Thursday, October 17, 2024
Home Blog Page 3294

#CoronaVirus: कोरोना की 3rd Wave बच्‍चों के लिए जानलेवा! विशेषज्ञों ने जताई आशंका

0

नई दिल्‍ली। देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर बेकाबू होती जा रही है. हर दिन कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्‍या बढ़ रही है. एक ओर जहां देश कोरोना की दूसरी लहर ने कोहराम मचा रखा है, वहीं विशेषज्ञों ने अभी से तीसरी लहर की आशंका जता दी है.

यह भी पढ़े: रालोद प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह का निधन, कोरोना से थे संक्रमित

तीसरी लहर बच्‍चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है

विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना की तीसरी लहर बच्‍चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक देश में कोरोना की पहली लहर बुजुर्गों के लिए खतरा बनी थी जबकि दूसरी लहर युवा आबादी के लिए खतरनाक साबित हुई थी. विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना की तीसरी लहर बच्‍चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.

भारत में कोरोना की तीसरी लहर सितंबर तक आ सकती है

विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि, भारत में कोरोना की तीसरी लहर सितंबर तक आ सकती है. मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बाल चिकित्सा और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञों का कहना है कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम को शुरू कर देना चाहिए. अगर सरकार ने इस संबंध में जल्‍दी कोई कदम नहीं उठाए तो कोरोना की तीसरी लहर बच्‍चों के लिए घातक साबित हो सकती है.

यह भी पढ़े: उत्तराखंड के CM ने देश के उद्यमियों से कहा- मदद करो

कोरोना से बचने का सबसे बड़ा हथियार है वैक्सीन

संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. नितिन शिंदे ने कहा, ऐसे समय में जब कोरोना की तीसरी लहर के बारे में आशंका जताई गई है, ऐसे समय में टीका न लगवाने वाले बच्‍चों में खतरा बढ़ जाएगा. बता दें कि, कोरोना वैक्‍सीन को इस समय कोरोना से बचने का सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है.

मुंबई पुणे जैसे शहरों में बच्चें ज्यादा संक्रमित हुए हैं

विशेषज्ञों ने कहा कि, कोरोना का नया संक्रमण भले ही बच्‍चों में किसी भी तरह की गंभीर समस्‍या पैदा नहीं कर रहा हो, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में बच्‍चे बीमार जरूर हो रहे हैं. पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में मुंबई पुणे जैसे शहरों में बच्चें ज्यादा संक्रमित हुए हैं. ऐसे में अगर तीसरी लहर आई तो सबसे ज्‍यादा खतरा इन्‍हीं बच्‍चों को होगा. ऐसे में हमें बच्‍चों के लिए अब टीके की आवश्‍यकता होगी.

यह भी पढ़े: बैंगलुरू : कोविड वार रूम के कुप्रबंधन में 17 मुस्लिम कर्मचारियों का नाम घसीटा, लोग बोले इस संकट में हिंदू-मुस्लिम का राग छेड़ते शर्म नहीं आती

भारत में 7 मई तक पीक पर हो सकता है कोरोना

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सरकार के मैथमेटिकल मॉडलिंग एक्सपर्ट प्रोफेसर एम. विद्यासागर का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर 7 मई को अपने पीक पर हो सकती है. उन्‍होंने कहा है कि देश के हेल्‍थ सेक्‍टर को इसके लिए पूरी तरह से तैयार रहने की जरूरत है. प्रो. विद्यासागर ने कहा, इस सप्‍ताह कोरोना अपने पीक पर आ सकता है. इसके बाद कोरोना के मामलों में गिरावट दर्ज की जाएगी. प्रो. विद्यासागर ने कहा कि 7 मई को कोरोना अपने पीक पर होगा.

हर राज्‍य में स्थिति थोड़ी बदली हुई दिखाई दे सकती है

हालांकि उन्‍होंने कहा कि, हर राज्‍य में स्थिति थोड़ी बदली हुई दिखाई दे सकती है. हर राज्‍य में कोरोना के पीक पर पहुंचने का समय भी थोड़ा अलग हो सकता है. लेकिन पूरे देश में जिस तरह से कोरोना के आंकड़े बढ़ रहे हैं उसे देखें तो कोराना की लहर या तो पीक पर है या इसके बेहद करीब है.

