टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों की कामयाबी से भारत की झोली में भी कई पदक आ चुके हैं। जिन खेलों में पदक हासिल नहीं भी हुआ, तो वहां प्रदर्शन की मेडल जैसा रहा। खासतौर पर महिला हॉकी का प्रदर्शन।
भारत ने दशकों में जो तरक्की की उसका यह एक पड़ाव है। यही हालात हमेशा नहीं थे। क्या 1948 में इस तरह की खुशियां हासिल थीं? नहीं। उस वक्त भी ओलंपिक हुआ। तब कैसे हॉकी टीम ने प्रदर्शन किया था! यह जानना दिलचस्प है।
1936 में बर्लिन ओलंपिक और 1948 में लंदन ओलंपिक के बीच के वर्षों में बहुत कुछ हुआ था। भारत को अपनी स्वतंत्रता मिली, लेकिन मुल्क के बंटवारे का दर्द भी मिला, जब भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान नाम का देश बन गया।
अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने से तमाम एंग्लो-इंडियन देश छोड़कर चले गए और दूसरी ओर तमाम प्रतिभाशाली मुसलमान पाकिस्तान चले गए। भारत, जो हॉकी में बर्लिन ओलंपिक में लोहा मनवा चुका था, उसके पास इसी क्षेत्र में खासी कमी खलने लगी।
काफी मेहनत-मशक्कत कर एक नई भारतीय टीम लंदन ओलंपिक को रवाना हुई, जिसमें एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं था जो पहले ओलंपिक में खेल चुका हो।
1948 के लंदन ओलंपिक में पाकिस्तान हॉकी टीम के कप्तान एआईएस दारा थे, जिन्होंने 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। दारा के अलावा, पॉल पीटर फर्नांडीस, भोपाल के अख्तर हुसैन और लतीफ-उर-रहमान ने ओलंपिक में भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए सेवाएं दीं।
खेल शुरू हुआ तो हंगामा मच गया। भारत ने अपने पहले मैच में ऑस्ट्रिया को 8-0 से हराया। फिर अर्जेंटीना को 9-1 से, स्पेन को 2-0 से और हॉलैंड को 2-1 से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।
फिर भारत का सामना हुआ ब्रिटेन से। उसी ब्रिटेन से, जिसने भारत को गुलाम बनाकर रखा। लेकिन अब भारत एक आजाद देश था। ओलंपिक हॉकी के फाइनल में ब्रिटेन से 12 सितंबर 1948 को वेम्बली मैदान आमना सामना हुआ। यह गोल्ड जीतने की नहीं, देश का स्वाभिमान जीतने की जंग थी।
खिलाड़ी स्वतंत्रता संग्रामी वीरों जैसे जज्बे के साथ मैदान में उतरे। मैच का रोमांच दर्शकों के लिए भी था। बलबीर सिंह सीनियर (पंजाब पुलिस) ने भारत के लिए पहले हाफ में दोनों गोल किए, जबकि पैट जानसेन और त्रिलोचन सिंह (पेनल्टी कॉर्नर) ने अन्य दो गोल किए।
आखिरकार भारत ने ब्रिटेन को 4-0 से हराकर लगातार चौथा स्वर्ण पदक जीत लिया – आजाद देश के रूप में यह पहला स्वर्ण पदक था।
बलबीर सिंह सीनियर ने दो और ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते और 1975 में कुआलालंपुर में विश्वकप विजेता भारतीय टीम का प्रबंधन किया। उनकी प्रसिद्ध आत्मकथा ‘द गोल्डन हैट ट्रिक’ है।
यह भी पढ़ें: गोल्डन बॉय नीरज पर पैसों की बरसात, जानें किसने क्या किया ऐलान
लंदन ओलंपिक के विजयी कप्तान किशनलाल ने किंग जॉर्ज के साथ भोजन करने पर औपचारिक भोज में बुलाए गए, जो भारत के बाहर एक आजाद देश के कप्तान बतौर पहला सम्मानित मौका था खिलाड़ियों के लिए।
इस शाही भोज पर किशनलाल ने बचपन का किस्सा सुनाया।
”जब स्कूली छात्र तो किशन लाल ने एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे, वहां मिठाई पर भिनभिनाती मक्खियों को देख कहने लगे, मक्खियों को उड़ा लिया करो, गंदगी कर रही हैं। इस पर मिठाई वाला तुनक गया, बोला: ‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम कौन हो? नवाब का बेटे हो? क्या तुम राजकुमारों और राजाओं के साथ खाना खाते हो? जो इतनी शेखी बघार रहे हो। तब किशनलाल ने जवाब दिया था, ज्यादा होशियार मत बनो। एक दिन देखना मैं इंग्लैंड के राजा के साथ खाना खाऊंगा।”
जीत के बाद, इंग्लैंड में भारत के पहले उच्चायुक्त वीके कृष्णा मेनन ने इंडिया हाउस में हॉकी टीम का आधिकारिक स्वागत किया। विजयी भारतीय टीम यूरोप की धरती पर सद्भावना दौरे पर गई – फ्रांस, चेकोस्लाविया और स्विटजरलैंड का दौरा किया।
टीम हवाईजहाज से बॉम्बे लौटी, जहां टीम का रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत किया गया। जीत का जश्न दिल्ली जाकर पूरा हुआ, जहां राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय स्टेडियम में ओलंपिक टीम से जुड़े मैच में पहुंचकर हौसलाअफजाई की।
लंदन में 1948 के ओलंपिक में भारत का रिकॉर्ड
खेले गए मैच: 5
जीते मैच: 5
किए गए गोल: 25
भारत के खिलाफ गोल: 2
1948 की भारतीय ओलंपिक टीम के सदस्य
किशन लाल (कप्तान)
कुंवर दिग्विजय सिंह(उप कप्तान)
लेस्ली क्लॉडियस
वाल्टर डिसूजा
केशव दत्त
लॉरी फर्नांडीस
रंगनाथन फ्रांसिस
रणधीर सिंह कोमल
गेरी ग्लैकन
अख्तर हुसैन
पैट्रिक जानसेन
अमिर कुमार
लियो पिंटो
जसवंत सिंह राजपूत
लतीफ-उर-रहमान
रेजिनाल्ड रॉड्रिक्स
बलबीर सिंह
ग्रहनंदन सिंह
त्रिलोचन सिंह
मैक्सी वैज़
(भारतीय हॉकी डॉट ओआजी से साभार, भावानुवाद: आशीष आनंद)