान बने. उनका भी जल्द इंतकाल हो गया. उस वक्त पोता महज 6 साल का था. उसे सुल्तान बनाकर जैफा खातून ने सत्ता की बागडोर खुद अपने हाथों में ले ली. और इतनी शानदार हुकुमत चलाई कि, इतिहास में उनका नाम अमर हो गया. एक भरपूर ज़िंदगी गुजारने के बाद 58 वर्ष की उम्र में सन् 1242 में जैफा खातून का इंतकाल हो गया. उन्हें हलब के किला में दफ़न किया गया. (Princess Zaifa Khatoon History)

(लेखक खुर्शीद अहमद इस्लामिक स्टडीज के छात्र रहे हैं और खाड़ी में कार्यरत हैं. ये लेख उनके ब्लॉग से यहां प्रकाशित हैं.)

 

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