यह भी पढ़े: फेसबुक, ट्विटर नहीं पसीजा तो ट्रम्प दादा ने जन संवाद के लिए अपनी नई दुकान खोल ली

 

बैंगलुरू : कोविड वार रूम के कुप्रबंधन में 17 मुस्लिम कर्मचारियों का नाम घसीटा, लोग बोले इस संकट में हिंदू-मुस्लिम का राग छेड़ते शर्म नहीं आती

0

द लीडर : कर्नाटक की राजधानी बैंगुलरू के एक कोविड वार रूम से पीड़ितों को कथित रूप से बेड बेचने की घटना सामने आई है. जिसे सांप्रदायिक रंग दिया जाने लगा है. बैंगुलरू से सांसद तेजस्वीव सूर्या ने बेड बेचने का दावा किया है. वार रूम में काम करने वाले 17 मुस्लिम कर्मचारियों की सूची सोशल मीडिया पर सामने आई है. जिन्हें आतंकवादी कहकर संबोधित किया जा रहा है. इस घटना को लेकर तेजस्वी सूर्या की आलोचना भी हो रही है. (Bengaluru 17 Muslim Employees Mismanagement Kovid War Room)

बैंगुलरू के जिस वॉर रूम की ये घटना बताई जा रही है. वहां करीब 206 कर्मचारी कार्यरत हैं, जो संविदा पर हैं. कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री हैं. इससे लोग सरकार पर ही निशाना साध रहे हैं कि वह मुश्किल वक्त में हिंदू-मुस्लिम का फलसफा छेड़ रही है.


रालोद प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह का निधन, कोरोना से थे संक्रमित


 

इस घटना में बीबीएमपी के ज्वॉइंट कमिश्नर सरफराज खान का भी नाम घसीटा जा रहा है. सरफराज खान ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी है. जिसमें उन्होंने कहा कि ये सुनकर बेहद दुख हो रहा है कि इस मामले में मेरा नाम जोड़ा जा रहा है. जबकि हकीकत ये है कि मेरा वॉर रूम से कोई संबंध नहीं है न ही मैं किसी डॉक्टर को जानता है. इसकी निगरानी विशेष हेल्थ कमिश्नर कर रहे हैं. मैंने हज हाउस में एक कोविड सेंटर स्थापित कराया. और उसमें 50 बेड का इंतजाम कराया. ये सारा बंदोवस्त हक कमेटी के 50 फीसदी बजट से कराया गया है. जिसमें 90 प्रतिशत हिंदू समाज के भाई उपचार पा रहे हैं. मेरा फर्ज अपने देश, समाज और सरकार के लिए है, जिसमें निभा रहा है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरफराज की पोस्ट के बाद तेजस्वी सूर्या ने उनसे बात की है. और कहा है कि मैं आपके काम का सम्मान करता हूं और आपके साथ हूं. लेकिन जिस तरह वॉर रूम से छांटकर 17 मुस्लिम कर्मचारियों को घटना के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. वो समाज को भी विचलित कर रहा है. इसीलिए सोशल मीडिया पर एक धड़ा तेजस्वी सूर्या की आलोचना कर रहा है. और इस पूरे मामले के लिए सरकार व स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार मान रहा है.

कोविड संकट में मुस्लिम युवाओं ने मदद को बढ़ाए हाथ

कोरोना महामारी के इस संकट में जब अपने ही अपनों को अकेला छोड़ दे रहे हैं. तब सैकड़ों मुस्लिम नौजवानों उन्हें अपनाकर खिदमत कर रहे हैं. यहां तक कि उनकी मौत के बाद अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं. कई लोगों ने तो अपनी संपत्ति बेचकर मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई है. सोशल मीडिया पर सामाजिक एकता और मदद के जज्बे की कहानियां भरी पड़ी हैं. ऐसे माहौल में जब देश को इसी तरह की एकजुटता की जरूरत है. तब किसी घटना में हिंदू-मुस्लिम का फलसफा छेड़ना यकीनन समाज के लिए भी अस्वीकार्य है.

रालोद प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह का निधन, कोरोना से थे संक्रमित

0

द लीडर। राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का निधन हो गया है। वह कोरोना संक्रमित थे।82 वर्षीय अजित सिंह की मंगलवार रात को तबीयत बेहद बिगड़ गई थी। उन्हें गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।बताया जा रहा था कि फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण उनकी हालत नाजुक हो गई थी।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह बागपत से 7 बार सांसद और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं। 82 साल की उम्र में उनका निधन हुआ है।उनके निधन के बाद बागपत समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शोक की लहर है।चौधरी अजित सिंह की गिनती जाट बिरादरी के बड़े किसान नेताओं में होती थी।

22 अप्रैल को हुए थे कोरोना संक्रमित आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह 22 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए थे. इसके बाद से ही उनके फेफड़े में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था। मंगलवार रात अजित सिंह की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी।इसके बाद उन्हें गुरुग्राम के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया जा रहा है कि गुरुवार सुबह उनका निधन हो गया।

