सुकर्णो की बेटी सुकमावती ने इस्लाम छोड़ हिंदू धर्म अपनाया

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मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने मंगलवार को अनुष्ठान समारोह करके इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया। सुकमावती का धर्मांतरण समारोह ‘सुधि बदानी’ हिंदू-बहुल रिसॉर्ट द्वीप बाली में उनकी दादी इदा आयु न्योमन राय श्रीमबेन के घर में हुआ, जो खुद बालिनी हिंदू थीं। हिंदू धर्म अपनाने में सुकमावती को उन्होंने ही प्रभावित किया। (Sukmavati Converted From Islam)

इस मौके पर सुकमावती के करीबी दोस्त और बाली में सुकर्णो सेंटर के प्रमुख व संस्थापक अध्यक्ष आर्य वेदाकर्ण ने कहा कि रिश्तेदारों ने धर्मांतरण के बाद आशीर्वाद दिया।

सुकमावती ने कहा कि उन्हें रहस्यमयी तरीके से अपनी दादी समेत अपने पूर्वजों से मार्गदर्शन मिला।”

सुकमावती के धर्मांतरण समारोह के गवाह उनके बेटे मुहम्मदपुत्र अल हदद भी बने। समारोह की सुरक्षा में बाली सुरक्षा बल पेकलांग तैनात रहा।

सुकमावती के धर्मांतरण के फैसले के बारे में प्रेस से उनके वकील ने कहा, उन्हें हिंदू धर्म का व्यापक ज्ञान है। वह हिंदू धर्मशास्त्र के सभी सिद्धांतों और अनुष्ठानों से भी अवगत हैं। (Sukmavati Converted From Islam)

70 साल की सुकमावती सुकर्णोपुत्री सुकर्णो की तीसरी बेटी और पूर्व राष्ट्रपति मेगावती सुकर्णोपुत्री की छोटी बहन हैं।

वह इंडोनेशियाई नेशनल पार्टी (पार्टाई नैशनल इंडोनेशिया-पीएनआई) की संस्थापक भी हैं। उनका विवाह कंजेंग गुस्ती पंगेरन आदिपति आर्य मंगकुनेगारा IX से हुआ था, लेकिन 1984 में उनका तलाक हो गया।

सुकमावती सुकर्णोंपुत्री के धर्मांतरण के कदम को मानवाधिकारवादी और राजनीतिक पर्यवेक्षक देश में धार्मिक बहुसंख्यकवाद के नतीजे के रूप में देख रहे हैं।

कौन थे सुकर्णों, जिनकी बेटी हैं सुकमावती

सुकर्णो इंडोनेशियाई स्वतंत्रता आंदोलन के नेता और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने “गाइडेड डेमोक्रेसी” के पक्ष में देश की मूल संसदीय प्रणाली का दमन किया। उन्हें 1966 में सुहार्तो के नेतृत्व वाली सेना ने अपदस्थ कर दिया था।

मार्च 1942 में जापानियों ने इंडीज पर आक्रमण किया तो उन्होंने उनका राष्ट्रीय मुक्तिदाता के रूप में स्वागत किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने सुकर्णो को अपना मुख्य सलाहकार और प्रचारक बनाया। (Sukmavati Converted From Islam)

सुकर्णो ने जापानियों पर इंडोनेशिया को स्वतंत्रता देने के लिए दबाव डाला और 1 जून 1945 को कई प्रसिद्ध भाषणों में से सबसे प्रसिद्ध भाषण दिया। सुकर्णो की 69 वर्ष की आयु में गुर्दे की पुरानी बीमारी और कई जटिलताओं के कारण मृत्यु हो गई। सुकर्णोवाद के पंथ और विचारधारा को 1970 के दशक के अंत तक प्रतिबंधित कर दिया गया। उनकी आत्मकथा सुकर्णो 1965 में प्रकाशित हुई थी।


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