#Taliban: इस्लामिक अमीरात बनाकर देश का झंडा बदलने का ऐलान

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अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता पूरी तरह कायम होने में बस कुछ ही वक्त बाकी बचा है। ताबड़तोड़ हमले के बाद तालिबानियों ने काबुल पर भी कब्जा कर लिया। यहां की सबसे बड़ी जेल पुल चरखी को तोड़कर कैदियों को रिहा कर दिया। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि उन्होंने ताजिकिस्तान में पनाह ली है। तालिबानी समूह के सीनियर लीडरों ने जल्द अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित करने के साथ ही देश का झंडा भी बदलने का ऐलान किया है।

अमेरिकी दूतावास काबुल एयरपोर्ट पर शिफ्ट कर दिया गया है। अफगानिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों को निकालने के लिए सभी संबंधित देश कोशिशें कर रहे हैं। भारत सरकार ने भी तकरीबन 120 नागरिकों को विमान से वापस बुला लिया है।

बीस साल बाद अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता की वापसी के बाद क्या होगा, इस पर पूरी दुनिया की नजर है। इस बार तालिबानियों के रुख में भी बदलाव है तो रणनीतिक तौर पर प्रमुख देश भी आने वाले दिनों के शक्ति संतुलन को तालिबानियों से रिश्ते बनाने या दूर रहने की मशविरा कर रहे हैं।

अल जज़ीरा टीवी के साथ एक साक्षात्कार में रविवार को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा कि अफगानिस्तान में युद्ध समाप्त हो गया। प्रवक्ता ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ शांतिपूर्ण संबंधों बनाने की बात की। मोहम्मद नईम ने कहा कि तालिबान अलगाव में नहीं रहना चाहता और शासन का तरीका और चेहरा जल्द ही स्पष्ट हो जाएगा।

उन्होंने कहा, तालिबान समूह ने शरिया कानून के तहत महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हमेशा सम्मान किया है। हमारा समूह सभी अफगानी हस्तियों के साथ बातचीत करने के लिए भी तैयार है और उन्हें आवश्यक सुरक्षा की गारंटी देगा।

तालिबानी विद्रोहियों के रविवार को काबुल में प्रवेश करने के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी ने यह कहते हुए देश छोड़ दिया कि वह खूनखराबे से बचना चाहते हैं। ऐसा होते ही देश में तालिबानी सत्ता कायम होने की बाल पक्की हो गई।

रातों-रात मजार-ए-शरीफ और जलालाबाद को जीतने के बाद तालिबान ने राजधानी काबुल की ओर रुख किया। हालांकि, तालिबानियों ने तब यही कहा कि उसका बलपूर्वक या हिंसा करके शहर पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं है। वह अफगान सरकार से “सत्ता के शांतिपूर्ण संक्रमण” इंजार करेगा।

जैसे ही राष्ट्रपति गनी देश से भागे, तालिबान ने अपने सदस्यों को काबुल में प्रवेश करने और अफगान बलों द्वारा छोड़ी गई सभी चौकियों पर कब्जा करने का आदेश दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और अन्य शीर्ष अधिकारी तालिबान के अफगानिस्तान पर लगभग पूरी तरह काबिज होने की रफ्तार को स्तब्ध रह गए। पहले वे अमेरिकी सेना की नियोजित वापसी की बात कर रहे थे और अब सुरक्षित निकासी सुनिश्चित करना ही मिशन बन गया है।

अफगान सरकार के तेजी से पतन और उसके बाद की अराजकता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि दो दशक तक अमेरिका ने अफगानिस्तान में क्या हासिल किया, अगर यह देश फिर तालिबान शासकों के हाथ में चला गया, वह भी अमेरिकी मौजूदगी के बावजूद, एक ट्रिलियन डॉलर का खर्च और हथियारों समेत तमाम साजोसामान और अपने हजारों फौजियों की मौत के बाद।

फौरी तौर पर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सीएनएन से कहा, “हमने देखा कि अफगानिस्तानी सरकार का सैन्य बल देश की रक्षा करने में असमर्थ रहा, जो हुआ है, वह अनुमान से कहीं अधिक तेज़ी से हुआ है।”

सीआईए समेत तमाम अमेरिकी खुफिया दस्तों के अनुमान पूरी तरह फेल हो गए। दो दिन पहले तक भी यह कहा जा रहा था कि तालिबान अगले तीन महीने में अफगानिस्तान को कब्जे में ले लेंगे और यह काम हो तीन दिन में ही गया।

दुनिया के तमाम बुद्धिजीवी इस असफलता को अफगानिस्तान की सरकार के सिर नहीं डाल रहे, बल्कि अमेरिका की अहंकारी नीति की नाकामयाबी बता रहे हैं। काबुल दूतावास के चारों ओर अमेरिकी हेलीकॉप्टरों की तस्वीरें बरसों पहले वियतनाम से उल्टे पैर अपमानजनक तरीके से वापसी की याद दिला रही है।

अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि राजधानी से निकासी के बीच दूतावास पर अब देश का झंडा नहीं फहरा रहा है। लगभग सभी दूतावास कर्मियों को शहर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर स्थानांतरित कर दिया गया है।

भारत अगस्त महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहा है। आज अफगानिस्तान के मुद्दे पर यूनएससी की दूसरी बैठक होगी, इससे पहले 6 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र में भारतीय दूत टीएस तिरुमूर्ति ने बैठक की अध्यक्षता की थी। आज की बैठक में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के भी भाग लेने की उम्मीद जताई गई है।

 


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