चौधरी अजित सिंह का सियासी सफर 

चौधरी अजित सिंह ने अपनी सियासी सफर की शुरुआत 1986 से की थी।उस समय उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बीमार पड़ गए थे। अजित सिंह 1986 में राज्यसभा भेजे गए थे।इसके बाद 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।1989 में अपनी पार्टी का विलय जनता दल में करने के बाद वह उसके महासचिव बन गए।

1989 में अजित सिंह पहली बार बागपत से लोकसभा पहुंचे।वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया।इसके बाद वह 1991 में फिर बागपत से ही लोकसभा पहुंचे। इस बार नरसिम्हाराव की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया।1996 में वह तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे, लेकिन फिर उन्होंने कांग्रेस और सीट से इस्तीफा दे दिया।

1997 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की और 1997 के उपचुनाव में बागपत से जीतकर लोकसभा पहुंचे।1998 में चुनाव में वह हार गए, लेकिन 1999 के चुनाव में फिर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2001 से 2003 तक अटल बिहारी सरकार में चौधरी अजित सिंह मंत्री रहे।2011 में वह यूपीए का हिस्सा बन गए।

2011 से 2014 तक वह मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। 2014 में वह मुजफ्फरनगर सीट से लड़े, लेकिन हार गए।2019 का चुनाव भी चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर से लड़े, लेकिन इस बार भी बीजेपी प्रत्याशी संजीव बलियान ने उन्हें हरा दिया।हालांकि, किसान आंदोलन का उनकी पार्टी को फायदा हुआ है और जिला पंचायत चुनाव में आरएलडी ने शानदार प्रदर्शन किया है।

ये भी पढ़ें- कोरोना की तीसरी लहर आनी तय: केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार की बड़ी चेतावनी

 

देश के कई राज्यों में होने वाले लोकसभा-विधानसभा उपचुनाव स्थगित, नई तारीखों की अभी घोषणा नही

0

द लीडर। कोरोना संक्रमण को बढ़ते देख चुनाव आयोग ने तीन लोकसभा और 8 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों को टाल दिया गया है।फिलहाल आयोग ने नई तारीखों का ऐलान नहीं किया है।

संक्रमण की रफ्तार बढ़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव करवाकर चुनाव आयोग को मद्रास हाईकोर्ट की तरफ से फटकार लग चुकी है। मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का ‘एकमात्र’ जिम्मेदार ठहराया था।ऐसे में आयोग ने तीन लोकसभा और 8 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों को टाल दिया है।

आयोग की तरफ से जारी बयान में बताया गया है कि संक्रमण की वजह से उपचुनावों को टालने का फैसला लिया गया है।हालांकि, आयोग की तरफ से अभी कोई नई तारीख का ऐलान नहीं किया गया है।

चुनाव आयोग का कहना है कि देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर तेजी से बढ़ रही है। इस वजह से अभी उपचुनावों को टालने का फैसला लिया गया है।आयोग ने बताया कि जब संक्रमण की रफ्तार कम हो जाएगी तो संबंधित राज्यों के अधिकारियों के साथ सलाह लेकर तारीखों पर फैसला लिया जाएगा।

इन विधानसभा सीटों पर होने थे उपचुनाव

1. हरियाणाः काल्का और एलेनाबाद 2. राजस्थानः वल्लभनगर 3. कर्नाटकः सिंडगी 4. मेघालयः राजाबाला और मॉरिंगखेंग 5. हिमाचल प्रदेशः फतेहपुर 6. आंध्र प्रदेशः बड़वेल

इन लोकसभा सीटों पर होने थे उपचुनाव

1. दादरा नगर हवेलीः दादरा नगर हवेली 2. मध्य प्रदेशः खंडवा 3. हिमाचल प्रदेशः मंडी

संक्रमण के बीच चुनाव कराने पर EC हुई थी आलोचना कोरोना संक्रमण के बीच 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव समेत कई राज्यों में उपचुनाव और यूपी में पंचायत चुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।मद्रास हाईकोर्ट ने तो आयोग को फटकार लगाते हुए कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था। हालांकि, हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के खिलाफ आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर गुरुवार को फैसला आना है।

ये भी पढ़ें – पंचायत चुनाव में जीते प्रत्याशियों को मुख्यमंत्री ने दी बधाई,कोविड गाइडलाइन्स पालन करने की अपील

ममता बनर्जी भाजपा की तरह एक तानाशाह और फासीवादी हैं-जस्टिस काटजू ने किन तर्कों के आधार पर ऐसा कहा

0

जस्टिस मार्केंडय काटजू


भाजपा पर अक्सर फासीवादी होने का आरोप लगाया जाता है. ये सच भी है. लेकिन ममता बनर्जी भी किसी फासीवादी से कम नहीं हैं. और वह असहमित-असंतोष को सहन नहीं कर सकती हैं. यहां तक कि जो भी उनकी आलोचना करता है. वो अक्सर जेल में बंद नजर आता है. जादौपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महामात्रा का ही उदाहरण ले लीजिए.

