द लीडर डेस्क।
एक छोटे दल के एक धड़े ने नेपाल की राजनीति में ऐसा खेल किया कि चार दिन पहले संसद में विश्वासमत पर वोटिंग में बुरी तरह पराजित के पी शर्मा ओली को फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई। नेपाली संविधान के अनुच्छेद 100(3) को लागू करने की नौबत नहीं आयी बिखरे हए सदन में सबसे ज्यादा सदस्यों वाले दल का नेता होने के नाते ओली को अनुच्छेद 78 (3) के तहत फिर से राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया।
पुष्प दहल प्रचंड के 43 सदस्यों ने 61 सदस्यों वाली नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउपा को समर्थन दिया लेकिन जनता समाजवादी दल की फूट की वजह से वह 136 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाए।
नेपाली संसद के नुचले सदन प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हारने के तीन दिन बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 69 वर्षीय सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष ओली को प्रधानमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया। चौथे दिन वह शपथ ले रहे हैं। राष्ट्रपति कार्यालय ने गुरुवार शाम एक बयान में कहा कि नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 78 (3) के अनुसार प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नेता के रूप में ओली को प्रधानमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया। शुक्रवार को शीतल निवास में उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी।
महंत ठाकुर के पास थी चाभी
विश्वास मत के वाद राष्ट्रपति भंडारी ने विपक्षी दलों को सरकार गठन के लिए गुरुवार रात नौ बजे तक का समय दिया था। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को सीपीएन माओवाद के अध्यक्ष पुष्पकमल दल ‘प्रचंड’ का समर्थन मिल गया था, लेकिन वह जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) का समर्थन हासिल करने में नाकाम रहे। जेएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने देउबा को समर्थन का आश्वासन दिया था लेकिन पार्टी के एक और अध्यक्ष महंत ठाकुर ने इस विचार को खारिज कर दिया। महंत के साथ 16 और उपेंद्र के साथ 15 सदस्य हैं। इस तरह देउपा के पक्ष में 125 सदस्य ही जुट पाए।
यूएमएल के पास 275 सदस्यीय सदन में 121 सीटें है। माधव नेपाल के धड़े वाले 28 सांसदों ने कार्यावाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और माधव के बीच गुरुवार को समझौता होने के बाद अपनी सदस्यता से इस्तीफा नहीं देने का निर्णय लिया। ओली ने माधव समेत यूएमएल के चार नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का फैसला वापस लेते हुए उन्हें उनकी मांगें माने जाने का आश्वासन दिया। यदि यूएमएल के सांसद इस्तीफा दे देते तो प्रतिनिधि सभा में सदस्यों की संख्या घटकर 243 रह जाती, जो फिलहाल 271 है। ऐसे में सरकार गठन के लिये केवल 122 मतों की दरकार होती। मगर अब तो खेल बदल चुका था।
नहीं चला माधव नेपाल का खेल
इससे पहले सीपीएन-यूएमएल के माधव कुमार नेपाल-झालानाथ खनल धड़े से संबंध रखने वाले सांसद भीम बहादुर रावल ने गतिरोध खत्म करने के लिए मंगलवार को दोनों नेताओं के करीबी सांसदों से नयी सरकार का गठन करने के लिए संसद सदस्यता से इस्तीफा देने का आग्रह किया। रावल ने बुधवार को ट्वीट किया कि ओली नीत सरकार को गिराने के लिये उन्हें संसद सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिए।
उन्होंने लिखा, असाधारण समस्याओं के समाधान के लिए असाधारण कदम उठाए जाने की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री ओली को राष्ट्रीय हितों के खिलाफ अतिरिक्त कदम उठाने से रोकने के लिए उनकी सरकार गिराना जरूरी है। इसके लिए हमें संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिए। राजनीतिक नैतिकता और कानूनी सिद्धांतों के लिहाज से ऐसा करना उचित है।
नेपाली कांग्रेस के संयुक्त महासचिव प्रकाश शरण महत ने माना कि विपक्षी दल सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत का इंतजाम कर पाने में विफल रहे।
नेपाल के वयोवृद्ध वामपंथी नेता केपी शर्मा ओली 2018 के संसदीय चुनाव में वाम गठबंधन की भारी जीत के बाद दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। तब उन्होंने देश में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद की थी लेकिन उनकी अपनी कोशिशों से भी यह संभव न हो सका।
सियासी उथल-पुथल के चलते वे अर्श से फर्श पर आ गए। नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में खींचतान के बाद ओली द्वारा आश्चर्यजनक रूप से दिसंबर में संसद को भंग करने की अनुशंसा से देश एक बार फिर राजनीतिक संकट में चला गया और पार्टी टूट गई।
14 साल तक जेल में रहे
ओली किशोरावस्था में ही छात्र कार्यकर्ता के रूप में राजनीति से जुड़े थे और राजशाही का विरोध करने की वजह से 14 साल तक जेल में रहे। वह वर्ष 2018 में वाम गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
प्रचंड से हुई दोस्ती
सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ नीत सीपीएन (माओवादी केंद्र) ने वर्ष 2017 के चुनाव में प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल करने के साथ-साथ सात में से छह प्रांतों में जीत दर्ज की थी। दोनों पार्टियां का मई 2018 में औपचारिक रूप से विलय हो गया था।