29 जनवरी को तय होगा सुन्नी बरेलवी मुसलमान ख़्वाजा के क़ुल में कौन सा पढ़ेंगे सलाम

The Leader. अजमेर से एलान हो गया कि हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्ला अलैह का क़ुल छह रजब यानी 29 जनवरी को सुबह 10 बजे होगा लेकिन दरगाह आला हज़रत स्थित बरेली मरकज़ से अभी रजब के चांद का एलान नहीं किया गया है. इसी के साथ नज़रें इस बात पर लग गई हैं कि जब अजमेर में ख़्वाजा का क़ुल होगा तो वहां सुन्नी बरेलवी मुसलमान कौन सा सलाम पढ़ेंगे. वो जो वहां राइज है, जिसके नबीर-ए-आला हज़रत मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान भी सहमति जताकर आ चुके हैं या फिर आला हज़रत का लिखा सलाम. जिस पर ग़रीब नवाज़ की दरगाह परिसर में रोक लगाने की वजह से बरेलवी नाराज़ हैं.


हिम्मत है तो सामने से करें मुख़ालेफ़त- यह किसके लिए कह रहे मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान


इस बार ख़्वाजा का उर्स सलाम को लेकर ख़ड़े हुए तनाजे़ की वजह से ही दुनियाभर में नाम के आगे रज़वी और चिश्ती लगाने वाले मुसलमानों के लिए ख़ास हो गया है. तनाज़े को ख़त्म करने के लिए ही आला इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान अजमेर गए थे. वहां उनकी मुलाक़ात अंजुमन सय्यद ज़दगान दरगाह उर्स कमेटी के सेक्रेट्री सय्यद सरवर चिश्ती और दूसरे अहम लोगों से हुई थी. मौलाना की तरफ से जब सवाल उठाया गया कि आला हज़रत के सलाम पर रोक का सबब क्या है तो जवाब मिला था, दरगाह में लंबे समय से या नबी सलाम अलैका ही पढ़ा जाता आ रहा है, बरेली के मुसलमान आला हज़रत का सलाम पढ़ते हैं तो उसकी वजह से टकराव के हालात बनते हैं. उसे टालने की ग़रज़ से ही तय किया है कि दरगाह के अंदर राइज सलाम को ही पढ़ा जाए. इस सफ़ाई के बाद मौलाना ने हामी भर दी थी. एलान कर आए थे कि राइज सलाम ही पढ़ा जाएगा.


दरगाह आला हज़रत की गलियों में बेचैनी का सबब बना दूल्हे का यह डांस


मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के एलान करने के बरअक्स सलाम को लेकर खड़ा हुआ तनाज़ा ख़त्म नहीं हुआ. रज़वी और चिश्ती मुसलमानों के लिए इस मसले में बहस और मुबाहिसा जारी रहा. इस खींचतान में मौलाना को भी घसीटा जाता रहा. तब मौलाना को कैमरे पर आकर सख़्त नाराज़गी का इज़हार करना पड़ा. यह कहना पड़ा-अगर किसी में हिम्मत है तो सामने आकर आकर मुख़ालेफ़त करके दिखाए. बहरहाल इस हिमायत और मुख़ालेफ़त का लब्बोलुआब क्या निकलकर आएगा उसका वक़्त तय हो गया है. अजमेर से एलान कर दिया गया कि 29 जनवरी को ख़्वाजा का क़ुल होगा. अजमेर के साथ ही क़ुल की महफ़िल का आयोजन दरगाह आला हज़रत समेत बहुत ही दरगाह, ख़ानक़ाह और मस्जिदों में भी किया जाएगा. उन लोगों के लिए जो अजमेर नहीं जा पाते. बहुत से लोग पहले की तरह अजमेर जाकर ख़्वाजा के उर्स में शिरकत करेंगे. देखने वाली बात होगी कि वहां वो कौन सा सलाम पढ़ेंगे. काफ़ी लोग दुआएं भी मांग रहे हैं कि ख़्वाजा के उर्स में किसी तरह की कोई कशीदगी नहीं हो. यही मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान भी चाहते हैं. अब क्या होगा, यह छह दिन बाद साफ़ होगा.


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