प्रोफेसर अंबिकेश को केवल इसलिए जेल में डाल दिया गया था, क्योंकि उन्होंने ममता बनर्जी के कुछ कार्टून सोशल मीडिया पर साझा कर दिए थे. दूसरा उदाहरण सिलादित्य चौधरी-जोकि एक किसान है-का सामने है. सिलादित्रू ने ममता से कहा था कि उन्होंने अपने चुनावी वायदे पर अमल नहीं किया है. इतने भर से चौधरी को माओवादी घोषित करार दे दिया गया. आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया.


बंगाल में हिंसा को लेकर यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का धरना, कहा- बम-बंदूक की नहीं होती राजनीतिक लड़ाई


 

बहुत से लड़के, जिन्होंने ममता बनर्जी के सामने जयश्रीराम के नारे लगाए थे. उन्हें भी गिरफ्तार किया गया. ये सब ममता के इशारे पर हुआ. 2012 में जब कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. ममता ने उस घटना को मनगढ़ंत करार देकर किनारा कर लिया था. लेकिन जब एक बहादुर पुलिस अफसर दमयंती सेन ने इसकी जांच के आदेश पर जोर दिया तो ममता ने तत्काल उनका तबादला कर दिया था. ये सब घटनाएं बताती हैं कि ममता बनर्जी फासीवादी से कम नहीं है.

दरअसल, सच्चाई यह है कि ममता अभिमानी हैं. जनमानस की भारी समस्याओं के समाधान के लिए उनके दिमाग में कोई विचार नहीं है. सिवाय (रबींद्र संगीत की खुराक के अलावा) के. हालांकि पश्चिम बंगाल में 28 प्रतिशत मुस्लिमों ने उन्हें जमकर वोट दिया है. क्योंकि मुसलमानों का एक ही उद्देश्य है. वो ये कि किसी तरह भाजपा को हराना है. और कई हिंदू बंगालियों ने भी हाल के चुनावों में उनके लिए भी मतदान किया. ये सोचकर कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है पश्चिम बंगाल वास्तव पर दिल्ली से राज होगा. यानी गैर बंगाली लोगों द्वारा जो बंगाली भी नहीं बोलते हैं-वे बंगाल पर शासन करेंगे.


पंचायत चुनाव में जीते प्रत्याशियों को मुख्यमंत्री ने दी बधाई,कोविड गाइडलाइन्स पालन करने की अपील


 

लेकिन अब जब टीएमसी फिर से बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आई है, तो जिन्न बक्से से बाहर आ गया है. जनवरी, 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद बर्बरता शुरू हुई थी. टीएमसी के गुंडों ने पहले ही अपना which खेला ’शुरू कर दिया है.

(लेखक सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं.)

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मुख्यमंत्री खुद फोन कर बढ़ा रहे हौसला,लखीमपुर में तैनात वन रक्षक को फोन करके पूछा हालचाल 

0

लखनऊ।कोरोना महामारी से प्रदेश को उबारने के साथ-साथ प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना संक्रमित मरीजों का खुद फोन करके हालचाल जान रहे हैं। बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखीमपुर में तैनात वन रक्षक अनिल कुमार को फोन करके उनका हालचाल पूछा। साथ ही कोई भी समस्या होने पर मोबाइल पर आए नम्बर पर कॉल करने का कहा। वहीं, मुख्यमंत्री के हालचाल पूछने पर वन रक्षक अनिल कुमार भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उनसे स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी के साथ दवाएं व जांच से जुड़े हुए सवाल किए।

