जुल्म के खिलाफ डटकर खड़े होने वाले हजरत अली का आज शहादत दिवस है, मुसलमानों को उनके किरदार से सीखने की जरूरत

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Martyrdom Day Hazrat Ali Muslims Character
कफूा स्थित मस्जिद

हफीज किदवई


किसी को लगता था कि धोखे से पीठ में उतारा एक खंजर उनको ख़त्म कर देगा, ज़ालिम भूल रहा था कि वह शख्सियत मिट्टी के जिस्म की मोहताज ही नही थी. उनका जिस्म तो रुखसत हुआ मगर उनकी रूह दुनिया में ऐसी चमकी, ऐसी चमकी की पूरी क़ायनात ही रौशनी से भर उठी. उनमें नरमी ऐसी की नरमी से पिघला मोम भी उनके पैतियाने बैठ सीखे. ताक़त इतनी की उस दौर में का सख्त तपा हुआ लोहा मुरझा जाए. मोहब्बत इतनी की खुशबू, रहती दुनिया के बाद भी महके है. इल्म इतना की लाखों किताबें एक करवट से निकलें. (Martyrdom Day Hazrat Ali Muslims Character)

ख़िदमत ऐसी की दुनिया की सबसे शानदार मिसाल. दानशीलता ऐसी की खुद का खून निचोड़ कर ज़रूरतमंद में बांट दें. इंसाफ ऐसा की तराज़ू का कांटा माशा भर भी इधर उधर न झुके. यूं कहे हर फ़न में तारीख़ गढ़ने वाली नायाब शख़्सियत.

जिनकी पैदाइश का गवाह काबा और शहादत के आंसू मस्जिद ने बहाए हों. जिनको मिटाने के लिए भी रास्ता वह चुना गया, जब उनका सर खुदा के सजदे में हो. खुदा के सामने झुके सर पर भी पीठ पर वार करके सोचा था कि उन्हें मिटा लेंगे. लेकिन वह चमक कर घर-घर ,नस्ल-नस्ल में रौशन हो गए. यह हैं हमारे हजरत अली.


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मेरा दिल जब डूबकर लड़खड़ाता है तो उसे सहारा देते हैं मेरे अली. अली ने सूफ़िज़्म की वह नीव रखी जिसकी आगोश में सारा जहां आ गया. जब उन्होंने मोहब्बत से बाहे फैलाई पूरी आवाम सर झुका के खड़ी हो गई. हर एक के सवाल, परेशानी, दर्द, तकलीफ़ में जिसने फाहे का काम किया वह अली थे.

जब आंखों में अंधेरा और मुस्तकबिल में कालिख़ दिखी, तब रौशनी का काम किया अली ने. मेरे अली ने हर पके दर्द में शिफ़ा का चीरा लगाया. हर तकलीफ़ में मरहम के फाहे रखे. इंसानियत को अपनी मोहब्बत और दूरंदेश सोच से ऐसा रास्ता दिखाया की इंसानियत की राह आसान हो गई.

जिन्होंने हज़ारों साल पहले वह कह दिया जिसकी आज भी उतनी ही ज़रूरत है, जितनी तब थी. अपने क़ातिल तक के लिए कहा की इसको सिर्फ इतनी ही सज़ा देना जितना इसका गुनाह है. सज़ा गुनाह से बढ़कर मत हो. इंसाफ में माशा भर फ़र्क़ न आने पाए.

आज 21वीं रमज़ान उनकी शहादत का दिन है. एक कुंठित बीमार दिमाग ने उन्हें खत्म करना चाहा था. 19वी रमज़ान को पीठ पर खंजर मारा और 21वीं रमज़ान यानी आज के रोज़ हज़रत अली जिस्म से आज़ाद होकर इंसानियत के ज़र्रे ज़र्रे में ज़िन्दा हो गए. अली अपने जिस्म से उठकर आम लोगों की रूह में उतर गए. आज जब हज़रत अली को याद करिए, तो सबसे पहले खुद में सब्र लाइये. हिम्मत को जगह दीजिये. सख़ावत को ज़ेवर बनाइये. इल्म में डूब जाइये और ऐसे मोती चुनिए की इंसानियत मुस्कुराए.


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हज़रत अली से सीखिए की गरीब अमीर के फ़र्क़ बिना, मज़हब और सोच के फ़र्क़ बिना, काले गोरे के फ़र्क़ बिना, औरत आदमी के फ़र्क़ बिना इंसाफ और मदद कैसे की जाती है. दुनिया की वह नायाब मिसाल जिसने अपनी बीवी हज़रत फातिमा को बराबर से बैठाया. उनके इल्म ओ हुनर को महकने दिया. उनके किरदार पर पहरे बैठाने की जगह उसे खुलने दिया. बेपनाह मोहब्बत भी की और हौसला भी दिया. अपने बच्चों को सच्चाई के लिए मर मिटने का सबक़ देकर बड़ा किया.

उनमें ख़िदमत को कूट कूट कर पैबस्त किया और ज़ुल्म के आगे झुकने की जगह तनकर खड़े होने का गुर सिखाया. उनसे सीखिए और अपने परिवार, अपने घर, अपने दोस्तों, जानने वालों को सुधारिये. सिखाइये, खुद को निखारिये. यही हज़रत अली को याद करने का सबसे बेहतर तरीका है.


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जो इंसाफ के साथ है, वह हज़रत अली के पीछे खड़ा है. जो ज़ुल्मी के ख़िलाफ़ मज़लूम के साथ खड़ा है. उसके सर पर हज़रत अली का हाथ है. जो इल्म के लिए भूख प्यास भूला है. उसकी आंखों की चमक हज़रत अली हैं. जो झुककर परेशान को सहारा दे रहा, उसके कंधों पर हज़रत अली का हाथ है. जो यतीमों को मोहब्बत,इज़्ज़त और मज़बूती दे रहा, उसके दिल की खुशबू हैं हज़रत अली. जो हर एक कि बराबरी के लिए लड़ रहा, उसकी ढाल हैं हज़रत अली. हर अच्छाइयों की वजह हैं, हमारे हज़रत अली. बस दुआ की सुई की नोक के बराबर भी आपका किरदार हममें आ जाए, तो ज़माना महक जाए.

(हफीज किदवई लेखक हैं, ये आलेख की फेसबुकवॉल से यहां प्रकाशित है-साभार)

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