द लीडर डेस्क।
इजराइल में अभूतपूर्व कुछ होने वाला है। कल ही संसद ने वामपंथी रुझान के इशाक हरजोग को राष्ट्रपति चुना और अब उसी संसद को एक ऐसी सरकार को हरी झंडी देनी है जिसके प्रधानमंत्री बनने की सबसे कट्टरपंथी यहूदी नेता नफ़्ताली बेनेट तैयार बैठे हैं। विपक्षी गठबंधन ने सहमति पत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया है। अब तो कोई करिश्मा ही नेतन्याहू की कुर्सी बचा सकता है। फिर भी संसद यानी नेसेट की औपचारिक मंजूरी तक रुकना होगा।
12 साल से पीएम पद पर काबिज बेंजामिन नेतन्याहू पिछले दो साल में हुए चार चुनावो में बहुमत नहीं जुटा पाए और मजबूरी में उनकी अल्पमत सरकार बनती रही। इस बीच भ्रष्टाचार के मुकदमों और मित्रों की बगावत ने उन्हें और कमजोर कर दिया। हमास से 11 दिनों का युद्ध तो निर्णायक ही हो गया। अगले सप्ताह संसद में विपक्षी गठबंधन बहुमत साबित कर पाता है तो फिर बेनेट के हाथों में कमान होगी। 49 साल के अरबपति बेनेट पहले भी इजरायल की कैबिनेट का हिस्सा रह चुके हैं। बेनेट यदि इजरायल के पीएम बनते हैं तो आने वाले दिनों में विदेश नीति में बहुत ज्यादा अंतर दिखना मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि वह भी नेतन्याहू की तरह ही दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता हैं।
भानुमति का कुनबा तैयार
इजराइल के राष्ट्रपति को बुधवार को उदारवादी ऐस अतिद पार्टी के नेता यैर लैपिड और कट्टर दक्षिणपंथी यमीना के नेता नफ़्ताली बेनेट ने जिस वैकल्पिक गठबंधन की सूची सौंपी है वो भानुमति का कुनबा ही है। इसमें वामपंथी के साथ घनघोर दक्षिणपंथी यहूदी ही नहीं मुस्लिम पहचान के लिए लड़ने वाले अब्बास मंसूर की मुस्लिम दक्षिणपंथी भी हैं और इन सबको को जोड़ा है उदारवादी दल ने। 30 सदस्यों वाले लिकुड के नेता नेतन्याहू की कुर्सी पर 7 सदस्यों वाले नफ़्ताली की ताजपोशी होगी।
कौन हैं नफ्ताली बेनेट
इजरायल की कट्टर धार्मिक यामिना पार्टी के मुखिया बेनेट का जन्म अमेरिकी प्रवासी परिवार में हुआ था। मिलिट्री कमांडो यूनिट में सेवाएं दे चुके और टेक उद्यमी रहे बेनेट ने पेमेंट सिक्योरिटी कंपनी Cyota Inc की स्थापना की थी। इसके अलावा 2006 से 2008 के दौरान जब नेतन्याहू विपक्ष के नेता था, तब वह उनके चीफ ऑफ स्टाफ थे। 2012 में उन्होंने राजनीति में एंट्री की थी और यहूदी राष्ट्रवादी पार्टी के मुखिया के तौर पर वह कैबिनेट का हिस्सा भी बने थे। डिफेंस, शिक्षा और धार्मिक मंत्रालय समेत कई अहम विभागों को वह संभाल चुके हैं। 1967 की जंग में इजरायल की ओर से कब्जाए गए वेस्ट बैंक इलाके के विलय के वह पक्षधर रहे हैं। यहां तक कि उनके सुझाव पर ही नेतन्याहू ने इस प्रक्रिया की शुरुआत की थी। इसके अलावा ईरान को लेकर भी बेनेट अपने कड़े रुख के लिए जाने जाते हैं। नए बने गठबंधन में विचारधारा के स्तर पर तमाम मतभेद हैं। इसके बाद भी सभी दलों ने विवादित मुद्दों को छोड़कर कॉमन इशूज पर फोकस करने का फैसला लिया है। कोरोना वायरस संकेट के चलते पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर सभी दल फोकस कर सकते हैं।
क्या है संसद का गणित
इजरायल में 2019 के बाद से अब तक 4 बार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन परिणाम निर्णायक नहीं रहा है। आखिरी बार मार्च में हुए चुनावों में यामिना पार्टी को 120 सांसदों वाले सदन में 7 सीटें ही मिली थीं, लेकिन 13 पार्टियों के बीच किंगमेकर बनने के लिए यह भी काफी है। गठबंधन की ओर से तय करार के तहत वह 2021 से 2023 तक के लिए पीएम बनेंगे। इसके बाद यैर लेपिड पीएम बनेंगे। दोनों नेता भले ही अलग-अलग विचारधारा से आते हैं, लेकिन नेतन्याहू के खिलाफ दोनों ने ही एकजुटता दिखाई है।
ईरान और फलस्तीन पर सख्त
गे राइट्स जैसे कई मसलों पर उनकी राय काफी उदार है। लेकिन ईरान और फलस्तीन जैसे मुद्दों पर वह नेतन्याहू से भी काफी मुखर हैं। वह कहते रहे हैं कि फलस्तीनी अथॉरिटी दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी संगठन है। इसके अलावा ईरान के भी वह कटु आलोचक रहे हैं।