लखीमपुर में तैनात वन रक्षक अनिल कुमार 3 मई को कोरोना संक्रमित हुए थे। रिपोर्ट आने के बाद वह होम आइसोलेशन में है। अनिल कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रामित होने के बाद जब सामान्य आदमी उनका हालचाल नहीं पूछ रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री के हाल पूछने से उनका हौसला बढ़ गया है। अनिल कुमार ने बताया कि करीब तीन मिनट की काल में सबसे पहले सीएम ने उनका हालचाल पूछा। उसके बाद सरकारी की ओर से होम आइसोलेशन मरीजों को दी जा रही दवाओं की जानकारी ही। इस पर अनिल कुमार ने बताया कि उनको सुबह से कई डॉक्टर फोन करके हालचाल पूछ चुके हैं। दवाएं व अन्य जरूरी वस्तुएं उनको पहुंचाई जा चुकी है।
दो दर्जन से अधिक डॉक्टरों कर चुके हैं फोन
अनिल कुमार ने बताया कि सीएम के फोन आने से पहले ही करीब दो दर्जन से अधिक डॉक्टर उनको फोन कर स्वास्थ्य की जानकारी ले चुके हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान ली जाने वाली सभी दवाएं निशुल्क उन तक पहुंचाने का काम भी स्वास्थ्य विभाग कर चुका है। इसके अलावा कौन सी दवा कब खाना है, भाप दिन में कितनी बार लेना है। इसकी जानकारी भी डॉक्टर फोन पर उनको दे रहे हैं। यही नहीं आयुष विभाग की ओर से दिया जाने वाला काढ़ा भी उनको पहुंचाया जा चुका है।

बढ़ गया हौसला 
अनिल कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमित होने के बाद वह काफी डर गए थे लेकिन सुबह मुख्यमंत्री के हालचाल पूछने के बाद मानो उनका हौसला कई गुना बढ़ गया है। अनिल ने बताया कि कोरोना से लड़ाई के लिए असली हौसला यही है। सीएम के फोन के बाद मानो एक हिम्मत आ गई है इस बीमारी से लड़ने की।

ये भी पढ़ें…

आज कृषि कानूनों पर विवाद छिड़ा है लेकिन टीपू सुल्तान ने सामंतवाद का खात्म कर किसानों को भूमि का मालिक बना दिया था

0

खुर्शीद अहमद


टीपू सुल्तान को आजादी के नायक के रूप में हर कोई जानता है लेकिन टीपू सुल्तान एक उत्कृष्ट आयोजक और असाधारण दूरदर्शी जननायक और नेता थे. कृषि विकास अपने सरकार के वर्षों में सिंचाई सुविधाओं, नहर, तालाब, सड़कें, पुल और बंदरगाह बनवाए. नए शहरों में वृद्धि, छोटे-बड़े उद्योगों, सैन्य और प्रशासनिक सुधारों पर काम किया. राजनयिक संपर्क बढ़ाए. आंतरिक मामलों पर बातचीत महत्वपूर्ण प्रशासनिक और निर्माण मामलों में उलझे रहे. शहादत के बाद उनके खंड से मिले चार हजार से अधिक अक्षरों के विषयों और सामग्री उनके कार्यों का स्पष्ट प्रमाण है.

टीपू सुल्तान ने सिंहासन पर बैठने के बाद अपने लोगों को जो पहला फरमान जारी किया था. वो था धर्म और धर्म, अपने लोगों का नैतिक सुधार, उनकी समृद्धि, आर्थिक और राजनीतिक विकास, न्याय, जमींदारों पर अत्याचार और मकान मालिक, मुक्ति, धार्मिक-भाषाई और शास्त्रीय तटस्थता का उन्मूलन, और देश की रक्षा के लिए जीवन बलिदान करने का निर्णय था.

उन्होंने ‘मजलिस घम नबाशीद’ नामक लोकतांत्रिक आवश्यकताओं में सबसे आगे एक परिषद की स्थापना की. सारंगा पट्टम में जमा अलामोर नामक विश्वविद्यालय की स्थापना की. टीपू सुल्तान को नवाचार में विशेष रूचि थी. कई शहरों के नाम बदल दिए. उदाहरण के लिए, बैंगलोर का नाम दरलसरूर, कालकट का इस्लामाबाद, मैसूर का नज़ाराबाद, और मंगलौर का जमालाबाद रखा गया था. वजन और पैमाने के नाम भी बदल दिए. एक नया रूपया जारी किया और उनका नाम अलग-अलग मामलों के साथ रखा. जैसे अहमद, सिद्दीकी, फारूकी, हैदरी आदि.


इसे भी पढ़ें : जुल्म के खिलाफ डटकर खड़े होने वाले हजरत अली का आज शहादत दिवस है, मुसलमानों को उनके किरदार से सीखने की जरूरत


 

नए मोड बंदूकें और तोपें बनाओ, ढालें बनाओ जो तीर या गोलियों पर असर न करे. ऐसे प्रोजेक्ट शुरू किए. भारत के इतिहास में पहली बार टीपू सुल्तान ने जनगणना, पंचायती राज की नींव, मिसाइल का आविष्कार करने का राज भी उनके सिर पर था. अमेरिकियों ने भी इसे रॉकेट के संस्थापकों में गिना है.

टीपू सुल्तान ने हर शहर, कस्बे और किले के चार फाटक लगाए. जहां चोरी हुई वहां गार्ड नियुक्त किए गए. इसकी जिम्मेदारी पुलिस अधिकारी को सौंपी गई. अपराधी गिरफ्तार नहीं हुआ तो पुलिस अधिकारियों की सैलरी से भरपाई होती थी. जिन जगहों पर लुटेरों के हमले का खतरा था, वहां निवासियों को आग्नेयास्त्र पकड़ने की अनुमति दी जाती. हर शहर में जज और हर गांव में पंचायत. अपील के लिए अदालत के राष्ट्रपति (उच्च न्यायालय) थे.

टीपू सुल्तान ने अपराधियों को सजा देने का नया तरीका निकाला. अपराधी को उसके अपराध के लिए पेड़ लगाने और उगाने की जिम्मेदारी दी जाती. वे उर्दू अखबार के संस्थापक थे. टीपू सुल्तान ने गुलामों और लड़कियों को खरीदना और बेचना पूरी तरह से बंद कर दिया. उनके लिए अनाथालयों का निर्माण कराया.


इसे भी पढ़ें : मुसलमानों का एक कारोबारी समुदाय-हजरमी, जो यहूदियों की तरह फिर से वैश्विक कारोबार पर अपनी छाप छोड़ता नजर आ रहा


 

मकान मालिकों को खत्म कर मजदूर और किसानों को जमीन का मालिक बना दिया. जमीन का मालिक था, जमीन पर किसान. व्यवसाय को पहचान दिलाई. जमीन हल चलाने वाले किसान की ही थी. आदेश जारी किया कि जमीन के लिए आवेदन करने वाले को जरूरत के अनुसार मुफ्त जमीन दी जाए. व्यापार बढ़ाने के लिए विदेशों से कनेक्शन. दूर दूर से कारीगरों को बुलाकर सभी प्रकार के उद्योगों की फेहरिस्त जारी की. अपने लोगों को दूसरे देशों से रेशम की खटमल उठाना सिखाया. इसके अलावा स्थापित रत्न नक्काशी और हथियार कारखाने लगवाए.

इन कारखानों की स्थापना का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि जरूरत की हर चीज का निर्माण अब साम्राज्य में किया जाने लगा था. आयात पर निर्भरता घटी और चीजों का निर्यात शुरू हो गया. हजारों को रोजगार मिल गया.
टीपू सुल्तान ने एक नई व्यापार नीति बनाई, जिसके तहत विदेशों ने ईरान, तुर्की और हिजाज़ आदि के मुस्लिम व्यापारियों को विशेष छूट दी. व्यापार के लिए सरकार के संरक्षण में एक बड़ी व्यापार कंपनी भी स्थापित की गई. जिसमें हर कोई निवेश करके शेयर कर सकता है.

जहां सुल्तान ने सामंतवाद को खत्म किया वहीं पूंजीवाद को खत्म करने के लिए भी कदम उठाया. सभी साम्राज्य में उन्होंने जनता, व्यापारी और किसानों के लिए बैंक जारी किए. उनमें खास बात ये थी कि गरीब और छोटे पूंजीपतियों को ज्यादा मुनाफा होता. इन सभी सुधारों और सुल्तानों के संघर्षों का परिणाम यह हुआ कि मैसूर भारत के सभी क्षेत्रों में सबसे समृद्ध और हरे रंग का क्षेत्र बन गया.

आज जब तीन नए कृषि कानूनों पर विवाद छिड़ा है और हजारों किसान पिछले करीब चार महीने से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत हैं. उसमें टीपू सुल्तान के उस योगदान को भी किसान याद कर रहे हैं.


इसे भी पढ़ें : क्या है सऊदी क्रांउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का विजन 2030 और इसमें शियाओं का योगदान, पढ़िए उनके इंटरव्यू की खास बातें


 

मैसूर के तीसरे युद्ध में प्रमुख हिस्सा लेने वाले कैप्टन लिटिल ने अपनी यादों में लिखा: ”टीपू के बारे में कई अफवाहें सुनने को मिलीं कि वह एक मजबूत और क्रूर शासक है. जिसके कारण उसके सारे लोग मजबूर हैं. लेकिन जब हम उनके देश में घुसे तो उद्योग और विकास देखा. रोज विकास के कारण नए शहर आबाद और आबाद हो रहे हैं. लोग अपने काम में मस्त हैं. जमीन का कोई हिस्सा बंजर नहीं दिखता. किसान जितनी भी खेती योग्य भूमि प्राप्त कर सकते हैं उससे लहरा रहे हैं. एक इंच जमीन भी बेकार नहीं मिली. राजा का सम्मान और प्यार, प्रजा और सेना के दिल में होता है. सेना के संगठन और उसके हथियारों को देखकर कहा जा सकता है कि यूरोप में सभ्य देश की सेना से किसी भी हालत में कोई पिछड़ा नहीं है. ”

20 नवंबर 1750 को जन्में टीपू सुल्तान, जो मैसूर के शेर के नाम से भी जानते हैं. 4 मई 1799 को अंग्रेजी से सेना से लड़ाई में शहादत हो गई थी. मैसूर समेत देश के तमाम हिस्से में उन्हें आज भी अपनी जिंदादिली और दूरदर्शी सोच के लिए याद किया जाता है.

पंचायत चुनाव में जीते प्रत्याशियों को मुख्यमंत्री ने दी बधाई,कोविड गाइडलाइन्स पालन करने की अपील

0

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी विजयी प्रत्याशियों बधाई दी है। उन्होंने चुनाव परिणामों के बाद लोगों से कोविड-19 को लेकर प्रशासन की गाइडलाइंस और ‘कोरोना कर्फ्यू’ के प्रोटोकॉल का पालन करने की अपील की है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को पंचायत चुनाव में विजयी प्रत्याशियों को ट्वीट कर बधाई दी है। उन्होने कहा कि ‘जनता जनार्दन का आशीर्वाद प्राप्त कर उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव-2021में विजयी हुए सभी प्रत्याशियों को हार्दिक बधाई। इस चुनौतीपूर्ण कालखंड में आप सभी स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर सहयोग करें तथा मानवता की सेवा में सहभागी बनें। उन्होंने आगे कहा कि ‘ चुनाव परिणामों के उपरांत प्रशासन की गाइडलाइन्स तथा ‘कोरोना कर्फ्यू’ के प्रोटोकॉल का पालन अवश्य करें। आप सभी के उज्ज्वल कार्यकाल के लिए मेरी मंगलकामनाएं।

त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे आते ही अब जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख पदों को कब्जाने की जोड़तोड़ तेज हो गयी है। सत्ताधारी भाजपा का एकतरफा पलड़ा भारी नहीं होने और सपा से कड़ी चुनौती मिलने से मुकाबला फंसेगा। ऐसे में सबसे अधिक संख्या में जीते निर्दलों की भूमिका अहम होगी। प्रदेश में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष तथा 826 ब्लाक प्रमुखों का चुनाव होगा। कुल निर्वाचित 3050 जिला पंचायत सदस्यों में से भाजपा व समाजवादी पार्टी लगभग बराबरी की संख्या पर दिख रहे है परंतु निर्दल सदस्यों की संख्या अधिक है। बसपा भी पंचायत चुनाव में तीसरी ताकत बनने में सफल रही है।

 

सपा नेतृत्व दावा कर रहा है कि तीन दर्जन से अधिक जिला पंचायतों में सपा का पलड़ा भारी है। इसी तरह ब्लाकों में भी समाजवादी दबदबा बना है। दूसरी भाजपा नेतृत्व का समाजवादी दावे को खारिज करते हुए कहना है कि जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख चुनाव में पता चलेगा कि कौन किस पर भारी है। वहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का कहना है कि जनता ने भाजपा को अभूतपूर्व समर्थन दिया है। जनता ने एक बार फिर परिवारवाद व भ्रष्टाचार की राजनीति को नकारते हुए शुचिता व सुशासन को प्राथमिकता दी है। अब भाजपा अधिकतर जिलों में जिला व क्षेत्र पंचायतों में बोर्डों के गठन में जुटी है।

बंगाल में हिंसा को लेकर यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का धरना, कहा- बम-बंदूक की नहीं होती राजनीतिक लड़ाई

0

लखनऊ। पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम आने के बाद हो रही हिंसा पर भाजपा नेता व कार्यकर्ता देश भर में अपने घरों में धरने पर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं। यूपी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए धरने पर बैठे।

उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर जानकारी दी और कहा कि बंगाल में हो रही हिंसा के खिलाफ आज लखनऊ में कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए धरना दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के नेतृत्व में भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ता एकजुट होकर बंगाल के कार्यकर्ताओं के साथ खड़े है। राजनीतिक लड़ाई विचारधारा की होती है ना कि बम और बंदूक की।

बता दें कि पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम आने के बाद भड़की हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इस बीच नंदीग्राम विधानसभा सीट पर प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मात देने वाले भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि राज्य में स्थिति बेहद खराब है। उन्होंने कहा कि इससे पहले जब ममता की पार्टी पहली बार 60 सीटें जीती थी, तब ऐसी हिंसा हुई थी।

बंगाल में रविवार से शुरू हुई हिंसा के बाद से ही भाजपा लगातार तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगा रही है। भाजपा का आरोप है कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यालयों, उनके समर्थकों के घरों, दुकानों पर हमला किया है। हिंसा में अभी तक उनके कई कार्यकर्ताओं की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए हैं।

बता दें कि बंगाल की हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राज्यपाल जगदीप धनखड़ से फोन पर बात की थी और राज्य के हालात पर चिंता व्यक्त की थी।

ये भी पढ़ें…

लखनऊ में DRDO के अस्पताल में अब भर्ती हो सकेंगे मरीज,मुख्यमंत्री ने किया उद्घाटन

0

लखनऊ। लख़नऊ के अवध शिल्प ग्राम में बने डीआरडीओ के 500 बेड़ों के अस्पताल में अब कोरोना मरीजों का इलाज संभव हो सकेगा। लखनऊ के सांसद व रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की पहल पर डीआरडीओ द्वारा स्थापित किये गए 500 बेड़ों के इस अस्थायी अस्पताल का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी द्वारा आज किया गया।उत्तर प्रदेश में कोरोना के बढ़ते केस के बीच अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों की किल्लत अभी भी है. हालांकि, सरकार की ओर से बेड की कमी को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इसी क्रम में लखनऊ में डीआरडीओ की ओर से बनाए गए 500 बेड के अस्पताल की आज से शुरूआत हो गया है। यहां आज से मरीज भर्जी किए जाएंगे।

लखनऊ के शिल्पग्राम स्थित इस अस्पताल का सारा मेडिकल सपोर्ट सेना और वायुसेना के डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ देखेंगे। बाकी मैनेजमेंट का काम राज्य सरकार के कर्मचारियों के जिम्मे होगा। इस अस्पताल में रजिस्ट्रेशन के माध्यम से आईसीयू और वेंटिलेटर वाले बेड्स मिलेंगे।

 लखनऊ में कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए बुधवार से करीब 700 नए बेड शुरू होने जा रहे हैं, जो शहर के लोगों के लिए बड़ी राहत साबित होंगे। इनमें सबसे अधिक 500 बेड डीआरडीओ की ओर से संचालित अवध शिल्प ग्राम में शुरू होंगे। वहीं 100 बेड का इजाफा कैंसर संस्थान में होने जा रहा है। मंगलवार को मुख्यमंत्री इससे पहले योगी आदित्यनाथ ने कैंसर संस्थान के कोविड अस्पताल का उद्‌घाटन भी कर दिया।

इसके अलावा मोहनलालगंज और गुडंबा सीएचसी में भी 50-50 बेडों पर मरीजों की भर्ती शुरू हो जाएगी। इसके अलावा भी शहर में कोरोना मरीजों के लिए बेड बढ़ोतरी पर तेजी से काम हो रहा है। इसके तहत केजीएमयू में 267 बेड बढ़ाए जाएंगे। इनमें 127 बेड सर्जिकल वॉर्ड में अगले दो दिन में शुरू हो जाएंगे जबकि एक सप्ताह में मानसिक रोग विभाग में भी 140 बेड शुरू होंगे जिसकी तैयारी चल रही है।

वहीं, लोहिया संस्थान में 100 बेड का इजाफा हो रहा है। ये बेड लोहिया के पुराने परिसर में संचालित किए जाएंगे। वहीं हज हाउस में बन रहे कोविड अस्पताल के 255 बेड पर काम तेजी से चल रहा है जो एक सप्ताह के अंदर शुरू हो जाएंगे।

राजधानी के अस्पतालों में कोविड के जितने भी नए बेड शुरू किए जा रहे हैं उनमें सभी पर ऑक्सिजन सपोर्ट की सुविधा होगी। कैंसर संस्थान जहां लेवल टू स्तर से शुरू किया जा रहा है तो डीआरडीओ व हज हाउस में लेवल थ्री की सुविधा मिलेगी। डीआरडीओ में तीन हजार लीटर कैप्सूल का ऑक्सिजन प्लांट शुरू कर दिया गया है। यहां लेवल-1 के दो व और लेवल-2 और 3 के एक-एक वॉर्ड होंगे। 150 वेंटीलेटरों की सुविधा भी होगी।वहीं केजीएमयू और लोहिया में भी लेवल थ्री की सुविधा मिलेगी। जबकि सीएचसी स्तर पर लेवल वन के बेड होंगे, लेकिन सभी पर ऑक्सिजन सपोर्ट दिया जाएगा।